साधक का लक्ष्य होता है जीवन में पूर्णता प्राप्त करना | पूर्णता पाने की राह इतनी सहज नहीं है , सही योजना, सतत आत्म मंथन, अथक परिश्रम और सकारात्मक विचार शक्ति से ही पूर्णत्व को पाया जा सकता है | वैसे तो नवरात्रि का पर्व ही जगत जननी की लीलाओं के विस्तार का पर्व होता है,जब उनकी अनंत शक्तियों का सीधा सम्बन्ध प्रकृति और उसकी अनुपम रचना मनुष्यों से होता है | किन्तु इसकी प्राप्ति मात्र वही कर पाता है जिसकी प्राण शक्ति गुरु चेतना से युक्त हो |
सृजन
पालन
संहार
के तीन गुणों से युक्त है माँ जगत जननी लीला विहारिणी के तीन रूप महासरस्वती,महालक्ष्मी और महाकाली ....... वस्तुतः ये तीन रूप नहीं हैं अपितु माँ आदिशक्ति के तीन गुण या ये कहो की तीन चिंतन है... जिसकी साकारता उनके उपरोक्त तीनों रूप करते हैं |
क्या कभी सोचा है की सृजन ,पालन और संहार क्रम में माँ आदिशक्ति की कौन सी तीन शक्तियां कार्य करती हैं | चलिए ये तो आपको ज्ञात ही होगा की कौन कौन सी शक्तियां अपने प्रभावों के द्वारा उपरोक्त कर्मों को संपादित करते हैं , साथ ही ये भी हमें ज्ञात है की उन कर्मों के प्रति कौन से भाव दायित्व निभाते हैं |
सृजन सतगुण ज्ञान शक्ति
पालन रजोगुण क्रियाशक्ति
संहार तमोगुण इच्छाशक्ति
ये तीनों शक्ति अनिवार्य होती हैं परब्रह्म के स्वप्नों को साकार करने के लिए | ऊपर जो क्रम दिया है मात्र यदि उसी सूत्र को हम हृदयंगम करले तो जीवन के किसी भी क्षेत्र में हम असफल नहीं हो सकते हैं |
क्या ब्रह्मा सृष्टि का सृजन बिना ज्ञान के कर सकते थे ? कदापि नहीं,उनके सृजन का कार्य ज्ञानशक्ति के अभाव में फलीभूत नहीं हो सकता था , इसलिए माँ ने अपनी ज्ञानशक्ति को महासरस्वती के रूप में उन्हें प्रदान किया तदुपरांत ही सृजन का कार्य संपादित हो पाया |
विष्णु जी को ब्रह्मा द्वारा रचित सृष्टि के पालन कर्म में सफलता के लिए इच्छाशक्ति का सहयोग अपेक्षित था,तभी उन्हें महालक्ष्मी की प्राप्ति हुयी और वे अपने दायित्व निर्वाह में सफल हो पाए |
सदाशिव को संहार कर्म के लिए माँ आदिशक्ति का इच्छा रूप प्राप्त हुआ और वे शक्तिवान होकर संहार कर्म को संपादित कर सके |
अब आप ही सोचिये की भौतिक और अध्यात्मिक जीवन के ऐसे कौन से कर्म हैं जिसकी पूर्ती इन त्रयिशक्तियों से नहीं हो सकती है |
ऐश्वर्य
सौभाग्य
संतान
गुणवान जीवनसाथी
भौतिक सम्पदा
मनोकामनापूर्ति
आरोग्य
दीर्घायु
पूर्णत्व
इष्ट प्रत्यक्षिकरण
ये सभी के सभी इन्ही त्रयीशक्तियों के अधीन है | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के समस्त कर्म इन्ही के अधीन है और अधीन है परिणाम भी | अतः अलग अलग रूपों की साधना करने की अपेक्षा नवरात्रि में संयुक्त रूपों की अर्चना कर कही अधिक तीव्रता से कम परिश्रम के द्वारा सर्वस्व प्राप्त किया जा सकता है | यहाँ बात मात्र भौतिक उपलब्धियों की नहीं हो रही है अपितु किसी भी साधक के जीवन का चरम लक्ष्य “कुंडलिनी जागरण” भी इस क्रिया से सहज हो जाती है | नव दुर्गा और दसों महाविद्याओं के समन्वित रूप की ये साधना है ही ऐसी की साधक के कमजोर आत्मबल को सुदृड कर समाज के सामने मजबूत आधार दे देती है तब उसका कुछ भी पाना असंभव नहीं रह जाता है | और विस्तृत व्याख्या करने की अपेक्षा मेरे लिए कही ज्यादा बेहतर है की मैं इस प्रयोग को अपने भाई बहनों के समक्ष रखूं ,जिससे वे स्वयं ही इस अनुभूत प्रयोग को संपन्न कर इसका वैशिष्ट लाभ उठा सके | इस बार की नवरात्रि १० दिनों की है,अतः माँ की कृपा लाभ का और अधिक अवसर हमें प्राप्त हुआ है,आवशयकता है मात्र लाभ उठाने की | इस प्रयोग को सदगुरुदेव ने १९८६ में संपन्न करवाया था |
साधना विधि :-
ये रात्रिकालीन साधना है किन्तु इसे नवरात्रि में प्रातः काल भी किया जा सकता है |
साधना के लिए श्वेत,गुलाबी,लाल या पीले वस्त्र प्रयोग किये जा सकते हैं |
साधना काल में दीपक तेल का प्रज्वलित होगा ,और ये सम्पूर्ण साधना काल में जलते रहना चाहिए और यदि अखंड दीपक की योजना की जा सके तो अति उत्तम |
भोजन हल्का और सुपाच्य होना चाहिए ,ब्रह्मचर्य की अनिवार्यता है |
दिशा उत्तर या पूर्व होना चाहिए |
सामग्री के नाम पर पीला वस्त्र,११ पूजा की सुपारी, १ किलो हल्दी से रंजित अक्षत, कुंकुम, पान, लौंग,इलायची, कपूर, जायफल, इत्र, अगरबत्ती की भस्म, नीम्बू, पुष्प,नारियल, पंचमेवे का प्रसाद और फल तथा दक्षिणा राशि चाहिए |
जप माला में तुलसी माला छोड़कर किसी भी माला का प्रयोग किया जा सकता है ,यदि माला नवीन हो तो बहुत अच्छा |
साधना दिवस की प्रातः भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान कर उनसे साधना में सफलता की प्रार्थना करे |
फिर जब साधना प्रारंभ करना हो तब स्नान आदि क्रिया संपन्न कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके साधना कक्ष में लाल या पीले आसन पर बैठ जाये और पूर्ण पंचोपचार या षोडशोपचार विधि से सदगुरुदेव, गणपति का पूजन संपन्न करे और ५ माला गुरु मंत्र की संपन्न कर सदगुरुदेव से अपने संकल्प की (जिस भी कामना से आप मंत्र जप कर रहे हैं) पूर्ती हेतु आशीर्वाद प्राप्ति की प्रार्थना करे |
तत्पश्चात बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर माँ दुर्गा का चित्र और यदि यन्त्र हो तो यन्त्र स्थापित करे, चित्र के सामने गोलाकार रूप में दस पीले अक्षतों की ढेरी बनाये और प्रत्येक ढेरी पर १-१ सुपारी स्थापित करे | उस गोले के बीच में भी एक और ढेरी का निर्माण कर उस ढेरी पर जायफल स्थापित करे | चित्र के बाएं तरफ एक और चावलों की ढेरी बनाकर उस पर एक और सुपारी स्थापित करे .
इसको हम नीचे दिए हुए चित्र की सहायता से समझ सकते हैं -
माँ का यन्त्र या चित्र
दीपक - गोलाकार अक्षतों की १० ढेरियाँ और बीच में एक और ढेरी - भैरव
उपरोक्त क्रमानुसार सामग्रियों की स्थापना के बाद आप निम्न ध्यान मंत्र का ९ बार उच्चारण कीजिये -
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |
दारिद्र्य दुखहारिणी का त्वदन्यः सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||
नमामि भक्तवत्सला दस वक्त्रा गीताम ||
तदुपरांत आपकी जो भी कामना है उस कामना की पूर्ती का संकल्प लीजिए | संकल्प के बाद माँ के चित्र या यन्त्र का कुंकुम तथा पंचोपचार विधि से पूजन कीजिये | इसके पश्चात जहाँ पर ढेरी के ऊपर भैरव प्रतीक में सुपारी राखी है उनका गुड,काले तिल और अक्षत,कुंकुम से “ॐ भं भैरवाय नमः” बोलते हुए करना है तथा जो दसों सुपारी अलग अलग ढेरियों पर रखी है उनका क्रम से निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजन करे और माँ धूमावती के अतिरिक्त सभी को कुंकुम अर्पित करे सिर्फ माँ धूमावती को भस्म अर्पित करे |
ॐ महाकाल्यै स्थापयामि पूजयामि
ॐ भगवत्यै तारा स्थापयामि पूजयामि
ॐ ललिता स्थापयामि पूजयामि
ॐ भुवनेश्वरी स्थापयामि पूजयामि
ॐ भैरवी स्थापयामि पूजयामि
ॐ प्रचंडचंडिकायै स्थापयामि पूजयामि
ॐ दारुणयै स्थापयामि पूजयामि (यहाँ भस्म अर्पित करना है,कुंकुम नहीं )
ॐ वल्गाशक्ति स्थापयामि पूजयामि
ॐ उच्छिष्ट्चंडालिनी स्थापयामि पूजयामि
ॐ कमलायै स्थापयामि पूजयामि
सभी शक्तियों का पूजन,कुंकुम, अक्षत, लौंग,इलायची तथा पंचमेवे से करना है ,इसके बाद जो केंद्र वाली ढेरी पर जायफल रखा है उसका पूजन “ सर्वशक्ति स्रोत महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यै स्थापयामि पूजयामि” बोलते हुए उन्ही सामग्रियों तथा इत्र,पान,कपूर,नारियल तथा नीम्बू से करना है ,जैसा अन्य का किया था | तथा दीपक प्रज्वलित करने के बाद उसका भी संक्षिप्त पूजन कर ले |
अब जायफल पर नवार्ण मंत्र का उच्चारण करते हुए ५ मिनट तक कुंकुम अर्पित करे-
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”
“AING HREENG KLEENG CHAAMUNDAAYAI VICHCHE”
नवार्ण मंत्र के बाद ११ माला निम्न त्रिकूटात्मक महाविद्या समन्वित त्रयी शक्ति मंत्र की करे
ॐ दुर्गायै क्लीं श्रियै क्रीं सिद्धिं देहि देहि फट् ||
OM DURGAAYAI KLEEM SHRIYAI KREEM SIDDHIM DEHI DEHI PHAT ||
मन्त्र जप के बाद पुनः नवार्ण मंत्र का उच्चारण करते हुए पुनः जायफल पर कुंकुम अर्पित करे,तत्पश्चात आरती तथा जप समर्पण करे | इस प्रकार सिद्धिदात्री दिवस तक इस प्रयोग को करना है |याद रखने योग्य तथ्य ये है की जिन्हें माँ दुर्गा के बिम्बात्मक दर्शन करना है उन्हें अखंड दीपक की स्थापना करके उसकी लौ पर एकाग्रतापूर्वक देखते हुए जप करना है ,मंत्र जप के मध्य या अंतिम दिवस उस लौ में माँ के स्वरुप के दर्शन कर सकता है | अंतिम दिवस इसी मन्त्र में स्वाहा लगाकर १०८ आहुति घृत से प्रदान करनी चाहिए,जिससे साधना पूर्ण हो जाती है और १,३,५,७,९ कन्या का सामर्थ्यानुसार पूजन कर दक्षिणा अर्पित कर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए |साधना काल में शरीर का तापमान बढ़ जाता है और चेहरे पर तेज का प्रवाह बढ़ जाता है,साधक के शरीर से कपूर और पुष्प की भीनी भीनी गंध प्रवाहित होने लगती है,आनंदातिरेक से साधक का मन आप्लावित होते जाता है | ये साधना तीव्र प्रभावकारी है मनोरथ पूर्ती करने में किन्तु अन्य तीव्र साधनों की अपेक्षा इसकी अनुभूतिया सुखदायक ही होती है | प्रतिदिन निर्माल्य (पुष्प,लौंग वगैरह) को अलग रख दे और नवीन सामग्री से पूजन करे, साधना के बाद उसे किसी सुनसान जगह पर रख दे |याद रखियेगा नारियल पहले और अंतिम दिन समर्पित करना है तथा उसे साधना के बाद यज्ञकुंड में विसर्जित कर देना है नवरात्रि का पर्व हमारे सामने है फिर विलम्ब क्यूँ |
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The aim of the sadhak is to achieve Poornta(fullness). The way or path of Poornta is not so simple, through only right planning, continuing thinking about yourself, continuous hard work and positive thinking power, poornta can be achieved. Navraatri Festival is for the leela(activities) of the world wide mother(jagat jnani,(maa)), where unlimited power(shakti) of maa is directly connected to nature and their creations human beings. But, it can be achieved by that only whose Praan shakti is containing guru chetnaa.
सृजन(srijan,to give birth)
पालन(paalan, to fulfill all needs)
संहार(shanhaar, death)
These three activities are connected with three forms of jagat jnani maa(world wide mother)- maha saraswati, maha laxmi, and mahakaali………in real, these are not three forms of maa, these are three thinkings……..which are denoted by the above three forms………
Have u think in the srijan, paalan and sahnhaar activities of aadishakti(maa) which three powers(shakti) work? You all may know how power through their affects do above activities? At the same time, we also know, to do these activities, which bhaav(thinking) works?
सृजन (srijan) सतगुण (satgunh) ज्ञान शक्ति(gyaan shakti)
पालन(paalan) रजोगुण(rajogunh) क्रियाशक्ति(kriya shakti)
संहार(sanhaar) तमोगुण(tmoogunh) इच्छाशक्ति(iccha shakti)
These three shakti(powers) are necessary to fulfill the dreams of parbrahm. The order which has been given above, only if we follow this by true heart, then, we can’t fail in any part of our life.
Can brahmaa do the work of srijan without the true knowledge? No, Not at all, the srijan work of him can’t be fruitful without the gyaan shakti(power of true knowledge) , therefore, maa provides him gyaan shakti in the form of maha saraswati ,afterwards only, the work of srijan gets started. To do the paalan kram of the shrishti(universe) created by brahmaa, the help of iccha shakti(power of wish) was needed, that ‘s why, he got mahalaxmi and done his work.
To do the work of sanhaar kram, Shiva got the iccha form (wish)of aadishakti(maa), and through becoming powerful, fulfill his sanhaar work.
Now you can think which work of our materialistic and spritiual life can’t be fulfill by the three powers(trayoshakti).
ऐश्वर्य(Aishwarya)
सौभाग्य(Soubhaagya)
संतान(Santaan)
गुणवान जीवनसाथी(gunwaaan jeevan saathi)
भौतिक सम्पदा(bhootik sampdaa)
मनोकामनापूर्ति(manokaamnapoorti)
आरोग्य(aaroghya)
दीर्घायु(dirgaayu)
पूर्णत्व(poorntav)
इष्ट प्रत्यक्षिकरण(iccha pratakshikaran)
All these are dependent on these three powers(trayoshakti). All the activities of universe are dependent on these and dependent are the results also. Therefore, better than doing sadhna of these three different forms separately, all can be get through by doing worshipping of one combined form of these with less hard work. Here, we are not talking of the materialistic life only, but, the final aim of sadhak life, KUNDLI JAAGRAN, can be achieved by this process only. This sadhnaa, combination form of Navdurga and Dus mahavidhya provides strong base by increasing the weak self power of sadhak . Then, achieving anything do not become impossible for a sadhak. And , instead of explaining more, its better for me to describe this procedure to my brothers and sisters, so that , they can achieve special benefits from this sadhna. This year Navratri is for 10 days, we are having more time to gain benefits. Important is only achieving more benefits. This procedure was given by sadgurudev in 1986.
Sadhna procedure
This is a night sadhna but one can do it in the morning of navratri also . We can use white, pink, red or yellow clothes in our sadhna. During the sadhna time, we have to burn the Deepak of oil and it should burn during the whole sadhna time and it be will be more better if it keeps on burning during the whole navratri time.
Pure and light food should be taken, brahmchaarya is necessary.
The direction can be north or east.
Sadhna material will be yellow clothes, 11 pooja supaari, 1 kg rice mixed with haldi, kumkum,long,illachi,kapur,jaayfal,itra, bhasm of agrabati, neembu, flowers,coconut, prasaad made from panchmewa,fruits and money for offering.
For jaap, any maala can be used except tulsi. If the maala is new, then ,it wil be good.
On the morning of the day of sadhna, offer the water to sun and pray to him for offering success.
Then, when you have to start the sadhna, take a bath, wear clothes and sit in the sadhna room on the yellow or white aasan and do paanchu upchar or shodash upchaar poojan of sadgurudev and lord ganpati, do 5 maala of guru mantra, pray to sadgurudev to fulfill your sankalp(for which you are doing sadhna).
Then, establish the photo of maa durgaa and yantra if present on the table. In the front of the picture, make 10 circular separate collection of yellow rice and on the above of each collection, establish one-one supaari. Then, make one more circular collection in between other circular collection and establish jaayfal on it. Make another circular collection of rice on the left of the photo and establish supaari on it.
We can understand with the help of photo below:
Yantra or photo of maa
Deepak - 10 circular collection of rice और in the centre one more collection- bherav
After establishing the above material, do the dhyaan mantra given below one time:
ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः,स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |
दारिद्र्य दुखहारिणी का त्वदन्यः सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||
नमामि भक्तवत्सला दस वक्त्रा गीताम ||
Om durge smritaa harsi bhiitimsheshjntoh, swasthayee smritaa matimtiivshubaam dadaasi.
Daaridrya dukhhaarinii kaa tvadanyahsarvopkaarkrnaay sdardrchitta
Namaami bhaktavtslaa dus vktraa geetaam
Now, take the sankalp to fulfillment of your manokaamna(wish). After sankalp, worship the photo of maa with kumkum and panchoopchaar procedure. After this, worship the supaari kept in the form of bhierav on the collection of rice with gud,black til and rice, chant the mantra,”OM BHAM BHAIRVAAY NAMAH” offering kumkum at the same time of chanting. Now, do the worships of 10 supaaris with kumkum kept on different collections by chanting below mantras ,except dhumaavati, we have to offer the bhasam to her.
ॐ महाकाल्यै स्थापयामि पूजयामि(OM MAHAKAALYAYAI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ भगवत्यै तारा स्थापयामि पूजयामि(OM BHAGVATYAI TAARA STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ ललिता स्थापयामि पूजयामि(OM LALITAA STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ भुवनेश्वरी स्थापयामि पूजयामि(OM BHUVNESHWARI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ भैरवी स्थापयामि पूजयामि(OM BHIERAVI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ प्रचंडचंडिकायै स्थापयामि पूजयामि(OM PRACHAND CHANDIKAAYAI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ दारुणयै स्थापयामि पूजयामि (OM DAARUNAYAI STHAAPYAAMI POOJYAAMI) (यहाँ भस्म अर्पित करना है,कुंकुम नहीं )(Offer here only bhasam, not kumkum)
ॐ वल्गाशक्ति स्थापयामि पूजयामि(OM VLGAASHAKTI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ उच्छिष्ट्चंडालिनी स्थापयामि पूजयामि(OM UCHISHTCHANDAALINI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
ॐ कमलायै स्थापयामि पूजयामि(OM KAMLAAYI STHAAPYAAMI POOJYAAMI)
Do the worship of all the powers(shakti) kept on 10 collections of rice with kumkum,loong, rice, illaychi and panchmewa. Then, do the worship of the jaayfal kept in the centered collection with,”SARVSHAKTI SROT MAHAKAALI MAHALAXMI MAHASARSWATAYAI STHAAPYAAMI NAMAH”
with the same material and itra, paan, kapur,coconut and neembu. After burning Deepak, worship it also.
Now, do the navaarn mantra for 5 minutes on jaayfal by offering kumkum.
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे”
“AING HREENG KLEENG CHAAMUNDAAYAI VICHCHE”
After doing navaarn mantra, do the 11 maala of trikutaatmak mahavidhya smnavit traayi shakti mantra:
ॐ दुर्गायै क्लीं श्रियै क्रीं सिद्धिं देहि देहि फट् ||
OM DURGAAYAI KLEEM SHRIYAI KREEM SIDDHIM DEHI DEHI PHAT ||
After doing this mantra, again do navaarn mantra and offer kumkum to jaayfal, next, do aarti and jap samarpan. You have to do it for siddhaatri day. The point which is to be remembered is that the person who has to do the darshan of maa durga, then ,the person has to concentrate on the middle of the burning Deepak. The person can get the darshan on the middle or last day. On the last day, use the word SWAH after the mantra, and give 108 aahutiya with the ghee in the havaan, which it sadhna is comleted.Do the worship of 1,3,5,7 or 9 girls, depend upon u ,give the money to all of them and take the blessing also. During the sadhna period, the temperature of body increases and glow of face also increases. The mix smell of kapur and flowers comes from sadhak and the heart of sadhak filled with happiness everytime. This sadhna is speedily effective for achievement of manokaamna(wish) but the experience of this sadhna is good as compared to other sadhna. Everyday, separate the flowers, loong etc and do the worship with new one. After sadhna , keep it in some place where there is no human being. Remember, that you have to offer the coconut on the first and last day and after the sadhna, it has to be offered to the haavan. The days of navraatri is in front of us, then, for what to wait?
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