Wednesday, July 27, 2011

MAHAVIDYA RAHASYAM-MAA TRIPUR BHAIRAVI 2


 इस सम्पूर्ण जगत की आदि शक्ति माँ नित्य लीला धारिणी  ने इस विश्व  की जगत  की सञ्चालन के लिए  अपने स्वरुप को  अनेको स्वरूपों  में अलग अलग किया  हैं    यह स्थितिया हैं  स्थिति , निर्माण , ओर संहार  क्रम कहा  जाता  हैं इन दस महाविद्या   में से  को उन  तीन भागोंमें  बाटा गया हैं , पर महाकाली को नहीं रखा  गया   ऐसा क्यों ऐसा  इसलिए हैंक्योंकि  महाविद्याये तो कार्य  करने वाली शक्ति हैं  पर  बिना आधार के ये कैसे  कार्य करेंगी , माँ महाकाली  इनसबको आधार प्रदान करती हैं  सामान्यतः  महाकाली भी  संहार क्रम  में  मानी  जाती  हैं .
 इन  तीनो क्रम  को भी फिरे से सूक्ष्म रूप में अनके  रूप में   अलग अलग किया जा सकता हैं  जैसे आदि मध्य ओर अंत  में . उत्पत्ति  क्रम  रज गुण प्रधान  हैं स्थिति सत्व गुण  प्रधान , व संहार  तम गुण  प्रधान हैं 
माँ  त्रिपुर भैरवी  तमोगुण से आप्लावित  रज  गुण से परिपूर्ण हैं .
 माँ भैरवी के अन्य रूपों हैं समप्त्प्रदा भैरवी ,कौलशी भैरवी,सकल सिद्धिद्दा  भैरवी ,रूद्र भैरवी ,भुवनेश्वरी भैरवी अन्नपुर्णा भैरवीबाला भैरवी नित्या भैरवीकामेश्वर भैरवी ,चैतन्य भैरवी ,भय विध्वंस विनी  भैरवी नव कूट बाला षत कुटा  भैरवी  इस  तरह   १३ स्वरुप हैं अब यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं  हैं की हर स्वरुप अपने आप अन्यतम  हैं ओर उसके किसी भी एक  स्वरुप की साधना  यदि साधक को सदगुरु कृपा से यदिप्राप्त होई जाती  हैं उसे सफलता  पूर्वक सपन्न  करके वह क्या नहीं प्राप्त कर सकता  हैं   
माँ त्रिपुर  भैरवी  गले मैं मुंड माला धारण किये हुए हैं , ऐसे  तो माँ  विश्व निर्माण  के पहले  ही थी  तब उन्होंने यह  मानव  मुंड माला कहाँ से पाई , वास्तव में  हर देवी देवता का स्वरुप प्रतीकात्मक होता हैं , वह तथ्य  यहाँ पर भी पूर्णतया लागु  होता हैं यहाँ  इन मुंड माला  से तात्पर्य  वर्ण मातृका से हैं जिनका रहस्य  तो अपने आपमें एक अलग  ही विषद  विषय हैं  .
माँ ने अपने हाँथ में  माला धारण  कर रखी हैं जो  व्यक्ति के साधना  होने को इंगित करती हैं ,जब माँ स्वयं  साधना मय  हैं तो उसके साधक को हमेशा ही साधना मय   गरिमा से परिपूर्ण  होना चाहिए, यह तो नहीं होगा की एक दिन साधन की  फिर चार महीने का  अंतराल  ले लिया  .उनके चहरे  पर छाई मुस्कान  इस तथ्य  को इंगित  करती हैं की  साधना मय  उच्च अवस्था   पर जाते हुए साधक  के लिए  हमेशा  प्रसन्न  ता को भी  स्वीकार  करना  होना हैं जब माँ अपने साधक को  प्रसन्नता  पूर्वक देख रही हैं तो फिर उनके साधक  को किस बात  की कमी , किस बात का भय , उसे भी   रूखे सूखे होने की बजाय अंतर मन से प्रसन्न  होना चाहिए . जब साधक भी  प्रसन्न होगा  तभी तो   दिव्य माँ  के मुस्कान  का अर्थ हैं वे  यह कह रही हैं  तुझे अब क्या चिंता .. 
उन्होंने अभय ओर वर  मुद्रा  प्रदर्शित कर रही हैं  जो की साधक के अप्रितम सौभाग्य का प्रतीक हैं . जब माँ ही मुक्त ह्रदय से प्रदानकर रही हो तब अब क्या शेष .. मस्तक पर  चन्द्र  व्यक्ति  को हमेशा  दिमाग शीतल  रखने का प्रतीक हैं वह इसलिए  की शमशान में  साधना  करते करते साधक  का रुखा  हो जाना स्वाभाविक हैं क्योंकि उग्र  तत्व की साधना  में साधक को उग्रता धारण करनी पड़ती हैं (बिना उग्र ता धारण  किये  बिना  तो शमशान में सफलता  संभव ही कहाँ हैं )  जो धीरे धीरे  उसके  स्नेह तत्व को  सोख लेती हैं  पर  उसके जीवन में  प्रेम स्नेह तत्व  की प्रधानता रहे  इसलिए  माँ  ने यह धारण किया हैं साथ ही साधक यदि  रुखा ही रह गया  तोउसकी साधना  से जगत को क्या  लाभ .
 साथ ही माँ  ने लाल रंग की साड़ी धारण  किया हुए हैं  आखिर लाल रंग ही क्यों , वह इसलिए लाल रंग उर्जा  का प्रतीक हैं रज तत्व का प्रतीक हैं लाल रंग का अपने आप में गहन  अर्थ हैंइसलिए  साधको को कभी कभी केबल लाल रंग के अंत वस्त्र धारण करने के लिए  कहा जाता हैं(हनुमान साधना  जो की ब्रम्हचर्य  तत्व  की साधना हैंउसमे लाल रंग का प्रयोग  ही किया जाता  हैं  ) क्योंकि साधक के सत्व तत्व की रक्षा   करने में  लाल रंग  का योगदान हैं . 
 इस तरह कहा  सकता हैं  माँ के हाँथ में  विद्या तत्व हैं  ये विद्या तत्व क्या हैं  माँ इसके माध्यम से क्या  प्रदर्शित  कर रही हैं ये आगम(वेद साहित्य ) ओर निगम(सम्पूर्ण तंत्र साहित्य  साधना ) दोनों ही तो  विद्या तत्व हैं  तंत्रज्ञ  कहते हैं यहाँ तक  सूर्य  चन्द्र अग्नि  औषिधि   धातु रस आदि सभी ही विद्या हैं , तो  इस रूप में माँ सम्पूर्ण ज्ञान राशी को  ही संकेत  रूप में प्रदर्शित कर रही हैं .
माँ त्रिपुर  भैरवी की पूजा में जैसे की हमने जाना  माँ को लाल रंग सर्वाधिक  प्रिय हैं तो हर वस्तु  फिर चाहे वह वस्त्र  या फल  हो या अन्य  लाल रंग की होना चाहिए .
 ध्यान रखना  चाहिए  की दो प्रकार  किप्रलय से यह विश्व  प्रभावित होता हैं  प्रथम  तोजिसे हम प्रलय या महा प्रलय  कहते हैं इसको  माँ भगवती छिन्नमस्ता   सम्पादित करती हैं वही  इसकी  मुख्य शक्ति  हैंदूसरा प्रलय  है जिसे  हम  नित्य प्रलय  कहते हैं   यह अंतर  ओर बाहय जगत  में  हर पल  हर क्षण  होता रहता हैं ,इसे माँ त्रिपुर  भैरवी   करती हैं
 इसको समझने के लिए  यदि बाहय्गत रूप से   देंखे तो  दुर्घटनाये  आदि , पर व्यक्ति के अंतर मन  में  चलने वाले विपरीत  विचार , विपरीत आस्थाए , मन में आई अत्यधिक  कामुकता, (क्योंकि  तंत्र  कामुकता   को बुरा  नहीं कहता  हैं ,  न ही उसे अपमानित  करता हैं उसे स्वीकार करना  को कहता हैं  ,क्योंकि तंत्र  जनता हैंकि यह ही  तो कुण्डलिनी शक्ति हैं उस उर्जा को समझ कर  केबल दिशा  परिवर्तन  निम्न  मार्ग से उर्ध्व  मुखी करने   को कहता  हैं साथ ही साथ इसका रास्ता  दिखाता हैं ) पर अति सर्वत्र  वर्जयेत  के सिंद्धांत  जोकि  साधना की  के प्रतिकूल ता  बनती जाये  उस भाव  को   माँ त्रिपुर भैरवी  ही  पल पल नष्ट  करती हैं  इन संहार क्रिया को भी  नित्य प्रलय  कहते हैं . माँ त्रिपुर भैरवी  की कृपा के  अतिरिक्त  कैसे संभव हैं .   
 एक बहुत ही अद्भुत  तथ्य यह हैं की  ये सभी  दस महाविद्या के नाम से विख्यात हैं  ये हैं काली , तारा, छिन्नमस्ता ,बगलामुखी कमला , त्रिपुर भैरवी , त्रिपुर सुंदरी , मातंगी , भुवनेश्वरी ,धूमावती  हैं  पर वास्तव में सभी महाविद्या नहीं हैं इनमें से कुछ  महाविद्या हैं तो कुछ सिद्ध विद्या के अंतर्गत हैं तोकुछ  श्री विद्या हैं तोकुछ केबल विद्या  ही हैं   उदहारण के लिए माँ बगलामुखी एक सिद्ध  विद्या हैं माँ त्रिपुर भैरवी -- सिद्ध विद्या  कह लाती हैं इसे  महाविद्या क्रममें   छठवे  क्रम  में माना जाता हैं  .और इनसे सम्बंधित  दिन काल रात्रि  ही हैं , हम प्रयास करंगे की  जल्द ही आपको सिद्धाश्रम पंचांग  आपको वेब साईट पर  उपलब्ध कर दिया जाये . 
अब सदगुरुदेव  भगवान् की असीम  कृपा से हमारे पास  विपुल साहित्य हैं उनके श्री मुख से  उच्चरित  दिव्य प्रवचन , मंत्र साधना विधि सभी तो हैं  जो भी हमारे  लिए संभव हो सकता हो सकता था, सदगुरुदेव भगवान्  ने  दिन रात  परिश्रम  करके , अपने शरीर  की भिप्र्वाह  भी नहीकारते हुए यह सब हमारे  लिए ही तो किया  हैं  की उनके किसी भी बच्चे को किसी के सामने  साधना सम्बंधित ज्ञानके लिए  हाँथ    फैलाना  न पड़े , पर हम कमसे कम अब इस घनघोर अन्धकार  की घडी में  आलस्य  छोड़ कर ...  ,
  पूर्ण साधक भाव से साधना  कर के अपने सर्व प्रिय  सदगुरुदेव  भगवान्  गौरव  को प्रवर्धित  करते हुए को सदगुरुदेव भगवान् के सामने  विनीत  भाव  से उनकी आज्ञा  के लिए प्रणाम मुद्रा  में  खड़े  होना हैं  तभी तो सदगुरुदेव भगवान् का यह अति मानवीय , अकल्पनीय , अनथक श्रम  सार्थक  होगा 
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  Divine mother bhagvati ma parmba has divided  her forms in so many different  form so that  whole universe can be properly governed, state  are known as creation, caring and destroy  (shthiti , nirmaan and sanhaar  kram ) she has divided  9  out of ten mahavidya   in three  division , but  not  Mahakali ,why it is  so ,reason is  all the divine mother forms are  working force and all the force  surely need a base , and mother Mahakali provide that base,  in general mother kali also consider in sanhaar  kram.
 Again she has divided  theses  order in many  more parts  like aadi  Madhya, and Aant (beginning , middle and end). creation  kram related to raj tatv gun , shthti  order related to  satv  gun and  sanhaar kram related to  tam gun  .
 Mother tripur bhairavi realted to  raj  tatv  related  tam gun means she has both  tatv,
Divine mother  tripur bhairvi has many forms (13 forms) like  sampatprada bhairvi,  kaouleshi bhairvi ,sakal siddhida bhairvi,  rudra bhairvi,  bhuvneshwari bhairvi , annpurna bhairvi , bala bhairvi, nitya bhairvi, kameshwar bhairvi, chaitany bhairvi , bhay vidhanswini bhairavi , navkut, bala bhairavi,  shat kuta bhairvi , there is no need to write  here that  each one form is  having ultimate power, if any one get  sadhana related to any one form from Sadgurudev ji grace, than on successfully completing  that sadhana what can not he achieved.
Ma  has mala  in her neck made of  human head, but  mother has appeared before this world created  so where  she has got that  human head,  actually each dev devta  forms represent  many hidden sign  that need to understand. And if we thoroughly understand than easily to have success in that  here that  directly show  to  the “varn matraka” , what is varn matraka ? is very important subject  and can not be deal  here with space of this post,
 Divine mother  has rosary in her hand  that show that one must be sadhana may , when divine mother herself  be in sadhana  than  her sadhak must  be full of sadhanamayata. This can not be accepted fact that do sadhana of one day  and take rest for next four  month. The blissful smile on her face  shows  sadhak when achieve heights in the sadhana  field must accept  happiness in his heart , when  divine mother looking her welfare than  what is/will be  point of  worry and unhappiness. He also have  happiness in his heart  instead of  harsh  look and behavior . when her child feels happiness only than divine mother has a smile on her face, suppose she has saying now what to  worry when she is with us …
 She has having “abhay”  and “var” mudra  that is ultimate blessing for her sadhak  when  mother ready  to give what more is left and what a great luck for sadhak .having moon on her head  shows that  always have a cool  in mind. That is a very  essential  fact  since if any one continuously doing sadhana in shamshan field. its natural that has a very harsh  in nature(it becomes), since  for doing sadhana of ugra  elements sadhak also has to have that ugra nature ( without that shamshan sadhana would not be possible ) that urgra  tatv continuously  take  his love and sneh element from his heart .but her sadhak not deprive of that, that’s why mother has    moon  on her head. And important  facts  is that if sadhak  is not having that sneh .love element that what will be the useful ness of his sadhana  to the world,
And in additional to that mother has wear  red color sari why red color, is there any importance.? Since  red color is directly related to  energy elements , and  related to raj tatv . this red color has very specific meaning .some times sadhak has been advise to wear only  red color under garment in during sadhana , why?(specially  Bhagvaan hanuman ji sadhana , why because this help to protect  his sat tatv means bhramchary ) so red color has very important roles in protecting  his satv tatv,
Like this has been said that  mother has  vidya  in her hand . what  that  this vidya  stands for? ,what  mother are showing through that. Theses aagam (whole ved literature) and nigam ( complete tantra literature sadhana) are  vidya  tatv. As the tantragy says  that  even sun ,moon,  hebal medicine, mercurial science, metal all are  vidya . in this ways mother shows  us the complete  gyan world.
A s we knew that mother has very affection to red color  so all the fruits and  other things that can be offered to mother has to be of red color.
 Keep remember that  the whole world  is affected by two  type of pralay(ultimate distruction) . the first ,whom we call pralay or “mahapralay “, that  has been  done by mother chhinnmasta form. And  she is the power of that pralay.  And other is “nitya pralay “ means  that which continuously happened in  outer and inner world of  not only  of this world but inside of us too,  that has been  done  by mother tripur bhairvi.
To understand this  if we see outwardly we find so many accident and  unfor eseen event takes place and in inner world  our bad ,evil thought ,evil acts planning, and having too much sexual acts related activity or thought
(tantra does not condemn theses thought or activity neither blame that it says try to accept that first , since tantra  knew that  this is the kundalini  forces and try to understand first  and  only the direction of that need to be changed  from downward  to upward direction and how to do that its provide the ways)
 But”too much of everything  is a not acceptable”  so also applicable in any field if this  too much sexual activity mental or  physical can  provide  obstruction  in sadhana field, this bhav /feeling has been continuously  destroy  by mother tripur bhairvi and this sanhaar process is  known as nitya pralay. Without her blessing how that can be possible.
 One of the most  amazing facts Is this  all theses  who are famous as the mahavidya  like kali, tara, chhinmasta, tripur bhairvi ,tripur sundari, baglamukhi, kamala, matangi and bhuvneshwari and dhoomavati, all are  not actually mahavidya , some of them are mahavidya , some of  siddh vidya, some are only vidya , some are shri vidya. For example ma baglamukhi is  a siddh vidya  so is the mother tripur bhairvi  is also a siddh vidya.and  this form is consider as a sixth among the tel mahavidya. and kaal ratri is the day for her, we are(npru) tring that soon you will have siddhashram panchang in the web site.
 Now we have all the enough literature  though Sadgurudev bhagvaan  whether through his divine pravchan or through mantra  or from sadhana everthing we have , what can be possible  for us .sadgurudev Bhagvaan  did continuously hard work  without taking  care of his body for why , only for us  so that we never ever has to ask other as a beggar to have this sadhana, so that that her  manas child becomes not dependents  outsiders. Now in this very testing hour we have  set aside our idleness..
Do  the sadhana  with full heart , full devotion a full concentration and try to raise of  our Sadgurudev jis glory and  stand infront of him with full obedience and naman mudra  only than  sadgurudevjis  this super human,unbelievable ,continuous hard work will  be has a meaning..now this rest upon us.
****NPRU****

1 comment:

varun said...

what is vidya,sri vidya,siddh vidya and maha vidya.whats the difference between them