किसी भी साधना को सिद्ध करने के उपरान्त वह कौन कौन सी आवश्यक क्रियाये है.जिसके माध्यम से सिद्ध की गयी साधना का सफल प्रयोग किया जा सके . यह गोपनीय विधान तीन आवश्यक क्रियाओं से युक्त हैं
संधान क्रिया साधना
प्रक्षेपण क्रिया साधना
लक्ष्य क्रिया साधना
और इन सभी के योग से बनी ...सिद्धि क्रिया .
इस “सिद्धि क्रिया” को जो इन तीनो क्रियाओं का सम्मलित स्वरुप हैं कैसे उपयोग में लिया जाए ?. पर अभी तो इन तीनो क्रियाओं को अलग अलग समझना ही होगा .
“ संधान क्रिया साधना” और “प्रक्षेपण क्रिया ” के रहस्य सामने आ ही चुके हैं और इस क्रिया को कैसे पूर्ण करना हैं वह भी रहस्य खुल ही चुका हैं अब इसी दिव्यतम सर्वथा आवश्यक क्रियाओं की श्रंखला में तृतीय क्रिया****** “लक्ष्य क्रिया साधना “ *******के बारे में ..
संधान का मतलब निशाना साधने की क्रिया . पर प्रक्षेपण का तात्पर्य की कितने तीव्रता से उसे लक्ष्य पर...मतलब किस वेग से लक्ष्य पर छोड़ा जाए .अगर निशाना सही होने के बाद भी तीव्रता कम हुयी तो फल या कार्य की पूर्णता कैसे संभव हैं .पर लक्ष्य क्रिया तो कार्यको सफलता के द्वार पर ही ला देती हैं
इस दिव्यतम क्रिया के बारे में कही भी कोई भी उल्लेख नही हैं..और जब इन क्रियाओं का मूल्य समझ में आता हैं तब पता चलता हैं कि क्या अद्भुतता से युक्त ये विधान हैं . साधक साधना पकेट्स पे पैकेट्स मागाता जाता हैं पर उसे प्रयोग कैसे करना हैं यह पता ही नही होता . यहाँ साधना सिद्धि की बात नही बल्कि उस क्रम होने के बाद कैसे उसका उपयोग करना हैं इस विधान के बारे में जानकारी होना .
साधना क्षेत्र में अनाहत चक्र का अपना ही एक महत्त्व हैं .क्योंकि चित्त गत सारे अवस्था यही से निर्धारित होती हैं और यही पर तो चेतन और अवचेतन मन का मिलना भी . अबचेतनमन तो अद्वितीय शक्तियों का स्वामी हैं . और जब तक इन दोनों मनो में साम्य न हो जाये कैसे इस पथ पर आगे बढ़ा जा सकता हैं .
यदि रोज मंत्र जप के बाद भी मन अशांत हैं .... चित्त परेशां हैं .... तो कितना भी क्रिया की जाए सफलता कैसे मिलेगी .इसका यह भी मतलब हैं कि कहीं न कहीं कुछ प्रक्रिया गत कमी या न्यून ताये तो हैं .पर कहाँ ..
‘दिमाग और ह्रदय के खेल में जब भी दिमाग जीतता हैं तब साधक को हानि ही हो जाती हैं क्योंकि साधना का क्षेत्र में भाव गत हैं . और साधक को पता कैसे लगे कि कब उसका ह्रदय या कब उसका दिमाग काम कर रहा हैं. जब तक वह समझ पाए तब तक तो अनर्थ हो ही चुका होता हैं .
तो एक ओर जहाँ सदगुरुदेव तत्व के स्थित होने कि बात हैं तो वहां पर अनाहत चक्र पर होता हैं और उनका प्रका ट यी करण आज्ञा चक्र पर . पर चित्त के दुखी उदास होने पर सीधा असर यहाँ पर भी पड़ता हैं . पर यह अवस्था पर नियंत्रण किसे किया जाए तो उस कार्य के लिए ही इस लक्ष्य क्रिया साधना की आवश्यकता पड़ती हैं .
क्योंकि चित्त के दुखी रहने से . क्रिया में वह बल नही आ पायेगा .तो किये जाने वाली साधना कैसे सफल होगी ...?? तंत्र में भले ही कुछ क्रियाए जैसे मारण प्रयोग हैं. जो नैतिक और सामाजिक नियमों के अनुकूल नही हैं पर फिर भी अगर देखे तो इन प्रयोगों में कैसे किया जाना हैं मतलब सामने वाले पर आघात कैसे होना हैं पहले से ही निश्चित करना पड़ता हैं और एक प्रयोग में सफलता मिल जाना का मतलब पूरा जीवन बदल जाना हैं क्योंकि अब आपको यह समझ में आ गया हैं की सफलता कैसे हस्तगत होना हैं .
और यह तीव्रता कैसे देना हैं वह तो चित्त के शांत होने पर ही होगा . तो लक्ष्य क्रिया साधना , न केबल साधक के चित्त को शान्त करती हैं बल्कि आपकी प्राण वायु को भी नियंत्रित करती हैं प्राण वायु को क्यों ??? तो वह इसलिए कि प्राण वायु की सहायता से ही क्रिया में तीव्रता लायी जा सकती हैं .इस लिए जो स्थिर चित्त हैं उसे तो कोई समस्या नही पर अन्य सभी के लिए खासकर जो भी सूक्ष्म शारीर जागरण का अभ्यास कर कररहे हैं यह क्रिया न केबक्ल उनमे तीब्र ता देगी बल्कि उनके रजत रज्जू को इतना मजबूत बना भी देगी कि कभी भी जो कि टूटे न .... हो .साथ ही साथ आपके शरीर की अग्नि को तीव्रतम कर देगा क्योंकि 95% शारीर गत बीमारिया पेट के कारण ही होती हैं और जिसके पीछे मूल में छुपा होगा यह कारण कि शरीर गत अग्नि कमजोर हैं....... और लक्ष्य क्रिया साधना .... चेतन और अवचेतन मन के मध्य की दुरी को कम कर देती हैं . कुंडली जागरण और अन्य कोई भी साधना हो , हर जगह साधक की सफलता को कई कई गुणा बढाने में समर्थ इस लक्ष्य क्रिया की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि हैं सिद्धि साधना ..
वह सिद्धि क्रिया तो आएगी ही .कि कैसे करे सारी इन विशिष्ट प्रक्रियाओं का योग एक ही बार में ..और क्या हैं अद्भुतता सिद्धि प्रयोग.....? कि और कैसे उसका मन्त्र का निर्माण....?? इन तीनो साधना ओ के मन्त्र की सहायता से करना हैं वह तो आएगा ही ..
पर अभी इस लक्ष्य क्रिया साधना के विधान ::
मंत्र : हंस: सोSहम हंसः
Mantra: hansah soham hansah
इसी दिव्य मन्त्र के माध्यम से लंकापति रावण ने समस्त देवी देवताओ को अपने कैद में कर इच्छ्नुसारचलने पर बाध्य किया था .
आवश्यक विधान:
· एक बार में आसन स्थ होने पर 21 माला मंत्र जप करना हैं
· इस मन्त्र की कुल 21 माला मंत्र जप करना हैं मतलब एक ही दिन का विधान हैं . .और यह मंत्र जप पारद शिवलिंग पर त्राटक करते हुए ही किया जा सकता हैं .
· एक दिवस की प्रक्रिया समाप्त होने के बाद हर दिन 10 से 15 मिनिट रोज जप चलते फिरते किया जा सकता हैं ,
· ब्रह्मचर्य आदि नियमों की कोई आवश्यकता नही ..(फिर भी कर सके तो उचित रहता ही हैं )
· जितने दिन घर से बाहर रहे हैं(यदि साधना काल में और बाहर खाना आदि खाना पड़ा हो तो ) उतने दिन गुणित ३ माला हर दिन के हिसाब से नवार्ण मन्त्र की कर ली जाए तो त्रि दोष नही लगता हैं .
· वस्त्र और आसान लाल होना चाहिये .
· किसी भी माला से केबल तुलसी की माला को छोड़ कर जप कर सकते हैं.
· दिशा पूर्व या उत्तर रहे तो उत्तम हैं
· किसी विशेष समय की अनिवार्यता मन्त्र जप काल में नही हैं
· यदि इसी समय संधान क्रिया के मंत्र जप भी किये जा रहे हैं तो जैसे ही उस दिन का संधान क्रिया का मन्त्र जप समाप्त हो तत्काल इस क्रिया का मन्त्र जप किया जा सकता हैं .किसी भी दिन क्या जा सकता हैं
· इस प्रयोग से स्वत ही सूक्ष्म शरीर जागरण की साधना करने वालों के अत्यधिक लाभ मिलता हैं और उनकी रजत रज्जू भी विशेष प्रभाव युक्त होजाती हैं .
· पर यह जप पारद शिवलिंग पर दृष्टी रखते ही किया जा सकता हैं .
. इस तरह से यह तीसरी आवश्यक क्रिया कैसे सम्पन्न करना हैं ,यह रहस्य आपके सामने हैं आप इस क्रिया को सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकते हैं .सरल हैं ...इस तरह आप इस सिद्धि दायक आवश्यक गोपनीय विधान कि तीसरी महत्वपूर्ण क्रिया आपके सामने हैं .
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After succeeding sadhna(siddh some sadhna),
which are the necessary procedures(Kriyaaye)?, through which we can use that
succeeded sadhna(siddh sadhna)? This secret Process consist of three
procedures:
संधान क्रिया साधना(SANDHAAN
KRIYA SADHNA)
प्रक्षेपण क्रिया साधना(PRAKSHEPAN
KRIYA SADHNA)
लक्ष्य क्रिया साधना(LAKSHYA KRIYA SADHNA)
And the result of all these is…….SIDDHI KRIYA……
The “SIDDHI KRIYA” which is the combined form
of the above three Kriyaa’s. How to use this? But, first we have to understand
each of these three kriyaa’s separately….
The secrets of संधान क्रिया साधना(SANDHAAN
KRIYA SADHNA) and “प्रक्षेपण क्रिया
”( PRAKSHEPAN KRIYA )had
already come in front of you all and how to do that procedure, the secret of
that also has opened…….Now, in this divine series of necessary procedures, the
third procedure(kriya) is ****** “लक्ष्य क्रिया साधना(Lakshya KRIYA SADHNA) “ *******
The sandhaan means the process of
firing at the goal…..but prakshepan means how speedily the bullet is moving at
the goal…..in other words, with how much force the bullet is fired….If the
bullet has fired at the right point but its speed or force is less….then, how
it will be fruitful or how we will succeed in our work……But, Lakshya Kriya
takes you at the doorstep of success…….
No where information is given about this
divine process…and when we realize the value of these procedures, then, we came
to know with how much divinity these procedures are? Sadhak keeps on ordering
sadhna packets but how to use them, he does not know about this? Here, we are
not talking about sadhna siddhi but how to use that procedure after
successfully compelting it, one should be aware about that also.
There is a special importance of
Anaahat Chakra in the area of sadhna because what we feel in our chit, all are
decided here only and the meeting of avchetan and chetan man(heart) takes place here only. Avchetan
man(heart) is the master of surprising powers and when the combination of these
two do not take place, then, how can we move ahead on this field?
If mind is not in peaceful even after
doing daily mantra jaap….chit is also very sad….Then, how will success will come
even after doing so many sadhnas . Its meaning is that there is problem in
ourself in doing procedures…But , where?......
Whenever mind wins in the game of mind
and heart, then, the loss is of the sadhak only because the field of sadhna is
of feeling(bhaav) only. And how should sadhak know when his mind is working and when heart is
working? When, he came to know about this, it becomes too late and the loss had
already happened to him.
In other way, when we talk about the
stability of Sadgurudev Tatv, it is only in Anaahat Chakra and we can see him
only in Aagya chakra, but when we remain sad, unhappy….then, it effects us there
also….But ,how to control that situation, for that only, we need Lakshya Kriya
Sadhna.
Because due to the unhappiness of the
heart, strongness will not come to that
procedure, so, the sadhnaa which we are doing, how it will success? In tantra,
there are Maaran Paryogs, which are not favourable for society rules but still
if we see, how we have to attack our enemy, it is to be decided earlier and the
success to one sadhna can make change to the whole life because now you have
understand that how we can get the success?
And how we have to give the force, it
is decided we are in peaceful mood, so Lakshya Kriya sadhna not only give peace
to your heart but controls your Praan Vaayu also. Why Praan Vaayu? It is
because we get the force from Praan Vaayu only…..So, which are stable from
their Chit , there is no problem to them but who are practicing for
activating Sukshma sharir(body),this procedure
not give force to them but strongs their rjat rajju so that, it will never
break…..at the same time, increases the fire of your body because 95% of the
diseases of our body is due to stomach only and the root cause behind of it is thefire
within the body is less…….and Lakshya Kriya Sadhna ….decreases the distance in
between the Chetan Man(heart)and Acchetan man(heart). Whether it is a kundli
jaagran or any other sadhna, everywhere increases the percentage of success.
The main outcome of Lakshya Kriya is siddhi Sadhna…..
Siddhi Kriya will come in future that
how can we use all these special procedures at one time? And what is this
miraculous Siddhi paryog? And how its mantra is made?With the help of mantra of
these three sadhna, it will be done. It will surely come….
But, now, the procedure of this Lakshya
Kriya Sadhna:
मंत्र : हंस: सोSहम हंसः
Mantra: hansah soham hansah
With this divine mantra, the lankspati
Raavan has kept in his controls all the devi and devtaas and get all his work
done of his want through him.
Necessary Procedure:
. In one maala, 21
maalas has to be done.
.Total, 21 maalas
gas to be done, means it is a one day procedure.
. This mantra should
be done by meditating on the paraad shivling.
-After doing one day procedure, every
day jap can be done for 10-15 minutes.
It can be done during walking or doing some other work.
-There
is no rule to follow Brahmcharya (But if u, it will be good).
- If someone leaves out of house(if
outside food has been eaten during sadhna period), then,for that much days *3
maala of Navaarn mantra should be done,so that, we could be saved from tri
dosh.
-Clothes and Aasan
should be red.
-Jaap
can be done from any maala except tulsi maala.
-Direction
north or east will be best.
-The necessary of following some
special time during mantra jaap is not there.
-.If
the mantra jaap of sandhaan kriya is also being done at the same time, then,
after doing mantra jaap of sandhaan kriya of that day, we can continue the
mantra jaap of this process also.
-
with this, those who are practicing Sukshma Sharir(body), get special benefit
and their Rjat Rajju becomes special affectful.
-
But, this paryog should only be done by
seeing on paraad shivling.
-So,
how can u do the necessary third procedure, this secret is in front of u. You
can do it successfully. It is simple. In this way, third important procedure of
the necessary important process is in front of u.
****NPRU****
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