Monday, January 30, 2012

पूर्ण शक्तिपात सिद्धि साधना (Poorna Shaktipaat Siddhi sadhna) –


जब शिष्य जिज्ञासु बनकर अपने अज्ञान की निवृत्ति हेतु श्री सद्गुरु के चरणों में निवेदन ज्ञापित करता है , तब उसके निवेदन को स्वीकार कर अज्ञान रुपी अन्धकार का नाश करने के लिए सद्गुरु उसे ज्ञान का उपदेश देते हैं l वस्तुतः ये ज्ञान कभी सामान्य होता ही नहीं है ,क्योंकि ज्ञान की प्राप्ति के बाद ही मनुष्य अपने कर्म फलों को नष्ट करने का भाव और पराक्रम प्राप्त कर पाता है ,ज्ञानाग्नि ही प्रदीप्त होकर शिष्य के लिए शक्तिपात की भूमि तैयार करती है lइसे यो समझा जा सकता है की किसान को बीजारोपण के पूर्व भूमि की उर्वरा क्षमता बढ़ाने के लिए भूमि को जोतना पड़ता है lतत्पश्चात ही बीज का अंकुरण हो पाता हैl ठीक वैसे ही बीज में छुपा हुआ ज्ञान का वृक्ष जो आचार विचार में पूर्ण प्रभाव के साथ हमारे व्यक्तित्व में ही आ जाये l सद्गुरु अपने तपः उर्जा के द्वारा अपने संचयित ब्रम्हांडीय ज्ञान को शिष्य में अपनी करुणा के वशीभूत होकर उड़ेल देते हैं, अर्थात बीज रोपण कर देते हैं,जिसके बाद शिष्य मात्र मन्त्र जप का आश्रय लेता है और उसे निर्दिष्ट या अभीष्ट ज्ञान की प्राप्ति होते जाती है l
 शक्तिपात के तीन प्रकार होते हैं-
मंद
मध्यम
तीव्र
   इनके नाम पर जाने की कदापि आवशयकता नहीं है (क्यूंकि इन भेदों के भी ३-३ उपभेद हैं, और जिनकी चर्चा करना यहाँ हमारा वर्तमानिक उद्देश्य तो कदापि नहीं है, वो गूढ़ चर्चा फिर कभी और करेंगे),अपितु ये समझना कही ज्यादा महत्वपूर्ण होगा की शक्तिपात कर्मफल रुपी मल को हटाकर ज्ञान का बीजारोपण करने की क्रिया है l अर्थात हमारे कर्मों का जितना गहरा प्रभाव आवरण बनकर हमारे चित्त या आत्मा पर होता है सद्गुरु को उतनी ही तीव्रता का प्रयोग करना पड़ता है ,दोष निवारण हेतु उतना अधिक अपना तप प्रयोग करना पड़ता हैl
और ये क्रिया तब तो अवश्यम्भावी हो ही जाती है ,जब शिष्य गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञानवाणी के भावार्थ को नहीं समझ पा रहा हो और उसका मन संशय से मुक्त नहीं हो रहा हो l तब ऐसे में समर्थ गुरु अपने ज्ञान को सीधे ही अपनी दृष्टि,वाणी या स्पर्श द्वारा शिष्य के भीतर उतर देते हैं जिससे कर्म फल के परिणाम स्वरुप बाह्य नेत्रो और बहिर्मन के ऊपर पड़ी अज्ञान की पट्टी भस्मीभूत हो जाती है ,और उसका साक्षात्कार उस सत्य से हो जाता है, जो सत्य सद्गुरु द्वारा दिग्दर्शन कराया जा रहा होl आज हम श्री मद भागवद गीता को कर्म की और प्रेरित करने वाला ग्रन्थ मानते हैं, परन्तु उसे पूरा सुनने के बाद भी क्या अर्जुन उसका भावार्थ समझ पाया ? क्या वो युद्ध के लिए तत्पर हो पाया? नहीं क्योंकि उसे तब ये ज्ञान नहीं था की जो सामने रथ पर खड़े हैं वो सामान्य सारथि या मित्र ही नहीं हैं अपितु ऐसे जगद्गुरु हैं जिनकी वंदना सम्पूर्ण ब्रम्हांड करता हैl उसे गीता के उन दिव्य वाक्यों में छुपे अर्थ समझ ही नहीं आ रहे थे l वस्तुतः जितने भी शास्त्र या तंत्र ग्रन्थ रचे गए हैं वे तीन ही प्रकार के श्लोकों में रचे जाते हैंl
अभिधा
लक्षणा
व्यंजना
और सामान्य साधक या शिष्य के लिए इन श्लोकों के मर्म को समझना अत्यधिक दुष्कर है l तब अर्जुन भी इस मर्म को नहीं समझ पा रहे थे और तब कोई और चारा न देख कर कृष्ण जी को शक्तिपात की क्रिया करनी ही पड़ी और जो बाते लगातार समझाने के बाद ह्रदय में नहीं उतर पा रही थी वो शक्तिपात से सहज ही संपन्न हो गयीl उसके बाद जो हुआ वो हम सभी जानते ही हैं l
   पर क्या मात्र शक्तिपात होने से ही साधक का अभीष्ट प्राप्त हो जाता है  , नहीं वस्तुतः शक्तिपात की प्राप्ति के बाद भी साधक का जीवन पवित्रता युक्त नहीं होता है और वो नित्य प्रति की जिंदगी में मिथ्याचार, अशुद्ध भोजन और मलिन भाव से युक्त होता ही है और तब ऐसे में सद्गुरु ने  जो शक्तिपात आपको प्रदान किया है वो आपके कर्मों के कारण क्षीण होते जाता है ,जैसे मिटटी के मटके में असंख्य महीन छिद्र होते हैं और जब हम उसे जल से पूरित कर देते हैं तो थोड़े समय बाद वो मटका धीरे धीरे रिक्त होते जाता है l अर्थात उसमे जल लगातार नहीं पड़ेगा तो एक समय बाद वो पूरी तरह सूख ही जायेगा l साधक को भी शक्तिपात की प्राप्ति के बाद संयमित जीवन और साधना का नित्य प्रति सहारा लेना पड़ता है यदि वो ऐसा नहीं करता है तो ऐसे में उसे प्राप्त शक्तिपात भी धीरे धीरे सुप्त हो जाता है l और ये भी सत्य है की हम पर शक्तिपात की प्रक्रिया ब्रम्हांडीय शक्तियों द्वारा सृष्टि के आरंभ से ही हो रही है और आज भी होती है परन्तु ये इतनी मंद और सूक्ष्म होती है की हमें इसका अनुभव किंचित मात्र भी नहीं हो पाता हैl इसलिए यदि शक्तिपात के प्रभाव को निरंतर शरीर और आत्मा में संजो कर रखना है तो सदगुरुदेव प्रदत्त शक्तिपात सिद्धि साधना संपन्न करनी ही पड़ेगी lइसके बाद आप उन सभी शक्तिपात के प्रभाव को आत्मस्थित कर पाएंगे जो पूर्व में आप पर हुए हैं या नित्य प्रति सिद्धाश्रम के महायोगियों द्वारा हम पर सूक्ष्म रूप से किये जाते हैं l ये एक अद्भुत और गोपनीय विधान है , जो सहज प्राप्य नहीं है l   
किसी भी सोमवार से इस साधना को ब्रह्म मुहूर्त में प्रारंभ किया जा सकता है lवस्त्र व आसन श्वेत होंगे ,पूर्ण शुद्ध होकर आसन पर बैठ जाये और सामने बाजोट रखकर उस पर रेशमी सफ़ेद वस्त्र बिछाकर उस पर अष्टगंध से निम्नाकित यंत्र उत्कीर्ण करके उस यंत्र के मध्य में अक्षत की ढेरी बनाकर उस पर घृत का दीपक स्थापित करे, तथा यन्त्र के पीछे गुरु चित्र तथा यन्त्र के सामने गुरु पादुका या गुरु यन्त्र स्थापित करे l तत्पश्चातहाथ में जल लेकर सदगुरुदेव से प्रार्थना करे की “हे सदगुरुदेव पूर्व जीवन से वर्तमान तक जिस भी दीक्षा शक्ति का आपने मुझमे संचार किया है,वे सदैव सदैव के लिए मुझमे अक्षुण हो सके इस निमित्त मैं ये दुर्लभ साधना कर रहा हूँ,आप अपनी अनुमति और आशीर्वाद प्रदान करें” तथा गुरु चित्र और यदि गुरु पादुका या गुरु यन्त्र हो तो उन का दैनिक साधना विधि में दिए गए विधान अनुसार (या पंचोपचार विधि से ) गुरु पूजन करे lपंचोपचार पूजन के विषय में पूर्व अंकों में बताया जा चूका है l इसके बाद  नवीन स्फटिक माला से १६ माला गुरु मंत्र की तथा २४ माला पूर्ण शक्तिपात सिद्धि मंत्र की जप करेl
पूर्ण शक्तिपात सिद्धि मंत्र
ॐऐं ह्रीं क्लीं क्रीं क्रीं हुं जाग्रय स्फोटय स्फोटय फट् ll   
ये क्रम सात दिन का है,दीपक मात्र साधना काल में ही जले ,अखंड रखने की अनिवार्यता नहीं है, साधना के सभी सामान्य नियमों को अवश्य अपनाएं lअंतिम दिन जप के पश्चात उस माला को ४० दिनों तक पूजा के समय धारण करे और बाद में उसे पूजन स्थल पर ही रख दे lसाधना काल के मध्य शरीर में तीव्र दाह उत्पन्न हो जाता है, गर्मी बढते जाती है अतः दुग्ध पान अधिक मात्र में करे, शरीर टूटता रहता है क्यूंकि आत्म रूप से व्याप्त शक्तिपात की तीव्र ऊर्जा रोम रोम में प्रसारित होते जाती है,चेहरे पर लालिमा और नेत्रों में आकर्षण व्याप्त हो जाता है l आप स्वयं ही इस अद्भुत मन्त्र के प्रभाव को देख पाएंगे, जरुरत है मात्र पूर्ण श्रृद्धा के साथ मन्त्र को अपने जीवन में स्थान देने की बाकि का काम तो स्वतः होते जायेगा l
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    When Disciple became curious to release his lack of knowledge state and requests to sadgurudev, then his requests is been listen and Sadguru proceed some thought processing to vanish his lack of knowledge. Actually this knowledge is never been casual to any one, because after achieving any type of knowledge he actually gets the notion of destroying it. Knowledge fire zeal only prepares the base for shaktipaat procedure. This can be understood by this way – if any farmer sows seeds in farms, but before sowing, first he cultivate and plough the land. There after he starts the sowing of seeds later which converts into huge trees. The hidden form of knowledge in seed became in future tree. Exactly same case with us whatever seeds inside us is cultivated by Sadguru and ultimate after his hard efforts we became tree. By Sadguru’s meditational powers and energy the universal knowledge get established in us. This all happens just because of his infinite endless love and kindliness for us in his heart. This means he sows the seed, where after sheer support of mantra jap shishya get success in his wishes.
The Shaktipaat are of 3 types :-
Mand
Madhyam
Teevra
Don’t go by the sheer name of it. (Because there are 6-6 sub secrets of it, as of now whose discussion is not in intended. That secret discussion might be taken some other time) rather it’s more important to understand that Shaktipaat is that process which helps to excrete the filthy thoughts in us and cultivates the seeds by sowing in us to enlighten the light of purity. It means as much dark and strong layer of our past life impacts had been engrossed in our mind that much powerful process have been used to remove the effects by sadguru which is possible only by transferring his hard meditational power and energy via Shaktipaat.
And this becomes so important when Shishya is enabling to understand the knowledge is given by Sadguru and his mind is not free from suspiciousness. In that case capable guru directly transfers the light of knowledge by eyesight, speech or by touch, in resultant the filthy layer of external eyes and mind gets disappeared and then he has been acquainted with the ultimate truth of life which is again lead by Sadguru. Today we considered the holy book ShrimadBhagwat Gita as most inspirational book but after listening completely, still the question remains as it is that does Arjun understood it properly?  Does he become instant ready to face the war? Answer is NO because at that time he was not having the light of knowledge is not just his driver or friend but also mentor of the world who is worshipped by whole world. Arun didn’t understand the hidden divine sentences meaning of Gita. Basically however the Shastras and Tantra Granthas had been written and expressed in three forms of Shlokaas –

Abheedaa
Lakshanaa
Vyanjanaa
   
And for normal Sadhak this is quiet difficult to understand the depth of these shlokas. At that time even Arjun was also not able to understand it amd no other solution left apart giving Shaktipaat remained with Shree Krishna. The talks which Arjun was not able to get since long and lots of efforts, mere by shaktipaat he embibed it instantly so easily smoothly. Thenafter whatever happened we are welaware about it.
 Is shaktipaat is sufficient for a sadhak to realise his wishes, Answer is 'No' even after having shaktipaat diksha the sadhak's life doesnt remain pure. In his daily routine life he is full of falsehood, impure food and dirty notions and in such condition the shaktipaat energy given by Sadguru reduces day by day. This reduces only becase of our Karmas, likewise in mud pot there are infinite minute wholes which are not seen by lamed eyes. When we fill it with water but after some time the water level gets on reducing manner and ultimate it again becomes empty. It means time on time if we doesn’t fill with water then it would get dry. For keeping it wet the water supply shouldn’t be stop. After getting Shaktipaat Sadhak should lead his life very carefully and support of sadhna is must. And if he doesn’t do sadhna, slowly slowly the shaktipaat energy disappears. And this is also a truth, the shaktipaat process by universal power holders is already been started from beginning and at today’s date too but it is quite slow and minute that we don’t realize it. Therefore if you want to conserve the impact of shaktipaat in you, then the Shaktipaat Siddhi Saadhna is the only solution. Then only you can imbibe the impacts which have been done in past and also at present done by Siddhaashram’s Mahayogis upon you. This is a wonderful and secret process which really rare.
On any Monday you can start with this sadhna in Bramha mahurt (early morning auspicious time) Cloths and asana should be white in color. Clean and bath yourself and then be seated, establish the ashtagandha yukta yantra on small table covered with white cloth. Put some rice in middle of it and then light the butter lamp. Place Sadguru picture behind the yantra and place the Guru paduka and guru yantra before the small table. Then take some water in palm and pray to Sadgurudev “
Oh my revered Sadgurudevji with due respect I would like to say something, since first birth to this birth, whichever dikshas you have transmitted in me, it should get resume in me forever for that purpose I’m pursuing this sadhna. I just want your permission and blessings”. Then as per instruction do worship guru paduka, guru pujan as u do on daily basis. About Panchopchaar Pujan process already been told in previous article. Then with New Crystal Rosary (Navin Sphatik Mala) do 16 rosaries gurumantra and 24 rosaries Poorna Shaktipaat Siddhi Mantra jap.
Poorna Shaktipaat Siddhi Mantra

Om aim hreem kleem kreem kreem hoom jaagray sfotay sfotay fatt.

This should be done for seven consecutive days, Light the lamp in sadhna period only. Not needed on continuity (Akhand) follow all general instruction same as any sadhna. On last day after chanting wear that rosary for 40 days while worshipping time and after place it again at puja place. Repeat it every day till 40 days. While in sadhna period sudden hotness would arise in body, body heat would increase so increase your milk intake. Body pain will be there as the astral form of Shaktipaat’s sharp energy flows drastically in each cell of our body. Facial glow would increase day by day. Eyes would become more attractive and effective. You only can experience the after effects of this sadhna. What needed is complete belief on sadhna in personal life rest things are automatically managed for you
   
   
                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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1 comment:

Neeraj Kumar said...

Jai Gurudev Issi Prakar apni kripa hum par karte rahein......