मेरे सवालो का जवाब अब मुझे खुद ही प्राप्त करने थे और इस लिए अब मेरे पास आवाहन का ही सहारा था, त्रिनेत्र त्राटक और सूक्ष्म जगत की प्रक्रिया के माध्यम से फिर से एक बार संपर्क किया सूक्ष्म जगत में निवास करने वाली दिव्य आत्माओ को. परिचय में आया एक दिव्यात्मा के, मन को तसल्ली हुई की ज़रूर इनके पास मेरे सवालो का जवाब होगा. फिर रोक नहीं पाया में अपने आपको एक क्षण भी, बोलने के लिए तो कुछ था ही नहीं, हमेशा की तरह महात्मा सब कुछ जानते थे. मेने पूछा की आखिर क्या कहना चाहती थी मुझे वो? थोडा मुस्कुराए मेरे इस अबोध सवाल पर महात्मा, फिर बोले की तुम्हे सायद ज्ञात नहीं की साधना और तपस्या की ललक पृथ्वी लोक के मनुष्यों के अलावा दूसरे लोक के कई जीवो में भी होती है, यक्ष, किन्नर आदि लोक लोकान्तरो का तो साधना के प्रति बराबर आकर्षण रहा ही है लेकिन भोग प्रवृति के कारण ये जिव साधना सम्प्पन नहीं कर पाते, इनमे विलास प्रवृति ज्यादा होती है इस लिए साधना सम्प्पन करना सभी के बस की बात नहीं है. उच्चतम भोग प्राप्त करने के लिए मनुष्य को साधना करनी पड़ती है जो की इनके लिए सहज सुलभ है लेकिन इनकी यही भोग प्रवृति की लोलुपता इनको बाध्य करती है भोग से आगे जा कर मोक्ष की प्राप्ति में. फिर भी कुछ ऐसे जिव होते है जिनका आकर्षण भोग से ऊपर उठने की और भी होता है, इसी लिए समय समय पर कुछ ऐसे जिव पृथ्वी लोक में जन्म लेते है मनुष्य बन कर और उनके अंतर्मन में दबी हुई चेतना उनको साधना के मार्ग पर गतिशील करती है. जब वह इस योनी से मुक्त होते है मृत्यु पर्यंत तब उन्हें अपने मूल रूप का बोध होता है. इस प्रकार पृथ्वी पर कई ऐसे मनुष्य होते है जो साधना मार्ग पर होते है लेकिन उनको ये ज्ञात नहीं होता है की वह किसी अन्य लोक से है, क्यों की मानव योनी में जब गर्भ में प्राण का संचार होता है तब उसकी चेतना पूर्ण रूप से जागृत होती है लेकिन गर्भ के बहार आते ही उनकी ये चेतना का लोप हो जाता है, इसके मूल में जो तत्व है वह है असुरक्षा या भय. स्मृति का भय से बहोत ही लेना देना है, भय स्मृति को बढ़ा या घटा सकता है, भयभीत मनुष्य कई बार संज्ञा शून्य भी हो जाता है तो कई बार उसे कई सालो पुरानी बाते याद आ जाती है, मनुष्य योनी की यह प्रक्रिया अंतरमन के द्वारा प्रेरित होती है, इस लिए गर्भ में उसे सुरक्षा का आभास होता है, जन्म के समय शरीर में असुरक्षा का बोध जिव में भय का संचार करता है जिससे की अंतरमन उसकी पूर्व स्मृति शक्ति का निषेध कर देती है. लेकिन प्राणतत्व, मन तत्व और आत्म तत्व जब इस योनी से मुक्त होते है तब वापस सुरक्षा बोध के माध्यम से चेताशक्ति को जागृत कर स्मृति शक्ति को मूल रूप से कार्यरत कर देती है इस लिए व्यक्ति को अपने जीवन के सभी बोध होने लगते है, तुम जिससे मिले थे वह भी कभी इसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्य योनी से साधना कर चुकी है. लेकिन उसने तुम्हे वचन मांगा था इस लिए तुम्हारा अनुभव वही पर समाप्त कर दिया गया था, स्वभावतः धारण किये हुए शरीर का आत्म तत्व पर बोध का संचार करता है इस लिए धारण किये हुए शरीर के मुताबिक़ व्यक्ति के लक्षण और स्वभाव भी इसी प्रकार का हो जाता है, इसी लिए योगी उच्चकुल तथा साधनातम वातावरण वाले गर्भ में जन्म लेना ज्यादा पसंद करते है जिससे की उनको आत्मतत्व की अशुद्धियो को दूर करने में ज्यादा समय ना लगे. या फिर जब परकाया प्रवेश किया जाता है तब भी किसी मृतयोगी का या विशेष बोध वाले शरीर का चयन उच्चयोगी करते है. साधना में पूर्ण बोध ना होने पर जब बाहरी जिव अपनी मूल योनी में वापस आते है तो स्वभाव से ही उनमे उनके पूर्व गुण कुछ अंश के रूप में ही सही लेकिन वापस आ जाते है,भोगजन्य देव योनी के जिव भी इससे छूट नहीं सकते इस लिए उनमे भी भोग की वृति वापस आ ही जाती है वस्तुतः इसका शुद्धिकरण ज़रुरी है वर्ना एक बार ये संस्कार हावी हो जाए तो फिर से नए रूप में साधना करनी पड़ती है, इस लिए गुरु की महत्ता निर्विवादित रूप से स्वीकार की जाती है, गुरु अपने शिष्य को इन चक्करों से बचा कर उसका मूल लक्ष्य बार बार उसके सामने रखते है, ऐसा कई जन्मो तक होता रहता है, जब तक की वह पूर्ण बोध को प्राप्त ना कर ले जिसके बाद वह शरीर के बोध को या लक्षण को अपने ऊपर हावी ना होने दे. इसी लिए साधक बार बार जन्म ले कर अपना मार्जन करता रहता है और गुरु उसको इस कार्य में मार्ग दिखाते ही रहते है. भले ही साधक इन सब बातो से अनजान हो लेकिन उसके अंतरमन में ये तथ्य हमेशा विद्यमान रहता है और इसी के कारण जीवन में सब कुछ होते हुवे भी वह अपने मूल तत्व को तलाशता रहता है और एक दिन साधना मार्ग की और गतिशील हो ही जाता है. यह सारी प्रक्रिया सिद्धगुरु के मध्य से होती है और एक सिद्ध गुरु ही एसी प्रक्रिया कर सकता है. ये सब कार्य में स्वः लोक के सिद्ध सहायता करते है.
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I have to get the answer of my questions myself and for this I have no option left, other than Aavahan. By the mean of Trinetra Tratak (tratak done on third eye) and process of subtle world, I again contacted the divine souls residing in subtle world. I got introduced to one Divya Aatma, got the consolation that definitely he will have answers to my question. I could not stop myself; there was nothing to say much, as always, Mahatma knew everything. I asked after all, what she wanted to tell me.Mahatma smiled a bit on my innocent question, then told that may be you do not know the fact that craving for sadhna and mediation is also present in creatures of other loks besides the human beings of earth. Loks like Yaksha, kinnar lok etc. have had continuous attraction towards sadhna but they are not able to do sadhna due to their inclination towards enjoyment. They have more tendencies toward merry-making. Therefore, to do sadhna is not possible for everyone. To attain the highest pleasure, humanbeings have to do sadhna which is easily available to them. But the greed for pleasure and enjoyment compels them to go beyond pleasure and attain salvation. Therefore, from time to time, some of such creatures take birth on earth as human being and the consciousness suppressed in their sub-conscious mind paves them on the way of sadhna. After death when they are freed from this Yoni, they come to know about their basic form. In the same way, there are such types of human beings on earth who are on sadhna path but they don’t know that they belong to some different Lok. This is because of the fact that in human form, whenpraan is circulated in womb, then their consciousness is full active but after coming out of womb, consciousness disappears. The basic element behind this is insecurity or fear. The memory has lot to do with fear. Fear can increase or decrease memory. Scared person sometimes become absent-minded and sometimes he remembers thing of the past. This activity of human beings is inspired by sub-conscious mind. Therefore, he feels secure inside the womb. At the time of birth, feeling of insecurity in body creates the fear by which subconscious mind prohibits the memory power which was present previously. But when Praan element and man element and Aatm element are freed from this yoni then again by means of security feeling, memory power becomes active again.Therefore, person gets to know all about his/her life. The lady which you met has done sadhna on earth as human being sometime in the past but she asked for a promise from you. That’s why your experience was forced to end there. Naturally, the body acquired circulates consciousness in Aatm element. Therefore, the characteristic features and nature of that person also become like that of acquired body (body that he or she has attained).That’s why yogis want to take birth in wombs of high-order Kula and having sadhna environment so that it does not take much time for them to get rid of impurities of Aatm element. Or when Par Kaya Pravesh (one of the highest accomplishment in tantra world whereby soul enters the dead body of another person) is done, then body of yogi or body having special consciousness is chosen by high-order yogi. When the creatures come back to their basic yoni after their sadhna (which they could not realize completely), naturally their old virtues come back in some portion or the other. Pleasure-seeking Dev yoni is not an exception to this, their tendency to enjoy also comes back. Purification of this is must otherwise if these sanskars become domineering, then they have to start sadhna all over again. Therefore, importance of Guru is accepted in undisputed manner. Guru saves his/ her disciples from all this and puts forward his basic aim in front of him. This goes on for many births until sadhak does not attain full consciousness, after which disciple does not allow the body or its characteristic features to overpower him. That’s why sadhak keep on cleansing them by taking births again and again. Guru helps him and shows the way in doing so.May be sadhak is unaware of all this but this fact always remains in his subconscious mind and due to it this only, despite having everything in life, he searches for the basic element and one day he eventually enters the path of sadhna. This whole activity is done by Siddh Guru and only a Siddh guru can do this activity. Siddhs of Swah lok assist in all these deeds.
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