कँ, खँ, गँ, घँ, ङँ, चँ, छँ
, जँ, झँ, ञँ, टँ, और ठँ बीज के द्वारा नियंत्रण होने वाली बारह भावनाए आशा,
चिंता, दर्प, विवेक, अवज्ञा, अनिर्णय, अभिलाषा, धोकेबाजी, उत्कंठा, पश्चाताप
अक्षमता और चिंता है. अनाहत चक्र के जागरण के साथ मनुष्य में इन सब भावो का
नियंत्रण होने लगता है. इसके अलावा इस चक्र से सबंधित साधना करने पर साधक को निम्न
प्रकार के लाभ मिल सकते है.
साधक का ह्रदय पक्ष पूर्ण
रूप से जागृत हो जाता है तथा उसे सभी प्रकार के ह्रदय भाव जेसे की पूर्णसमर्पण,
माधुर्य, विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति होती है.
साधक का चित्त स्थिर रहेता
है तथा साधक के सामने उसका मार्ग प्रसस्त होता है. इसके साथ ही साथ साधक अपने अंदर
तथा बाह्य रूप में भी अपने इष्ट के दर्शन करने के लिए सक्षम हो जाता है. साधक को
वायु से सबंधित सभी रोगों से मुक्ति मिलती है.
साधक अपने अंदर अनहत नाद को
सुन कर पूर्ण आनंद की प्राप्ति करता है तथा उसे नाद सिद्धि प्राप्त होती है जिससे
की आनंद में स्थायित्व प्राप्त होता है.
साधक का हंसशरीर चेतन हो
जाता है तथा वह इस शरीर के माध्यम से इच्छामात्र से लोक लोकान्तरो की यात्रा कर
सकता है. साधक में कवित्व शक्ति की प्राप्ति होती है.
अनाहत चक्र को जागृत करने के
लिए साधक को सिद्धासन में बैठकर आँखे बंद कर अनाहत चक्र का ध्यान सबंधित देवी
देवता को चक्र के मध्य में स्थापित मानकर करना चाहिए. इसी ध्यान के साथ साधक को
मानसिक रूप से बीज मंत्र ‘यं’ का जाप करे. यह प्रयोग शांत वातावरण में किया जाना
चाहिए. इसे आधे घंटे से ले कर एक घंटे तक रोज़ १५ दिन तक करना चाहिए.
चक्र में जिन देवी देवताओ को
स्थापित मान ध्यान करना है वह इस प्रकार से है.
देवी काकिनी के सभी ध्यान
में देवी को कमल पर बैठे हुए ध्यान करना चाहिए.
काकिनी का सोम्य स्वरुप
गुलाबी वर्ण का है, जिनकी दो भुजा में कमल
तथा अभय मुद्रा है. इनका ध्यान करने से साधक में सभी कोमल भावो का संचार तथा नियमन
होता है.
देवी काकिनी के तिन मुख तथा
चतुर्भुज युक्त रजत भाव का स्वरुप पित वर्ण का है. जिनके चारो हाथो में उन्होंने
अंकुश, त्रिशूल, पद्म तथा अभय मुद्रा धारण किये हुए है. देवी के इस स्वरुप का
ध्यान करने से साधक को भौतिक सफलता तथा त्रिकाल ज्ञान की प्राप्ति होती है.
देवी काकिनी का तमस भाव से
युक्त स्वरुप रक्तवर्णी है. इनके पांच मुख है तथा ६ हाथ है. इन हाथो में उन्होंने
डमरू, नरमुंड, अंकुश, त्रिशूल, पद्म तथा
अभयमुद्रा को धारण किया हुआ है. देवी के इस रूप का ध्यान साधक को विभ्भिन्न
तांत्रिक सिद्धियो को प्राप्त करने के लिए करना चाहिए.
भगवान नित्यइश्वर के रूप में
सदाशिव इस चक्र के मध्य स्थापित है. नाद सिद्धि के लिए, रोग निवृति के लिए चक्र के
मध्य उनके स्वरुप का ध्यान करना चाहिए. भगवान श्वेतवर्णी है तथा उनके दो हाथो में
ज्ञान का प्रतिक ग्रन्थ है तथा दूसरा हाथ
वरदान मुद्रा में है. वह हिरन पर विराजमान है. जो साधक वायु तत्व का नियंत्रण करना
चाहे उनको भगवान का दूसरा ध्यान करना चाहिए. साधक को नीलवर्णी नित्यइश्वर का ध्यान
करना चाहिए जो की व्याघ्रचर्म पर बैठे हुए है. उनके पांच मुख है तथा अपने ६ हाथो
में उन्होंने गदा, पद्म, वरदान, त्रिशूल, ग्रन्थ तथा डमरू धारण किया हुआ है.
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The twelve feelings controlled by beeja Kam(कँ),
Kham(खँ),
Gam(गँ), gham(घँ),
ngam(ङँ),
Cham (चँ),
Chham(छँ),
Jam (जँ), jham (झँ),
nyam(ञँ),
tam(टँ) and tham(ठँ)
are hope, anxiety, pragmatism, discretion, defiance, indecision, lust, fraud,
longing, repentance, inability and worry. With activation of the anahat chakra
control over these feelings starts forming in the human. Apart from these, if
sadhana is done related to this chakra then following benefits could also be
gained.
Hriday Paksa or heart side of the sadhaka becomes
active and one gets all the type of heartily feelings like complete devotion,
pleasantness, pure love.
Chitt of the sadhaka becomes stable and one starts
having clear way for the self. With this, sadhaka becomes eligible to have
glimpses of the Ishta or supreme power form both inner and outside. One may get
rid on the diseases related to air element.
Sadhak achieves state of the complete Joy by
listening inner supreme sound or Anahat Naad and one receives Naad siddhi
causing stability of the inner joy.
Hamsa body of the sadhaka becomes active
and with this body sadhaka may visit other world just with a will. Sadhaka also
receives power of poetry creation.
For the activation of the anahat chakra
sadhaka should sit in the siddhasana with closed eyes and meditating inner
chakra with related god or goddess established in middle of the chakra. With
this meditation sadhaka should mentally chant beej mantra “yam” (‘यं’). This process should be done in
peaceful atmosphere. This process should be done half an hour to one hour daily
for fifteen days.
Gods or goddesses meditated to be
established in the chakra are as follow.
All meditation of the goddess kakini
should be done with lotus as seat of her.
Saumya form of goddess Kakini is pink complexion, having two hands
holding lotus and Abhay Mudra. Meditating her gives sadhaka control and flow
over all the soft feelings.
With Rajas Bhaav goddess is yellow in
color with three face and four hands. In her four hands she holds Ankush,
Trident, lotus and Abhaya Mudra. By meditating this form, sadhaka receives
material success and knowledge of past, current and future.
Tamas bhaav form of goddess Kakini is
red in color. She is having five faces and six hands. In these hands she holds
Damroo, human skull, Ankush, Trident, Lotus and Abhay Mudra. Sadhaka should
meditate this form to obtain various tantric accomplishments.
In the form of NityaIshwara God
SadaShiva is established in middle of this chakra. For gaining Naad Siddhi, and
rid over diseases one should meditation this form in middle of the chakra. God
is white glowing and in his two hands he holds scripture as symbol of the
knowledge and other hand is in the form of Vardaan Mudra. He is seated on the
deer. Sadhaka who wants control over air element should editate another form of the god. Sadhak should meditate bluish
nityaishwara who is seated on the tiger skin. He is having five faces and in
his six hands he is holding Gadaa, lotus, boon granting sign, trident,
scripture and damaroo.
****NPRU****
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