प्रद्युत्मान तन्नोपरि उद्धरित: नूतन सृजः
उत्तपत्ति सहदिष्ठ:ब्रह्मांडो सहपरि सहबीज: अक्षतान् |
मुमुक्षताम स्थिरताम वै: दिव्यः वपुः मेधा:
पूर्णम पूर्णै सपरिपूर्ण: आसन: दिव्यताम सिद्धि: ||
“विरूपाक्ष कल्प तंत्र” ५६ सारगर्भित श्लोकों से निर्मित वो तंत्र रचना है जो एक सामान्य साधक को अपूर्णता से पूर्णत्व की और यात्रा करवाती है और उस ग्रन्थ का प्रत्येक श्लोक कूट भाषा में ऐसे ऐसे रहस्यों का समावेश किये हुए है जो सामान्य से सिद्धता और नर से नारायण की और आपकी यात्रा करवाता है |बीज मन्त्रों का जितना सुन्दर रहस्य इस में वर्णित है उतना कही और प्राप्य होना दुष्कर ही है | उसी ग्रन्थ का ये श्लोक इंगित करता है चेतना के उन स्तरों का जिनके द्वारा सिद्धि प्राप्ति की क्रिया अत्यधिक सहज हो जाती है | वास्तव में ये सम्पूर्ण शब्द एक क्रिया विशेष की और संकेत करते हैं और व्यंजना शैली में लिखित होने के कारण इनका वो अर्थ कदापि नहीं हो सकता है जो की हम सामान्य दृष्टि से देख या सामान्य बुद्धि से समझ रहे होते हैं |
सिद्ध विरूपाक्ष संकेत करते हुए मात्र यही कहते हैं की “यदि मन्त्र(कुछ विशेष बीजाक्षर)या योजना विशेष का क्रमगत रूप से प्रयोग कर तीन पदार्थों या भाव को साध लिया जाए तो ब्रह्मांडीय रहस्यों को भेदकर नूतन सृजन की सिद्धि सहज आपका वरण कर लेती है | तब आप मात्र पूर्ण ही नहीं होते हो,अपितु आपके उद्यम से आप व्यक्ति या प्रकृति की विकृति को भी दूर कर उसमे पूर्णत्व का समावेश कर देता है” | एक साधक के साधना कक्ष में उसकी साधनात्मक यात्रा के जो उपकरण होते हैं यदि वही विशेष शक्ति योग से युक्त न हो तो उसकी सफलता संदिग्ध ही होती है | हम में से सभी अपने जीवन में एक बार तो उस सफलता को अपनी आँखों से देखना चाहते हैं,अनुभव करना चाहते हैं उसकी प्राप्ति को और उसके बाद उसका प्रयोग कर स्व जीवन और समाज को अपनी सफलता का लाभ देना चाहता है | किन्तु ये सब मात्र कल्पना ही रह जाता है, मुझे याद है जब हम सभी जबलपुर सेमीनार के लिए इकठ्ठा हुए थे तो वहाँ मास्टर ने हमें बताया था की सिद्धि की साकारता वास्तव में आपकी कल्पना शक्ति का संलयित रूप होता है, किन्तु जब ये घटना ब्रह्माण्ड में कही घट रही होती है तो उस समय असीम ऊर्जा का प्रवाह विस्तार पाता है | किन्तु कल्पना तब तक कल्पना ही होती है जब तक उसमे शक्ति का योग न हो जाए |याद रखिये प्रत्येक पदार्थ हमें जीवन में दो बार देखने को मिलते हैं, पहला हमारी कल्पना में और दूसरा जब उस कल्पना को साकार कर लिया जाये,किन्तु कल्पना को साकार करने के लिए उद्यम शक्ति का अभाव नहीं होना चाहिए |यदि उद्यम शक्ति या परिश्रम का अभाव नहीं है तब आपकी आत्मशक्ति आपकी कल्पना को विघटित नहीं होने देती है बल्कि उसके घनत्व को तीव्र कर आपके वांछित को साकार कर आपकी शक्ति को प्रत्यक्ष कर देती है |
साधक यदि अपनी साधना सामग्री की ऊर्जा तरंगों को जाग्रत कर ले और उस जाग्रत अवस्था को यदि चैतन्य कर दे तब उसके लिए सफलता मात्र कल्पना नहीं रह पाती है अपितु वो सहजता से उस सफलता का वरण कर सकता है | किन्तु हम में से कितने हैं जिन्हें इन प्रक्रियाओं का ज्ञान है |क्या हमारा आसन जाग्रत है ?
जो हमें वातावरण की नकारात्मकता से ना केवल मुक्त करे अपितु जब हम उस पर बैठ कर साधना करे या मंत्र जाप करे तो ना केवल वो हमारी बाहरी या सूक्ष्म बाधाओं से हमारी सुरक्षा करे और जीवन पर्यंत सभी साधनों में हमारा सहयोग करे अपितु हमारे मन्त्र इष्ट का हमसे योग भी करवा दे,तब ऐसे में साधक और साध्य एक हो जाते हैं| उनमे परस्पर कोई भेद ही नहीं रहता तब आप मंत्र हो जाते हो और मंत्र जप की क्रिया से आपके कर्मगत मलों का नाश हो जाता है और आप पूर्णत्व की और ना केवल अग्रसर हो जाते हो अपितु उस आयाम से भी आपका समपर्क होना सहज हो जाता है जो की अगोचर है | शायद आपने सुना होगा की सिद्ध योगियों के आसन पर बैठने से सामान्य साधक पागल भी हो सकता है क्यूंकि वो आसन विशेष उर्जा से युक्त होते हैं,इसी कारण सिद्धों के आसन को दूर से ही प्रणाम किया जाता है | क्या आपको ज्ञात है की जब हम उच्च शक्तियों,योगियों या सिद्धों का आवाहन करते हैं तो उन्हें निवेदित किये जाने वाले आसन को कैसे चैतन्य किया जाता है ताकि वो आसन ना सिर्फ उन्हें निवेदित करने योग्य हो अपितु जब वे उस आसन को ग्रहण कर अपनी शक्ति से युक्त करे तो कैसे भविष्य में वो आसन एक पीठ के रूप में परिवर्तित होकर अन्य शक्तियों का भी आकर्षण करने में समर्थ हो सके और आपको उस आसन की उपस्थिति सफलता भी प्रदान करे |
क्या हम अक्षत की महत्ता जानते हैं या हमें ज्ञात है की कैसे इस सामान्य से दिखने वाले पदार्थ के द्वारा हमारे मनोरथ को पूर्ण किया जा सकता है?
कैसे इन्हें सिद्ध कर हमारी साधना का एक महत्वपूर्ण अस्त्र बनाया जा सकता है जिससे वशीकरण,शांति कर्म,उच्चाटन,लक्ष्मी प्राप्ति,इष्ट की कृपा प्राप्ति और अपरा शक्तियों का आकर्षण किया जा सके | कैसे इनके अंदर सुप्त चेतना को जाग्रत और चैतन्य कर स्वयं की चेतना से योग कर इन्हें अचूक अस्त्र के रूप में अपनी साधना में प्रयोग कर सके और तब ऐसे में ये एक तरफ तो आपका सर्वविध सुरक्षा करने का दायित्व निभाते हैं और आवशयकता पड़ने पर आपके लक्ष्य का भी भेदन कर सकते हैं |
क्या आपको ज्ञात है की एक सामान्य से रत्न के द्वारा जो की सहजता से किसी भी पूजा पथ का सामान रखने वाले के यहाँ प्राप्त हो जाता है और कैसे उसकी अन्तःगर्भित शक्तियों को जाग्रत और चैतन्य करने से वो सामान्य रत्न बहुमूल्य गुणों से युक्त हो जाता है और आपकी मेधा शक्ति को बहुगुणित कर स्मरण शक्ति को तीव्र कर देता है ?
तब ऐसे में ना सिर्फ आपकी मानसिक शक्ति और स्मरण क्षमता में वृद्धि हो जाती है,अपितु बीज मंत्र का विशेष क्रम से योग होने पर ये प्रबल आकर्षण क्षमता से युक्त होकर पराशक्तियों का आकर्षण सरलता से कर लेते हैं और इन्हें धारण करने वाला साधक थोडा परिश्रम कर किसी को भी सरलता से अनुकूल कर सकता है| दुर्घटना निवारक और तंत्र प्रहारों से बचाने में इनकी भूमिका सर्वोपरि होती है |इसी कारण प्राचीन काल में मुद्रिका धारण की प्रथा थी क्यूंकि वो अंगूठियां कवच का कार्य करती थी और आपकी सफलता प्राप्ति को सहज भी |
प्रकृति का प्रत्येक तत्व स्पंदन से युक्त है,भले ही हमारी दृष्टि में वो निर्जीव या मृत की श्रेणी में आता हो, किन्तु उसमे चेतना शक्ति होती है और भले ही सूक्ष्म होने की वजह से वो स्पंदन हमें दिखाई न देता हो किन्तु उसका यदि किसी उपाय से वेग तीव्र कर दिया जाए तो उस स्पंदन और चेतना का हम सकारात्मक प्रयोग कर सकते हैं| और आगम शास्त्र ऐसा ही प्राच्य विज्ञान है जिसकी ऊँगली थामे नव्य विज्ञान विकास की और गतिशील है | तभी तो कहा जाता है की जहाँ से नव्य विज्ञान की सीमा समाप्त होती है वहाँ से आध्यात्म प्रारंभ होता है | विरूपाक्ष कल्प तंत्र ऐसी युक्तियों से भरा हुआ है |
विरूपाक्ष कल्प तंत्र से उद्धृत उपरोक्त श्लोक में अन्तर्निहित पद्धति से कैसे उपरोक्त तीनों सामग्री और तत्वों को चैतन्य कर सके ये अगले लेख में.........(क्रमशः)
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Pradyutmaan Tannopri Udhritah Nuutan Srijah
Utatptati Sehdishtah Brahmaando Sehpri Sehbeejah Akshtaan
Can we make them a strong sadhna weapon by siddh them, through which vashikaran, Shaanti Karam, Ucchaatan, Laxmi Praapti, Getting Kripa of isht and attraction of shakti’s can be done. How to awake the sleeping chetnaa of them and after awkening , combining our chetnaa with their, we can use them like weapons in our sadhna, then, in this way, they provide you all round security and when required help you towards your goal.
Do you know how through ordinary ratna which is available easily in the shops of worship material, we can awaken them and by giving chetnaa to them, normal ratna is filled with special benefits and increases your learning power.?
Then, not only, your mental power and learning power increases but through the yog of beej mantras in special format, through their attraction capacity, easily attracts the powers and by doing little hard work, the sadhak can mould anybody. These play a vital role in saving us from accident and from the tantra attacks. For this reason only, various mudriks were tied on the fingers in the ancient times because they work like the kavach for us and provide us the success easily.
Everything of nature contain chetnaa in it whether it is living or non-living, whether it is small, but if we increases the force of chetnaa in it, then, we can use that chetnaa in positive way. And Aagam shaashtra is a type of ancient science, through which the modern science is developing. For this reason only it is said that where the modern science ends, from there spritiuality begins. Virupaaksh Kalp Tantra is filled with this type of things. By how these three things can be energized through the above paragraph of Virupaaksh Kalp Tantra will be discussed in the next article….(continue) …………..
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