कुण्डलिनी लेखमाला के
अंतर्गत हमने पिछले लेख में तिन नाडियों पर चर्चा की. अब कुण्डलिनी में जो मुख्य
नाडी एवं चक्र के सबंध में तथा उससे जुड़े विविध पक्षों के सबंध में चर्चा करेंगे.
चक्रों
के जागरण की विधि के बारे में चर्चा करने से पूर्व कुछ तथ्यों पर भी बात करना
योग्य है.
कुण्डलिनी
के चक्र अपने आप में सुप्त है. चेतना से युक्त नहीं है. इस लिए इन चक्रों की साधना
कई चरण में सम्प्पन होती है. चक्र अपनी मूल स्थिति में एक पिंड मात्र है. ठीक वैसे
जेसे एक गर्भस्थ शिशु का पिंड होता है. पहले उसमे चेतना भी नहीं होती, प्राण भी
नहीं होते है. एक पिंड में चेतना के लिए शक्ति संचार करना ज़रुरी है. इस लिए सर्व
प्रथम शक्ति के संपर्क में आते ही वह स्पंदित होता है. लेकिन स्पंदित होने पर भी
उसमे चेतना आ गई है ऐसा नहीं कहा जा सकता, वह पिंड ना ही आपकी बात सुन रहा है ना
ही आपकी बात समज रहा है. क्यों की उसमे चेतना का आभाव है. जेसे ही उसमे चेतना आ
जाती है वैसे ही उसका और आपका सबंध स्थापित हो जाता है जो की जागरण की अवस्था है .
उसी पिंड को फिर उसी अवस्था से आगे ले जा कर उसका विकास किया जाता है जिससे की वह
पूर्ण सक्षम होता है. और फिर उनकी पूर्ण सक्षमता से हम अपने उन लक्ष्यों की
प्राप्ति कर सकते है जो की इन सारी प्रक्रियाओ को करने पर प्राप्त की जा सकती है.
चक्रों
के सबंध में भी ठीक यही तथ्य है. चक्रों का सर्व प्रथम स्पंदन होता है, उसके बाद
उसका चेतना स्तर या जागरण होता है. जागृत होने पर उसका विकास होता है, और विकास हो
जाने पर उसका साधन होता है.
मूलाधार चक्र:
मेरुदंड में सुषुम्ना नाडी
में कई जगह नाडियों के गुच्छ बने हुए है जिनको चक्रों के नाम से जाना जाता है; यह
चक्र अपनी अवचेतन अवस्था में होते है. जब साधना के माध्यम से इनका विकास हो जाए और
पूर्ण रूप से यह चक्र जागृत हो जाते है तब उनका आकार विशेषरूप से बढ़ जाता है.
इन्ही चक्रों में सर्व प्रथम
जो चक्र है वो है मूलाधार चक्र. जेसे की इस चक्र के नाम से ही स्पष्ट है यह मूल
आधार है कुण्डलिनी चक्रों का. इसी लिए इस चक्र को आधार चक्र भी कहा गया है. इस चक्र
का स्थान मलद्वार के ऊपर स्थित कुण्डलिनी के ठीक ऊपर जुड़ाव के साथ है. यु मूलाधार
तथा कुण्डलिनी का स्थान एक दूसरे से जुडा हुआ है. जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो
वह सर्व प्रथम मूलाधार को ही स्पंदन देती है. इसी लिए योग मार्ग में मूलआधार चक्र
पर ही वायु के द्वारा आघात कर परोक्ष रूप से कुण्डलिनी पर आघात किया जाता है. इस
चार दल वाले कमल को कई नाम दिए गए है जेसे की चतुर्दल और चतुर्पत्र. आधुनिक
विज्ञान ने इसे pelvic
plexus नाम दिया है. इसका एक नाम ब्रम्हापद्म है क्यों की इस चक्र के मध्य में स्वयं
ब्रम्हा देवी सरस्वती के साथ बिराजमान है. इसी चक्र को जिन अन्य मुख्य देवो का स्थान कहा गया है
उसमे से एक है देवराज इंद्र. इंद्र के यान ऐरावत हाथी को इस चक्र में स्थापित
बताया गया है. यही ऐरावत हाथी पृथ्वी तत्व या भूमि का प्रतिनिधित्व करता है इसी
लिए इसको भूमिचक्र भी कहा जाता है. कई बार ब्रम्हा को इस चक्र में ऐरावत के ऊपर
आसित हुए उल्लेख किया गया है. इसके अलावा सिद्धि गणेश को भी इसी स्थान का स्वामी
कहा गया है जो की साधक को सिद्धि प्राप्ति के क्षेत्र के आने वाले विघ्नों का नाश
करते है. तंत्र ग्रंथो में इस चक्र की मूल शक्ति डाकिनी बताया गया है. इसके अलावा
तंत्र क्षेत्र के अत्यधिक प्रख्यात और रहस्यपूर्ण द्विबिंदु पक्ष में इसे रक्त
बिंदु का स्थान की भी संज्ञा दी गई है, जहा से आगे उसकी गति स्वेत बिंदु की तरफ
होती है. यह चक्र गंध इंद्री का भी प्रतिनीधित्व करता है. तथा शारीरिक रूप से शरीर
के अंदर के स्थूल मल को बहार निकलने की प्रक्रिया का नियंत्रण भी इस चक्र पर
आधिरित है. इस चक्र या कमल के चार दल या पंखुड़ी है. चक्र के रंग के बारे में कई
प्रकार के मत है. सदगुरुदेव ने इस चक्र के रंग के सबंध में कहा है की दिखने में
सुंडाकृति के रूप में हलके जाम्बुनी रंग का दिखाई पड़ता है. इस चक्र के मध्य में
मूलाधार बीज मंत्र “लँ” है. तथा वर्णमाला के बीज उत्तरदल में ‘वँ’ दक्षिणदल में
‘षँ ’पूर्वदल में ‘शँ ’और पश्चिमदल में ‘सँ’ बीज स्थापित है.
इस चक्र का ध्यान विविध रूप से अलग अलग देवताओ के साथ होता
है जिससे विभ्भिन्न फलो की प्राप्ति होती है जेसे की तंत्र शक्ति की प्राप्ति के
लिए डाकिनी, योग शक्ति की प्राप्ति के लिए अम्बिका, वेदोक्त और तत्व ज्ञान की
प्राप्ति के लिए ब्रम्हा, भौतिक जीवन में उन्नति के लिए गणपति, पृथ्वी तत्व को
साधने के लिए ऐरावत का ध्यान किया जाता है जिस पर आगे के लेख में चर्चा करेंगे.
In the previous
article under this series we discussed about the veins. Now, we will move ahead
in the discussion related to main vein its chakras and various aspects of the
same
Before we discuss
about chakra activation there are few points which are required to be
understood.
Chakras of the
kundalini are not active. They are not conscious. With this reason, sadhana of
the chakras are done in many stages or steps. Chakras in its natural form are
just clods. It is same like the child in the womb. There is no consciousness,
there is no Prana. For the consciousness in the clod, flow of the energy is
essential. With this reason, when it comes in contact with the energy it starts
vibrating. But being vibrated too, it is not that the same is having consciousness;
that clod cannot listen to you neither it understand you because there is no
consciousness. That clod is further more when receives consciousness; the
development process of the same starts with which it can become capable
completely. And then with its capability we can achieve our goals which could
be gained by doing all these processes.
The same facts are
applied in relation to the chakras. Chakras received vibrations firsts then
activation of the consciousness in the chakras is next step. After it is
conscious the development of the same starts, and once it is developed, sadhan
or the process of maximum benefit receiving starts.
Muladhar (mulaadhaar)
Chakra:
In the sushumna vein
of the backbone there are many clusters of the veins which are known as
chakras; these chakras remain in the state of the clods. With the medium of the
sadhana when these chakras are developed then they remains active completely
and their size grows to bigger.
In all these chakras
system the first chakra is called Muladhar chakra. As it could be understand
from its name that this is base of the kundalini chakras. (mul aadhar = main
base) that is why this chakra is also called as aadhar chakra. This chakra is
situated connectively above the kundalini power which is situated upper the
anus. Thus Kundalini power and Muladhar chakra is connected in the term of
their space. When kundalini gets activation it gives first vibrations in the
Muladhar chakra. That is why in the yoga system, with the help of air muladhara
is hit for its indirect affect on the kundalini. This four petal lotus is given
many names like Chaturdal and Chaturpatr. Modern science call it Pelvic Plexus.
This chakra is also called as Bramhapadma i.e. lotus of the bramhaa because
lord bramha with goddess saraswati is established in this chakra. The other gods belonging to be established in this
chakra one of them is God Indra. Vehicle of the Indra, Airavat elephant is
believed to be in this chakra. This Airavata elephant represents Prithvi or
Bhumi tatva i.e. element earth that is why this chakra is also termed as Bhumi
chakra. Many times bramhaa is said to be seated on Airavata elephant in this
chakra. Apart from these, God Siddhi Ganesha is also called controller of this
chakra who may vanish all the troubles which may come in the way of the sadhak
to achieve accomplishment or Siddhi. In tantra scripture, Main Power or shakti
of this chakra is called as Dakini. Apart from this; tantra field’s very famous
and mysterious subject Dwibundu or two dots side call this place as base of red
dot or rakta Bindu from this place it moves upwards to the white dot or swet
bindu. This chakra also controls smell sense. And in regards of the body, it is
also stool remove process of the body. This chakra has four petals. In regards
of the color of the chakras there are many opinions. In regards of this chakra
color Sadgurudev has said that while watching this chakra is seems like light
violet color of elephant trunk. In the middle of this chakra there is Muladhar
Beej Mantra ‘Lam’. And other beeja of the Varnamaala are ‘Vam’ in the north,
‘Sham’ (षँ) in the south, ‘Sham’ (शँ ) in the east and ‘Sam’ is in the west direction
petals.
Meditation
of this chakra have variety with gods which may give various results like to
own powers in tantra is Dakini; to achieve powe of yoga is Ambika; to have
ultimate knowledge and Vedas related knowledge is Bramhaa, to growth of the
material life is ganapati, for the access achievement of the earth meditation
of Airavata is done which we will discuss further.
****NPRU****
No comments:
Post a Comment