शक्ति के बिना सृजन ही कहा , ओर बिना सृजन के जीवन का सौन्दर्य ही कहाँ, ओर सौन्दर्य के बिना जीवन का मूल्य ही कहाँ , क्योंकि सत्यम शिवम् सुन्दरम तो भारतीय जीवन दर्शन के आधारभूत वाक्यों के एक वाक्यों से हैं . शक्ति के बिना शिव भी शव हैं . फिर यह पीठ क्या हैं , साधारण अर्थ तो यही हैं की देवी विशेष के किसी विशेष कार्य के या, उनके किसी लीला से अबिभूत हुए या किसी संग के गिरने से बना एक दिव्यतम स्थल . भगवान् शकर सती ओर दक्ष प्रजापति से सम्बंधित कथा तो सभी जानते हैं, तो से यहाँ दुहराना ठीक नहीं. सच कहा जाये तो अनेको विज्ञानं भारतीय साधन पक्षमें रहे हैं जिनमें क्षण विज्ञानं, काल विज्ञानं, वायु विज्ञानं, जल विज्ञानं, वैमनिकी विज्ञानं, यज्ञ विज्ञान, अग्नि विज्ञानं, चन्द्र विज्ञानं, सूर्य विज्ञानं , ध्रूम विज्ञानं आदि नाम उन१०८ परम विज्ञानं में से हैं जिनमें से किसी भी एक का ज्ञाता होने ही मनो आका श से तारे तोड़ लाने के बराबर हैं . इसी तरह जो की प्रचलित नहीं हैं पर जिसके बारे में आधुनिक काल मैं बहुत कम ही ज्ञाता हैं वह हैं "पीठ विज्ञानं"
साधारणतः किसी भी प्रतिमा को स्थापित करके कुछ मंत्रो का उच्चारण करदिया ओर हो गयी प्राण प्राण प्रतिष्ठा ओर वह कहलाने लगा एक पीठ . पर सत्य तो हैं की इतनी प्राण उर्जा की आवश्यक ता होती की साधारण नहीं किसी अति वशिष्ट साधक योगी ही निर्माण कर सकते हैं किसी भी पीठ का ,
महायोगी अघोरेश्वर भगवान् श्री राम कहते थे, की किसी भी मदिर के बारेमें जब तक उसकी प्राण प्रतिष्ठा किसने करवाई हो न मालूम हो तो हर मंदिर के सामने झुकना नहीं चाहिए, इससे तुम्हारी उर्जा सीधे उस दिव्यता में जाने की अपेक्षा जिसने प्राण प्रतिष्ठा करवाई होगी उसके पास चली जाती हैं.
पर एक साधक को इस से क्या , जब सारे विश्व में इश्वर हैं तो किसी स्थान विशेष पर क्यों जाना . पर सच्चाई इसके विपरीत हैं ये वह जगह हैं जहा कैसी महासाधक या अनेके महायोगी ने ने अपने वषों का तपस्या ओर प्राण उर्जा से उस स्थान को इतना प्रभावशाली बना दिया हैं, वहां पर उस उर्जा विशेष की सघनता इतनी अधिक हैं की सामान्य साधक उस अति विशिस्थ वातावरण में अपनी अभीष्ट सिद्धि थोड़े से ही प्राप्त कर लेता हैं
साधना की सिद्धता तो तभी सभव हैंजब साधक के मुख से नहीं बल्कि उनके प्राणों से मंत्र जप हो रहा हैं, उसका रोम रोम से मन्त्र उच्चारण हो रह हो, पर कितने प्र तिशत यह संभव हो पाए ये तो कठिन सा प्रश्न हैं ओर इसी कमी की पूर्ति के लिए तो हमें शक्ति पीठ पर या किसी भी मदिर विशेष में साधना करने के लिए कहा जाता हैं
घर की अपेक्षा पवित्र पेड़ के नीचे १० गुना लाभ , पवित्रपेड़ कीअपेक्षा गाय के पास १० गुना लाभ ,. फिर मदिर में इन सबका का १० गुना, फिर पवित्र नदी मैं इन सभी की अपेक्षा १० गुना अधिक लाभ, फिर पर्वत शिखर में इन सभी का १० गुना आधिक लाभ, पर इनका का अनंत गुना लाभ श्री गुरु देव चरणों में , फिर यदि वह घर सदगुरुदेव निवास रहा हो तो क्या कहना कहना .उस स्थान के लाभ का वर्णन तो वर्णातित हैं .
उस स्थल पर उस देव शक्ति की प्रधानता रहती हैं , और न केबल उस से सम्बंधित देव शक्तियों या जिनकी वह प्रधान हैं या यस जिस वर्ग से सम्बंधित हैं उसकी साधन में आशातीत लाभ हो ता ही हैं.
पर घर पर ही क्यों नहीं , इसकारण कुछ तो तर्क इस संबंधमें स्वीकार योग्य हैं कुछ हमारी बुद्धि में आसानी से आयेंगे नहीं पर फिर भी ... घर में महिला वर्ग माता , बहिन, और स्नेहित व्यक्तियों के रूप में रहता ही हैं , कुछ काल विशेष में उनके स्पर्शितभोजन व अन्य चीजो में सावधानी रखना चाहिए , जो की संभव नहीं हो पाता. हमारी घरपर हमारे पूजा स्थान की स्थिति, (यहाँ पर मेरा तात्पर्य टोइलेट्स/ बाथरूम से उसका संपर्क होना भी एक बड़ी बाधा हैं. दिन प्रतिदिन के कार्यों में क्षय हुए उर्जा भी एक प्रमुख कारण हैं .
पर जब किसी पीठ पर हम होते हैं तो हम वहां पर क्यों आये हैं ओर वहां के दिव्य वातावरण जिसे हम भली भंतिपहली बार में महसूस न कर पाए पर हमारी चेतना को विस्तृत करता है वहां पवित्रता युक्त प्राण उर्जा, ब्रम्हांडीय उर्जा , देव लोकों से सम्पर्कित उर्जा ओर वहां उपस्थित ज्ञान अज्ञात प्रकट अप्रकट योगी जन हमें सहायता करते हैं . चाहे हमें पता चले या न चले
हमें यह ध्यान रखना चाहिए की जिस पीठ का हमने चुनाव किया हैं वह हमारी द्वारा की जाने वाली साधना किप्रकृति से मिलता हैं या नहीं .यह ऐसा नहीं ही की हम मानलो माँधूमावती की साधना कर रहे हो ओर माँ बगलामुखी के पीठ में हो. तो यह तो उचित नहीं हैं हर देव वर्ग एक विशेष तत्व से प्रभावित होता ही हैं , तो दो विपरीत तत्व से सम्बंधित साधना एक साथ नहीं करे,इस बारे में आपका मार्गदर्शन सदगुरुदेव जी/गुरुदेव त्रिमूर्ति जी कर सकते हैं,
अब्ब यह तो हमें निश्चय करना हैं की हम एक तरफ बैठे बैठे जय गुरुदेव कहते रहे हैं या फिर वह सदगुरुदेव तत्व जो केबल ज्ञानमूर्ति कह कर सम्पूर्ण ब्रम्हांड में प्रन्शंषित हैं उसके ज्ञान को आगे बढ़कर अपने में समाहित करे . और अपना जीवन श्री सद्गुरुदेव्जी./गुरुदेव त्रिमुर्तिजी के द्वार दिए गए आदेशों ओर बताये गए मार्ग पर आगे बढे,,,
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Without the shakti can creation be possible?, and without creation what will be the beauty of life. And without is there any value of life. Satam shivam sundaram is the on of the basic foundation of Indians culture., without shakti even shiv is like corpse. than what is this peeth . general meaning what it stands for Is that is the place connected to some divine work, place appear because of and divine one, or related to where any part of divine one falls on there ,a divine place. Every body knew that the story relayed to ma sati , Bhagvaan shiv, daksh prajapti , so need not to be repeats here. There many branch of science exist in the bhartiya sadhana paddhati , like kshan vigyan, kaal vigyan, vayu vigyan, jal vigyan, vaimaniki vigyan, yagya vigyan, agni vigyan, shandra vigyan, surya vigyan. Dhroom vigyan are a part of 108 vigyan list. And having knowledge in any one of them is like very tough and difficult task ever. Theses are not easily available and even modern science knew very little about that, like in between them is “peeth vigyan”
In general having any statue and just do small ritual and speak some mantra and the life inducing process be completed , the place can be now onward called peeth, the truth is the such a huge amount of pran energy Is needed that only a very high yogi can make such a peeth.+
Aghoreshwar Bhagvaan used to say that do not bow down in front of any temple simple without knowing who the person responsible for life inducement of that statue, if you do that may be all your divine energy get lost instead of reaching to divine, that reaches to the person who did the process.
But why we need to think that when god is everywhere than thinking this way is not limited his existence. But the truth is very much different theses are the place where either any mahayogi or any group of great yogies did the tapsay and that’s why it is there divineness that place is charged with th e atom of divinity that even a general sadhak id do the sadhana process there within a very small time he will get his aim.
Siddhi in sadhana can be achieved only when mantra jap is happening from not from mouth but with pran. And each rom rom is chanting the mantra, but how many of us can do that way is a question. And to over com ethis weakness we have been asked to go any peeth .
If you do sadhana in your home its good , but if you do that in near of any holy tree 10 times more positive gain , if nearer to cow than 10 times more than previous, if in any temple than 10 times more than previous, if nearer to any holy river than again 10 times to aal the previous one, if you do any the peak of mountain than , 10 times to previous one., abut to nearer to shree Gurudev than million times greater than all the previous one. And if that will be the home of Sadgurudev than no one can say that what will be the magnitude. Countless.
Shakti has much effect on the place where she belongs and noy onlt that but all the related section of divinity are also whose varg she was the main sources or where she belongs , if related sadhana will be fruitful many times.
But why not these sadhana should be done in home . some of the logic are understandable and some are not easily digestible… but.. in our home our mother sister and our dear and near one belongs to woman sect lives with us. And in some specific time the food touch by them are the room where we are doing our sadhana if they pass through that , or the location of our pooja room(here my means is that whether that connected to toilet or bathroom through walls and our daily working also consumes a lot of energy, all theses reason may snatch a success from us.
In peeth, the atmosphere charged with divinity expanded our chetna , and also highly suited to us since the holiest vibration, universal energy , the energy coming from various loks and the various yogies who are present there either in invisible or visible form are also directly or indirectly help us. So a success will be much higher. since knowingly or unknowingly there blessing with us.
One must be very careful reading the selection of peeth as per the sadhana we are going to do, like if any one want to do the ma dhoovati sadhana and select a place of ma Balgamukhi peeth than it wonot help much since each dev varg related to any specific tatv and two very different tatv related dev sadhana should not be done side by side, you can get direction inthis matter from Sadgurudev ji / pooja paad Gurudev trimurtiji ..
Its not the time to decide that either we chant that jai gurudev jai gurudev or move forward to accept and digest the gyan spread by Sadgurudev ji , since “kebal gyan murti “is the true form of him, so move ahead and become a part to fulfill the dream and ideals of Sadgurudev ji/ Poojya paad Sadgurudev ji……
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