कुण्डलिनी क्रम में
मणिपुर चक्र से आगे चतुर्थ चक्र अनाहत चक्र है. इस चक्र में १२ दल है. योग तथा
तंत्र दोनों क्षेत्र में इस चक्र भी विशेष महत्व रखता है. आधुनिक विज्ञानं में इस
चक्र को ‘cardiac
plexus’ कहा गया है. यह १२ दल या पंखुड़ी
से बना हुआ पद्म है जो की १२ प्रकार के भाव को नियंत्रित करता है. इस चक्र का
स्थान मणिपुर से ऊपर की और ह्रदय के पास स्थित है. अनाहत चक्र का सभी मार्ग तथा
सभी धर्मो के रहस्यवाद में बहोत बड़ा स्थान है क्यों की यह स्थान चित क्षेत्र का
स्थान है. चित की स्थिरता तथा ह्रदय पक्ष से सबंधित सभी भाव चाहे वह प्रेम हो या
पूर्ण समर्पण वह इसी क्षेत्र से नियंत्रित होते है. चित की एकाग्रता होने पर
व्यक्ति निश्चित रूप से काल के किसी भी क्षण को पकड़ सकता है इस लिए इस चक्र का
सबंध त्रिकाल दर्शन से है. इसके अलावा ह्रदय पक्ष तथा पूर्ण समर्पण भाव तथा प्रेम
भावनाओ का स्थान होने के कारण व्यक्ति के इस चक्र के जागरण होने पर उसे इष्ट दर्शन
होने लगते है. भक्ति मार्गी कई साधक चाहे वह मीराबाई हो या सूरदास, उन्हें इष्ट
दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ इसके पीछे का चिंतन भी यही है इष्ट पर उनके पूर्ण समर्पण
तथा पूर्ण विशुद्ध प्रेम भाव के कारण उनका अनाहत चक्र चेतनावान हो जाता है जिसमे
संगीत ज्ञान तथा संगीत तंत्र का भी अहम योगदान रहा है. इस चक्र का दूसरा और
महत्वपूर्ण पक्ष नादयोग से है.
अनहत नाद का यह स्थान
है जहा से निरंतर ॐ की ध्वनि गुंजरित होती
रहती है तथा शरीर को उर्जावान बनाये रखती है. इसी नाद को सुनना योग की उच्च अवस्था
है जिसे नाद सिद्धि कहते है. इस चक्र के पूर्ण विकास के बाद साधक मणिपुर चक्र से
सबंधित कारण शरीर से आगे बढ़ता है तथा महाकारण शारीर को प्राप्त करता है. इसी महाकारण
शरीर को हंस शरीर भी कहा गया है. यह चक्र पञ्चइन्द्रियों में ‘स्पर्श’ का नियंत्रण
तथा संचार करता है.
योग क्षेत्र में इस
चक्र के पूर्ण विकास पर व्यक्ति कालंजयी बन जाता है. इस चक्र के पूर्ण विकास के बाद योगी अपने ह्रदय की धडकनों को मनचाहे समय
के लिए रोक सकता है तथा रक्त का संचार इच्छाशक्ति के माध्यम से ही पूर्ण हो जाता
है. ऐसे महासिद्ध भूमि में या जल में या वायु विहीन किसी भी क्षेत्र में भी जीवित
रह सकता है तथा समाधी अवस्था में रह सकता है.
वायुतत्व पर पूर्ण
नियंत्रण इस चक्र के माध्यम से पाया जा सकता है जिसके माध्यम से व्यक्ति वायुगमन
आदि सिद्धियो को प्राप्त करता है.
इस चक्र की मुख्य
शक्ति देवी काकिनी है. जिनके तिन भाव से युक्त तिन रूप इस चक्र में स्थापित है.
इसके अलावा इस चक्र में भगवान वायु विराजमान है. इसके अलावा भगवान नित्य इश्वर भी
इसी चक्र में स्थापित माने गए है. कई तंत्र ग्रंथो के अनुसार देवी का परास्वरुप
इसी चक्र में स्थित है.
यह चक्र वायु तत्व से
सबंधित है तथा २७ वायु तत्व रुपी शिव तथा इन शिवो के संचार के लिए २७ शक्तियां मिल
कर कुल ५४ वायु तत्वों का नियंत्रण इसी चक्र के माध्यम से होता है. इस चक्र का बीज
मंत्र है ‘यं’. तथा इसके १२ दल में क्रमशः कँ, खँ, गँ, घँ, ङँ, चँ, छँ , जँ, झँ,
ञँ, टँ, और ठँ बीज अंकित है. यह १२ बीजाक्षर १२ भाव का नियंत्रण और संचार करते है.
In the kundalini sequence, fourth chakra after Manipur
chakra is Anahat chakra. This chakra is having 12 petals. This chakra owns big
significance in both yoga and tantra field. In the modern science this chakra
is called ‘cardiac plexus’. This lotus is made of 12 petals which controls 12
feelings. This chakra is situated above manipura near heart. Anahat chakra owns
big importance in the mystic of every sect and religion as this is place of
“chit”. Control over Stability of the
chit and all the aspects related to heart and feelings of the same rather it is
love or it may be complete dedication is done at this part. When Chit is
completely concentrated then one may catch any moment of the time this way this
chakra have its relation with Trikal darshan or watching past present and
future. Apart from these, as this place belongs to the heart aspects and
complete dedication & feeling of love; the one who’s this chakra is
activated will have the glimpses of the Isht. Many sadhaka of Bhakti path
rather it may be Miraabaai or Suradasa; contemplation of their attainment in
having glimpses of the god is that their anahar chakra gets activation with
contribution of the music knowledge and music tantra by their complete
dedication in the Isht and complete pure love feel. Second main aspect of this
chakra is about NaadYoga.
This is the place of the anahad naada from which continue
sound of ‘Om’ keeps on generated and it keep on energise the body. After full
development of this chakra sadhaka move ahead to MahaKaarana body from Karana
body belonging to Manipur chakra. This Mahaakarana body is also called hamsa
body. This chakra also controls and maintains ‘touch’ sense among five senses.
In yoga field when this chakra is completely developed,
person becomes winner over time. After complete development of this chakra,
yogi may stop heart beat as long as desired and flow of the blood is done with
will power only. Such
mahasiddha can live at any place in land, in water or in the place where there
is no air and can live in Samadhi.
Complete
control over air element could be gained through this chakra with which one may
receive accomplishment like VayuGamana
Main
base power of this chakra is goddess Kaakini of her three forms belonging three
different natures are established in the chakra. Apart from her, god Vaayu is
also situated in this chakra. And God always Ishwara (NityIshwara) is also
belived to be established in this chakra. According to some tantra scripture,
goddess Para is also belived to be established in this chakra.
This chakra
belongs to the Air element and 27 shiva in the form of Air and 27 Shakti for
the flow of these shiva total 54 air elements are controlled with the medium of
this chakra only. Beej mantra of this chakra is ‘Yam’. And in 12 petals Kam(कँ), Kham(खँ), Gam(गँ), gham(घँ), ngam(ङँ), Cham (चँ), Chham(छँ), Jam (जँ), jham (झँ), nyam(ञँ), tam(टँ) and tham(ठँ) beejas are established. These 12
beejas controls twelve different of feelings and their flow.
****NPRU****
2 comments:
जय सदगुरुदेव
बहुत अच्छा विवरण है पर इस चक्र के विषय में बहुत कुछ और जानना है|
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