होली का आनंद लगभग सभी ने उठाया होगा, निश्चय ही हर्ष उल्लास का ये पर्व विविध कारणों से हम सभी के आनंद का स्रोत है | साधनाओं की तीव्रता को जहाँ हम कही अधिक वेग से अनुभव करते हैं वही सौंदर्य साधनाओं में सफलता प्राप्ति का भी ये उचित अवसर है.... सौंदर्य साधनाएं अर्थात पूर्णत्व प्राप्ति की और एक महत्वपूर्ण कदम | कार्यों में,ऐश्वर्य में,भावनाओं में और इन सब से बढ़कर यदि जीवन में सौंदर्य न हो तो व्यर्थ ही हो जाती है हमारी सफलताएं...... जब कोई हमें देखे बगैर आगे बढ़ जाये तो फिर आकर्षण रहा ही कहाँ....
आकर्षण का सही अर्थ समझा भी कहाँ है हमने ?
आकर्षण का अर्थ है बाँध लेना... फिर वो चाहे हमारा मित्र हो... प्रेम हो..शत्रु हो....हमारा अधिकारी हो....यक्षिणी हो....अप्सरा हो....वेताल हो .....या इन सबसे सर्वोपरि हमारे ईष्ट ही क्यूँ न हो |
साधक होना व्यर्थ है हमारा यदि हम्मे इतना आकर्षण न हो या फिर हमें बाँध देने की क्रिया के गुप्त सूत्र न ज्ञात हो ..... वैसे भी किसी ने क्या खूब कहा है की –
“ जज्बा ए इश्क सलामत है तो इंशाअल्लाह,
कच्चे धागे में चले आयेंगे सरकार बंधे”
तभी तो मैं कहता हूँ की बाँधने की कला आना जरुरी है | आप अचानक सोच रहे होंगे की आज अचानक ये बाँधने की बात कैसे आ गयी | किन्तु ये महत्वपूर्ण तथ्य आज अनिवार्य था....इसलिए तो आज ये बात कही है |
क्या होली का पर्व कल रंग खेलने के साथ समाप्त हो गया..... सोचिये ....अरे सोचिये ना.... क्या लगता है.... नहीं मेरे बंधुओं होली का पर्व २३ दिनों का होता है अर्थात आठ दिन पहले से अमावस्या तक इस पर्व की ऊर्जा विस्तृत होती हैं,और वे सभी साधनाएं जिन्हें हमने होली की रात्री को संपन्न किया था किन्तु किसी कारण वश उनमे सफलता नहीं मिलती है तो उन साधनाओं को पुनः हम बाकी के १५ दिनों में संपन्न कर सकते हैं | बहुत बार हम साधनाए करते हैं और हमें सफलता प्राप्त भी हो जाती है किन्तु उस सफलता के पूर्व के सांकेतिक चिन्ह जैसे अनुभूतियाँ आदि हमें नहीं दिखाई देते हैं तो ऐसे में हतोत्साहित होकर हम यही मान लेते हैं की साधना सफल नहीं हुयी है | किन्तु ये अर्धसत्य है, वास्तविकता ये है की प्रारब्ध के कारण कभी कभी हमें सफलता मिल जाती है किन्तु हम मात्र अनुभव की चाह में बैठे रहते हैं और अनुभव हो गया तो सफलता का चिन्ह मान लेते हैं नहीं तो कुछ हासिल नहीं हुआ ये मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते हैं,किन्तु याद रखिये साधना में सफलता प्राप्ति के बाद बचता ही क्या है....कुछ नहीं .... कुछ भी तो नहीं... तब ये पूरी प्रकृति ही हाथ में आ जाती है और आपके असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं |
बहुत से साधकों ने यक्षिणी साधना को संपन्न किया होगा होलिका दहन की रात्रि में,किन्तु स्थान दोष,चिंतन दोष, वास्तु दोष, मुख दोष,या प्रारब्ध कर्म के कारण उनका प्रत्यक्षीकरण नहीं हुआ होगा, सदगुरुदेव हमेशा कहते थे की “साधक वो नहीं होता ही जो असफलता के बाद हाथ पर हाथ धरे बैठे रहता है,अपितु साधक वो है जो साधना में सफलता प्राप्त करने का और उन्हें झपट कर दबोच लेने के सूत्रों को खोजकर अपनी साधनाचर्या का हिस्सा ही बना लेता है और सिद्धियों को विवश कर देता है हाथ बाँध कर सामने खड़े होने के लिए”|
साधना का क्षेत्र ऐसा नहीं है की बस अब मूड हुआ और करने बैठ गए,सिद्धियों का प्रकटीकरण वर्षों के परिश्रम के बाद होता है, यदि गुरु ये कहते हैं की अमुक साधना इतने दिनों में सिद्ध हो जायेगी तो ये उन साधकों को इंगित कर कहा जाता है साधना जिनका जूनून है ना की मौसमी साधकों के लिए ये नियम लागू होता है... मुझे याद है की कैसे सदगुरुदेव ये बताया करते थे की प्रत्येक साधना के पूर्व यदि गुरु मंत्र का कम से कम ५१,००० जप कर लिया जाये और फिर मूल साधना की जाये तो सफलता मिलती ही है |
वैसे तो साधना में सफलता प्राप्त करने के विविध सूत्र हैं जिन्हें गुप्त रखा गया है,किन्तु यहाँ मैं २ महत्वपूर्ण सूत्रों का विवरण दे रहा हूँ,जिनके प्रयोग से यक्षिणी साधना में सफलता प्राप्त कर उनका प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है |
यदि आपने होलिका दहन की रात्री को यक्षिणी या अप्सरा साधना की है और प्रत्यक्षीकरण नहीं हुआ हो तो इसका अर्थ ये कदापि नहीं है की आप असफल हो गए हैं,अपितु आपकी संकल्प शक्ति की मंदता के कारण,वायुमंडलिक संक्रांत के कारण या स्थान दोष के कारण मन्त्र घनत्व स्थूल नहीं हो पता है परिणाम स्वरुप अणुओं का संगठन शिथिल रहा जाता है और प्रत्यक्षीकरण नहीं हो पाता है | अतः ऐसे में उन अणुओं को पूर्ण संगठित कर घनत्व वृद्धि हेतु दो महत्वपूर्ण क्रिया यदि की जाये तो उन यक्षिणी और अप्सराओं का प्रत्यक्ष साहचर्य प्राप्त हो जाता है |
१. पान के पत्ते पर पर एक छोटा सा गोला बनाकर उसमें यक्षिणी या अप्सरा का (जिसकी आपने होली की रात्रि को साधना की थी) मूल मन्त्र लिख दे और उस गोले के चारो और उसी मूल मन्त्र को लिख दे. तत्पश्चात उस पान का पूजन पंचोपचार विधि से करें और उस मूल मंत्र के आगे और पीछे “ॐ” का सम्पुट देकर ७ माला मंत्र अपनी जप माला से कर लें |इसके बाद उस पान के पत्ते को किसी देवी मंदिर में कुछ दक्षिणा के साथ समर्पित कर दे | ये क्रिया मात्र साधना के दुसरे दिन यदि सफलता ना मिली हो तब मात्र एक बार करना है |
२. यक्षिणी या अप्सरा का जो चित्र या यन्त्र आपके पास हो उस पर एकाग्रता पूर्वक दृष्टि रख यथा संभव त्राटक करते हुए २१ माला मंत्र “देव प्रत्यक्ष सिद्धि मंत्र” का करना है |
देव प्रत्यक्ष सिद्धि मंत्र- ॐ पिंगल लोचने देव दर्शन सिद्धिं क्लीं हुं
इस मंत्र के पहले और बाद में ५-५ माला उस मूल मंत्र की करनी है जिसे आपने उस साधना में प्रयोग किया था | ये क्रिया अमावस्या तक नित्य रात्री में संपन्न करनी है और इन दोनों ही क्रिया के फलस्वरूप आपके मंत्र की बिखरी हुयी शक्ति एकत्र होने लग जाती है और संगठन के फलस्वरूप वायु मंडल से उस यक्षिणी और अप्सरा का सूक्ष्म रूप भी संलयित होकर आपके सामने पूरी तरह दृष्टिगोचर होने लगता है |
सूत्र आपके सामने है,करना और नहीं करना आपके हाथ में है.... कहा भी गया है की –
“उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि ना मनोरथैः |
ना हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगः ||”
****NPRU****
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2 comments:
bhai ,
no english version of this mantra
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