तंत्र एक दर्शन नही हैं..... न ही सिद्धांत हैं..... न ही इसकी बात करता हैं बल्कि यह तो एक विधि सामने रखता हैं कि ऐसा करने पर इसका परिणाम यह होगा ..और साथ ही साथ यह जीवन की किसी भी स्थिति को न नकारता हैं ...... न ही उसे घृणा कि दृष्टी से देखता हैं बल्कि उसमे कैसे दिव्यता लायी जाए..... कैसे इसी शरीर को जिसे कतिपय घृणा की दृष्टी से देखते हैं .....परम तत्व तक पहुँचाने का एक रास्ता बना दिया जाए . तंत्र एक महासागर हैं अनेको प्रकार की धाराए इसमें मिलती गयी और आज इसकी शाखाए ना मालूम कितनी हैं.
तंत्र मानव जीवन की कमियों को समझता हैं और उससे से भागने को प्रोत्साहित नही बल्कि उसे समझने का एक तरीका ..... एक दृष्टी कोण ..एक मानस .... सामने रखता हैं कि भागो नही जानो ..समझो और मुक्त होते जाए ..तंत्र यह स्वीकार करता हैं कि मानव जीवन पर अनेको पूर्व जीवन की कमियों का प्रभाव हैं .और काम क्रोध जो भी हैं वह आत्मा के मूल भूत सौदर्य को छुपा ले रहे हैं .
तंत्र दमन का पक्षधर नही हैं .वह यह जानता हैं कि उर्जा का कोई भी रूप फिर चाहे वह यह हो या वह ..अगर दमित किया गया गया तो कहीं न कहीं से वह फिर प्रगट होगा है अतएव कहीं ज्यादा उचित होगा कि उसे रूपांतरित कर दिया जाए जीवन की उर्ध्व मुखी दिशा कि ओर ...
तंत्र काम भावना को हीन दृष्टी से नही देखता बल्कि उसकी अतितेरिकता का विरोधी हैं .तंत्र सामने रखता हैं कि यही काम उर्जा जो की सामान्य मानव मे अधोमुखी हैं कैसे उसे उर्ध्व मुखी कर दिया जाए . यह काम भावना को नष्ट करने की बात नही करता क्योंकि यह जानता हैं कि यही तो कुण्डलिनी शक्ति हैं बस इसकी दिशा को परिवर्तित करना हैं .क्योंकि अगर ऐसे ही नष्ट कर दिया गया तो मानव जीवन और निर्जीव निस्तेज सा रह जायेगा जीवन की सारी खुशियाँ उमग , प्रसन्न ता समाप्त हो जायेगी . जीवन मे जो भी उत्साह की अवस्था हैं जो प्रगति ...वह इसी के कारण हैं . ठीक यही स्थिति क्रोध के साथ हैं बिना क्रोध तत्व के जीवन तो रीढ़ विहीन केचुए के सामान हो जायेगा .. तो यह भी स्थिति तंत्र को स्वीकार नही हैं .
तंत्र स्वीकारता को बहुत महत्त्व देता हैं .......कि ऐसा हैं तो हैं ..तो हैं...... .अब कर लिया स्वीकार अब ... जो भी परिणाम सामने आये .वह भी स्वीकार हैं .पूरे मन से ....... पूरे प्राण से.... पूरी आत्मा से.... पूरे ह्रदय से ... पर इस स्वीकारिता की आड़ मे कोई उछ्ह्ल्खता को बढ़ावा नही देता हैं .कि इसके आड़ मे जो मन चाहे सो करते जाए ..
आज का साधक सभ्य हैं सुसंस्कृत हैं और इस विपरीत वातावरण मे भी वह जब साधना के लिए बैठ्ता हैं तो यदि काम क्रोध अति मे ... उसके सामने आ जाते.... किसी मे इसकी मात्रा कम होगी तो दूसरे तत्व की अधिक ..पर परिणाम वही की साधना मे बैठ ही नही पाए या अधूरे मे ही छोडना पड़ी ..
अब अगर हर समस्या को दूर करने के लिए की एक एक साधना करना पड़े तो ...रास्ता बहुत ही बोझिल सा हो जायेगा ,हालाकि वस्तु स्थिति इसके विपरीत ही हैं . समय दोनों रास्तों मे उतना ही हैं . बस मार्ग थोडा सा अलग अलग हो जाते हैं .
तब क्या किया जाए ????
बस मान मसोस कर बैठा रहा जाए ..क्योंकि ..जब आप कुछ भी करने को उठते हैं तो प्रकृति सबसे पहले आपके सामने ऐसी विपरीत परिस्थतियां रखती हैं ..क्योंकि जो शक्तिशाली होगा वही जीवन युद्ध या साधना समर मे टिकेगा ..
अब हर ची ज के लिए मंत्र जप तो ठीक नही हैं ..और वह भी तब जब समय का अत्यधिक अभाव हो ... और ऐसे समय एक विज्ञानं हमारे सामने आता है जिसको हमने जाना समझा तो हैं पर उसकी उच्चता से सभी अनिभिग्य हैं ..वह हैं***** यन्त्र विज्ञानं .*****..
और यह यन्त्र हैं क्या ???
किसी भी नाम का उच्चारण करने पर ..किसी भी देव वर्ग का आवाहन करने पर ...ब्रम्हाडीय शक्ति से सबंधित मंत्र जप करने पर जो आकृति बनती हैं जिसमे उन् शक्तियों से सबंधित सभी उप् शक्तियां भी होती हैं उस ज्यामितीय आकृति को यन्त्र कहा जा सकता हैं . अब निश्चय ही प्राण प्रतिष्ठा और अन्य विधान तो हैं ही पर कुछ विधान तो इतने सरल हैं की .......
मतलब एक से एक अ द्भुत यन्त्र जिनके बारे मे कभी तथ्य सामने आये तो व्यक्ति शायद जीवन भर भी विश्वास न कर पाए .. वह भी स्वयं सिद्ध .........मतलब साधक को जप करना ही ना पड़े ..
अभी तो इस विज्ञानं के अमूल्य रत्न आना बाकी हैं ...इस विज्ञानं से भी आपका परिचय कार्य जाएगा ही ...आने वाले तंत्र कौमुदी के किसी ही अंक मे ..
आज एक ऐसा ही यन्त्र आपके सामने .. जिसको सिद्ध करने का कोई विधान नही बस आप किसी भी कागज मे बनाकर अपने साधना कक्ष मे रख दें .और कोई भी विधान् नही परिणाम आप स्वयं अनुभव करेंगे . हाँ किसी शुभ दिन इसे बना ले तो कहीं ज्यादा उचित होगा ..... पर ऐसा क्या हैं इसमें .. जो यह मनोकामना भी पूर्ति करदेगा .. तो देखें इस यन्त्र की रचना को ..
ॐ********शब्द सारे विश्व का ....परम शक्ति ... और सभी का उद्गम हैं .. तो
ह्रीं****** शब्द को देखें यह ह्रदय के आकार ही प्रतीक होता हैं और इसका निवास स्थान भी ह्रदय कमल मतलब अनाहत चक्र हैं. तो
ऐं *** शब्द को देखे यह भी गले जैसा दीखता हैं तो इसका स्थान विशुद्ध चक्र हैं . तो
क्लीं *** शब्द नाभि के जैसा लगता हैं , तो इसका स्थान नाभि चक्र मतलब मणिपुर चक्र हैं .
इस तरह से हैं आश्चर्य कि बात यह हैं की बीज मंत्रोकी संरचना देखिये किस तरह सिर्फ इनके लिखने के ढंग से यह बताया जा सकता हैं कि यह किन किन स्थानों से जुड़े होंगे या स्थान पर स्थापित हैं .इन विशिष्ट बीज मंत्रो से युक्त होने के कारण यह साधक कि मनो कामना पूर्ति मे सहायक हैं .
क्योंकि तंत्र मे कोई भी बात या तथ्य उपेक्षणीय नही हैं . जो विज्ञानं सभी मे दिव्यता देखता हैउसी ने हर अक्षर मे मे विशिष्ट ता देखी हैं . अगर साधक जानने का इच्छुक हो तो ..
इस यन्त्र का निर्माण या लेखन किसी भी शुभ दिन कर ले ,कैसे करना यह बाते कई कई बार पूर्व के लेखों बताई जा चुकी हैं तो पुनः उल्लेख करना उचित नही हैं ..
इस सरल से प्रयोग को कर के देखें ..और लाभ उठाये ...
Tanta is not a philosophy………not a
principle……………neither it talks about it ,rather it puts the process forward
whereby we can get the results …….and to add to that , it does not ignore any
condition of life………nor it see them with contempt rather how to bring about
divinity in it……….how to make our body the way to reach supreme element ,which
we see with contempt. Tantra is a very
big ocean, various streams have been added to it and today no one can say how
many branches it has.
Tantra understands the shortcomings
of life and it does not encourage us to run away from them rather it suggest
one way ………….one attitude…….one mind-set to understand, not to run………understand
it and get rid of it.Tantra accepts the fact that there is influence of
shortcoming of various past lives on human life…. and the kaam, anger whatever
they are, they are hiding the basic inherent beauty of soul.
Tantra never favours suppression.
It knows very well that any form of energy whatever it may be …if it is
suppressed , it will definitely emerge in some way or other, therefore it will be much better to transform
it in higher direction of life………………….
Tantra never sees the sexual
feeling with inferiority point of view rather it only opposes the excess of it.Tantra
says how to make sexual energy directed upwards which is directed downwards in
common man. It does not talk about destroying the sexual feeling because it
knows this itself is the kundalini power (serpent power) ,just its direction
has to be changed because if it is destroyed then human life will become
spiritless, it will wither away…….whole joy ,happiness of life will vanish .
All the joy and progress of life is due to this power only. Same is the
condition with anger .Without anger; life will become spineless like that of
earthworm…….so this condition is also not accepted by Tantra.
Tantra gives very high importance
to acceptance………………..that if it is like this then ok ……if we have accepted it
……………..whatever may be the consequences, that are also accepted with full mind,
full soul, full heart. However in the guise of acceptance, it is not to promote
any disharmony that in guise of it, we keep on doing whatever we want to.
Sadhak of present times is
well-mannered, civilized and whenever he sits for sadhna in this unfavourable
environment, then if kaam, anger is in excess, it comes in front of him. A
person may have any of them in deficiency; he might have any other shortcoming
in excess….. But ultimately the result is the same that either he is not able
to sadhna or he is not able to complete the sadhna.
Now if we have to do sadhna every
time to get rid of every problem then the path will become burdensome. However
the actual condition is actually opposite of it.Both the ways consume same
amount of time but only the paths are different.
Now what we can do?
Should we sit
idle…………………because………..whenever we get up to do something then nature first
puts forward the unfavourable circumstances in front of us………Because only the
powerful will survive in the battle of life and sadhna ….
Now to chant mantra for everything
is not correct especially when we are facing scarcity of time….and at this time
one science comes to our rescue, the science which we know but we are unaware of
its supremacy. That science is Yantra Science.
And what is this Yantra?
The image which is formed after
pronunciation of any name, after Aavahan of any deva, after chanting the mantra
related to any universal power and which contains all the sub power related to
that power is called Yantra. Now though we have Pran-Prathishta (Energizing)
process and other process, but several procedures are so much easy that……
Meaning amazing yantras regarding
whom if the facts are revealed then people may find it hard to believe ……….that
too self-accomplished……..meaning that sadhak does not even have to chant the
mantras.
Precious jewels of this science is
yet to be revealed…………….You all will be introduced to this science……..in any of
the coming editions of Tantra Kaumadi.
Today , let’s see one of such
yantra …………….no process to accomplish (siddh) this yantra, just form it on
piece of paper and keep it in sadhna room …..Nothing more need to be done, you
yourself will experience the results. It would be much better if it is made on
any auspicious day……………..but what is so special about it…………..which will fulfil
your wish too………..let’s look at the design of this yantra.
ह्रीं****** (Hreem) If
we see it, it appears to be in form of Heart and it’s residing place is also
lotus heart meaning Anahat Chakra.
ऐं *** (Aim)looks
like the throat ,it’s place is Vishudha Chakra.
क्लीं ***(Kleem) looks like
Navel and it’s place is Navel Chakra (Manipur Chakra).
Amazing thing is about the design
of these beej mantras…..just by way of writing one can tell about the place
where they are associated with or where they are established. Being in
combination with these special beej mantras, it helps in fulfilling the wishes
of the sadhak.
Because in tantra, anything or any
fact is not worth ignoring. The science which sees divinity in everything, it
has seen the specialty in every alphabet, if sadhak is willing to know it……
Construct or write this yantra on
any auspicious day. How to do it has already been told in the previous articles
.To repeat it again will not be correct.
Do this easy process and get the
benefits.
****NPRU****
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PLZ CHECK : - http://www.nikhil-alchemy2.com/
2 comments:
jai Sadgurudev,,
bhaiya,achchha laga yese adbhut yatra ke bare mein jaan kar .....sachmuch gyan ki har ek vidha aseem hai .... bhaiji kya yatra ko simple pen se likhna hai ya phir khas kalam aur ink se.....pls sanka ka samadhan kijiye.....
priy mahakaal ji , yantra likhne ke liye kalm kahin jydaa upyukt hoti hain .
priy neeraj bhai , bahut saare aayam abhi aane baki hain dhire dhire in vishyon ko bhi liya hi jayega par abhi to jo samne hain uska hi laabh uthhana chhaiye ...
priy rahul ji, sadharantah to jab visarjan ki baat hain to wahi karana hi hoga , haan tab tak ke liye aap un sabhi yantro ko ek lal kapde me baandh kar rakh sakete hain aur sadgurudev ke samne nivedan kar lee ki jaise hi samay milega aap in sabhi banaye gaye yantrao ko visarjit kar denge .
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