प्रिय मित्रों ,
तंत्र का मतलब ही व्यवस्थित रू प से कार्य करना हैं पर हम कैसे व्यवस्था करे जब हमें स्वयं ही ये न मालूम की इस का मतलब क्या हैं तो फिर उसे कैसे कहाँ पर रखे या करें. साधना क्षत्र में जब भी किसी भी कार्य को उसकी महत्ता के हिसाब से किया जाय तभी तो सफलता मिलती हैं क्योंकि बिना जाने होय न प्रीति, ओर हमें साधना से प्रेम करना हैं तो उसको समझना भी पड़ेगा .
भौतिक क्षेत्र में भी किसी को अपना बना लेने के लिए कितने पापड़ बेलना पड़ता हैं , अपने प्रिय की एक एक सी छोटी सी बात को जानना पड़ता ही हैं , उसकी किसी भी चीज (चाहे छोटी ही क्यों न हो ) को ध्यान न देना का मतलब तो आप सभी जानते हैं ही ओर क्या लिखूं तब कहीं वह हमारे अनुकूल हो पाती हैं /पाते हैं . ये तो हम सभी जानते हैं ही , फिर साधना क्षेत्र में क्यों न होगा .जब तक ऐसी भावना हमारी अपनी साधना के प्रति के हो पायेगी तब तक सफलता कहाँ संभव हैं
साधना में एक नाम अक्सर आता हैं वह हैं "न्यास " .
यह क्या हैं , ओर क्या हैं इसका अर्थ , हमें इसको तो समझना ही पड़ेगा तभी तो इस क्षेत्र को आत्मसात करने की दिशा में बढ़ाना होगा .
साधारणतः न्यास के अर्थ होता हैं एक प्रकार का कवच , क्योंकि साधक अभी नया हैं ओर उसे सुरख्सा की जरूरत हैं विभिन्न प्रकार की वातावरण की शक्तियों से , एक दूसरा अर्थ ये भी कहाँ जा सकता हैं , की देवता तब तक साधक के सामने नहीं आते जब तक की साधक ओर देवता का स्तर एक न हो जाये .क्योंकि दोस्ती या मित्रता तो बराबर वालों में ही संभव हैं , ओर जल में ज ल ही मिलेगा तेल नहीं . ओर यहाँ तो बात हो रही हैं की इष्ट देवता/देवी साधक या साधिका से आत्मसात हो जाये . तब तो कुछ न कुछ ओ उपदान तो करने ही पड़ेगें.
आप जानते हैं की इष्ट देवता का सही स्वरुप तो मंत्रात्मक होता हैं हाँ यह बात अलग हैं ही साधक की भावनानुसार ओर किये गए ध्यान के अनुसार ही उनका रूप प्रदर्शित होता हैं पर महेशा यह हो ही यह कोई अनिवार्य तत्व नहीं हैं , परमहंस स्वामी निगमानंद जी को माँ तारा ने अत्यंत मनमोहक रूप में दर्शन दिया था , जबकि स्वामी स्वयं कह उठे थे माँ में यह कैसे मानू तुम्हारा स्वरुप तो गुरुदेव के द्वारा स्वरुप से मिलता नहीं , माँ ने हस्ते हुए कहा था "मेरे बच्चे वह पुराणों में वर्णित रूप हैं उसका दर्शन अभी तुम नहीकर पाते इसलिए में इस रूप में आई हूँ .
देवता के स्वरुप को प्रदर्शित करने के लिए एक अक्षर का मंत्र , दो अक्षर , तीन अक्षर, सात , सोलह , से लेकर अयुत अक्षर (दस हज़ार ) तक के मंत्र होते हैं .अब देवता हमारे में ही अन्तर्निहित हो जाये इसके तो दो ही उपाय हैं प्रथम तो तो हम सदगुरुदेव को ही पाने ह्रदय में स्थान दे ,उनमें सारा ब्रम्हांड समाया हुआ हैं क्या देवी क्या देवता सभी उनमें ही हैं या
दिव्तीय - सदगुरुदेव /गुरु त्रिमूर्ति जी से कों कौन से न्यास इस साधना में उपयोगी हैं हम व्यक्तिगत रूप से मिल कर जान कारी ले . अब कहीं न कहीं से तो शुरुआत करनी है पड़ेगी .
क्योंकि इसके माध्यम से ही साधना का इष्ट देवता हमारे शरीर में निहित हो जाते हैं तब साधना में सफलता तो हस्तगत हैं ही . बाततो साधारण हैं पर इसका करना सद गुरुदेव जी / पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमूर्ति जी के लिए कितना जहर पीने के सामान हैं हम भला क्या समझेंगे , एक साधरण देह में देव स्थापन क्या साधरण बात हो सकती हैं , जिन्होंने भी किसी भी शिविर में सदगुरुदेव जी या पूज्य गुरुदेव जी के श्री चरणों को चरण स्पर्श होते समय देखा हो तो वह स्वयं ही समझ जायेंगे .कितनी सूजन आ जाती हैं पर अपने मानस पुत्रो के लिए भी सब वे हस कर सहते जाते हैं की चलो एक कदम तो ये कम से कम ओर चले ....
तंत्र क्षेत्र का यह बहुत गंभीर विषय हैं इसे इतने हलके में नहीं लिया जा सकता हैं क्या आपको पता हैं कितने प्रकार के न्यास होते हैं . हाँ आप को अंग न्यास ओर ह्रदय न्यास तो मालूम हैं पर क्या अन्य न्यास के बारे में मालूम हैं .कितने प्रकार के हैं यह न्यास.
, इन्ही सभी प्रश्न के उत्तर की खोज में हम साथ चले ..
पर क्यों जाने इन सब के बारे में ... क्या इनकी महत्ता क्यों हैं .
सब के बारेमें जानना क्यों जरुरी हैं .
इन न्यास की महत्ता बताना ही चाहता हूँ क्या आप जानते हैं कभी आपने सुना हैं की एक ऐसा न्यास ऐसा भी हैं जिसके साधक कभी भी किसी भी मंदिर के प्रवेश करके प्रतिमा के सामने सर नहीं झुकाते हैं ,
जानते है ऐसा क्यों
ऐसा करते ही वह प्रतिमा खडित तक हो होजाती हैं , सिर्फ गुरुपरंपरा से ही इस का ज्ञान मिलता हैं .
एक ऐसा न्यास हैं जिसे षो डा न्यास हैं इसके भी छह विभेद हैं बिभिन्न न्यासों के नाम इस प्रकार हैं
1. मातृका न्यास बहिर ओर अंतर न्यास
2. कला मातृकान्यास
3. तत्व न्यास
4. मूल विद्यान्यास
5. षो डा न्यास
6. चक्र न्यास
7. चतुरासन न्यास
8. पीठ न्यास
अब आप अपनी साधना में दिए गए यदि न्यास हैं तो पूर्ण श्रद्धा से करें . हाँ अन्य के बारे में पूज्य गुरुदेव त्रिमूर्ति जी से मिल कर जान सकते हैं इस बारेमें याद रखे फिर जो भी वह निर्देश दे उसका अत्यंत श्रद्धा से पालन करें
मुझे याद आता हैं की एक बार मैंने पत्रिका में पढ़ा की बिना नाभि चक्र स्फोतीकरण के महाविद्या साधना में सफलता पाना संभव ही नहीं हैं , मेरे मनमें विचार आया की में तारा साधना इतने समय से कर रहा हूँ पर यह तो ध्यान में आया ही नहीं , कुछ दिनों के बाद जब में गुरुदेव त्रिमूर्ति जी के सामने था तो अत्यंत विनय से मैंने कहाँ गुरुदेव मैंने ऐसा पढ़ा हैं किक्या एक आवश्यक तथ्य हैं, उन्होंने तत्काल कहा की बिलकुल जरुरी हैं , मैंने कहा गुरुदेव मेरे से गलती हुए ,मैंने कभी जाना ही नहीं क्या आप इसे मुझे प्रदान करंगे .
उन्होंने कहा की जरुरी हैं यह नाभि चक्र स्फोतीकरण पर तुझे अब इसकी आवश्यकता नहीं हैं .
आगे की किसी पोस्ट में इन सभी न्यासों के बारेमें थोडा ओर विस्तार से बात .. आज के लिए बस इतना ही
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Dear friends ,
tantra means to do work very systemamtically , but how we can arrange things till we know what that things are, than where to put that, like the same way when in sadhana field if we do work after understanding that , than only success can be sure, it is being said without knowling, love can not flourish, and if we have to love our sadhana than , we must have to understand..
in this material world if we want to make someone very near to us, how many trick and work we have to do, we all know very well, and we have to know each and every single things of our beloved ,if we loose to pay attention to that, result you will better know. when do that properly only than we can have our beloved. than why not this applicable to sadhana field ,till than such a same feeling we caltivate for our sadhana , success is very far behind.
one name usually comes “nyas”
what is this , what does it stands for, we need to understand than sadhan fields will be more clearer.and we can obsorbs the sdhana by heart,
in general meaning is this to have protecting armour, til that sadhak is new to this field and need protection from a many invisible atmospheric forces. another meaning is that devta will not diclose himself in front of sadhak till ,sadhak achieve a ceratin level. since water can mix with water but not mix with oil, since friendship can only be possible for a person having same leveland something common . and here we are talking about devta and sadhak, so we have to do /apply some more measure.
as yor are already aware , that issht devta has his real swarup or form is mantratmak, that s another matter that devta appear infron of sadhak ,as per the sadhak imagination and the type of sadhana dhyan he is doing, but this is not always a fixity, paramahansa swami nigamanandji when complete the tara mahavidya sadhana, maa apeared to him a very beautiful form, he asked ma , your this form does not match with the form as gurudev(swami vamakhepa) told me. on listening mother smiling replied that my son that is form mentioned in puran’s , tosee that you get fearful that swhy i came here in this form.
to represent the true form of a isth devta there are many mantra containing from single letter to two letter, three letter, foure and seven and sixteen letter and ayut letter means containing ten thousand letter ,now question remains how our isth devta fully obsorbs in us, there are only two ways
first –we give a way to our sadgurudev to our heart ,all the universe is in him what devi or devta everything is in it. or
second-ask sadgurudevji /poojya gurudev trimurti ji regarding which type of sadhana nyas is necessary for the sadhana in that you are intersted , for that you have to meet gurudev in person, and my friends you have to start somewhere.
Since through this way ,the isht devta fully be inside our body, than to get success is just a finger tip. Things is very easy but to fully install devta in our body how much difficult task is this for Sadgurudev ji/Gurudev trimurti,? like drinking poison of shishya evil karm , but for the sake of their manas putra they are doing it very joyfully . any one who has seen the divine lotus feet of Sadgurudev ji/Poojya gurudev trimurtiji’s in any shivir ‘s charan sparash time , he has the answer, too much soiling on his feet. This is happening only for the cause that at least we all move a single feet towards divinity…
tantra field is very serious subject can not be take it lightly ,do you know that how many type of nyas possible. yes you aleready knew about ang and hradaya nyas, but what about other, do you know even there names..
to get the answer come with us ,but why we need to know there names, what will be the utility.
iam telling you this, do you know that the practisinor of a creatail nyas , never bow down to any statue when they enter any temple why.
do you know why?.
it is because on doing that the particulart statue get crak.
There are one nyas named shoda nyas that has the effect only guru dev can provide that, without his instruction it is not advisable, it has 6 sub types.Name of other nyas are as follows.
1. matraka nyas(bahir and antar nyas)
2. kala matraka nyas
3. tatv nyas
4. mool vidya nayas
5. shoda nyas
6. chakra nyas
7. chaturasan nyas
8. peeth nyas
if any nyas aleardy given in any sadhana plz follows whole heardly and for other you can ask very politely as and when opportunity arise, plz remenber follow the instruction once you asked to gurudev trimurti ji in this connection.with full devotion.
i remenbered , once i read in patrika that without having the nabhi chakra sphotiokaran to get success in any mahavidya is very very difficult. i thought that i am doing tara mahavidya sadhana for along period but i never came cross this fact. one day i asked this question to gurudev trimurti ji, gurudev it is very must fact that one should have this nabhi chakra sphotikaran to get success in mahavidya sadhana,
he replied yes this is a must fact.
i replied mistakingly i did not understand that , will you give me this initiaon.
he smiled” yes this is must fact but now you do not required that, you do not need that.
in any coming post we will again talk little bit more about thses nyas ,, for today this is enough....
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