Saturday, July 2, 2011

AAVAHAN-13


संन्यासी ने अपने कारण शरीर का निर्माण कर लिया था, लेकिन इसके साथ ही योगिनी का तारक तन्त्र का प्रयोग भी हो चूका था. सूक्ष्म शरीर मे प्राण उर्जा थी लेकिन आत्म तत्व अब कारण शरीर मे था...स्थूल शरीर तो शवासन मे ही पड़ा हुआ था जिसकी रजतरज्जू से संन्यासी का सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर जुड़ा हुआ था. स्थूल शरीर मे प्राण उर्जा थी जोकि संन्यासी के स्थूल शरीर को सदियों तक बिना आत्मा के जीवित रख सकती थी, ओर सूक्ष्म शरीर मे भी प्राण उर्जा थी ही, लेकिन योगिनी के प्रयोग के कारण सूक्ष्म शरीर निष्क्रिय होते हुए भी स्थूल शरीर मे समां रहा था...संन्यासी अपने कारण शरीर के माध्यम से अपने दोनों शरीर की गतिविधियों को देख रहा था, सूक्ष्म शरीर अब स्थूल शरीर मे समां चूका था लेकिन आत्म तत्व सिर्फ कारण शरीर मे होने से, संन्यासी अपने कारण शरीर मे थे जब की उनका सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर योगिनी के द्वारा किये गए तारक तन्त्र प्रयोग से प्राण संकलन होके एक हो चूका था, अब उनका सूक्ष्म शरीर वापस स्थूल शरीर मे समाहित हो चूका था. लेकिन प्रयोग का असर सूक्ष्म शरीर को किसी भी तरह से स्थूल शरीर मे समाहित करने के साथ साथ बाहरी ब्रम्हांड से संपर्क काटने का भी था, यु सूक्ष्म और स्थूल शरीर समाहित होते ही, योगिनी द्वारा प्रणित तारक तन्त्र के प्रभाव से संन्यासी की राज्जतरज्जू टूट गई. अब उनके कारण शरीर से उनके स्थूल शरीर का सम्बन्ध विच्छेद हो गया. अब संन्यासी की यह स्थिति हो गयी थि को वो खुद चाह कर भी अपने स्थूल शरीर मे नहीं जा सकते थे...हो सकता हे की अब अनंत काल तक उन्हें अपने कारण शरीर मे ही रहना पड़े.  रजतरज्जू ही वह भाग होता है जो हमारे आतंरिक शरीरों को जोड़ता है, उसका टूटना मतलब की संन्यासी का अब उसके स्थूल या सूक्ष्म शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है और अब वो उस शरीर मे लौट ही नहीं सकता है..योगिनी भी विस्मय मे थि, उसने ये नहीं सोचा था की उसके प्रयोगसे इस प्रकार की दुर्घटना हो जाएगी, अब तक तो उसने सन्यासी के नाम का संकल्प भी ले लिया था अपनी साधना पूरी करने के लिए...लेकिन संन्यासी तो अब अपने कारण शरीर मे जिस पर किलन या स्तम्भन का असर नहीं होता है, यकीनन संन्यासी ने स्तम्भन और कीलन को निष्क्रिय करने का प्रयोग अपने कारण शरीर से ही शुरू कर दिया था, थोड़ी देर मे ही, संन्यासी ने अपने कारण शरीर के माध्यम से स्तम्भन और कीलन प्रयोग सम्प्पन कर लिया जिससे अब उसके स्थूल शरीर पर किलन व् स्तम्भन का कोई असर नहीं होने वाला था.
योगिनी को अब संन्यासी के साथ ही अपनी तन्त्र साधना पूरी करनी पड़ेगी, क्यूँ की उसने संन्यासी के नाम का संकल्प ले लिया था, अगर वो संन्यासी के साथ साधना नहीं करती तो उसकी साधना अपूर्ण और भंग मानी जाएगी, हो सकता हे इसके लिए उसे मृत्यु का भी वरन करना पड़े
संन्यासी ने अपने कारण शरीर के माध्यम से कीलन और स्तम्भन प्रयोग को निष्क्रिय कर दिया था, अब किसी भी तरह उनका रजतरज्जू जुड जाए तो वो अपने स्थूल शरीर मे प्रवेश कर के योगिनी के माया चक्र से बहार निकल सकते है.
योगिनी अब संन्यासी के शरीर का स्पर्श नहीं कर सकती थि, क्यूंकि साधना जगत मे अगर किसी व्यक्ति का रजतरज्जू टूट जाए और शरीर मे प्राण उर्जा हो तो कोई भी स्त्री अगर उस शरीर को स्पर्श करे तो स्त्री के ऋणआयाम रजतरज्जू को खिंच के शरीर के धन आयाम के साथ जोड़ देता है, लेकिन अगर योगिनी ऐसा करती है तो संन्यासी के किये गए प्रयोग से कीलन और स्तम्भन का प्रयोग निष्क्रिय हो जाएगा और संन्यासी आसानी से उस कसबे के बाहर चला जाएगा...
Sanyashi formed his Kaaran Sharir, but with that Taarak Tantra prayog of yogini was even begun. Sukshm Sharir was having pran Urja but Aatm Tatv was in Kaaran Sharir now…Sthool sharir was in Shavashan Posture on the land which was connected with ‘Rajjat Rajju’ to sanyashi’s Sukshm Sharir and Kaaran Sharir. Sthool Sharir was havind Pran Urja which was able to liven Sanyashi’s body (Sthool Sharir) without soul for years and even sukshm sharir was having that Pran Urja. But because of yogini’s  prayog , inactive though; Sukshm sharir was getting merge into Sthool sharir...Sanyashi was looking at activities of his both sharir from his Kaaran Sharir, Sukshma Sharir was totally merged into Sthool sharir now But  Because aatma Tatv was in Kaaran sharir only, Sanyashi was in his Kaaran sharir now but his Shukshma and Sthool Sharir were merged because of the taarak tantra Prayog and process of Praan Sankalan, Now his astral body was completely immersed into his main Body. But the application of Prayog was to cut every contact of Sukshmasharir with outer universe, thus, at the time of merging the bodies, because of the effect of Tantra prayog done by yogini, the RajjatRaju was broken. Now, Sanyashi’s Kaaran Sharir broke down its contact with Sthool sharir. Now the condition was that with willing too, sanyashi was not able to enter in his own main body. rajjatRaju is the part which connects our inner different bodies, The breakage of the same mean sanyashi now was having no more connected with his Astral body or Main body. And now, he cannot return to his body...Yogini too was faint, she did not thought that her Prayog will turn into troubled accident, till now she was done with sankalp  to complete her sadhana...but Sanyashi was in his Kaaran sharir now on which Keelan or Stambhan may not work. For sure, he was He started his prayog to Vanish Keelan and Stambhan, in very small amount of time, Sanyashi completed it with his Kaaran Sharir and now there was no more bearing of Keelan and Stambhan on his Sthool Sharir.
Yogini was not suppose to complete her sadhana with sanyshi only, because she took sankalp on the name of sanyashi to complete her sadhana,  If she do not complete her sadhana with sanyashi, her sadhana will be counted as incomplete and broken, maybe she even have to pay back with her death for this.
Sanyashi inactivated the power of keelan and stambhan on his body through his Kaaran Sharir, if any how his rajatrajju gets connected then he will be able to enter in his Sthool sharir and he can come out of yogini’s mysterious kingdom.
Now yogini was not able to touch sanyashi’s body, because in Sadhana Jagat, if anyone’s rajjatraju gets broken and if body is having Praan Urjaa, in that condition of any female touches that body then the negative ions drags positive ions of the body and connect it, but if yogini does the same, in that condition Sanyashi could save himself from keelan and stambhan and Sanyashi will easily get out of the village...
****NPRU****

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