Wednesday, March 7, 2012

अद्भुत आत्मलिंग साधना(ADBHUT AATMLING SADHNA)


योग तन्त्र का पूरा आधार एक गुढ़ रहश्य है जिसे जितना भी समजा जाये कम ही पड़ता है, सदियों से साधक ने इस आधार को समजने की कोशिश की है और अत्यधिक से अत्यधिक ज्ञान प्राप्त करने परभी उसके सभी पक्ष का अनावरण नही हो पाया है, वह आधार है कुण्डलिनी शक्ति. कुण्डलिनी के जितने भी पक्ष अब तक विविध सिद्धोने सामने रखे है वह मनुष्यों को उसकी शक्ति के परिचय के लिए पर्याप्त है. सामान्य रूप मे साधको के मध्य कुण्डलिनी का षट्चक्र जागरण ही प्रचलित है, लेकिन उच्चकोटि के योगियों का कथन है की सहस्त्रारजागरण तो कुण्डलिनी जागरण की शुरुआत मात्र है, उसके बाद ह्रदयचक्र, चित चक्र, मस्तिस्क चक्र, सूर्यचक्र जागरण जैसे कई चक्रों की अत्यधिक दुस्कर सिद्धिया है जिनके बारे मे हम सामान्य मनुष्यों को भले ही ज्ञान न हो लेकिन इन एक एक चक्रों के जागरण के लिए उच्चकोटि के योगीजन सेकडों साल तक साधना रत रहते है. इस प्रकार यह कभी न खत्म होने वाला एक अत्यधिक गुढ़ विषय है. इसी क्रम मे अलग अलग लाखो-करोडो विधान प्रचलित है.
योग तन्त्र के मध्य कायाकल्प के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण विधान है. कायाकल्प और सौंदर्य का सही अर्थ क्या है, इसके बारे मे पहले ही चर्चा की जा चुकी है की यह मात्र काया को सुन्दर बनाने की कोई विधि मात्र नही है. यह आत्मा की निर्मलता से लेके पाष से मुक्त होके आनंद प्राप्ति की क्रिया है. अगर साधक आतंरिक चक्रों के दर्शन की प्रक्रिया कुण्डलिनी के वेगमार्ग से करता है तब उसे मूलाधार से आगे बढ़ते ही एक त्रिकोण द्रष्टिगोचर होता है, जो की आतंरिक योनी है, मनुष्यका ह्रदय पक्ष और स्त्री भाव इस त्रिकोण पर निर्भर करता है, और उसके ऊपर मणिपुर चक्र के पास एक लिंग ठीक उस त्रिकोण अर्थात योनी के ऊपर स्थिर रहता है, जो की व्यक्ति के मस्तिष्क पक्ष और पुरुष भाव से सबंधित है. यह त्रिकोण और लिंग से एक पूरा शिवलिंग का निर्माण होता है जिसे योग-तन्त्र मे आत्मलिंग कहा जाता है. इस लिंग के दर्शन करना अत्यधिक सौभाग्य सूचक और सिद्धि प्रदाता है. शिवलिंग के अभिषेक के महत्व के बारे मे हर व्यक्ति जनता ही है. यु इसी क्रम मे साधक इस लिंग का अभिषेक करे तो आत्मलिंग से जो उर्जा व्याप्त होती है वह पुरे शरीर मे फ़ैल कर आतंरिक शरीर का कायाकल्प कर देती है, उसके बाद साधक निर्मल रहता है, उसके चेहरे पर और वाणी मे एक विशेष प्रभाव आ जाता है. साधक एक हर्षोल्लास और आनंद मे मग्न रहता है और कई सिद्धिया उसे स्वतः प्राप्त होती है.

योगतन्त्र मे इस दुर्लभ विधान की प्रक्रिया इस प्रकार से है. यथासंभव इस अभ्यास को साधक ब्रम्ह मुहूर्त मे ही करे, लेकिन अगर यह संभव न हो तो कोई ऐसे समय का चयन करे जब शोरगुल न हो और अभ्यास के मध्य कोई विघ्न ना आये. साधक पहले अपनी योग्यता से सोऽहं बीज के साथ अनुलोम विलोम की प्रक्रिया करे. उसके बाद भस्त्रिका करे. अनुभव मे आया है की जब साधक २ मिनट मे १२० बार पूर्ण भस्त्रिका करे तब उसे कुछ समय आँखे बांध करने पर कुण्डलिनी का आतंरिक मार्ग कुछ क्षणों तक दिखता है. इस समय मे साधक को ॐ आत्मलिंगाय हूं का सतत जाप करते रहना चाहिए. नियमित रूप से अभ्यास करने पर वह लिंग धीरे धीरे साफ़ दिखाई देने लगता है. जब वह पूर्ण रूप से दिखाई देने लग जाए तब आत्मलिंग के ऊपर आप अपनी कल्पना के योग्य ॐ आत्मलिंगाय सिद्धिं फट मंत्र द्वारा अभिषेक करे. जिसे आँखों के मध्य हम बहार देखते है, चित के माध्यम से शरीर उसे अंदर देख सकता है, चित ,द्रष्टि के द्वारा पदार्थो का आतंरिक सर्जन करता है और उसे ही मस्तिक के माध्यम से हम बिम्ब समज कर हम उसे बहार देखकर महसूस करते है, तो इस प्रक्रिया मे चित का सूक्ष्म सर्जन ही मूल सर्जन की भाव भूमि का निर्माण करता है, इस लिए अभिषेक करते वक्त चित मे से निकली हुयी अभिषेक की कल्पना सूक्ष्मजगत मे मूल पदार्थ की रचना करती ही है, जिससे आप जो भी अभिषेक विधान की प्रक्रिया करते है वो आपके लिए भले ही कल्पना हो, सूक्ष्म जगत मे उसका बराबर अस्तित्व होता ही है. अभिषेक का अभ्यास शुरू होते ही साधक का कायाकल्प भी शुरू हो जाता है.
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The base of the Yoga-tantra is one big mystery, which is too wide to understand, from centuries Sadhakas of all ages have tried to understand this base and by generating more and more knowledge of the same, all aspect of the same have not been disclosed, that base is Kundalini Power. However, the aspects related to kundalini which came to front are enough to make people understand power of the same. In common, in general most favorite thing among sadhak of kundalini is Shat-chakra jagaran, but higher level yogis often told that even Sahastraar Jagaran is just a starting of the Kundalini, after that there are so many rare powers related to the many chakras like hraday chakra, chit chakra, mastishk chakra, surya chakra etc. about which we common people might not have the knowledge but higher spiritual level attended yogis keeps on doing hundreds of year’s sadhana to activate single chakras. This way, it is infinite and mysterious subject. In this regard, there are billions processes with this subject.

There is very important process for kayakalp under yogatantra. What is the real meaning of kayakalp and beauty has already been discussed in detail that it is not process only to have a beautiful body. It is also about cleaning of the soul by removing boundaries and to have joy.  When sadhak does the process to see the internal chakras with the actual path of kundalini then when being ahead from muladhar he can see a triangle, which is internal Yoni, human’s heart aspect and feminine emotions are related to this triangle, and above the same near Manipur chakra there is a Linga situated just above the triangle or Yoni, which is related to humans brain aspect and male emotions. With this triangle yogi and linga, the shivalinga is formed which is termed as aatma-linga in yogtantra. To have glimpse of this linga is auspicious and power giver. Everyone knows the importance of the shivalinga abhisheka. In this way, if sadhak does abhisheka of this linga, the power and energy oozed out from the aatmalinga will be able to do kayakalp of the internal body, after which sadhak stays serene and sadhak have a new power on his face and in speech.  Sadhak internally stay in enthusiasm & Joy and many siddhis he get by himself.

he process of this rare constitute is this way. One should try to do process in the bramhamuhurt, but in case if it is not possible, manage a time when there is no noice and no possibilities of disturbance. Sadhak should practice anulom-vilom pranayam with Soham Beeja according to individual capabilities. One should go for bhastrika after that. It has came to know that if sadhak does 120 time full bhastrika in 2 minutes; after closing the eyes, one may have glimpse of the internal kundalini way for few moments. In this time duration one should keep on chanting “Om AatmaLingaaya Hum. By doing regular exercise of this practice one will start having glimpse of the Linga clearly. When it becomes completely clear, one should start doing abhisheka of the aamtalinga with mantra Om aatmalingaay siddhim phataccording to individual’s imagination. The one which is visualized with eyes in outer world, with Chit one watches it inside, Chit does the creation of the things internally with medium of the eyes and that only particular is understand by us for the visualization and feeling of existence out of the body, So, in this process, Sukshma creation of the chit creates base for the actual thing to occur, therefore, the imagination of the abhiseka from the chita creates the actual abhiseka in the sukshma world at the same time, this way whatever you are doing with abhisekha it may be just an imagination for you, it for sure is having an existence in Sukshma world. The practice when started by sadhak, Kayakalp of the sadhak even starts occurring.
   

                                                                                               
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