Monday, July 25, 2011

Mahavidya rahasyam- Bhagvati chhinmasta rahasyam part-2



दस महाविद्या  में  माँ भगवती  के इस रूप  से सम्बंधित साहित्य  बहुत कम  ही उपलब्ध  हैं ,  इस कारण यह   महाविद्या  ज्यादा   सामने  नहीं  आई हैं  ओर साधको   की भी देवी के रूप  को देख  कर ज्यादा  रूचि नहीं हैं ,  पर साधक  यह भूल जाते हैं  की  जीवन मे  उग्र रूप की साधना    भी परम लाभ दायक हैं  ओर माँ  के  रूप  के साधक  अपने आप में  विलक्षण होते हैं ,   दिव्या  माँ  के इस रूप  के मंत्र  में ऐसा  विन्यास  हैं जो साधक को क्या    साधक  को नहीं  प्रदान कर  कर सकते हैं ,  १६ अक्षरी  यह मात्र  तो अद्भुत हैं सदगुरुदेव भगवान्  ने अनेको बार  इस मंत्र  की बृहद  विवेचना मंत्र यन्त्र विज्ञानं   में की हैं उसे यहाँ  पुनः  लिखना ,इस  लेख का  मात्र विस्तार  करना हैं .

 जीवन में कभी  कोई उच्च स्तर तांत्रिक,मान्त्रिक  जो रास्ता भटक  चुके हो  ओर आपके लिए  अपने विद्या से  समाज   विरोधी  कार्य करते हुए परेशानी का कारण  बन  रहे  हो  तब उनकी सारी शक्ति छीन कर  उन्हें निस्तेज  बनाने के लिय्रे  एक मात्र यही महाविद्या हैं सदगुरुदेव एक पूरा विधान  इस सन्दर्भ में  दिया हुआ हैं . अद्भुत ओर गोपनीय  विधान हैं . जो  जीवन   में कभी परिस्थिति  वश   , हम  हताश  हो इस कारण  हमें  प्रदान किया गया हैं .

 साथ ही साथ   ध्यान रहे  की   इस  महाविद्या  रूप में  देवी के साथ  दो उनकी सहेली   डाकिनी ओर  वर्णिनी  हैं जो  दोनों भी दिगम्बर   हैं ये दोनों  प्रबल  तामसिक शक्तियों  की स्वामिनी हैं सदैव  रक्त पान करने को   उत्सुक   रहती हैं , देवी  के दिगंबर  रूप  का एक अर्थ  यह    भी  हैं केबल निर्मल मन ह्रदय  के साधक  ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं या जो   निर्मल ता   प्राप्त करना चाहताहैं  उसे  तो इस रूप के बारे में  ध्यान देना होगा ही क्योंकि परम निर्मलता प्राप्त किये बिना  साधक रूपी शिशु को दिगंबरा  माँ स्वीकार करेगी  भी  नहीं ,  निर्मलता  प्राप्त  ही साधक  उच्च स्तर  की साधनाओ के लिए  योग्य  माना जा सकता हैं

                                  तंत्र साधना  के चार  सर्वोपरि  साधना  स्तर में ( शून्य पीठ,   अरण्य पीठ शव पीठ ,श्यामा पीठ )   श्यामा  पीठ साधना  आदि इसी निर्मलता   को प्रमाणिक रूप से प्राप्त करने का एक द्वार  जो हैं .  उसके  लिए भी यह महाविद्या  भी एक रास्ता  प्रदान कर सकती हैं .  

इनके मंत्र में  आया वज्र  शब्द   का एक अर्थ  तो हमारा सत्व तत्व हैं ओर  बौद्ध  तंत्रों में  इसका एक अलग ही महत्त्व हैं आज भी अनेको  बौद्ध तांत्रिक  चिन्तपुरनी माँ के मदिर में दर्शन करने को आते  रहते हैं जो माँ  छिन्मस्ता  माँ का  ही  मदिर हैं ओर   राज्जप्पा  का छिन्नमस्ता    का  मदिर विश्व विख्यात  हैं , जिसे कहते हैं  माँ ने स्वयं  एक दिनमें स्वयं ही निर्माण  कराया था , आजभी पूर्ण जाग्रत स्थान हैं , जहाँ पर  किजाने वाली साधना   पूर्ण  फल प्रदायक होतीहैं ,
महा शक्ति पीठ में  हमेशा इतनी शक्ति हमेशा  विदमान  होती हैं जो एक सामान्य साधक को भी उसका अभिष्ट प्रदान करने  में समर्थ  होती ही हैं , साधको इस बारे में   सोचना चाहिए  जो साधना  कर कर के थक  गए हो उन्हें सफलता न मिल पा रही हो,उन्हें  तो  कभी न कभी साधना  को किसी भी  शक्ति पीठ पर करके एक बार देखना   ही चाहिए ,   ऐसे तो माँ पराम्बा  हर स्थान पर  विदमान  हैं पर  कभी उनके  घर पर  में भी कर के भी तो साधना   देंखें . फिर कहें.   
इनके मंत्र में  आया विरोचन   शब्द    भक्त प्रह्लाद  के पुत्र  विरोचन  से भी जोड़ा  गया हैं , जो की स्वयं एक परम साधक थे , माँ उनकी इष्ट  थी . वसे  तो बक्त प्रह्लाद के वंश  में माँ  सिद्व इष्ट थी ही , हिरण्य कश्यप ( भले  की कर्म प्रभाव में  रास्ता  भूल गए हो, विपरीत आचरण करने लगे हो ) भगवतीके  इस रूप के प्रबल साधक थे , तीनो लोकों  को हिला  सकने में उनकी शक्ति  इसी बात की परिचायक हैं . 
कहीं कहीं माँ के पेट में बनी तीन रेखाए  चित्रों  में बनी हैं जो सत  रज  तम रूप का प्रतिक हैं ,, वहीँ उनके  हांथो  में सुशोभित  कैची , मानव मात्र  के  बंधन को काट सकने में समर्थ  माँ की कृपा  का प्रतीक हैं . वहीँ रक्त के तीन धाराओं  का एक अर्थ   इडा पिंगला , सुषुम्ना  का भी प्रतीक हैं . जो की कुण्डलिनी  तंत्र में उर्ध्मुखी  होने में एक मार्ग  होतीहैं .इस महाविद्या साधक  के कुण्डलिनी स्वयं  ही जाग्रत  होने लगती हैं  या  हो  जाती हैं , जिन्हें वायु गमन में रूचि हो  वह भी इस  साधना  को करके  देखें. पर यहध्यान  रहे इस महाविद्या  साधना में साधना काल में  अत्यधिक रोमांचित  अनुभूतियाँ  होंगी ही, इस कारण सदगुरुदेव जी से दीक्षा प्राप्त करे के बैठे  तो अत्यधिक उचित होगा , साथ ही साथ गुरुमंत्र का  अधिक से अधिक जप इस साधना   प्रारंभ करने के पहले भी  अत्यधिक लाभ दायक होगा हैं .ओर साधना काल मेंकिसी भी हालमें अपना आसन  न छोड़े .
साधना  जगत में अनेको प्रकार के यज्ञों का उल्लेख मिलता हैं ,ये पाक यज्ञ ,हर्वियज्ञ ,महायज्ञ, अति यज्ञ, शिरो यज्ञ हैं. साधनाग्रन्थ बताते हैं की सभी यज्ञ    छिन्न   शीर्ष हैं .   इसलिए हर यज्ञ के अंत में  शिर संधान यज्ञ  किया जाता हैं  इसको न करने  पर हर यज्ञ  बिना सिर के  रह जाता  हैं जो  उचित फल नहीं देता हैं . माँ भगवती  छिन्नमस्ता    का यह रूप  उसी  तथ्य  को गंभीरता  पूर्वक  इंगित करता हैं
  षोडशी  त्रिपुर सुंदरी  जो  माँ भगवती   का परम सुखदायक  स्वरुप हैं  जो  अपने एक स्वरुप में माँ भुव्नेश्वेरी   रूप धारण  कर सारे चर  अचर जगत  का पालन  पोषण करती हैं वही  इस विस्वा के अंत काल में  माँ छिन्नमस्ता   का रूप धारण    कर  उसे  नष्ट  कर डालती  हैं 
 माँ के दिव्य  स्वरुप को जो साधको  को उनका  मनोवांछित देने  में समर्थ हैं साधक इस  और रूचि रखे ओर  सदगुरुदेव भगवान्  से प्रार्थना करे   की अनेको रहस्य  जो हम लोगों  की उदासीनता के कारण भी हमारे सामने आने  से रुक  गए हैं ओर  जो  उन्होंने  बताये हैं उन्हें  समझ  पाने में असमर्थ हैं  अब वे ही  कृपा करके हमारे सामने   उद घाटित करे , हम इस साधना  को  करके  दिव्य  माँ  के  श्री चरणों के प्रति फल  से , उनके स्नेह आशीर्वाद   परम पवित्र  सिद्धाश्रम की दिशा में एक ओर कदम चले ..
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   Very little sadhana  related  material available  about this  form of mother divine. That’s one of the reason why  not  so much  publicity of this sadhana. And sadhak also not shown  much interest  towards in this form of  mother divine because of lake of  knowledge . but  sadhak often forget that  the sadhana of  urgra form, has  many advantages, and sadhak of this mahavidya  is  having  great  personality. The divine mantra  associated  with this sadhana, what can not able to provide to the sadhak of this  mahavidya. This mantra  of 16  letter is itself a miracle , Sadgurudev bhagvaan many  times describe in details about the each letter of this  mantra what   that stands for and meaning of that. Here mentioning again  is just  to make this post  lengthy.
 Whenever any mantra /tantric  who  knowingly doing  some harm full act and   continuously  doing that towards you or your family . This mahavidya  comes  into picture  that   snatched all their  power and make them helpless  for life long. Sadgurudev  ji provide such a  process of this mahavidya  for punishment of such  fellow and protection of  us. So that  when in  life such a condition arise,  we will not  find outself helpless.
Side by side  remember that  two associated of mother named dakini and  varnini also has a digamber form and always ready to  drink the blood, is  the ruler of many Tamsic powers. The  digaamber form of mother also shows  the fact that only  the sadhak ,who have  pure in heart will get successful in this sadhana or  who want to achieve  such a  purity of  heart  also have to think about this sadhana. Since without achieving such a  stage , mother divine  this form  will  not accept  him. And without achieving this purity  how can a sadhak be consider eligible for  higher level sadhana.   
 The main  four stage of tantra  sadhana level  ( shoony peeth,  arany peeth, and shav peeth, shyama peeth )shyama peeth  provide a way  for achieving this  level of purity , and this mahavidya sadhana also provide way to  do that /achieve that .
 The  term “vajra” comes in this mantra  also signifies  sat tav of us means  veery of human, and having very specific  relation in bouddh  tantra.  Even today many of the bouddh tantrik visited every year in ma chintpurni  temple , that  actually a  temple of  chhinmasta  ma. And  one ore temple of  mother is in raajappa , has got world fame , its being  told that  the same temple  has been built by mother in one night only. This is  still highly energies place. and any sadhana proved to fruitful.
 In any  mahashakti peeth always energy has a such a flow of energy  that even  simple sadhak  if  does his sadhana will be benefitted, those who are tired of doing sadhana many times but  are not getting  result, also take a chance to do  his sadhana once again  with full heart and devotion. as mother is present every where but doing sadhana in her home,, what to say  more..
 The word “virochan” in the mantra also indicating the  grand son of  prahalad , who himself a great sadhak of  mother  this form, and  mother chhinmasta always  be worshipped in his family  ,  bhakt prahlad  father hiranykashyap also a great sadhak  of  mother and  achieve   great power only through this mantra.
 In many figure/photograph of mother chhinmasta, there are three line  in mother’s stomach that shows  sat , raj and tam forces/element of this world. and  the kanchi  in her hand  shows  that this human  life bounded by  so many  pasha(asth /eight) and  mother  with love can  cut those string  and  can  make you free, three branches  ofb lood also shows/represents  that  ida pingla, shushamna  nadis  inhuman  body. Through that kundalini  gets the way to  upwards motion  to reach infiniteness. means  doing this sadhana sadhak kundalini awaking  or  fully awakened, those who have very much interest in vayu gaman can  do this sadhana. but will have care that during the sadhana kaal of this sadhana many  furious experiences takes place , so taking mahavidya  Diksha  from Sadgurudev ji is must  step and  do as much as guru mantra jap is proved to very benefitted. and in any situation arise during sadhana jap  one should  not leave  his aasan.
 There are many type of  yagyas found in sadhana  holy  books like  paak yagya, harvi yagya, mahayagya, ati yagya , shiro yagya , and  sadhana  books tell that are all  without head , so at the end of each  yagya one should  perform “shir sandhan yagya” if not  do that than all the yagy  becomes headless and not able to generate  desired result as you expected for, divine mother chhinmasta this form indicating  this  facts.
 Shodshi tripur sundary form, that is most beautiful  form of mother divine,  got  form of  mother bhuvneshwari  through that  divine mother take care of whole world, abut at the end of world  she  get the form of chhinmasta and destroy  whole world.
 Mother divine ‘s this  form  is able to  fulfill every wish for her sadhak, and sadhak will show  interesting this direction  and  pray to Sadgurudev Bhagvaan  that  many  such a secret which  does not  comes in front of us because of our lack of interests and  what he told us , not able to understand because of limited buddhi, atleast  now shows allthat  gyan to us. So that  through  that , and blessing of mother chhinmasta we can  moved one  more step  towards the  way of siddhashram..  
****NPRU****

1 comment:

KESHAV SINGH said...

निखिल जी , आपने कहा कि देवी जी कि जो साथ है उनका नाम डाकिनी ओर वर्णिनी है पर हमने सुना है कि उनका नाम जया और विजया है ! जरा शंका का समाधान करे ।