प्रद्युत्मान तन्नोपरि उद्धरित: नूतन सृजःउत्तपत्ति सहदिष्ठ:
ब्रह्मांडो सहपरि सहबीज: अक्षतान् |
मुमुक्षताम स्थिरताम वै: दिव्यः वपुः मेधा:
पूर्णम पूर्णै सपरिपूर्ण: आसन: दिव्यताम सिद्धि: ||
“विरूपाक्ष कल्प तंत्र” से उद्धृत त्रयी कल्प का प्रथम महत्वपूर्ण अंग है आसन सिद्धि
| आसन शब्द का प्रयोग विविध अर्थों में किया जाता है यथा...बैठने की पद्धति,भूमि,
तथा वह स्थान या माध्यम जिसके ऊपर बैठकर आध्यात्मिक या भौतिक कार्य संपन्न किये
जाते हैं |
सिद्ध विरूपाक्ष ने
इस शब्द को नवीन अर्थ प्रदान किया है...उन्होंने बताया की साधक को किस माध्यम का
किस तरह प्रयोग करना चाहिए..इसका ज्ञान अनिवार्य है,इस पद्धति का पूर्ण ज्ञान ना
होने पर वह माध्यम मात्र माध्यम ही रह जाता है,अब उसके प्रयोग से साधक को उसके
तंत्रकार्य में अनुकूलता मिलेगी ही ऐसा कोई प्रावधान नहीं है |
“पूर्णम पूर्णै
सपरिपूर्ण: आसन: दिव्यताम सिद्धि:” अर्थात आसन मात्र आसन न हो अपितु उसमे पूर्ण
दिव्यता का संचार हो और वो दिव्यता से युक्त हो तभी उसके प्रयोग से साधक की देह
दिव्य भाव युक्त होती है और तब यदि उसका भाव या साधना पक्ष उसे पूर्णत्व के मार्ग
पर सहजता से गतिशील करा देता है और साधक को पूर्णता प्राप्त होती ही है | यहाँ पूर्णम का अर्थ भी यही है की माध्यम पूर्णत्व गुण युक्त हो तभी तो
पूर्णत्व प्राप्त होगा |
तंत्र शास्त्र कहता है की दिव्यता ही दिव्यता को आकर्षित कर सकती है |यदि
साधक दिव्य तत्वोव के सामीप्य का लाभ लेता है या संपर्क में रहता है तो उसकी देह
में स्वतः दिव्यता आने लगती है,तब ऐसे में वातावरण में उपस्थित वे सभी नकारात्मक
अपदेव शक्ति, अदृश्य यक्ष,प्रेत आदि आपके मंत्र जप को आकर्षित नहीं कर पाते हैं और
आपकी क्रिया का पूर्ण फल आपको प्राप्त होता ही है | हममे से बहुतेरे साधक ये नहीं
जानते हैं की जब भी वे किसी महत्वपूर्ण दिवस पर साधना का संकल्प लेते हैं और जैसे
जैसे साधना का समय समीप आता है उनके मन में साधना और इष्ट के प्रति नकारात्मक
विचार उत्पन्न होते जाते हैं | या यदि कडा मन करके वे साधना संपन्न करने हेतु बैठ
भी गए तो कुछ समय बाद उन्हें ये लगने लगता है की बाहर मेरे मित्र अपने मनोरंजन में
व्यस्त हैं और मैं मूर्ख यहाँ बैठा बैठा पता नहीं क्या कर रहा हूँ ?
क्या होगा ये सब करके ?
आज तक तो कुछ हुआ नहीं,अब क्या नया हो जाएगा ?
हमें ये ज्ञात नहीं है की आसन यदि पूर्ण प्रतिष्ठा से युक्त ना हो तो हम
चाहे कितने भी गुदगुदे आसन पर या गद्दे पर बैठ जाएँ,हम हिलते डुलते रहेंगे और
हमारे चित्त में बैचेनी की तीव्रता बनी रहेगी | और इसका कारण हमारे शरीर का मजबूत
होना नहीं है अपितु भूमि के भीतर रहने वाली नकारात्मक शक्तियां सुरक्षा आवरण विहीन
हमारी इस भौतिक देह से सरलता से संपर्क कर लेती हैं और तब उनके दुष्प्रभाव से
हमारा चित्त भी बैचेन हो जाता है और शरीर भी टूटने लगता है और वे सतत हमें साधना
से विमुख होने के भाव से प्रभावित करते रहते हैं| और जब ऐसी स्थिति होगी,आप
व्याकुल मन और अस्थिर शरीर से कैसे साधना करोगे और कैसे आपको सफलता मिलेगी | और
यदि आप आसन से अलग हो जाते हो तो पुनःना सिर्फ आपका शरीर स्वस्थ हो जाता है बल्कि
आपका चित्त भी प्रसन्न हो जाता है |
तभी सदगुरुदेव
हमेशा
कहते थे की इस धरा पर बहुत कम गिने चुने स्थान बचे हैं ,जहाँ पर बैठकर
उच्च स्तरीय साधना की जा सकती है,ऐसी साधनाएं या तो सिद्धाश्रम की दिव्य भूमि पर
संपन्न की जा सकती है या फिर शुन्यआसन का प्रयोग कर,बाकी ऐसी कोई जगह नहीं है जो
दूषित ना हो | यहाँ तक की भी शमशान साधना में भी तब तक सफलता की प्राप्ति
संभव नहीं हो सकती जब तक की उस साधक को आसन खिलने की पद्धति का भली भांति ज्ञान न हो | एक साधक के द्वारा
प्रयुक्त सभी साधना सामग्री का विशिष्ट गुणों से युक्त होना अनिवार्य है अन्यथा
सामान्य सामग्रियों में यदि वो विशिष्टता उत्पन्न ना कर दे तो उसके द्वारा संपन्न
की गयी साधना क्रिया सामान्य ही रह जायेगी | यदि हम स्वगुरु या किन्ही सिद्ध विशेष
का आवाहन करते हैं तो प्रत्यक्षतः उन्हें प्रदान किये गए आसन भी पूर्ण शुद्धता के
साथ और दिव्यता से युक्त होने चाहिए |
इसके लिए आप एक नया रंगबिरंगा ऊनी
कम्बल ले सकते हैं और इसे सिद्ध करने के पश्चात इसके ऊपर आप अपने वांछित रंग का
रेशमी या ऊनी वस्त्र भी बिछा सकते हैं |
मंगलवार की प्रातः पूर्ण स्नान कर लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर बैठकर
भूमि पर तीन मैथुन चक्र का निर्माण क्रम से कुमकुम के द्वारा कर ले | १ और ३ चक्र
छोटे होंगे और मध्य वाला आकार में थोडा बड़ा होगा | मध्य वाले चक्र के मध्य में
बिंदु का अंकन किया जायेगा बाकी के दोनों चक्र में ये अंकन नहीं होगा | मध्य वाले
चक्र में आप उस कम्बल को मोड़कर रख दे और अपने बाए तरफ वाले चक्र के मध्य में तिल
के तेल का दीपक प्रज्वलित कर ले और दाहिने तरफ वाले चक्र में गौघृत का दीपक
प्रज्वलित कर ले,और हाँ दोनों दीपक चार चार बत्तियों वाले होने चाहिए | अब गुरु
पूजन और गणपति पूजन के पश्चात पंचोपचार विधि से उन दोनों दीपकों का भी पूजन
करे,नैवेद्य की जगह कोई भी मौसमी फल अर्पित करे |
इसके बाद उस कम्बल का पंचोपचार पूजन करे | तत्पश्चात कुमकुम मिले १०८-१०८
अक्षत को निम्न मंत्र क्रम से बोलते हुए उस कम्बल पर डाले |
ऐं (AING) ज्ञान शक्ति स्थापयामि नमः
ह्रीं (HREENG) इच्छाशक्ति स्थापयामि नमः
क्लीं (KLEENG) क्रियाशक्ति स्थापयामि नमः
तत्पश्चात निम्न ध्यान मंत्र का ७ बार उच्चारण करे और ध्यान के बाद जल के
छींटे उस वस्त्र पर छिडके –
ॐ पृथ्वी त्वया धृता
लोका देवी त्वं विष्णुना धृता |
त्वं च धारय माम
देवी: पवित्रं कुरु च आसनं ||
ॐ सिद्धासनाय नमः
ॐ कमलासनाय नमः
ॐ सिद्ध सिद्धासनाय
नमः
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण
करते हुए पुष्प मिश्रित अक्षत को उस कम्बल या वस्त्र पर ३२४ बार अर्पित करे |
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं
श्रीं सप्तलोकं धात्रि अमुकं आसने सिद्धिं भू: देव्यै नमः ||
OM HREENG KLEENG AING SHREEM
SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||
ये क्रम गुरूवार तक नित्य संपन्न करे | जहाँ पर अमुक लिखा हुआ है वहाँ अपना नाम उच्चारित करना है |अंतिम दिवस क्रिया पूर्ण होने के बाद किसी
भी देवी के मंदिर में कुछ दक्षिणा और भोजन सामग्री अर्पित कर दे तथा कुछ धन राशि
जो आपके सामर्थ्यानुसार हो अपने गुरु के चरणों में अर्पित कर दे या गुरु धाम में
भेज दे तथा सदगुरुदेव से इस क्रिया में पूर्ण सफलता का आशीर्वाद ले | अद्भुत बात
ये है की आप इस कम्बल को जब भी बिछाकर इस पर बैठेंगे तो ना सिर्फ सहजता का अनुभव
करेंगे अपितु समय कैसे बीत जाएगा आपको ज्ञात भी नहीं होगा,दीर्घ कालीन साधना कही
ज्यादा सरलता से ऐसे सिद्ध आसन पर संपन्न की जा सकती है और आप इसके तेज की जांच
करवा कर देख सकते हैं की कितना अंतर है सामान्य आसन में और इस पद्धति से सिद्ध आसन
में | आप ऐसे दो आसन सिद्ध कर लीजिए और एक आसन आप अपने गुरु के बैठने के निमित्त
प्रयोग कर सकते हैं | आपको दो बातों का ध्यान रखना होगा |
१.इन आसनों को धोया नहीं जाता है |
२. इन पर हमारे अतिरिक्त कोई और नहीं बैठ सकता है,अन्यथा उसकी मानसिक
स्थिति व्यथित हो सकती है | अतः यदि किसी और के निमित्त आसन तैयार करना हो तो अमुक की जगह उसका नाम उच्चारित कर आसन सिद्ध करना होगा | स्वयं के अतिरिक्त
जो हम गुरु सत्ता या सिद्धों के आवाहन हेतु जो आसन प्रयोग करेंगे उसे सिद्ध करने
के लिए अमुक की जगह ज्ञानशक्तिं का उच्चारण होगा|
ये हमारा सौभाग्य है की हमें ये
विधान उपलब्ध है,आवशयकता है इन सूत्रों का साधना में प्रयोग करने की और साधना की
सफलता प्राप्ति के मार्ग में जो बाधाएं आ रही है,उन्हें समाप्त कर उन पर विजय
प्राप्त करने की |
अगले लेख में अक्षत तंत्र की जानकारी आप भाई बहनों को मैं देने का प्रयास
करुँगी,तब तक के लिए ...
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PradyutmaanTannopriUdhritahNuutanSrijah
UtatptatiSehdishtahBrahmaandoSehpriSehbeejahAkshtaan |
MumukshtaamSthirtaamvahidivyahvapuhmedhaah
Poornampoornespripoornahaasanhdivyataam
siddhi ||
Aasan Siddhi is the
first important part of the Trayi kalp excerpted from “Virupaaksh Kalp Tantra”.The word aasan is
used in various contexts like …..Sitting style, land or that place or medium on
which spiritual and materialistic works are done.
The great Saint
Virupaaksh has given a new meaning to this word….He told that sadhak should be
fully aware of how medium is to be used .It’s knowledge is must. Medium remains
medium only in absence of complete knowledge of this padhati. Now using this
medium will definitely favour sadhak in tantric process, there is no such
provision.
“Poornampoornespripoornahaasanhdivyataam
siddhi”
meaning that aasan should not be merely a aasan rather whole divinity should be
fully embedded in it and it should be combined with divinity, then only after
using it , body of sadhak gets combined with Divya bhaav and then his sadhna
element propels him easily on the way to completeness and sadhak definitelygets
completeness. Here “Poornam” also means that medium should be
complete, only then sadhak can attain completeness.
Tantra
scripture says that only divinity can attract divinity. If sadhak takes the
benefit from proximity to divine element or remains in contact with it, then
divinity starts coming in his body. In such an environment all negative forces,
invisible prets (ghosts) and yaksha etc. are not able to attract mantra jap and
one gets the complete results from the process. Most of sadhaks among us do not
know the fact that whenever they take resolution to do sadhna on any important
day and as sadhna time approaches, negative thoughts about sadhna and Isht (deity)
starts arising in his mind. And if somehow he sits to complete sadhna, then
after some time he starts getting the feeling that outside my friends are busy
in entertaining themselves and what I the fool am doing here?
What
will I get after doing this?
If
nothing has happened up till now, then what new will happen now?
We
do not know that if aasan is not fully energised then whether we sit on very
elastic aasan or mattress, we will always be moving here and there and the
severe restlessness will remain in our mind. And the reason for it is not that
our body is not strong rather all the negative forces present in the earth can
easily come in touch with physical body, which is without the security cover
and due to bad influence of them our mind gets restless and body ache starts
creeping in and all these continuously start influencing us to move away from sadhna.
Insuch an condition, how will you do sadhna by anxious mind and unstable body
and how will you get success? And when you leave the aasan, then not only your
body becomes healthy but also you start felling happy.
That’s
why Sadgurudev used to say there are only very few places left on
the earth where high-order sadhnas can be done. These sadhnas can be done only
on the divine land of Siddhashram or by using Shunya Aasan (aasan in air), no
other land is there which is not polluted (impure).In shamshaan sadhna also, getting
success in not possible until and unless sadhak is not aware of padhati of aasan khilan.All the sadhna articles used by the
sadhak should necessarily be combined with special qualities otherwise if
sadhak is not possible to impart exceptional qualities in it, then the sadhna
process done by him will only remain normal only. If we do the Aavahan of our
guru or any special saint then the aasan provided to them directly should be
fully pure and divine.
For
this, you can take one new woollen blanket and after accomplishing it, you can
lay your desired coloured silky or woollen cloth on it.
On
Tuesday morning, after taking bath, wear red clothes and sit on red aasan and
construct three maithun chakra in sequence(as given above in diagram) by kumkum.
First and third chakra will be small in size and the middle one will be little
larger in size. Bindu (point) will be written in the centre of middle chakra.
It will not be written in rest of two chakras. Fold the blanket and keep it in
the middle chakra and lighten the lamp of Til oil in the middle of the chakra
present on your left hand side and lighten the lamp of cow ghee in the middle
of chakra present on your right hand side. Both these lamps should have four
battis (piece of cotton) each. Afterdoing Guru poojan and lord Ganpati poojan,
do the poojan of both the lamps by panchopchar method. Offer any seasonal fruit
as navidya.
After
that do the panchopchar poojan of that blanket. Then offer 108-108 kumkum mixed
rice on the blanket while chanting the mantras in the sequence given below.
AING GYAN SHAKTI STHAPYAAMI NAMAH
HREENG ICHHASHAKTI STHAPYAAMI NAMAH
KLEENG KRIYASHAKTI STHAPYAAMI NAMAH
Then,
chant the below dhayan mantra 7 times and after meditation, sprinkle the water
on that cloth.
Om
PrithviTvayaDhritaLoka Devi TvamVishnunaDhrita |
Tvam Ch
DharayMaamDevihPavitramKaru Ch Aasanam ||
Om SiddhaasanayNamah
Om KamlaasnaayNamah
Om Siddh
SiddhaasanayNamah
After that, offer flower mixed rice
on that blanket or cloth 324 times while chanting the following mantra.
OM HREENG KLEENG
AING SHREEM SAPTLOKAM DHAATRI AMUKAM AASANE SIDDHIM BHUH DEVAYAI NAMAH ||
Do this process till Thursday.Where “Amuk “ is written , you have to pronounce your name .On the last day, after completing the process
offer some dakshina or food in any Devi temple and offer some money(as per your
capacity) on the lotus feet of Guru or send it to Gurudham and pray to
Sadgurudev for success in this process. Amazing thing is that whenever you will
sit on this blanket, you will be at ease and how the time will pass by, you
will never know. Any long- duration sadhna can be done on this accomplished
aasan far more easily and you can test the aasan’s intensity to see how much is
the difference between normal aasan and the aasan accomplished by this process.
Accomplish such two aasans and you can use one aasan for your guru to sit.
You have to keep two things in mind:
1) These aasans are never washed.
2) On them, except us, no one can sit
otherwise his/her mental condition can deteriorate. Therefore if we have to
prepare the aasan for somebody else, then we have to accomplish the aasan by
using his/her name in place of Amuk. To accomplish the aasan for the
purpose of Aavahan of Guru and saints, we have to use Gyanshaktim
instead of Amuk.
We are fortunate enough to have such
process.What is needed is to use such principles in our sadhna and to combat
all the obstacles in our sadhna path and emerge as victorious.
In next article, I will try to give
you information about Akshat Tantra, up till then………….
‘निखिल प्रणाम’
‘जय सदगुरुदेव’
****ROZY NIKHIL****
****NPRU****
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7 comments:
didi kripa karke hame Siddhi kriya ka bhi gyan pradan karein tatha issike sath agar aatma aavahan aur divyatama aavahan ka gyan bhi mile to sone pe suhaga....... Jaigurudev
didi
kripya maithun chakra ke bare me jankari pradan kare
didi kripya maithun chakra ke bare me jankari de
मैने यह साधना कर ली है और अब मुझे काफी अछे अनुभव हो रहे है धन्यवाद रोज़ी बहन
ye sadhna kitne din ki hai,,, es sadhna ko kis suru kerna hi ,, please ye batane ki kirpa kere
please ye batane ki kirpa kere ,, ye sadhna kitne din ki hai,, aur kaun se din se esay suru kiya jata hi ..
Jai guru dev
Rozy behan
Didi, oon ka kambal ki koi dusra kambal le skta hu kya?
Dusre, akshat tantra ke baare me batane bali thi. bhul gyi kya?
Parnam
jai guru dev
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