OMITYEKAAKSHARAM BRAHMA TADEVAAHUSHRVHREEMMAYAM
DWEBEEJE MAMMANTRAUSATO MUKHYTVENSUROTAME
In amazing field of sadhna, well-arranged activity to complete one
definite procedure with the help of Mantra and Yantra is called Tantra.
Definitely, basic power behind complete Tantric procedures has been mantra and
basis of mantras have been Varna (Hindi alphabets) and beej. And after the
combination of these beej alphabets and beej mantras, various mantras were
manifested from Shri SadaShiv’s mouth for the welfare of people.
In the field of Tantra, all beej mantras hold a very important place and
importance of beej mantra is very much known among sadhak fraternity. Here one
point needs to be paid attention that why so much of importance is given to
Beej Mantras. First of all it has to be understood that basis of mantra is
sound, consonant and vowel are the one who coverts mental vibrations into
sound. It may happen mentally too because any activity inside us gives birth to
one definite sound. We have limited audible power beyond which we are not able
to hear. Therefore all the sound made inside our body is not heard by us. But
sound is originated and that sound creates energy. Each sound creates one
special type of energy. That’s why subtle sound of mental recitation also
creates subtle energy. Though there is abundance of tantric literature written
by our sages and saints on Varnas and beej but with passage of time, it has
started becoming obsolete. But still in Tantric worship , essentiality of beej
mantra have not been ignored in any era and as a result some popular beej
mantra are in vogue today among the masses out of which OM and SHREEM/SHREENG
are most important. But siddhi aspects, various sadhna padhatis and various
secrets related to them have started becoming obsolete.
There is no need to teach the importance of beej mantra “HREEM” to any
sadhak of field of Tantra. This beej has always been beloved beej of sadhaks,
which has got so many secrets contained in it. Lines said above are related to
this beej mantra in which SadaShiv gives novel tantra knowledge to goddess;
whose meaning is as follows
OM is Brahma and it has always contained Hreem. In other word, Om and
Hreem are complementary to each other. Both the beej are basic form of god i.e.
Brahma form. Out of them , one part is Purush (OM) and other one is Prakriti
(Hreem)
Upon analyzing this verse, person can understand
various facts. Brahma is one complete authority whose two prime parts are in
form of Shiva and Devi. And seeing them in combined form, this Brahma form is
manifested but in divided form it is Shiva and Shakti. In terms of sound, Shiva
is in OM form and Shakti is in Hreem form.
However, it is only visible or first meaning of
this verse. In tantric Vaagmay, there are verses having seven meanings. Upon
analyzing deeply one beej, mantra or sloka till subtlest level, seven different
meanings are obtained out of which visible meaning expresses form; rest all
meanings can be obtained from Guru. This is precisely the reason why
sometimes in ancient literature, instead of giving visible sadhna only name is
given whose abstruse meaning can be understood only from Siddh Guru. In the
same manner, in above verse, sadhna procedure of Brahma form has been described
through beej mantras which is separate subject altogether. Here let us further
discuss about Hreem beej.
This beej contains Ha, Ra, Ee and Chandra (ँ) which is nasal sign used in Devanagri. These alphabets have
got an extensive meaning and many siddhs have given its diverse descriptions.
But the description which is recognized by one and all is
Hkaarshivvaachi; Ha means
Shiva,
Refah Prakritirchyte; Ra indicates
nature,
Mahamaayarth Ee Shabdaah; Ee
represents Mahamaaya (great illusion)
Tatha Naadovishvprasooh; Chandra (nasal sign)
represents Brahma Naad.
In this manner, it can be
interpreted that this beej of universal sound i.e. Brahma Naad is one which
teaches us the real meaning of Mahamaaya bestowed by Shiva and Prakriti i.e.
goddess.
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ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म तदेवाहुश्चह्रींमयं
द्वेबीजे
मममन्त्रौसतो मुख्यत्वेनसुरोतमे
साधना
के अद्भुत क्षेत्र में, मंत्र और यंत्रो की सहायता से एक निश्चित प्रक्रिया को
पूर्ण करने की सुव्यवस्थित क्रिया को ही तंत्र कहा जाता है. निश्चय ही पूर्ण
तंत्रोक्त प्रक्रियाओ की आधारभूत शक्ति मन्त्र रहे है, और मंत्रो का आधार वर्ण तथा
बीज. और इन्ही बीज अक्षरों तथा बीज मंत्रो का आपसमे संयोजन हो कर विविध मन्त्र
श्री सदाशिव के मुख्य से जनमानस के कल्याण हेतु प्रकट हुवे.
तंत्र
के क्षेत्र में सभी बीज मंत्रो का एक अत्यधिक विशिष्ट स्थान है तथा साधको के मध्य
बीज मंत्रो का महत्त्व अपने आप में प्रख्यात है ही. यहाँ पर एक बात ध्यान देना
आवश्यक है की क्यों इन बीज मंत्रो को इतना ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. सर्व
प्रथम यह बात को समजना चाहिए की मंत्रो का आधार ध्वनि है, स्वर तथा अक्षर ही मानस
की तरंगों को ध्वनि में परावर्तित करते है. चाहे वह मानसिक रूप से भी क्यों न हो,
क्यों की हमारे अंदर की कोई भी क्रिया एक निश्चित ध्वनि को जन्म देती ही है, हमारी
सुनने की एक क्षमता है. जिसके आगे हम सुन नहीं सकते है इस लिए शरीरस्थ सभी ध्वनि
हम सुन नहीं पाते है. लेकिन ध्वनि का उद्भव होता है और वह ध्वनि एक उर्जा का
निर्माण करती है. हर एक ध्वनि एक विशेष उर्जा का निर्माण करती है. इसी लिए मानसिक
जाप की सूक्ष्म ध्वनि भी शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा का निर्माण करती है. वैसे तो वर्ण
और बीज के ऊपर प्रचुर मात्र में तांत्रिक साहित्य हमारे ऋषि मुनियों द्वारा लिखा
गया था लेकिन काल क्रम में वह लुप्त होने लगा. फिर भी तंत्रोक्त उपासना में बीज
मंत्रो की अनिवार्यता को किसी भी काल में ज़रा सभी नकारा नहीं गया और फल स्वरुप कई
सुविख्यात बीज मंत्र आज जनमानस के मध्य में प्रचलित है, जिसमे ॐ तथा श्रीं सबसे
ज्यादा प्रचलित रहे है लेकिन इनके जुड़े हुवे सिद्धि पक्ष विविध साधना पद्धतियाँ तथा इनसे सबंधित
विविध रहस्य काल क्रम में जरुर लुप्त होने लगे है.
तंत्र
क्षेत्र के किसी भी साधक को बीज मन्त्र ‘ह्रीं’ के महत्त्व को समजाने की आवश्यकता ही नहीं
है. यह बीज हमेशा ही साधको का प्रिय बीज रहा है जो की कई कई रहस्यों से परिपूर्ण
है. उपरोक्त पंक्तियाँ इसी बीज मन्त्र के सबंध में है. जिसमे सदाशिव देवी को एक
नूतन तंत्र ज्ञान देते है; जिसका अर्थ कुछ इस प्रकार है
एक
अक्षर ॐ ही ब्रह्म है जो की सदैव ह्रीं से परिपूर्ण है. अर्थात ॐ तथा ह्रीं दोनों
ही एक दूसरे के पूरक है. दोनों ही बीज देव के मूल स्वरुप अर्थात ब्रह्म स्वरुप है.
जिसमे एक भाग पुरुष है (ॐ) तथा दूसरा भाग प्रकृति (ह्रीं).
इस
श्लोक का विश्लेषण करने पर व्यक्ति कई तथ्यों के बारे में समज सकता है. ब्रह्म एक
पूर्ण सत्ता है, जिसके दो मुख्य भाग शिव तथा देवी के स्वरुप में है. तथा इन दोनों
को सम्मिलित रूप से देखने पर यह ब्रह्म स्वरुप द्रष्टिगोचर होता है लेकिन विखंडित
रूप में यह शिव और शक्ति है. ध्वनि रूप में शिव ॐ रूप में है वहीँ ध्वनि स्वरुप में शक्ति ह्रीं रूप में
है.
वैसे
यह श्लोक का प्रकट या प्रथम अर्थ है. तांत्रिक वाग्मय में सप्तार्थी श्लोक होते
है, एक ही बीज, मन्त्र या श्लोक के सूक्ष्म से सूक्ष्मतम खोज करने पर सात अलग अलग
अर्थ की प्राप्ति होती है, जिसमे प्रकट अर्थ स्वरुप की अभिव्यक्ति होता है; बाकी
सभी अर्थ गुरुगम्य होते है. यही कारण है की कई बार पुरातन साहित्य इत्यादि में
प्रकट साधना न दे कर सिर्फ संज्ञा दे दी गई होती है जिसका गूढार्थ सिर्फ सिद्ध
गुरु के माध्यम से ही समजा जा सकता है. इसी प्रकार उपरोक्त श्लोक में भी ब्रह्म
स्वरुप की साधना क्रम को बीज मंत्रो से वर्णित किया गया है जो की पृथक विषय है.
यहाँ पर हम ह्रीं बीज के बारे में ही आगे चर्चा करते है.
ह्रीं मन्त्र
का स्वरुप कुछ है. यह बीज ह, र, इ तथा चन्द्र (ँ ) जो की अनुस्वर की भावना देता
है. इन अक्षरों के व्यापक अर्थ है. तथा कई सिद्धो ने इसकी विविध व्याख्या की है. लेकिन
जो सर्वजन मान्य है वह यह है की
हकारशिववाचि; ह अर्थात शिव,
रेफः प्रकृतिरच्यते; र प्रकृति सूचक है,
महामायार्थ इ शब्दा; इ महामाया का प्रतिक है
तथा नादोविश्वप्रसूः
स्मृत चन्द्र ब्रह्म
नाद का प्रतिक है.
इस प्रकार इसका एक अर्थ यह होता है की शिव तथा प्रकृति अर्थात देवी प्रदत महामाया का वास्तविक अर्थ
समजाने वाला यह ब्रह्मनाद या ब्रह्मांडीय ध्वनि का यह बीज है.
****NPRU****
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