Sunday, March 4, 2012

बीजोक्त तन्त्रं- अणु परिवर्तन सौभाग्य तारिणी प्रयोग (BEEJOKT TANTRAM- ANU PARIVARTAN SOUBHAGYA TARINI PRAYOG)



 राज्ञि चामात्यजो दोषः पत्नीपापं स्वभर्त्तरि |
तथा शिष्यार्जितम् पापं गुरु: प्राप्नोति निश्चितं ||”   
सार संग्रह में कहा गया है की मंत्रियों के द्वारा की गयी त्रुटियों का फल राजा को भोगना पड़ता है,पत्नी के पाप से पति अछूता नहीं रह सकता उसी प्रकार शिष्य जिस भी पाप में संलग्न होता है उसके प्रतिफलों का भुगतान गुरु को भी करना पड़ता है |
उपरोक्त उक्ति को सदैव ही हृदयंगम करके तदनुरूप विचार और व्यवहार करना ही शिष्यत्व की सार्थकता कहलाती है | किन्तु ये सब इतना सहज नहीं है,मनुष्य गलतियों का पुतला होता है और लाख प्रयास करने पर भी प्रारब्ध,संचित कर्मों से वो अछूता नहीं रह सकता है | रही बात क्रियमाण अर्थात वर्तमान के कर्मों की तो शायद उसे हम बेहतर तरीके से सम्पादित करने का प्रयास कर सकते हैं किन्तु अन्य दो पर अंकुश लगा पाना सरल कार्य नहीं है | उन्ही कर्मों की भुक्ति हेतु कालाग्नि हमारा क्षय करती है और उसकी अग्नि में हमारा क्षरण होते होते एक ऐसा समय आता है जब हम समाप्त हो जाते हैं | अर्थात हमारे प्रयत्नों की चरम पराकाष्ठा के बाद भी हम जिन पाप फलों को भोगते हैं हमारे उन्ही पाप फलों को नष्ट करने में सद्गुरु की तपस्या का बड़ा हिस्सा लग जाता है |
वस्तुतः हमारे शरीर का जिन अणुओं से या कणों से निर्माण होता है,उपरोक्त तीन प्रकार के कर्मों की वजह से इन अणुओं का एक बड़ा भाग विकृत आवरण से ढका रहता है और इस आवरण रुपी मल को नष्ट करने में हमारे पुण्य कर्म लगातार कार्य करते रहते हैं और यदि भाग्य अच्छा रहा और इसी जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति हो गयी तो वे अपनी साधना शक्ति या प्राण उर्जा से शिष्य या साधक की ज्ञानाग्नि को प्रज्वलित कर देते हैं और शिष्य उस ज्ञानाग्नि में निरंतर मंत्र का ग्रास देता हुआ उस अग्नि की तीव्रता को बढ़ा कर विकृत आवरण को भस्मीभूत करने की और अग्रसर हो जाता है और यदि उस अग्नि को वो सतत तीव्र रख पाया तो वो अपने लक्ष्य को प्राप्त ही कर लेता है,तब शेष रह जाते हैं तो उसकी विशुद्धता और विशुद्धता का निर्माण करने वाले विशुद्ध अणु |
“यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे” की उक्ति पर क्या कभी विचार किया है,अरे भाई उसी में तो सारा रहस्य निहित है,बस आवश्यकता है उस उक्ति के गूढार्थ को समझने की | और जिस दिन हम इस अर्थ को समझ गए तब हमें ज्ञात हो जायेगा की आखिर मनुष्य को ईश्वर की सर्वोत्तम कृति क्यूँ कहा जाता है | जी हाँ मनुष्य ही तो सर्वोत्तम कृति है नहीं तो उपरोक्त उक्ति की जगह “यत् देवे तत् ब्रह्मांडे” भी कहा जा सकता था, क्योंकि मनुष्य की दृष्टि में देव वर्ग सर्वोत्तम योनि हैं| किन्तु ये पूर्ण सत्य नहीं है वस्तुतः देव योनि भोग योनि है,उन्हें जिन कार्यों के लिए उस परम तत्व ने निर्मित किया है वे मात्र उन्ही कार्यों के लिए उद्दिष्ट होते हैं कभी भी उससे कम या ज्यादा कार्य वो सम्पादित नहीं कर सकते हैं,अर्थात जल का कार्य मात्र भिगोना है वो दहन करने या सुखाने का कार्य नहीं कर सकता है,प्राकृतिक शक्ति का रूप होने के कारण उनकी इच्छा शक्ति,क्रिया शक्ति और उनकी ज्ञान शक्ति निश्चित होती है | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शिव और शक्ति के सम्मिलित रूप से उपजा है और इसके प्रत्येक कण और उस कण का निर्माण करने वाले सभी अणुओं में उनकी ही तो उपस्थिति है क्यूंकि वे ही सत्य हैं और हैं विशुद्ध भी | जीवन की तीन ही तो अवस्था हैं सृजन,पालन और संहार | जन्म का कार्य सृजन तत्व का है जिसे ज्ञान शक्ति निष्पादित करती है और ब्रह्मा इसे गति देते है,सृजन के पश्चात पालन तत्व की अवस्था की उत्प्रेरणा इच्छाशक्ति प्रदान करती है और संहार तत्व की उपस्थिति परिणाम है क्रिया शक्ति का | मात्र मनुष्य में ही ये क्षमता है की वो इन तीनों शक्ति की मात्र प्रचुर से प्रचुरतम कर सके,क्योंकि उसकी देह अर्थात पिंड का निर्माण जिन अणुओं से होता है वे अणु इन्ही त्रयी शक्तियों से परिपूर्ण होते हैं,किन्तु मात्र मल आवरण से ढके होने के कारण मनुष्य उन शक्तियों का समुचित प्रयोग नहीं कर पाता है,देव वर्ग भी इन्ही कणों से बनते हैं किन्तु जिस कार्य के लिए वे उद्दिष्ट हैं उससे कम या ज्यादा की न तो उनमे क्रिया शक्ति ही होती है न इच्छा शक्ति ही | वस्तुतः कुंडलिनी की गुप्तता के कारण ही देव वर्ग की शक्ति की सीमा होती है, वे अपनी इच्छाओं को ना ही बढ़ा सकते हैं और ना ही क्रिया को तीव्रता दे सकते हैं,हाँ ये अवश्य है की जो शक्ति उनमे होती है वो विशुद्ध रूप में होती है और रूप भी कर्म गत मल से मुक्त होता है |मात्र हम में ही कुंडलिनी का स्वरुप प्रकट अवस्था में होता है और हम ज्ञान,इच्छा और क्रिया शक्ति की तीव्रता या मात्र को बढ़ा या घटा सकते हैं,इसी कारण उस परम तत्व को भी अवतार के लिए नर देह ही चुनना पड़ता है |मनुष्य का सम्पूर्ण शरीर इन्ही उर्जा और शक्ति कणों से निर्मित होता है | आवशयकता है इन शक्ति अणुओं द्वारा निर्मित कणों को कर्मगत मलावरण से मुक्त कर देने की |तब मात्र विशुद्धता ही शेष रह जायेगी और इसके बाद सफलता,ऐश्वर्य, सौभाग्य और पूर्णत्व की प्राप्ति तो होगी ही|
जिस दुर्भाग्य के कारण पग पग पर अपमान,निर्धनता,अवसाद,अवनति और अपूर्णता की प्राप्ति होती है यदि उस दुर्भाग्य को ही भस्मीभूत कर दिया जाये तो शिवत्व की प्रखरता और निखर कर हमारे सामने दृष्टिगोचर होती है | तब ना तो पग पग पर कोई अपमान होता है और न तिल तिल कर मरना ही,तभी “मृत्योर्मा अमृतं गमय” का वाक्य सार्थक होता है |
  होली का पर्व ऐसा ही पर्व होता है जो विविध सफलतादायक योगों से निर्मित होता है और इस रात्री को जब होलिका दहन का मुहूर्त होता है तो वस्तुतः वो मुहूर्त दुर्भाग्य दहन का मुहूर्त है,सदगुरुदेव बताते थे की ये संक्रांति काल है,ये मुहूर्त है ब्रह्मांडीय जागृति और ब्रह्मांडीय चेतना प्राप्ति का,इस काल विशेष में साधनाओं के द्वारा जहाँ मनोकामना पूर्ती में सफलता पायी जा सकती है वही यदि गुरु कृपा हो तो उन रहस्यों का भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है जिनके द्वारा अणुओं को मलावरणों से मुक्त कर उनकी नकारात्मकता को हटाया जा सकता है और उन का परिवर्तन सकारात्मकता में करके पूर्ण चेतना और विशुद्धता की प्राप्ति की जा सकती है | इस संक्रांत काल में परिवर्तन से सम्बंधित साधनाओं को कही अधिक सरलता से संपन्न कर सफल हुआ जा सकता है |
भगवती तारा का एक स्वरुप ऐसा भी है जिसे सहस्त्रन्वित्देहा तारा या सौभाग्य तारिणी कहा जाता है और ये स्वरुप शिवअवतार जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य जी द्वारा प्रणीत है,इस स्वरुप का अर्थ है जिनकी सहस्त्र देह हो और जो अपनी अनंत वेधन क्रिया द्वारा साधक के अणु-अणु में पूर्ण परिवर्तन कर देती है चाहे उसका कैसा भी दुर्भाग्य हो प्रारब्ध कर्म जनित दोष और श्राप से वो शापित हो तब भी ये प्रयोग उसके दोषों को निर्मूल कर उसे पूर्णत्व,सौभाग्य,सम्मोहन,ऐश्वर्य और सफलता की प्राप्ति करवाता ही है.इसे संपन्न करने के दो तरीके मुझे मास्टर से मिले हैं और उन्होंने सदगुरुदेव से प्राप्त दोनों पद्धतियों का प्रयोग कर स्वयं अनुभव किया हैं उनमे से जो अत्यधिक सरल और मात्र एक दिवसीय पद्धति को मैं यहाँ दे रही हूँ,जिसके द्वारा मात्र होलिका दहन के मुहूर्त का प्रयोग कर इसे पूर्णता दी जा सकती है | जो दीर्घ पद्धति है वो कठिन भी है और उसमे सामग्रियों की बहुलता भी प्रयुक्त होती है |किन्तु एक दिवसीय प्रयोग में ऐसा नहीं है | होली की प्रातः सदगुरुदेव का पूर्ण पूजन संपन्न कर १६ माला गुरु मंत्र की संपन्न करे और उनके चरणों में प्रार्थना करे की वे हमें इस अद्विय्तीय और गुप्त विधान को करने की अनुमति और सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करे, और संकल्प ले की “जबसे मेरा जन्म हुआ है तबसे जिन भी कर्मों के परिणाम स्वरुप जिन न्यूनता को मैं इस जीवन में भोग रहा हूँ, और जिस भी परिस्थितियों की वजह से मैं अभाव और दुर्भाग्य को जीता हुआ अपूर्णता युक्त जीवन जी रहा हूँ,उन सभी परिस्थितियों और दोषों का निर्मूलन हो और मैं विशुद्ध देह की प्राप्ति का देव्यत्व पथ की और अग्रसर हो पूर्णत्व प्राप्त करू,यही आप मुझे इस साधना के प्रतिफल में वरदान दे” |
  तत्पश्चात पूरे दिन भर सात्विक भाव का पालन करते हुए सदगुरुदेव और भगवती तारा का चिंतन करे और होलिका दहन के ४५ मिनट पहले ही सफ़ेद आसन पर सफ़ेद या गुलाबी वस्त्र पहन कर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाये सामने बाजोट पर गुलाबी वस्त्र बिछा हुआ हो,और उस वस्त्र पर कुमकुम से रंजित चावलों की ढेरी पर सदगुरुदेव का चित्र और यन्त्र स्थापित हो,सदगुरुदेव के चित्र के सामने कुमकुम से एक अधोमुखी त्रिकोण (अर्थात जिसका मुख नीचे की तरफ हो) का निर्माण कर उसमे “ह्रीं” बीज अनामिका ऊँगली से अंकित करे | और उस बीज पर पंचमुखी रुद्राक्ष,गोमती चक्र या फिर एक साबुत सुपारी की स्थापना कर दे |इसके बाद सदगुरुदेव और भगवान गणपति का पूजन संपन्न करे और गुरु मंत्र की ५ माला तथा “गं श्रीं गं”(GAM SHREEM GAM) की ५ माला संपन्न करे और उसके बाद सदगुरुदेव को पुनः भगवती तारा का स्वरुप मानकर पूजन संपन्न करे,पूजन कुमकुम मिश्रित अक्षत,गुलाब पुष्प,केसर मिश्रित खीर,पान और लौंग से करे तथा दक्षिणा के रूप में कुछ धनराशी अर्पित कर दे,याद रखे दक्षिणा राशि इतनी ना हो की उसे गुरुधाम भेजने में हमें खुद शर्म आ जाये,गुरु,मंत्र और मंत्र देवता में कोई अंतर नहीं होता है,अतः पूर्ण समर्पण भाव से पूजन करे औए घृत दीपक को उस त्रिकोण के दाहिने अर्थात अपने लेफ्ट (बाएँ) हाथ की तरफ स्थापित करना है, उस सुपारी और दीपक का पूजन भी उपरोक्त सामग्रियों से ही करना है ,तत्पश्चात स्फटिक,सफ़ेद हकीक,रुद्राक्ष,कमल गट्टे या मूंगा माला से २१ माला मंत्र जप स्थिर भाव से करे | इस मंत्र में कोई ध्यान मंत्र नहीं है मात्र सदगुरुदेव का चिंतन करते हुए ही इस मंत्र को करना है,इस मंत्र में मात्र उन्ही का ध्यान ही सर्वोपरि है,वे ही पूर्णत्व देने वाले हैं | जप काल में होने वाली भाव तीव्रता को आप स्वयं ही अनुभव करेंगे,अणुओं में हो रहे संलयन और विखंडन से शरीर का ताप बढ़  जाता है और दो तीन दिन तक बुखार हो जाता है,ऐसे में घृत मिला दूध का सेवन करे | इस क्रिया में जिस अद्विय्तीय मंत्र का प्रयोग होता है वो निम्नानुसार है,इस मंत्र को अणु परिवर्तन सहस्त्रन्वित्देहा तारा या सौभाग्य तारिणी  मंत्र कहा जाता है |
     ओम ह्रीं ह्लीं ह्लीं औं औं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं हुं हुं हुं फट्
OM HREENG HLEEM HLEEM OUNG OUNG HREENG HREENG HREENG KREENG KREENG HUM HUM HUM PHAT
इस क्रिया को संपन्न करने के बाद स्वतः ही कुंडलिनी में स्पंदन,ऐश्वर्य,त्रयी शक्तियों की तीव्रता,सम्मोहन और उपरोक्त वर्णित तथ्यों की प्राप्ति होते जाती है और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है की हमारे देह अणु दोष मुक्त हो जाते हैं जिसके कारण हमारे कर्म फल हमारे गुरु को नहीं भोगने पड़ते हैं, इसी प्रयोग के बाद सद्गुरु कृपा करके साधक को इस साधना का अगला चरण “स्वतः भाग्यलेखन साधना” का रहस्य प्रदान कर देते हैं जिससे वो अपना भाग्य स्वयं लिख कर ब्रह्म्भावी हो जाता है | होली के पावन पर्व पर इससे उत्कृष्ट रहस्य भला और क्या हो सकता है और वो भी मात्र एक दिन का प्रयोग | हाँ हम निश्चय ही इस साधना को संपन्न कर विशुद्ध हो जाते है किन्तु आगे जान बूझ कर पाप कर्म करना तो न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है,समझदार को संकेत मात्र पर्याप्त है |
“निखिल प्रणाम एवं जय सदगुरुदेव”
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 raagni chaamaatyajo doshah patnipaapam svabhatrtari|
Tatha shishyarjitam paapm guruh prapnoti nischitam||”


it is said in Saar Sangrah that king will suffer for the mistakes made by ministers, husband will also not have relief from the sins of the wife same way Guru also pays for negative results occurred with sinful tasks of the disciple.
                                            
To establish these above lines in heart and to think and act accordingly is the significance of the disciple hood. But all these things are not so easy, human is full of mistakes and after putting many efforts too, one cannot save self from the actions accumulated through fate. About kriyamaan or the current situation; we can try to make it proper balanced it is not easy task to on two other parts. For the action pay of the same karma kaal or time keeps on decay our existence and there comes a times when we are no more. This means that with our extreme efforts too, the results we have because of our sins, to vanish those sin effects big part of Sadgurudev’s energy is required.

Actually, the particles or atoms through which our body is meant, with effect of above three types of karma big part of these particles get covered with negative cover and to vanish the dirt acting cover, our boons keeps on working and if fate acts nice then knowledge in the form of fire is awaken and disciple will move ahead to burn the negative cover by increasing this fires with offerings and if this fire is awaken with extreme then one will achieve the desired level. And there left behind is only purity and purity generating pure particles.

yat pinde tat bramhaande” ever thought on these lines, all the secrets are merged in this only, what is the basic necessity is to understand the secret meaning properly. And the day when we will understand this, we will also have the knowledge that why human is called best creation of god. Yes, human is best creature or else in the above line it would have “ yat deve tat bramhaande” because deva yoni or gods are best elytrons but this is not complete fact, actually Deva yoni is Bhoga yoni, those can complete the task for which they are made by Param Tatv and at anytime they cannot do anything more or less apart from the assigned like water can give effect of making wet but it cannot do the task of burning or drying, as being natural power; fixed form of kriya power, ichha power and gyan power stays in those. Whole universe has come out with shiva and shakti’s merge and in every particles and atoms their presence is natural as they are the universal truth and pure. There are three situations in the life, creation, adherence and destruction. Birth task is of creation tatva work which is executed by knowledge power and Bramhaa gives supplement of the process. After creation; adherence is provided by ichcha shakti or will power and destruction is the result of the Kriya process. Only human have the capacity to increase and decrease the amount of these powers, because the particulars which makes the body are filled with all three energy but just because of the dirt cover human cannot use these powers. Gods are even made of these atoms but they cannot make any task ahead then they are meant for neither they have kriya shakti or ichha shakti for the same. Actually, because of the secret Kundalini Dev Yoni have the limitation of the power generation, they cannot increase the will neither they can supplement power of process. Yes it is fact that the power they have is completely pure and free from all impurities. Only we humans have the kundalini in awaken form and we can increase or decrease amount of Gyan,Kriya or Ichha powers, and that is the reason that the Param tatva also needs human form for incarnation. Human body is made of these power and atoms only. Necessity is to make it free from the cover of impurities. And then after the only thing which will remain behind is purity and one will get success, prosperity, welfare and completeness.



The misfortune which leads to the humiliation, poverty, depression, decline and incompleteness; if the same misfortune is burnt one can start looking the power of shivatva within. And then there would be no more humiliation on every steps and there would be no more every step death then only the sentence becomes meaningful “mrutyormaa amrutam gamay

The festival time of Holi is made of various success provider times and the time of Holika dahan is the actual time of misfortune burning, sadgurudev used to say that this is Sankraanti time, this is the auspicious time for activation and gaining of universal powers, on one side by doing sadhana in this particular time duration one may achieve success in wish fulfilling; on other hand if blessings of the Guru is remain, one can also have the knowledge of the secrets through which particles could be made free from the cover of impurities and those could be modulated in positive way to achieve complete activeness and purity. In this sankraanti time sadhana related to modulation or change could be completed in ease and success could be gained.
Bhagavati tara’s one form is there which is called sahastranvitdehaa tara or Saubhagy Tarini and this form is made popular by ShivAvataar jagat Guru Adya Shankaracharya ji. The meaning of this form is the one who have thousand bodies and with process of infinite transformation in each particle in the body rather there would be any misfortune or obstacles of karma or curses then too this prayog can vanish all the negative effects results in completeness fortune attraction prosperity and success. I received two ways from master to complete this procedure and by receiving both process from sadgurudev he experienced both; from the same the process which is very easy and only one day time duration considered is given here, with which at holika dahan muhurt one can have success. The other process is long and requires many materials. But in this single day prayog there is no such needs. On the holi morning one should do poojan of Sadgurudev and do 16 rosary of Guru Mantra and should pray in his feet for the permission to accomplish this incomparable and secret process with blessings of success. After that one should take sankal that “from my birth till now, deficiency in the life which I am getting because of the Karma results and with the all such situations I am living my life in lack and un-fortune, all those situation and defects should be remove and with a complete pure body I should step forwards on the divine path to achieve success, please grant a prayer by giving me this bliss.”

After that for whole day stay in thinking of sadgurudev and bhagavati tara with Saatvik Bhaav and 45 minutes before holika dahan one should sit on white aasan wearing white or pink cloths facing east direction. One the wooden mate in front one should place pink cloth, establish sadgurudev’s picture and yantra on agglomerate of the rice coloured with red vermillion. In front of sadgurudev’s picture prepare downward triangle (mouth of which should be down side) and write “ Hreem” beeja with Anamika finger in it. Place Panchmukhi Rudraksh, Gomati chakra or whole betel nut on the same. After that do poojan of sadgurudev and Lord Ganpati and 5 rosary of Guru Mantra and 5 rosary of “GAM SHREEM GAM” should be done and by believing sadgurudev in the form of Bhagwati tara one should do poojan with red vermillion coloured rice, rose, saffron flavoured Kheer, eating leaf (paan) and cloves and place some money in the form of dakshina, remember that Dakshina money should not be so less that one should feel ashamed to offer it to guru house. Guru, Mantra and gods are not separable. Thus with full devotion one should do poojan and one should establish Ghee lamp on the left side of the triangle, one should do poojan of the lamp and betel nut with other materials. After that with Sfatik, White hakeek, Rudraksh, Kamalgatta or munga rosary with any of these rosary one should chant 21 rounds of the mantra concentrating. This mantra have no meditation mantra so with sadgurudev in mind one should complete mantra chanting, it is important to do sadgurudev’s meditation in this mantra.




One can self experience the heat during the mantra chanting and with transformation of the particulars and atoms temperature of the body increases and fever remains for 2-3 days. In such situation one should have milk with purified butter (ghee). In this process, the amaizing mantra is as followed. This mantra is called Anu Parivartan Sahastranvitdehaa tara or Saubhagy taarini mantra.

OM HREENG HLEEM HLEEM OUNG OUNG HREENG HREENG HREENG KREENG KREENG HUM HUM HUM PHAT

After completing this process sadhak will achieve vibration in the kundalini, prosperity, rapidity in the three basic powers, attraction and other discussed points which include most important fact that our body becomes free from all the defects and with which our negative effect does not applied to be suffered by Guru. After this prayog, with a blessing of sadguru one receives next step sadhana secret “swatah Bhaagyalekhan sadhana” with which one can write their own fortune by merging self in universe. On this auspicious time of Holi what would be more revealed secret then this and that too only one day Prayog. Yes here we becomes pure after completing the process but further it is not smartness to move on with doing bad deeds repeatedly and willingly, one should understand this fact.

“Nikhil Pranaam and Jay sadgurudev”


****ROZY NIKHIL****
   

                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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2 comments:

Nikhilshishya said...

Jai Gurudev,

Thanks for posting great sadhna..

Sadhna ke baad Gomti Chakra / Sabut Suprai / Pachamukhi Rudraksh aur gulabi vastra ka kya karna hai ?

Jai Gurudev

SAM said...

Jai Gurudev,

Thanks for posting great sadhna..

Sadhna ke baad Gomti Chakra / Sabut Suprai / Pachamukhi Rudraksh aur gulabi vastra ka kya karna hai ?

Jai Gurudev