यह महाविद्या तो दस महाविद्या के मध्य के मध्य पंचमी महाविद्या के रूप में विश्व विख्यात हैं, माँ भगवती का यह स्वरुप तो अद्भुत हैं ही , इस स्वरुप के हर प्रतीक चिन्ह का अपना एक अलग ही महत्त्व हैं . पहले तो “छिन्नमस्ता " क एक अर्थ तो यह हैं की जिसका मस्तक ही कटा हुआ हो हो , जीवन में सर्वोच्चता प्राप्त करने के लिए मस्तक को एक तरह रख कर चलना पड़ता हैं यहाँ मस्तक का मतलब अपना अहंकार हैं .
देवी की गर्दन से तीन रक्त धाराए बह रही हैं जो ब्रह, विष्णु ओर रूद्र ग्रंथि के भेदन का प्रतीक हैं , पर ये ग्रंथियां हैं कहाँ? . ब्रहम ग्रंथि तो मूलाधार में ही होंगी क्योंकि वहां पर रचयिता ब्रह्मा जी का स्थान हैं तो , सारे जगत के पालन कर्ता का स्थान तो मणिपुर मतलब पेट में यहाँ विष्णु ग्रंथि में , और फिर इसी तरह रूद्र ग्रंथि का स्थान आज्ञा चक्र में होता हैं, इनका भेदन एक सर्वोच्च योग तंत्र की प्रक्रिया हैं . जिनको पूरा किये बिना. या भेदन किया बिना एक योगी सिद्ध नहीं कहला सकता हैं .
देवी की विपरीत रति क्रिया तो विद्वानों के लिए भी अचरज भरी हैं सदगुरुदेव जी कहते हैं की यह तो भूमि तत्व से परे होने की प्रक्रिया का प्रतीक हैं . इस साधना के माध्यम से साधक तो वायु गमन साधना की आधार भूमि स्वतः ही हो जाती हैं वही भगवान श्री कृष्ण जी ने इसी साधना के माध्यम से अनेक रूप रास लीला में बनाये थे इस सारे विश्व मानो काम भाब में ही डूबा हुआ हैं क्या मानव क्या ,पक्षी क्या , पशु सभी को महाशक्ति एक क्रम में फसां कर घुमाते जा रही हैं इस से किसी का बचना तो मुश्किल ही हैं , तो स्वाभाविक हैं की वीर्य /रज तत्व की गति नीचे की ओर हैं पर माँ का यह दिव्यतम रूप यह सामने रखता हैं की यदि इस जीवन के सत्व अंश का प्रवाह की नीचे की ओर न करके ऊपर की और करदिया जा सके तो योग मार्ग की सर्वोच्च उपलब्धयां भीप्राप्त करी जा सकती हैं . यह तो वरदान हैं ही,एक साधना पर लाभ इतने दिव्यतम, जिसका जीवन के सत तत्व का प्रवाह ऊपर हो गया वह तो उन दिव्य तम उपलब्धियों की ओर अग्रसर हो गा ही .
यह वीरों की आराध्य हैं इसलिए देश की रक्षा में लगे या वीरों की पृष्ठ भूमि से जुड़े लोगों के लिए यह आसानी से सिध्ह हो जाती हैं , वहीँ इनका उग्र रूप यह हैं की इनकी एक दिवस की साधन भी रोमांचित करदेने वाली अनुभूतियाँ प्रदान करती हैं .
रज तत्व से ओतप्रोत यह महाविद्या रक्त से अत्यधिक सम्बन्ध हैं इस का कारण इनकी पूजन में बलि का विधान भी एक आवश्यक तत्व हैं ( इस बात का अनुमोदन दतिया के स्वामीजी महाराज ने भी की हैं ) पर कुछ भी कहे माँ का यह स्वरुप अत्यंत ही मनो हारी हैं , अपने साधको के लिए अत्यधिक ममता युक्त हैं दिव्य मां, आलसियों के लिए नहीं बल्कि जो योधाओं के तरह जीवन चाहते हैं उनके लिए है माँ का यह दिव्यतम रूप .
महाविद्याए तीन रूप में भी भी बिभाजित हैं स्थिति , सृष्टि ओर संहार इसमें स्थितिक्रम को सृष्टिक्रम में मान ने अब तो दो रूप बने सृष्टि ओर संहार , माँ छिन्मस्ता , संहार या काली कुल की देवी हैं , यहं कुल का साधरण मतलब एक तो विभाग हैं वही दूसरी ओर माँ पार्वती के कुल ( आर्डर ऑफ़ फॅमिली ) का पता हैं इसलिए वे कुल कहीं जाती हैं भगवान् शिव के कुल का कोई पता नहीं होने से वह "अकुल" कहे जाते हैं ,
यह भी बेहद आश्चर्य जनक तथ्य हैं की माँ तारा ओर छिन्मस्ता का मूल बीज उद्गम मंत्र एक ही हैं . इनका मूल मंत्र के तो हर अक्षर का पाना एक अलग ही महत्त्व हैं सदगुरुदेव भगवान् ने कई बार इसे सम झाया हैं रक्त से इनका सम्बन्ध होने से यह तो बहुत ही आसान हैं की इनका सम्बन्ध श्री विष्णु जी के नरसिंह अवतार से हो होगा . यह नरसिंह अवतार की शक्ति हैं .
इसे हयग्रीव विद्या भी कहा जाता हैं , भक्त प्रह्लाद के पिता राक्क्ष राज हिरण्य कश्यप भी इसी महाविद्या का उपासक था उसी सारी शक्ति इस विद्या के फल स्वरुप थी .
क्या आपने कभी ध्यान दिया हैं की माँ का बायाँ पैर आगे की ओर हैं इसका क्या मतलब हैं तात्पर्य यह हैं की यह तामसिक सहक्तियों की स्वामिनी हैं साथ ही साथ इनके ध्यान में "प्रत्याली ढ पदा" का यही अर्थ हैं , देवी सदैव से ही नव यौवन संपन्ना मतलब १६ वर्षीय हैं , देवी का ध्यान अपनी नाभि से निकले कमल के ऊपर किया जाता हैं , यहाँ इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना था की जब हम जिस प्रकार का ध्यान मन्त्र का उच्चारण करते हैं उसी तरह का हमरे पास विग्रह / चित्र / मूर्ति होना चाहिए नहीं तो इन सब की अनुपस्थिति में यन्त्र ही अपने आप में पूर्ण हैं , यह एक आवश्यक तथ्य हैं , साधक कुछ ध्यान का उच्चारण करते हैं उनके पास विग्रह किसी ओर ध्यान के अनुरूप होता हैं . यह स्थिति ठीक नहीं हैं
************************************
This mahavidya famous in amongst the ten mahavidya is known as panchami mahavidya ., this form of ma Bhagvati is very unique , each sign of divine mother shows us some very special divine gyan. The very first sign is the head of the devi , that is elf cut and in devi own hand , means that one who want to get ahead in sadhana field keep aside his ego and this whole sadhana jagat is depended on the feelings/ bhav mayta .
There are blood flowing in three branch s that which shows that the process of brahma , Vishnu and rudra granthi, but question lies where are they reside in human bodies , brahma granthi is in mooladhar chakra since the creator has palace in that chakra or brahma is the dev of this chakra, like wise the lord who taken care of whole world is Vishnu Is in stomach means Manipur chakra is the place for this granthi, and at the same way rudra granthi lies in the agya chakra, the bhedan process or penetration of these special part is ultimate yog sadhana and process. Without bedan of that no one can reach the status of siddh yogi .
Divine mother sitting on the vipreet rati kriya status is very point of confusion among the scholar in tantra granth. sadgurudev ji used to says that this shows the sign of how one can be free from earth tatv, this sadhana provide the basic ways of achieve the status of vayu gaman sadhana. And other hand Bhagvaan shri Krishna has made several form of his body in ras lila time through this mahavidya sadhana, whole world is in grip of kaam bhav ,as in roughly meaning is that sexual act what man/woman even bird animal all are in the grip of this phenomena, no one can not be safe from this hidden very strong grip of mahashakti. Its quite natural that our sat tatv known as veery or raj in woman has its natural flow towards down wards direction ., but if any one change the direction from downward to upwards than one can achieve the height of spiritual greatness. And this can be possible through this sadhana, this is our luck and boon that through one sadhana one can get so much benefit, those who are succeed to d o that definitely reaching heights of aadhyatm.
This sadhana has a special relation ship to the brave , that s why those who are engaged in worrier like work for country , can easily do this sadhana, and on the other hand mother form is so urga that in only one days sadhana can give you many great experiences.
Raj tatv has a very important factor in his sadhana and also has a very close relation with the blood. So animal sacrifice has a very must part in this goddess poojan ( this fact has been advocated by even swami ji maharaja of datiya . many of person not accept this fact but without understand the basic element critising it baseless so many argument can be given ,( its not the time to answer here, ) even that divine mother this form is very attractive and heart touching, not for idle but for the worrier mother has taken this form and bless them.
Mahavidya are divided in three form , sthiti , shristhti and in sanhaar kram/order. If one can consider sthiti kram is in shrisrthhi kram than only two order left shrasthhi and sanhaar , ma chhinmasta is in sanhaar order or kali kul. Here kul means is ma Parvati since her family order known and akul means shiv whose family order not known to any one. That’s why he is known as akul.
One of the very amazing fact is that basic root mantra of mother tara and mother chhinmasta are one. And root mantra has a very great meaning of each letter , Sadgurudev bhagvaan many times clearly mentioned in the MTVY mag. A s blood has vey close relationship in this mahavidya so its quite natural that she has relation to bhagvaaan narsinh an avatar of Bhagvaan Vishnu, she is consider as the shakti of that avatar.
This also known as haygraiv vidya ,and father of bhakt prahlaad, hiranykshap is the devotee of this sadhana , and he ha achieve all the power through this sadhana.
Have you ever tried to understand divine in standing position has left foot ahead, meaning of that mother is the ruler of all the Tamsic power. And in addition to word “ pratayali dhpada word has the same meaning. Devi always be appear at the age of 16 years, and dhyan of mother is always on one naval point, one point would like to emphases is that. A s the dhyam mantra says so that type of vigrah we must have. Some times sadhak not pay must attention on that and this is not a correct factor.
****NPRU****
1 comment:
Bhaiyya ye to aapne bahut achchha kiya jo mahavidhya par puri ek series mein unke baare mein parichay kara rahe hain jinme se kuchh mahavidhya ke baare mein hum bahut kam jante hain jis ke karan hum unki sadhna par dhyan nahi de paate..... Bhaiyya bhagwati Chinnmasta ke pairon ke niche kai baar maithun rat istri aur pursh ko dikhaya gaya hai pls iska arth ke baare mein bataane ki kripa karen... Ashok
Post a Comment