कोई साधनात्मक उपकरण या विग्रह मात्र ये कह देने पर की ये प्राण प्रतिष्ठित है ,चैतन्य नहीं हो जाता है.साधना में असफलता के लिए मात्र अपने आपको ही दोष देना उचित नहीं है. साधना में सफलता जहाँ साधक की मनोभूमि,संकल्प,सही क्रिया और उचित मार्गदर्शन पर टिकी होती है वही इसके लिए ४०% जिम्मेदारी प्रामाणिक साधनात्मक उपकरण की भी होती है ,और ये नियम रस तंत्र में देह वाद और धातुवाद के लिए भी लागू होता है.हम अक्सर साधना में असफलता के लिए अपने कर्मों को ही दोष देते हैं पर हमेशा तो ऐसा नहीं होता है, यदि हमारे पास सही मार्गदर्शक है और फिर भी उसके निर्देश में साधना करने पर हम असफल होते हैं तो एक बार अपनी साधना सामग्री या प्रयोगों में प्रयुक्त अपने उपकरणों को भी जाँच लें.
आज विज्ञानं ने ऐसे यंत्रों का अविष्कार कर लिया है जिनके द्वारा ये ज्ञात किया जा सकता हैं की जो साधनात्मक यन्त्र या सामग्री आप प्रयोग कर रहे हैं वो सच में प्राण प्रतिष्ठित है या नहीं. किसी भी सामग्री का आभा मंडल और उर्जा का प्रभाव क्षेत्र उस समय बढ़ जाता है जब प्रामाणिक क्रियाओं से और मन्त्रों के द्वारा उसमे प्राण प्रतिष्ठा होती है.क्योंकि मन्त्रों के क्रियाओं का उस सामग्री या यन्त्र विशेष से संयोग होने पर धनात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा ही.
अब बात करते हैं स्वर्ण विज्ञानं या पारद विज्ञानं में सफलता की तो ये अनिवार्य तथ्य है की शास्त्रों में प्रचलित जो क्रियाएँ है वे असत्य नहीं है पर उनमे ३ महत्वपूर्ण बाते अवश्य ही होंगी.
१. उन क्रियाओं या प्रयोगों की सफलता की गुप्त कुंजी होती है ,जिसका प्रयोग करने पर उस क्रिया को सफल किया जा सकता है.
२. सतत मार्गदर्शन की आवशयकता होती ही है,
३. उस क्रिया में जिन सामग्रियों का विवरण हैं वे हमेशा प्रामाणिक और शुद्ध होना चाहिए ,क्यूंकि विकल्प से ये क्रिया हो ही नहीं सकती ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है. अब हम कहेंगे की बाजार में सोना चांदी तो शुद्ध मिलता है अतः उसे क्या शुद्ध करना ,तो मेरे प्यारे भाई किसी भी पदार्थ का संस्कार मात्र इसलिए तो नहीं किया जाता न की उस पदार्थ की दोष निवृत्ति हो अपितु गुणाधान जैसी भी कोई चीज होती है शब्दकोष में.
यदि आप सामग्री लेते हैं और वो भी पारद से निर्मित तो कुछ बातों को अवश्य ध्यान रखे.
पारद बाजार में अत्यधिक महंगा हो गया है ,जैसे जैसे बाजार में चांदी महंगी होती है उसी अनुपात में पारद भी महंगा होगा ही. सामान्य और पूर्ण अशुद्ध पारद भी ७०००-८०००/- रू किलो होगा,जो की संस्कारों और विग्रहों के लिए अनुपयुक्त ही होता है. कुछ कम्पनियाँ आयातित पारद जो की ९८% शुद्ध होता है उसे भी वर्तमान में १८०००-२२०००/- रू की कीमत पार ही ख़रीदा जा सकता है फिर इस पारद का ८ संस्कार करने से इसका मूल्य संस्कार में प्रयुक्त श्रम और सामग्रियों की वजह से ७००००-८००००/-रू तक पहुचना स्वाभाविक है. अब इससे गुटिका निर्माण,विग्रहों के निर्माण या औषधि निर्माण करने के लिए इसे बुभुक्षित करना और उसे स्वर्ण और रजत का ग्रास देना ,जहा जरुरत हो वह हीरक और रत्नों का ग्रास भी दिया जाता है तथा दिव्यौश्धियों और अभ्रक का संयोग भी कराया जाता है ये सब पढ़ने में भले ही आसान लगता हो पर है श्रम और धन का अत्यधिक व्यय होता ही है. अब आप ही बताये क्या ऐसी गुटिका और विग्रह आपको १०००-५००/-रू में मिल पाएंगे नहीं न.जैसे जैसे क्रिया बढ़ेगी वैसे वैसे लागत भी तो बढते जायेगी.
अब क्या ग्यारंटी है की इतनी कीमत लगाकर भी यदि विग्रह या गुटिका कही से ली जाये तो वो असली ही होगा ,हम कौन सा देखने आ रहे हैं.
तो भाइयों कुछ बातें मैं आपको बता देता हूँ.
१. संस्कृत पारद और उसमे हुयी चैतन्यता को ‘लेचर एंटीना’या अन्य वैज्ञानिक उपकरण (जो आभा मंडल की तीव्रता को परखते हैं) से यदि परखा जाये तो उसका औरा पूर्ण विकसित होगा. और इन उपकरणों के द्वारा आप किसी भी यन्त्र या विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की सच्चाई को परख सकते हैं.
२. यदि पारद जस्ता,सीसा,रांगा या केडियम धातु से बंधा होगा और आपको लगता है की आपके साथ धोखा हुआ है तो आप उस गुटिका आदि को सामान्य घरेलू गैस चूल्हे के छोटे बर्नर पर किसी स्टील की कटोरी में रख दे और आंच तीव्र कर दे आप देखेंगे की थोड़ी ही देर में वो गुटिका पिघल जायेगी. अतः आपका अधिकार है ये जानना की पारद बंधन की क्रिया किस प्रकार से की गयी है ताकि हर बात आपको पता हो. हम सबने ये पढ़ा ही है की दो धातुएं जब पिघलाकर मिलायी जाये तो उनसे जो धातु बनेगी वो हमेशा दोनों धातुओं के मध्य के तापमान की होगी. अतः सामान्य गैस पर मात्र तिन,सीसा,जस्ते के सहयोग से बांध गुटिका या विग्रह ही पिघलेंगे अन्य उच्च धातुओं के योग या वनस्पतियों के योग से बंधित पारद फूट कर बिखर जायेगा.और उसके साथ की धातु उपरोक्त तापमान पर तो नहीं पिघलेगी.साथ ही ऐसे पारद में स्वर्ण और रजत की उपस्थिति भी आप स्वयं देख सकते हैं.जो की आपके द्वारा प्रदाय मूल्य के मापदंड को दर्शाएगी.ऐसी गुटिकाओं या विग्रह का अभिषेक कर आप जो जल ग्रहण करेंगे उससे कोई हनी नहीं होगी अपितु लाभ ही होगा.
३.उच्च प्रकार की गुटिकाओं में यदि हीरक भस्म या रत्नों का जारण चारण हुआ होगा तो वो ना तो फूटेंगी और न ही पिघलेंगी.ऐसी दिव्य गुटिकाओं के निर्माणकी विधि ही अद्भुत होती हैं. पूर्ण विधिवत तरीको से जो सदगुरुदेव और शास्त्रों द्वारा सम्मत हो के द्वारा विग्रहों और गुटिकाओं का निर्माण कर यदि साधना की जाये या धारण किया जाये तो उसका लाभ होता ही है.
५.बाजार में सुन्दर सुसज्जित पारद विग्रह और गुटिका मात्र ५००-१०००/- रू में मिल जायेगी क्योंकि उनमे प्रामाणिक बंधनों,संस्कारित पारद और उच्च धातुओं का कदापि प्रयोग नहीं हुआ होता है. पर संस्कृत पारद के विग्रह में ये कीमत संभव नहीं हो सकती.
और भी कई तथ्य हैं जिससे सत्यता और असत्यता का पता लगाया जा सकता है.
सिलवास (गुजरात) में निखिलेश्वर महादेव की २१२१ किलो के रस लिंग का स्थापन होने जा रहा है जिसकी निर्माण लागत ही १६ करोड के आस पास है. वो भी तब जब उसका बंधन ५ धातुओं से हो रहा हो यदि मात्र स्वर्ण और रजत का प्रयोग किया जाये तो ये लागत कई गुना बढ़ जायेगी.
अब रही बात रस सिद्धि में सफलता असफलता की तो इसमें आप सीखने वाले से धोखा कर और नकली सामग्रियों का प्रयोग कर कभी भी सफल नहीं हो सकते ,ऐसे कई उदाहरण मेरे पास है जिनमे मैंने देखा है की उसी क्रिया से एक साधक को तो सफलता मिलती है पर दूसरा पाप चित्त के कारण सफलता नहीं प्राप्त कर पाता.
उदाहरण- हमारे कुछ गुरु भाई हैं वे कहने को तो मुझसे पारद विज्ञानं गुरु सेवा के लिए ही समझना चाहते थे पर धैर्य तो उनमे नाम मात्र का नहीं था.वो मुझसे थोड़े समय तक ये विज्ञानं समझते रहर फिर एक ही रात में लाखों के वारे न्यारे करना चाहते थे. मैं जब भी उनसे पूछता की आप सच में ये क्रिया गुरुसेवा के लिए समझना चाहते हैं तो वे सीना ठोंक कर हाँ कहते. पर मुझे भली भांति ज्ञात था की ऐसा वो शीघ्र अतिशीघ्र ऐश्वर्यशाली बनने और उनके सर पर लदे भारी आर्थिक ऋणों से मुक्त होने के लिए कर रहे थे.समृद्धि की चाह कोई गलत बात नहीं है पर गलत है उस धैर्य का ना होना जो तंत्र के किसी भी प्रभाग में सफलता के लिए अनिवार्य है. स्वर्णमाक्षिक की जगह विमल का प्रयोग करते रहे,अम्ल कैसा लेना है कोई आइडिया ही नहीं, सारी क्रियाएँ मन से हो रही हैं.,एक साथ ३-४ प्रयोग हो रहे हैं, भला ऐसे में कही सफलता मिलती है और सबसे बड़ी बात ये की रसेश्वरी दीक्षा के एक नहीं ३-३ चरण ले लिए पर उनके मन्त्रों का जप करने को कौन कहे उसके नाम से ही पैर और कमर दुखने लगती थी. मैं हमेशा ही कहता रहा की बन्धुवरों आप इस मन्त्र को विधिवत जप कर लो तो आपकी बाधाएं समाप्त हो जाएँगी,और साथ ही अन्य गुरु भाई भी जो इस क्रिया में जुटे हैं उनका साथ ले लो पर वे मुझे हाँ कह देते पर किसी और गुरु भाई को इसका किंचित भी ज्ञान हो इससे उन्हें बहुत परहेज था ,इसलिए खुद ही अपनी पीठ थपथपाते, थोडा सीखकर खुद को सर्वोपरि समझने लगे.नतीजा असफल होना ही था. अब नतीजा ये हो गया है की स्वर्ण तन्त्रं गलत हो गयी है ,रस विज्ञानं गलत है आदि आदि. जबकि उन्ही गुरु भाइयों ने देव्रंजिनी गुटिकाओं का निर्माण करवाया और उसके द्वारा वाक् सिद्धि की क्षमता भी प्राप्त की ,व्यापार में वर्षों से जो हानि हो रही थी वो दूर हो गयी, धन जो फंस गया था वो प्राप्त हो गया. घर में पारद काली का विधिवत स्थापन किया रसेश्वर स्थापन किया और उनकी कृपा से एक्सीडेंट होने पर भी सही सलामत रहे,उच्च वाहन का सुख पाया .पर उन लोगो से गुरु सेवा के लिए अब एक रूपये भी नहीं निकलते थे.अब गुरु को भी विभक्त कर दिया है सदगुरुदेव की आज्ञा की जैसे उन्हें कोई परवाह ही नहीं है.वाक् सिद्धि का गलत प्रयोग करने लगे,जिससे अन्य लोगो को नुक्सान होने लगा,व्यभिचार और असत्य में जीवन जीने लगे. नतीजा धीरे धीरे सिद्धि समाप्त हो गयी.अब आप ही बताये इसमें साधना का क्या दोष. आज मेरा उनका कोई सम्बन्ध नहीं रहा. सदगुरुदेव हमेशा कहते हैं की साधना में सफलता पाना बड़ी बात नहीं है बड़ी बात है उस सिद्धि को पचा लेना. इसलिए क्रिया को दोष देने के पहले अपना गिरेबान भी झाँक लिया जाये और अपनी गलतियों को भी सुधार जाये.
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There is no sadhnatmak equipment (upkarn) is like that which comes into life merely by saying that it is pran pratishthit (enlighten). It is not justified to consider oneself responsible if you meet with failure in sadhna. For the success of sadhna where sadhak’s concentration, resolution, correct procedure and true guidance is important there is also 40% responsibility depends upon the upkarn he used and this rule is also applied in RAS TANTRA’s DEH VAD and DHATU VAD. We also thinks these are our bad deeds which are responsible for our failure in the field of sadhna but this is not always true because if we have real and true guide but still we are failing in sadhnas then once more cross check your sadhna samgri and upkarns you are using for your sadhna.
Now a days technology has invented such means by which this can be judged that the sadhna samgri and upkarn you are using is actually enlighten (pran pratishthit) or not. Any sadhna samgri increase its aura and energy level when it actually enlighten ( pran pratishthit) by true procedures and mantras as when mantras and the upkarn ( which you want to enlighten) will merged with each other it is damn sure that dhnatmak energy will release.
Now if we talk about the success in the field of Swarn Vigyan or Parad Vigyan then it is fact that all the procedures which are given in ancient books (shastras) are true but in that too 3 important points must be there.
1- To get success in that prayogs there is a secret key or process which is important to use to get success.
2- True guidance is must required.
3- All the required things for that process should prmanik (recognized) and pure because it’s my personal experience that by impure things you cannot carry on these paryogs further.
Now you think that in the market pure gold and silver is easily available then there is no need to get it again purified so here let me correct you my dear that is every time we do perform some special process (sanskar) to make an object pure? No because except purification (shudhikarn) there is another important word in dictionary- Gunadhan.
If you buy any material (samgri) and that too made by Parad (mercury) then there are some important things you should keep in your mind.
Parad is become very costly in the market as its cost will hike with the cost of silver. Common and completely impure Parad will available in market at the price of 7000-8000 per kg which is useless for sadhna. There are some companies which import it with the 80% purity mark and this can be bought from market at the rate of 18000-22000 but this cost will increase when it get purified by performing 8 sanskar with it as now the value of material and labor is added into its basic price so now it will increase its price up to 70,000-80,000 rupees. Now if you want to make Gutika or any type of medicine from it, it is very important to get it bubhikshit and provide gold and Rajat as its holy food and where required Heerak and rubies also used or you can also mixed divine herbs ( divyaushdhis) and Abhrak in it. Verbally it seems very easy but actually it takes lots of hard work and money. Now you can think how you can have such expensive things at the cost of 1000-500 rs. As it is natural when the process and hard work will increase value will ultimately touch the sky.
Now again the problem is that there is no guarantee that by loosing such a grand amount you will get actual Gutika.
So my dear friends let me settle down your problem-
1- If purified Parad ( Sanskrit Parad) which is already enlighten comes under the impression of Lechar antenna or some other scientific technologies( which are meant to check its purity) then you see that it has fully developed its aura. So by such technologies trueness of any object can be checked.
2- If you have any doubt that Gutika or Parad you have is made up by jasta(zink), ranga (tin), seesa (lead) or cadium metals then to check its purity put your Gutika into steel bowl and by putting that bowl on to small burner of domestic gas increase the fire under it. Now you will see that your Gutika is melting down. So it is your right to know some important things. We all know that when a new metal is made by the melting and then mixing process of two different metals, then its temperature will remain in between of those two basic metals. So always remember that if your Gutika is made by tin, seesa (lead) and jasta(zink) then by putting it over gas it is bound to get melted but if it is made by the combination of grand metals and other important things then on gas it will blast into pieces rather than melting. You can see the presence of gold and rajat in it with your own eyes which are the real match of the high cost you have paid. So if you drink the water which you offer to the Gutika as jal abhishek will make you no harm rather then you get benefits through it.
3- Gutika which will fully purified and made with the mixture of Heerak bhasm or rubies will neither melt nor blast into pieces. Making process of this type of Gutika is completely different and unique. So by following complete process said by Sadgurudev and ancient granths if Gutika is made then you will surely get advantages from it.
4- From market you can buy things made through Parad like Gutika easily that too look very hi fi at the cost of just rupees 500-1000 but it is next to impossible to have purified mercury with the combination of grand and costly metals at such minor price.
There are many other points which are helpful to know about the true and false point of it-
In Silvas (Gujarat) Nikhileshwer Mahadev’s 2121kg RAS LING is about to establish around the fundamental cost of 13 crores that too is that it is made by five metals only but if gold and rajat is used in it then this price will mani-fold.
Now again if we talk about the matter of success and failure in the field of RAS SIDHI then remember one thing that you will not get success if you hide actual things from the person who learns from you . I have seen that with the same process one sadhak is getting success but the other one who is cheating meets with failure.
For instance- we have some guru bhai orally who wants to learn parad vigyan by me on the name of guru seva but actually they do not have patience. Just in one night they want to turn their stones into rubies. Whenever I asked them that really they want to learn this science for Sadgurudev then with full confidence they said “yes” but I knew that they just want to learn this art for their personal comfort and luxury as well as to get rid of their financial credits. Nothing is wrong if you want to be prosperous in your life but for this you need to have patience which is very important in every paryog of Tantra. At the place of swarnmakshik, vimal is used, no idea about actual procedure, at the same time 3-4 practicals are going on then how can they even imagine about success. Not stopped yet the very strange fact is that they have taken 3-3 steps of Rameshwari diksha but if question comes about its mantra Jap then from head to toe they behave as needle is piercing their bodies. Whenever I suggest them to enchant the mantra to avoid their problems and also take help from their fellow learners then in front of me they replied in solid ‘ yes’ but the fact is that they didn’t want that their fellow learners come to know about their practicals. Just by having starting knowledge they thought that they are superior so what type of result they could aspect- failure and failure but for their failure they put the blame at this ancient science by saying that Swarn tantra, Ras vigyan every science is false. On the other hand these were the same followers who helped in the making of Devranjini Gutika and by it got the capacity of Vaak sidhi, in their business they were having loss from many years but through it they settle their business, got back their money which was almost over, in their home by establishing Parad Kaali and Rameshwer they got its blessing and even in drastic accident no harm happened to them on the other hand they got luxurious means of transportation but even then they spare no money on the name of Guru sewa. They behaved as there is no importance of Sadgurudev’s permission in their eyes, misused their potential of vaak sidhi for the harm of other people, they started to lead a life full of bad deeds as the result of this slowly-slowly sidhi came to an end. Now you people can decided in it is there any fault of sadhna. As per Sadgurudev’s wording,” to get success in any sadhna is not big deal the biggest thing is to digest it”. So before saying anything wrong about the process and procedures first try to remove your own faults as charity begins at home itself.
****NPRU****
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