मनुष्य के शरीर से एक प्राणसूत्र निकलता है,जिसे हम अथर्व के नाम से जानते हैं ,चूँकि ये प्राणसूत्र प्राण रूप में होता है,इसलिए लौकिक रूप से इसे देख पाने में हमारी स्थूल दृष्टि असमर्थ रहती है. जिस परोक्ष शक्ति की वजह से हमारा मन हमारे किसी आत्मीय के दुःख से दूर रहकर भी परिचित हो जाता है, उसी शक्ति को हम अथर्वा सूत्र के नाम से जानते हैं. इस शक्ति सूत्र में आकर्षण का प्रबलतम गुण होता है,ये हजारों मील दूर से भी किसी को तत्क्षण आकर्षित कर लेता है.
प्रत्येक प्राणी के शरीर का अथर्वा सूत्र भिन्न ही होता है. जिसमे उसकी अपनी प्राण शक्ति होती है, यथा किसी भी व्यक्ति विशेष के नाखून,बाल,वस्त्र आदि में उसकी प्राण शक्ति सदैव प्रतिष्ठित रहती है. और योग्य साधक इसके माध्यम से अपना अभीष्ट साध लेते हैं. इसी कारण कहा जाता है की अपने कपडे, नाख़ून और केश इधर उधर नहीं फेकना चाहिए. इनका कोई भी दुरूपयोग कर सकता है.
यही अथर्व शक्ति ‘बगलामुखी’ के नाम से साधक समाज में प्रचलित है. और इनकी साधना दुसाध्य भी होती है. और सत्य भी है, जिस प्राण शक्ति के कारण सम्पूर्ण विश्व ब्रम्हांड में टिका हुआ है ,वो इतनी आसानी से तो कभी सिद्ध नहीं हो सकती है. बहुतेरे साधक जन्म जन्मांतर तक इनकी साधना करते रहते हैं ,परन्तु इनके रहस्यों का उचित ज्ञान न होने के कारण वो इनकी शक्तियों की उचित प्राप्ति नहीं कर पाते हैं. इनकी साधना में “ॐ एकवक्त्र महारुद्राय नमः”मंत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है. एकवक्त्र महारुद्र शिव इनके भैरव हैं ,और ये तो सभी महाविद्याओं का सिद्ध करने का आधारभूत नियम है की, महाविद्या की सिद्धि उनके भैरव को सिद्ध करे बगैर हो ही नहीं सकती.
तत्पश्चात बगलामुखी का शरीर में स्थापन अनिवार्य होता है, बिना देह स्थापन के इनकी सिद्धि हो ही नहीं सकती.
इस साधना के लिए कोई भी दो विकल्प आप चयनित कर सकते हैं .पहला आप चने की दाल से बगलामुखी यन्त्र का निर्माण कर के उस पर स्वर्णमयी बगलामुखी की प्रतिमा का स्थापन कर ले या फिर बाजोट पर “पीताम्बरा शक्ति चालन पारद गुटिका” का स्थापन कर ले , ये विशुद्ध पारद से बनी हुयी अग्नि स्थायी हलके लाल रंग की होती है और इसकी चमक साधना के साथ साथ बढते ही चली जाती है जो की इस बात का प्रमाण होती है की आपका अथर्वा सूत्र तीव्रता से जाग्रत और चैतन्य हो रहा है. आप अपनी सुविधानुसार कोई भी विकल्प का चयन कर सकते हैं.
शनिवार की मध्यरात्रि को अपने सामने कोई भी विकल्प का बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर स्थापन करके, पीले वस्त्र धारण करके,तथा दीपक में भी केसर डाल दे तथा बत्ती को भी हल्दी से रंग कर सुखा ले.आसन पीला होना चाहिए. सदगुरुदेव तथा गणपति का पूजन संपन्न कर ले.
तत्पश्चात “ह्लीं” बीज मंत्र से निम्न स्थानों पर माँ का स्थापन करे.
यथा –
ह्लीं मूल आत्म-तत्व व्यापिनी श्री बगलामुखी श्री पदुकाम पूजयामि – मूलाधारे
ह्लीं विद्या -तत्व व्यापिनी श्री बगलामुखी श्री पदुकाम पूजयामि – हृदये
ह्लीं शिव -तत्व व्यापिनी श्री बगलामुखी श्री पदुकाम पूजयामि – शिरसि
ह्लीं सर्व-तत्व व्यापिनी श्री बगलामुखी श्री पदुकाम पूजयामि – सर्वांगे
तत्पश्चात निम्न मंत्र से उनका विशेष ध्यान करें,ये ध्यान मंत्र ३६ बार बोलना है –
विराटस्वरूपिणीम् देवी विविधानंददायिनिम् I
भजेऽहं बगलाम् देवीं भक्त चिंतामणिम् शुभां II
तत्पश्चात हल्दी, बेसन के लड्डू,पीले रंगे हुए अक्षत तथा पीत पुष्पों से देवी का या गुटिका का पूजन करे.
इसके बाद हल्दी की प्राण प्रतिष्ठित माला से निम्न मंत्र की ३६ माला जप करे.और ये क्रम ३ दिनों तक करना है.
ॐ ह्लीं बगलामुख्यै शरीर सिद्ध्यै नमः II
इसके बाद फिर से ३६ बार ध्यान करना है और विशेष न्यास करना है, यही क्रम नित्य प्रति रहेगा.
ये बगलामुखी साधना का अनूठा गोपनीय विधान है,जिसके द्वारा उनकी साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है और आगे की साधना का मार्ग प्रशस्त होता ही है.
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In the human body there is a pransutre, which is known as atharva, as this pransutra is in the form of prana, ability of our eyes is not at the extent to watch it. With the one indirect power our mind automatically gets to know about the pain or sorrow of cognate though staying at far distance, the same power is termed as atharvaa sutra. This shakti sutra have potent property of attraction, this can certainly attract any one from thousands of miles far.
Every human have a different atharvaa sutra. Which has its own prana shakti, as there remains presence of pran shakti in individual’s nails, hairs, clothes etc. and capable sadhaka will fulfill his desire from this. This is the reason that cloths, nails or hair of the self should not be thrown anywhere. Anyone can do misuse of the same.
This atharva shakti is known as ‘bagulamukhi’ in the sadhak’s world. And her sadhana is extreme difficult too. And it is a fact too that the pran shakti because of which the world stays in bramhand, she cannot be accomplished so easily. So many sadhaka keep on doing her sadhana for many lives, but being unaware of the secret knowledge related to subject, they does not become able to have powers from her, in her sadhana “Om ekavaktr mahaarudraaya namah” mantra haves big contribution. Ekvaktra mahaarudra shiva is bhairava of her, and it is the base rule of all mahavidhya that without accomplishing bhairava of mahavidhya, the sadhana could not be accomplished.
After that establishment of bagulamukhi in the body is essential, without which her accomplishment is impossible.
For this sadhana there are 2 choices. First is the one in which you will prepare bagulamukhi yantra with gram (chane ki daal) and establish golden bagulamukhi’s idol on it or establish “Pitambara Shakti Chaalan Paarad Gutika” on wooden mate, this is light red colored and agnisthayi gutika made of completely pure paarada and shine of the same increase while going through the sadhana respectively which is evidence that your athrva sutra is getting awaken and lively intense. You can select either of the option which is comfortable for you.
On Saturday mid night spread a yellow cloth on the wooden mate (baajota) wear yellow cloths, & saffron should also be added to the lamp (dipaka) and lamp wick should also be colored in yellow and dried. Aasana should be yellow. Do poojana of sadgurudev and ganapati.
After that with “Hleem” beeja mantra establish goddess in these places.
As-
Hleem mool aatm-tatv vyaapini shri bagulamukhi shri padukaam poojayaami – mooladhaare
Hleem vidhya-tatv vyaapini shri bagulamukhi shri padukaam poojayaami – hradaye
Hleem shiv- tatv vyaapini shri bagulamukhi shri padukaam poojayaami – shirasi
Hleem sarv- tatv vyaapini shri bagulamukhi shri padukaam poojayaami – sarvaange
Afterthat with the mantra below make a special meditation (dhyana) of her, this dhyan mantra should be chanted 36 times.
Viraataswaroopinim devi vividhanandadaayinim |
Bhajeham bagalaam devim bhakta chintamanim shubhaam ||
After that with turmeric, besan laddoo, yellow colored rice (raw rice applied yellow colored) and with yellow flowers do the poojan of idol or gutika.
After that with pranapratisthit turmeric rosary, chant 36 rounds of the following mantra. This process should be done for 3 days.
Om hleem bagalaamukhyai shareer siddhaye namah
After this again do the meditation 36 times and nyasa, these processes should also be done daily.
This is a different and secret bagulamukhi process, with which one gets success in her sadhana and way become clear for further sadhanas.
****NPRU****
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2 comments:
bhai can you provide this gutika................to us......???????
bahut hi achchhi sadhna hai,adbhut hai.hamein iss rahasya ke baare mein pata hi nahin tha.hum ise karna chahte hain,kripya ismein prayukt baglamukhi parad gutika ki nyochhawar ke baare mein hamein suchit karne ki kripa karein.hamara mail id hai:msaxena.saxena@gmail.com.
itni achchhi sadhna dene ke liye aapko koti koti dhanyawaad.JAI SADGURUDEV.
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