तंत्र कौमुदी का चतुर्थ अंक आप पढ़ ही चुके हैं , आप सभी की प्रतिक्रिया भी हमें मिलती रहती हैं ,यह अंक यक्षिणी साधना महाविशेषांक के रूप मैं प्रकाशित किया गया था .जो भी संभव था इतने कम समय में हमने आपके सामने रखने का प्रयास किया, इस अंक के प्रकशित होने के बाद अनेको गुरु भाइयों ने हमसे जानना चाह की यह साधनाए उनके लिए किसीप्रकार की बंधन तो उत्पन्न नहीं करेगी.
सदगुरुदेव जी ओर पूज्य पाद गुरुदेव त्रिमूर्ति जी ने पत्रिका के अनेको अंको में तथा अनेको cd में यह बार बार समझाया की यह किसी भी प्रकार से आपके जीवन / यहांतक के ग्रहस्थ्य जीवनके विपरीत नहीं हैं . अब उन्होंने तो इतना समझया हैं तो उसके बाद कुछ ओर इस विषय पर लिखने को शेष नहीं हैं . पर जो गुरु भाई नए हैं वे शायद इन तथ्य पर कुछ ज्यादा ही चिंतित हैं ओर वे किसी कारण वश उन अंको या cd को देख या सुन नहीं पाए हैं तो इस कारण से में कुछ तथ्य आप के सामने रख रहा हूँ.
पहली बात तो यह समझ ले की जीवनमें सुख के बाद दुःख ओर दुःख के बाद सुख आता ही रहता हैं यह तो जीवन के गतिशील होने की दिशा में एक सामान्य सी प्रक्रिया हैं , सुख के बाद हमशा सुख ही हो यह तो संभव ही नहीं हैं, पर एक तत्व ऐसा भी जिसका परिवर्तन संभव ही नहीं हैं ओर वह हैं आनंद तत्व . आनंद के बाद आनंद तत्व ही आएगा इस का क्षय होना सम्भव ही नहीं हैं, और सारे मानव जीवनका लक्ष्य तो इस तत्व को प्राप्त करना ही हैं फिर वह चाहे वह योगी हो या सामान्य व्यक्ति .
योगी को तो मान लिया हैं की वह इस तत्व को जानने की दिशा में चल पड़ा हैं पर साधारण मानव तो सुख को ही भले ही वह शारीरिक हो या वस्तु परक हो उसे ही आनंद मानता हैं और वह भी जब समाप्त हो जाता हैं तो पछताने के अलावा क्या शेष रह जाता हैं
तो क्या साधरण मानव के लिए यह सब संभव नहीं हैं यह या उसे अयोग्य मानकर छोड़ दिया जाये
ऐसा नहीं हैं. तंत्र क्षेत्र के मनीषियों ने, तत्ववेत्ताओं ने इस साधनाओ को हमारे सामने रखा की इनके माध्यम से हम विशुद्ध प्रेम को समझ सकते हैंवह प्रेम जिसमें वासना भी न हो ,कोई अपेक्षा भी न हो , पर कैसे यह्संभव हैं, बिना अपेक्षा का प्रेम तो मात्र किताबो की ही शोभा हैं.सदगुरुदेव जी ने बारम्बार यह समझाया हैं कि प्रेम तो जीवनका सौन्दर्य हैं , उच्चता हैं , साधनाओ में सफलता का सौपान हैं, ओर गुरुसे जुड़ने की दिशा में एक कदम हैं , जीवनका वसंत हैं , भला वसंत बिना फूलो के सौभित होता हैं तो भला मानव जीवनभी बिना स्नेह प्रेम के ...
साधनाओ से बल प्राप्ति संभव हैं जीवन की सारी सुविधाए प्राप्त करना भी संभव हैं ,सिद्धिया भी संभव हैं यहाँ साधनाए आपको अति उच्चता प्रदान करने में संभव हैं , पर क्या आप जानते हैं की महाविद्या साधना भी आपको आनंद तत्व नहीं दे सकती हैं . लक्ष्मी साधना भी आपको आनंद तत्व नहीं दे सकता हैं, तो इस जीवन का इस उच्चतम सत्य जो की प्रेम / स्नेह के माध्यम से ही संभव हैं उसे कैसे प्राप्त करे तो ,
आपको इस अप्सरा यक्षिणी साधना को समझना ही होगा
सदगुरुदेव जीने तो यहाँ तक कहा हैं की जगदम्बा साधना से भी आनंद तत्व की प्राप्ति संभव नहीं हैं .अब आप ही बताये की जीवन की सर्वोच्चता के लिए तो यह साधना जरुरी हैं ही
एक दो नहीं बल्कि सद्गुरुदेव्जी ने लगभग २० cd इस विषय पर तैयार करवाई हैं पता नहीं कितने लेख और प्रवचन शिविर में उन्होंने इस विषय पर दिए हैं अब आप ही सोचे की यह विषय इतना हल्का तो नहीं हो सकता हैं .
सदगुरुदेव जी नेस्वर्ण देहा अप्सरा साधना में बहुत विस्तार से न केबल अपना बल्कि अनेको देवी देवताओ ओर महायोगियों का उदहारण दे कर समझाया हैं की क्यों ये साधनाए जरुरी है बिना र्प्रेम तत्व के मानव जीवन रस हीन हैं . साधना सिद्ध होने केबल ये आपको ही दृष्टी गोचर होतीहैं . ओर आपके आवाहन पर ही आपके सामने आती हैं. जीवन में जो उच्चता प्राप्त करना चाहते हैं, और पौरूषवान बनना चाहते हैं उनके लिए तो यह वर दान स्वरुप ही हैं. किसी भी दृष्टी से आपके गृहस्थ जीवन में समस्या कारक नहीं हैं .
जीवन में जीवन का तीसरा पुरुषार्थ --- काम तत्व कोई इतना घटिया तो नहीं हैं , हाँ हमारी दृष्टी उसको घटिया या अच्छा बनाती हैं , ओर इस साधना से आपको एक महिला मित्र मिल जाती हैं जो की अपने स्नेह से आपके जीवन में सभी प्रकार की अनुकूलता लाती ही हैं, और यह साधना तो साधिका भी कर सकती हैं उन्हें जीवन भर के लिए एक मित्र जो मिल जा ती हैं , जीवनमें एक सच्चे मित्र की आवश्यकता किसे नहीं होती हैं.
इन साधना से आप अपने जीवनसाथी के भौतिक शरीर में इस तत्वही अनुकूलता कर सकते हैं जिससे की आपका जीवन सुखदायक हो जाता हैंया विशिष्ट प्रक्रिया अपना कर इन्हें पूर्णतया से प्राप्त कर सकते हैं.
इस साधना के संपन्न होते ही साधक /साधिका के शारीर में इतने परिवर्तन होने लगते हैं की वह मानो नव योवन की ओर अग्रसर हो जाता हैं . समस्त शारीरिक कमिया दूर हो कर व्यक्ति नव योवन वान जाता हैं. आप इन साधनाओ को बिना किसी चिंता के ,बे हिचक करे सदगुरुदेव द्वारा प्रणित इन साधनाओ में किसी प्रकार की समस्या नहीं हैं, आप करे तो.
यह साधना केबल आपके शरीर से सम्बंधित बल्कि आपके आर्थिक पक्ष से सम्बंधित समस्याओ न को भी दूर कर देती हैं, जब ये साधक को चिंता मुक्त (हर प्रकार की फिर काहे वह आर्थिक या किसी भी प्रकार की न हो ) करदेती हैं .
यदि आप पूज्य पाद गुरु देव त्रिमुर्तिजी जी से इस सन्दर्भ में यदि दीक्षा भी प्राप्त कर ले साथ ही साथ सदगुरुदेव द्वारा प्रणित cd भी सुनके देंखे इसके साथ तंत्र कौमुदी का यह हाल का अंक भी देखे सफलता तो मानो आपका ही इंतज़ार कररही हैं..
आज के लिए बस इतना ही
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All of you already read the fourth issue of tantra kaumudi that is on the yakshini sadhana maha visheshank , and we are continuously receiving the positive feedback from you. Many guru bhai asked through e mail that doing such a sadhana would not create any trouble specially in their house holder life.
Sadgurudev ji and poojya paad guru dev trimurtiji has published many articles in the mag. Regarding on this subject that theses sadhana are not any type against to your daily home life. they already published so much things that there is no need to write anything new to in this concern .but I think our new guru brother /sister have not gone through that issue or cd that’s why they are little bit worried on theses sadhana. So I am here discussing some point/facts regarding this sadhana.
First thing that we need to understand that in life after happiness ,sorrow comes and after sorrow, the happiness comes . this s Is the cycle ,running through out the life. if anyone think that after happiness again happiness comes, this would not be possible. But there is one element such that which never parishes i.e. anand tatv. In life after anand tatv again anand tatv comes. All the manav are trying to get this anand tatv , either they may be yogi or general person.
For yogi this can be understandable thing that he is moving on the path to get anand tatv but what about common man that always consider that happiness either on physical level or subjective one , he consider that is a anand . when that ends he has nothing left in his hand.
So may the common person be just left ,since for him, getting that tatv is almost impossible.
But the savants of tantra field and great one has given us the sadhana like theses so that with the help of this, we can understand ,what the true love is , pure love is, and the love which does not has any sexual things attached . and not having any expectation . but love with out any expectation is lies only in book now a days.
Sadgurudev ji repeatedly describe that love Is the height of life, essence of life, a one must factor for success to sadhana, and a step to fully immersed in guru’s heart. sadhana is the vasant of life and vasant without flower can be useless so is the life without love.
Sadhana gives you courage , gives you all the comfort of life ,all the siddhiya , and theses sadhanye gives you much higher status in sadhana world. But do you knew that even the mahavidya sadhana cannot give you anand tatv , even lakshmi sadhana cannot give you anand tatv .than how we can get the higher truth of life that can be understandable through only love/sneh.
Than you have to understand theses apsara and yakshni sadhana.
Sadgurudev ji says that even jagdamba sadhana cannot give you that anand tatv, now think that what is most important thing in life , why this sadhana is must.
Not only one or two but more than 20 cd he had prepared and published numerous article on this subject. And he describes theses subject in many times in shivir too, than this subject should not be taken very lightly by us.
Sadgurudevji in swarna deha apsara sadhana cd had taken subject in details in length giving so many example of devi devta and mahayogies and even about himself why theses sadhana are must and what can be the outcomes and result of that. since without sneh/love this life, is lifeless. theses apsara or yakshini can only be visible to those who have successfully completed that ,and only appear on your wish .if you want to be a purush(here my means man and woman both) than this sadhana are just for you, and there is no conflict of any type happens in your daily house holder life.
The third purusharth ilife—kaam tatv is not so bad or ugly , its our view on the subject that make that good or bad. Through this sadhana you will get a female friend that will be very helpful to reduce/remove pain /suffering in your life of any type .and woman can also do that sadhana so that they also get a true friend in life, in this era a true friend is a desert dream.
Though this sadhana they can add their ever happily tatv to your life partner body so that you will be much happier enjoyable life. Or following through very specific process, you can have them for life.
So many changes are happening on successfully completing this sadhana, one can not imagine that he will get a new youth fullness ,all his body weakness will be removed and a new youthfulness is waiting for him.
All the worries of any kind either financial or other type related also get removed.
If you get related diksha from poojya paad gurudev trimurtiji for in this connection and get all the related cd to this subject and recently published tantra kaumudy issue , still success be for behind..
What do you still think ……
That is enough for this day….
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
Kindly visit our web site containing not only articles about tantra and Alchemy but on parad gutika and coming work shop info , previous workshop details and most important about Poojya sadgurudevji
****NPRU****
6 comments:
Priya Bandhu
Har post ke neeche jo aap Nayi Website ki link dete hain vo typing mistake ki wajah se galat ho rahi hai. It should be
www.nikhil-alchemy2.com
Naye judne wale log galat link pe click karke bhramit ho jate hain.
JAY GURUDEV
PRANAM
ME AAP SAB KA AABHRI HU KI AAP NE MUZE EMAIL SE तंत्र कौमुदी KA ANK BHEJA ISH LIYE TNK
PAR SARJI JAB ME VO DEKHATA HU TO VO PHOTO MUZE NAHI DIKHTA PLZ HELP KARE ME USH LIKHYKO KESE DEKHU
KYA MUZE PDF KE DEKHNE KE LIYE KUCH DONLOD KARNA HIGA
PLZ KAHE MO 9687876997
Dear Gurubhai
Jai Gurudev
To read PDF files there are 2 easy ways.
1. If you are using GMAIL (The google gmail) then simply open your PDF file online by clicking on "VIEW" and it will open in inbuilt Google Docs PDF version in new window or tab.
2. To open PDF file in PC (offline) simply download 9.4 or older version of Adobe Reader from below link.
http://get.adobe.com/reader/otherversions/
Hope that helps.
Jai Gurudev
JAY GURUDEV
PLS SEND ME TANTRA KAUMADI ANK & I ALSO JOIN IN YAKSHANI SADHNA PLS SEND
EMAIL ON THIS ADDRESS DATTANI.YATIN@GMAIL.COM
jai gurudev
pls send me a tantra kaumadi ank & I also join yakshani / pari sadhna pls hemp me
dattani.yatin@gmail.com
dear brother yatin , You have asked for the Tantra kaumudi E magazine Previous Issue .
First you need to sign as a blog follower from blog for registration and after that sign in Nikhil Alchemy yahoo Group also.
For prev issue I would like to mentioned that if you are already member in Nikhil Alchemy yahoo Group than
1. kind visit the group, http://tech.groups.yahoo.com/group/nikhil_alchemy/
2. sign in ( if you have already yahoo id than provide yahoo id and password, if not than you need to create yahoo id first)
3. go to the attachment section, appearing left hand side of the screen ,
here you can download the previous issue published so for.
and is mine request
important: also join face book "nikhil-alchemy" group there 500+ brother and sister are willing to welcome you .much more articles and discussion what not appeared on blog and e magazine .
If still facing any problem than kindly send me a mail.
Smile
Anu
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