मानव जीवन की प्रारंभिक उपलब्धयां तो भौतिक
रूप से सफल होने की होती हैंक्योंकि उसके आभाव में आध्यात्मिक
उपलब्धियां प्राप्त हो पाए कम से कम आज के परिवेश में कठिन
सा होता जा रहा हैं , साथ ही साथ वास्तविक आवश्यकता और चाह में
अन्तर होता ही हैं, एक समय के बाद व्यक्ति अपने स्वरुप से बचने के लिए कभी
ये ख़ुशी तोकभी वह खुशीकी तलाश में निकलता हैं पर सारी कोशिशें एक प्रकार से
व्यर्थ सी हो ती हैं की अपने को पहचानने की ,क्योंकि यात्रा
तो अंतर गत हैं भला बाहय कर्म काण्ड या व्यवस्थाओं से अंतर गत
उपलब्धियां कैसे हस्त गत होगी , ओर जीवन के ठीक इसी मोड़
पर एक व्यक्तिव सामने आता ही हैं ,
हाँ ये वात अलग हैं की हम उसे पहचान
पाए या नहीं , और वह होते हैं व्यक्ति के गुरु जिन्हें सदगुरुदेव की
संज्ञा से बोधित किया जाता हैं , हम तो यही मानते आये
हैं की हम ही गुरु को ढूढ़ते हैं पर सच में कहा
हैं. भला यदि विराट अपना ही अंश हमारे अन्दर पहले से
न डाल दे तो क्षुद्र भला कैसे विराट
कोकैसे पहचान की यंत्र अपर निकल सकता हैं,(यदि
नदी में समुद्र का जल न हो तो नदी कैसे समुद्र तक की
यात्रा अक्रेगी) हमारी ये महानता नहीं हैं की हमने उन्हें पहचाना या
समझा बल्कि यदि उन्होंने ही पहले से हमारा हाथ न पकड़ा
होता हैं हमें पहले से न चाहा होता तो हममें अपने
प्राण न डाले होते तो हम कैसे उनके तक पहुचते हैं.तो
उन्होंने ही हमें चुना हैं हमने नहीं ...जरा सोचिये
अब उनतक पहुच गए पर यात्रा के लिए
सदगुरुदेव जी आपके लिए एक इष्ट निर्धारण करते हैं जिसके माध्यम
से आप इस यात्रा को थोडा सा सुगम तरीके से
गतिमान कर सकते हैं . पर ये तो अभी इष्ट
केबल कल्पना हैं ओर कल्पना का ध्यान कैसे किया जा सकता
हैं, आप कहेंगे किपहले साधना करे फिर इष्ट दर्शन पर सच
तो ये हैं की पहले इष्ट दर्शन फिर उनका ध्यान तभी वह वास्तिविक हो
सकता हैं ,सदगुरुदेव भगवान ने अपनी कृतियों
में कई जगह इसका उल्लेख किया हैं , पर जब
हमने ही उस विज्ञानं को उपेक्षितकर दिया तब आज हमें अपने इष्ट के
दर्शन कैसे हो .कल्पना के इष्ट
से कितनी देर यात्रा चल सकती हैं .
मनुष्य जीवन का उद्देश्य
अपने इष्ट को अपने अंदर स्थापित कर लेना या खुद के अस्तित्व को इष्ट में विसर्जित
करदेना हैं . लेकिन इष्ट आखिर किस को कहा जाए, सदगुरुदेव ने बताया हैं
की इष्ट का मतलब हे वो शक्ति जो ब्रम्हांड को गतिशील रखता हैं , जिसे ब्रम्ह
कहा गया हैं , और वह कोई भी हो सकता हैं क्यूंकि ब्रम्ह सर्वत्र
व्याप्त हैं सर्व में स्थापित हैं . अगर देवी देवताओ की बात करे तो
सर्व देवी एवं देवता का ब्रम्हांड की गति में एक निश्चित सुनियोजित योगदान हैं ,
मनुष्य जिस देवी या देवता की उपासना में साधना में रत हो, वही उसका इष्ट हैं
हे क्यूंकि वह ब्रम्ह के रूप को समझने में उसका माध्यम हैं .
पुरे जीवन काल में मनुष्य का यह स्वप्न होता हैं की वह अपने
इष्ट का दर्शन करे और आशीर्वाद प्राप्त करे लेकिन यह इतना सहज संभव नहीं हे
क्यूँकी हम सामान्य मनुष्यों के सामने ब्रम्हांड नियंत्रित करने वाली शक्तियां भला
सहज में क्यों प्रकट होंगी. इसी लिए कई मनुष्य अपना पूरा जीवन इस कार्य में लगा
देते हैं फिर भी कुछ एक विरले लोगो को ही यह सौभाग्य प्राप्त होता हैं
की वह अपने चरम चक्षुओ अपने इष्ट को देख सके और अपने जीवन को धन्य कर सके.
साधना जगत में कई
साधक की चाह होती हैं की वह कोई एसी साधना प्राप्त करले जिससे अपने इष्ट को
अपने सामने प्रत्यक्ष कर ले मगर इस प्रकार की साधना मिलना असंभव नहीं तो अति
दुष्कर तो हैं ही. सदगुरुदेव ने इष्ट दर्शन सबंधित साधनाए शिष्यों के मध्य
रखी हैं और कई साधको ने आगे बढ़के उन साधना पद्धतियों को अपनाया हैं और
अपने इष्ट को प्रत्यक्ष अनुभव किया हैं , साधको ने स्वीकार किया हैं की
यह साधनाए अपने आप में निश्चित फलदायक हैं लेकिन श्रम साध्य भी. सामान्य
व्यक्तियो के लिए एसी साधनाए करना अति कठिन हैं , समस्त नियमों का पालन करते
हुए, लाखो की संख्या में मंत्र जप आज के युग में करना थोडा मुश्किल हैं .
जब मेने इस बारे में
अपनी जिज्ञासा सदगुरुदेव श्री निखिलेश्वरानन्दजी के समक्ष रखी तो उन्होंने कहा की
इष्ट दर्शन करना दुष्कर हैं क्यूँकी इसके बाद की स्थिति यह होती हैं
की इष्ट से हर समय उर्जा प्रवाहित होती रहती हैं जो साधक को भौतिक और
आध्यातिम उन्नति की और बढाती रहती हैं , लेकिन अगर कोई साधक कठिन साधना न कर
सके तो उनके लिए एक प्रयोग और भी हैं जो दिखने में अति सामान्य हैं
लेकिन इससे इष्ट दर्शन निश्चित रूप से हो जाते हैं . यह प्रयोग गुरु यन्त्र
पर होता हैं . गुरु के अंदर सर्व देवी देवता और स्वयं ब्रम्ह स्थापित होते ही
हैं और उन्ही का प्रतिक गुरु यन्त्र होता हैं , जब साधक इस यन्त्र के
सामने एक गोपनीय मंत्र का निश्चित संख्या में जप करता हैं तो गुरु कृपा से
उस यन्त्र के मध्य में इष्ट प्रत्यक्ष हो जाते हैं .
मेरे विशेष अनुरोध पर
उन्होंने कृपा करके मुझे यह साधना दी और जिस इष्ट दर्शन के लिए में चार साल से
प्रयत्न कर रहा था वह इस साधना से मात्र ३ दिन में ही संभव हो गया और मेरे जीवन की
एक बहोत बड़ी साध पूरी हुयी. साधक अंदाज़ा लगा सकते हैं की कहा कई साल विशेष
नियमों के अंतर्गत साधना करना और कहा बस कुछ दिनों में ही वही परिणाम प्राप्त
करना. यह गोपनीय और देव दुर्लभ साधना के लिए जितना भी कहा जाए उतना कम हैं .
जीवन में इस प्रकार की साधना करने के लिए आतंरिक प्रेरणा मिलना सौभाग्य का उदय ही हैं .
और इस प्रकार की साधना उपलब्ध होने के बाद भी कोई इसका प्रयोग न करे तो फिर उसे
क्या कहा जाए.
इस साधना के लिए साधक
के पास ‘ सिद्धाश्रम गुरु यन्त्र ’ या
फिर गुरु यन्त्र होना जरुरी हैं . यह साधना गुरुवार की रात्रि से शुरू होती
हे. और यह प्रयोग ३ दिन का हैं .
साधक सर्व प्रथम गुरुदेव का पूजन करे और फिर उनसे इष्ट दर्शन में
सफलता के लिए प्रार्थना करे. फिर अपने इष्ट को सदगुरुदेव का ही एक स्वरुप समझ कर
उनसे साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करे. उसके बाद रात्रि में स्फटिक माला से
यन्त्र पर देखते हुए निम्न मंत्र की १०१ माला करे
ॐ सद्गुरु इष्ट में दर्शय हुं हुं
इस प्रकार १०१ माला
करने पर साधक इष्ट और सदगुरुदेव को नमस्कार करके जप समाप्त करे. अगले २ दिन तक इसी
तरह से जप करते रहे. तीसरे दिन, रात्रि में जप समाप्ति से पहले पहले निश्चित रूप
से इष्ट के दर्शन गुरु यन्त्र पे हो जाते हैं और आगे भी जीवन में इष्ट की
कृपा बनी रहती हैं . यन्त्र को पूजा स्थान में स्थापित करे और माला को भविष्य
में यही प्रयोग अगर वापस करना चाहे तो उपयोग में ले सकते हैं .
यह अत्यंत ही सहज और
सरल प्रयोग पुरे जीवन को बदलने की सामर्थ्य रखता हैं
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For a person his
first desire to have /get achievement in material wealth/world ,since without
having success in material life its very hard to have success spiritually into
days life . and also there is big difference between want and desire, after a
point person hide himself in the shadow of one desire or that desire but still
his quest for to know himself is unsuccessful. Since to know self the yatra
have to be done inwardly , outer search
with outer mediun, that can not
give u the success. Than only on this point a person comes in front of you.
yes the case may be the different that maybe
recognise him or not , the pserson is known as a guru orwe known him asa
sadgurudev ji.we til date assume thatwe serched the guru , butthis is notthe
truth,greater /almighty already serched us than we can starts the way, he
alreadyplces his love inside us only than we can search/love him.(if a river
has not have water already came outfrom sea asa evoporationhow can she reach toits destination. if he already
notplces his prana inside us than how itis possible to have sadgurudev ji like
that.
when we reach
tosadgurudev than he decide which one canbe our iasht so that the remaimimg travellinh may be
little easily. til that ishat is just a imagination. and how it is possible to
have imegination’s dhyan possible.first place to have ishtdarshan onlythan
dhyan canbe done,sadgurudev jionmanyplaces
writtenn about this.but we never intersted tolearn that science , than how we can have isht darshan is a big question .withouit isht in general
sense how long a yatra runns.
The of purpose of the human life to
establish Isht (favored) into self or to immerse one self in Isht. But whom can
we call Isht, Sadgurudev have said that Isht means the power which maintains the continuity of the universe, which is called Bramha,
and that could be anyone because Bramh is everywhere and it is established in
everything. If we speak in term of god and goddess, every one of them
contributes words specific well organized continuity of the universe, who so
ever prayed with medium of sadhana and upasana that is Isht because it is the
medium to understand Bramh.
In the whole life, the dream of the human remains that he get sight of the
Isht and have blessings but it is not so simple because why the controlling
powers of the universe will appear in
front of we common human beings so easily, therefore many people lay down their
complete life to accomplish this task but then too few fortunate only have that
boon to have a sight of their Isht with their eyes and can have a blessed life.
In the world of the sadhana, many sadhak wish to have a sadhana through
which they can let their Isht appear in front of them but though to get such
sadhana is not impossible then too it is very difficult. Sadgurudev have many time revealed such
sadhanas related to Isht darshan to the disciples and Sadhaks have adopted
these sadhanas willingly and experienced their Isht. Sadhaks accepted that
these sadhanas are surely fruitful to do but tough in practice. To do such
sadhanas by common men is relly difficult, with following all rules, it is
difficult in this time of world to do laks of mantra chanting.
When I spoke in this regards with Sadgurudev Paramhansh
Nikhileshwaranandji, he said that to have a sight of Isht is really difficult
because after that the energy of Isht keeps on flowing on the sadhaka which lay
him ahead in the path of material and spiritual success, but if sadhak is not
able to do such difficult sadhana there is another ritual which seems very
common but it can fulfill a wish of Isht’s sight. This is done on Guru yantra.
All the god goddess and Bramh is established inside guru and Guru yantra is the
symbol of him only. When sadhak +blessings of Sadguru they can see Isht inside
Guru yantra.
With my special request he gave me that sadhana and for the task of isht
darshan which I was trying for 4 years, I had been successful in just 3 days
only and the one of very big wish of my life was fulfilled. Sadhak can
understand that where stands the many many years for sadhana with special rules
and regularion and where else this sadhana can give the same result in just few
days. What ever we say about this rare and secret sadhana is truly not enough.
It is fortune to have inspiration to do such sadhana and if one does not
accomplish such sadhana after gaining it what would you call that.
To accomplish this sadhana one must have “Siddhashram Guru Yanta ”or Guru
Yantra. This sadhana could be started on Thursday night. This is for 3 days.
Sadhak should do guru Poojan first and pray him to get success in the
sadhana. After that one should think their isht in the form of Sadguru’s part
only and again pray for the success. After that looking at guru yantra chant
101 rosaries of the following mantra with Sfatik Rosary.
Om Sadguru Isht Me
Darshay Hum Hum
This way by accomplishing 101 rosaries, sadhak should bow down to Isht and
Sadguru. For next 2 days repeat the same process, one the third day, before
completion of mantra chanting one for sure will be able to have sight of their
Isht in the Guru Yantra. And the whole life is blessed. Yantra should be placed
into worship place and rosary could be brought into use for the same sadhana in
the future.
This is very easy and comfortable process but owns power to change whole
life.
****NPRU****
1 comment:
superb.....atyant durlabh sadhna aapne hum bhaiyon ko pradaan ki hai,iske liye sspko jitns bhi sadhuvaad diya jaaye,kam hoga.ye to hamara saubhagya hai ke aap jsie varishth gurubhaiyon ka saath mila,margdarshan mila poojya sad gurudev ki kripa se.
jitna bhi abhaar vyakt karein iske liye ,woh kam hoga.jai sadgurudev.
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