Thursday, August 11, 2011

Mahavidya Rahsyam- Maa Bhuvneshwari Rahsyam -5


 जब तक इष्ट को समझ न ले उसके स्वरुप को ह्रदयंगम  न  कर ले ,  तो उसकी साधना  का क्या अर्थ हैं, जिन्हें  हम जानते  नहीं  जिसके स्वरुप का पता  नहीं उनके प्रति हमारा  प्रेम  हो स्नेह  हो आप ही सोचे  की यह  कैसा  होगा.  पर  जो हम चित्र  देखते हैं  के  व ह सही में उस देवता  का सही में प्रतिबिम्ब  या प्रदर्शन करता हैं ,सच    बात तो यह हैं की नहीं .. वह तो चित्र कार की किन्ही विशेष  क्षणों में  उसको  जो स्वरुप उसके  मन में/भाव में आया  उसका  प्रतिबिम्ब हैं , वह  कुछ अर्थो में सच हो सकता हैं और नहीं भी..
 पर कहीं तो शरुआत करे, सदगुरुदेव भगवान्  अपनी कृति " हिमालय  के योगियों  की गुप्त  सिद्धिया " में  लिखते हैं जब तक आपने स्वयं  उस रूप को अपनी आखों से न देख लिया  हो  तब तक आप चाहे जो भी सोचे वह सच स्वरुप  तो नहीं हो सकता और उसका ध्यान कैसे संभव हैं , पहले स्वरुप देखें  फिर स्वयम  ही उसका ध्यान आने  लगेगा  या होने लगेगा,  उसे करने की जरुरत नहीं हैं .
 पर हम सभी के साथ  इस  युग की विडंबना हैं की जब तक ऐसे   परम योगी  हमारे मध्य  थे उनको समझा नहीं , अब  उनकी बात याद करके आसूं बहाने से ...फिर  भी हमने अपने इष्ट  सदगुरुदेव भगवान् को साक्षात् देखा हैं उनकी  फोटो  /विडियो  सभी तो वह हमारे लिए उपलब्ध  कर गए हैं  जिससे की कम से कम उनका  तो सही ध्यान कर सके , फिर सदगुरुदेव के माध्यम से कौन सी देव शक्ति स्वयं  ही हमारे सामने   आ  न  खड़ी  होगी, एक साधे सब साधे....
 पर जो ध्यान मंत्र में बताया जाता हैं वही उस देव का सही स्वरुप होता हैं ?, सदगुरुदेव  कहते हैं सामान्यतः   जिन्होंने   प्रत्यक्ष  देखा  हैं उन्होंने  तो  दर्शन,  माँ ने   सामान्य रूप में  ही दिए हैं चाहे वह स्वामी राम कृष्ण परमहंस  या  फिर परमहंस स्वामी निगमानंद जी  हो .
 निगमानंद  जी महाराज ने  तो माँ से कहा  भी कहा  की माँ  जो सदगुरुदेव  ने आपका स्वरुप बताया था  वह तो यह नहीं हैं माँ तारा  ने मुस्कुराते हुए कहा  की वत्स  उस स्वरूप को तुम देख नहीं पाते वह पौराणिक  स्वरुप हैं पर स्वामी जीके अनुरोध पर  माँ तारा  ने अपना   दिव्य स्वरुप दिखाया  भी जिसे  देखते  हुए स्वामी जी  अचेतन अवस्था में चले गए
 तब उस ध्यान का  क्या फायदा ..
थोडा रुकिए  हैं वह ऐसे  की जिस भाव  की , जिस प्रकार  की हम साधना  करना चाहते हैं , जिस प्रकार का फल हुम चाहते हैं  उसके अनुरूप ही  वह ध्यान  बनाया  गया हैं , अन्यथा एक ही देव  देवी के इतने ध्यान  की क्या आवश्यकता हैं ,एक से ही काम चल जाता ,

इसलिए ध्यान की गरिमाँ कम नहीं होती हैं .

हमें अपने  प्रिय का ,स्नेही का , कुछ तो परिचय होना ही चाहिए ही ..

इस को ध्यान में रखते हुए कुछ सामान्य  तोकुछ  विशिस्ट  बाते माँ  के  सन्दर्भ में ..

माँ  ने चन्द्रमाँ अपने ललाट  पर धारण  कर रहा हैं  चन्द्रमाँ  जो अमृत तत्व का प्रतीक हैं , शीतलता का  प्रतीक हैं अपने  साधक /साधिका  के लिए  उनके  जीवनमे  अमृत तत्व ,  शीतलता   का  भी प्रवेश हो सके ,चन्द्र मनसो जात  के अनुसार  चन्द्रमाँ    जो मन का प्रतीक हैं ,  उसे ललाट  पर  धारण करने का अर्थ  यह भी हैं की  साधक के  जीवन/मन  में उच्च तत्व को धारण  करने के लिए आवश्यक मानसिक योग्यता  और निर्मलता हो सके ,उसके  जीवन    में भी  इतनी ही निर्मलता   का समावेश   हो सके , वह भी अमृतत्व  से  सराबोर  हो कर  इस जल रहे संसार   में  कुछ  पल शीतलता   के अन्य  दग्ध ह्रदय में  भी प्र वाहित कर सके.
 माँ ने  लाल रंग  की साड़ी धारण  कर र खी हैं  हैं  लाल रंग की उपयोगिता  तो आप   इस श्रंखला में  पढ़ ही  रह रहे हैं , पर दिव्या माँ के  कुछ इतने मनो हारी  चित्र  भी आये हैं जो दिव्या माँ के दिगंबर स्वरुप में हैं , जिन माँ ने सारे संसार का प्रसव किया हैं , उनके सामने   की दैत्य  क्या दानव  क्या देव क्या  मनुष्य   सभी शिशु  ही तो हैं , फिर शिशु  को दिगंबर माँ की स्नेहता से मतलब  वह तो उनके आँखों की करुणा और  अबोधता  में बस माँ माँ माँ  माँ  ही कह पाता  हैं शायद कई बार  वह भी नहीं....
  जीवन किउच्चता  शिशु सद्रश्य निर्मलता , अबोधता में हैं और सदगुरुदेव  का सारा  प्रयास इसी भाव को शिष्यों में लाने की कोशिश हैं  क्योंकि हम सब  तो  निर्मलता   की आड़ में कहाँ  आ गए हैं, बिना  निर्मलता   आये ..  कौन हमारे  ह्रदय  में आएगा,फिर भी सदगुरुदेव   हमारे  ह्रदय में उतर कर.....  
 अंकुश  के माध्यम  से आकर्षण और  अभय मुद्रा ,  पाश(स्तभन्न) और  वरद   मुद्रा  के माध्यम से  साधक के लिए तो सौभाग्य   के रास्ते खोल देती हैं जब माँ  ही वर हस्त खोल दे  अपने बच्चों  के  लिए  फिर....
माँ भगवती  तो  पूर्व अम्म्नायाय  की देवता हैं और पूर्व अम्न्याय  तो निर्माण का प्रतीक हैं  

कमलासिन  माँ   तो   सर्व सौभाग्य  प्रदाता  हैं और क्यों न हो  क्योंकि  जो त्रिभुवन का  अधीश्वरी  हैं ,  जब बात  १४  लोक  की हैं तो  यह लोक हैं  भूः , भुवः ,स्वः , जनः , मह, तप , सत्यम लोक  ये सात तो उर्ध्व  लोक  हैं  वहीँ  अतल, वितल, सुतल,नितल, तलातल ,रसातल  , पाताल ये निम्न  लोक हैं .

वहीँ दिगंबर स्वरुप में माँ ने छह  हाँथ  के स्वरुप में हैं जिनमे  चार में तो  माँ ने अस्त्र धारण कर रखे हैं  जिनके माध्यम से   वह निष्कंटक  रूप से संसार की पालन  में आने वाली विपत्ति  या साधक  के कष्टों  का  निर्मूलन कर रही हैं  .वहीँ शेष दो हांथो में कमल धारण किये हुए हैं जो संसार का सर्व श्रेष्ठ  पुष्प हैं जो श्रेष्ठ हो वही तो  माँ साधक को देंगी  ही . ऐसी दिव्य  के निमल स्वरुप को हम मन ह्रदय में धारण कर , आगे बढे .. इस दिव्य पथ  पर ..
आज के लिए बस इतना ही ..

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 Until  we understand the swarup (form) of our isht  and  have  that form in our heart what is the value  of the sadhana of that  isht? , if we  never  seen that isht or sadhana isht through our own eyes ,it s very hard to develop  sneh/love for them. think about a  minute, without knowing how sneh can be develop. But whatever photograph  or painting we saw/available to us  , is it representing  true form of that isht ?. ….No… this  is just the imagination of the painter  with a specific thought and  specific feeling lies in his heart at that special  moment so  what  he draw and that may be true or wrong  in varying  percentage.
 But we have to start our journey  from  some  point. Sadgurudev Bhagvaan mentioned in his famous book”himalay  ke yogiyon  ki  gupt siddhyaan”  ..until you  have  seen yourself the  true form of  your isht or sadhana deity how  you could be able to had  true dhyan of that isth.(and without that attaining success in the sadhana always becomes  questionable) Think about that, when you had seen yourself  , than  you would  not  do  hard work/imagination   for  dhyan  , but it would happened automatically.
 But its  very unfortunate that , in this era , neither we  and  nor other also , could  understand the value of our Sadgurudev, when he was present with us in physical   form .and after that so  what is the value of our tears now(in some sense)….   who could not get /take  the benefit of his presence But its true that some of us  had seen our  beloved Sadgurudev jis  true physical  form through our own eyes  , and  for some still can see his  photographs(now)  this means  that  at least we have seen  out isht.  than if now, we do dhayan of our  isht (Sadgurudev ji)  than  its would be a true one, and with that (through Sadgurudev ji) we can  go for other deity,, and it has been said that  ek sadhe sab sadhe ..(  roughly meaning is --if you control  one , through that  you can control  all..)
whatever mentioned or  told/written  in dhyan , its true? Sadgurudev Bhagvaan used to say that those who did the sadhana and able to saw her,  told us that  divine mother  give their darshan in normal  human formeither  he was swami Ramakrishna  paramhans  or paramhans nigmanand ji maharaja.
   Even  on that  time (when ma tara appeared before swami ji) swami nigmanand ji maharaja told  ma  tara,” maa  your swarup is not matching  what have  been told by my Sadgurudev”  mother tara smiling replied.“My child you are  still not capable to see that puranik age form, that is too furious, you will get fear ”  but on the swami ji  request mother showed him  the vision,  and on seeing that  swamiji  went  unconscious.
 Than if that dhyan is not true,, than what is the value of dhyan.?
Just wait , the bhav, with whom we want to do sadhana, or  the bhav related to  type of our sadhana . Or   if anyone want a specific result  and divine mother form related to that , a particular dhyan has been made, otherwise why so many  dhyan is needed. Only one is enough.
  So never underestimate the value of dhyan.
 But still their may be  some little introduction of our isht  is  necessary.
 Taking care this fact here some general and some special point about the divine mother.
 Mother  has moon in her  fore head, moon is the representation of  amrit tatv, and for coolness, so that her sadhak also enjoy  coolness andamrit tatv in his material and spiritual life..”chandrama manso jaat” according to this  moon  represent  mind or man, and  having  in her  forehead  also mean that   sadhak or sadhika must have or cultivate that  high spiritual point  or stage or must achieve  such a  purity of body and mind. And  in any one  will have this  amrit tatv and  coolness than  he will be like a  fountain in the desert, and able to  give some  relief, to the broken hearts.
 Mother has wearing the red color sari, what does  the red color mean  we already discussed in previous articles, but we also  have seen s o  many   painting when  divine mother’s digamber form painted, what is the meaning of that. The mother  who  provide birth to both evil and  good /man and demon, means whole world, for her, every one is  just  a new born,, and for  new  born only mother caring is needed, no other thing is need when his mother is with him he has everything.
 The greatness of life lies, in purity in  heart  and  child like  heart ( not childish heart) and Sadgurudev  wanted  that  , again we all ,will get that  purity   what we  have lost, without achieving that  ,reaching the spiritual  height is almost impossible. but  we all  due  to our  own mistakes destroyed that simplicity and that purity of heart   but even seeing this   Sadgurudev  enters in  our heart ….
  Through ankush mudra – aakarshan , and  from pash   --linked to stambhann. And  varad mudra  related to  give every possible boon  to the sadhak, when mother is ready to give, what more is needed,
 Ma bhagvati belongs to purv ammnayay  , and  purv ammnayay  related to  the creation of world.
 Divine mother who sit on lotus asan, what  not able to give  her sadhak, since she is the ruler of all the 14 loks, what are they,, bhu lok ,  bhuvah lok,swah lok ,jan lok ,tap  lok, mah  lok, satyam lok,are the seven upper sphere lok, and  atal, vital, sutal, natal, talatal,rasatal, pataal,  are  the seven  lower sphere lok.
 In the digamber form mother has  six hand , and in four hand she is having weapons why, to  create and care/protection  the  whole universe without any problem, and also  to  give  full protection to her sadhak,, and in remaining two hand she has  lotus ,  that represent mother will give to her child whatever is the  best possible for  him.
So  to have this swarup in our heart, and in our soul, we all have to progressed on this divine form.
  This is  enough  for today.

****NPRU****
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4 comments:

Sachin said...

Please correct your spelling to below

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Spirit said...

Sir,
please correct the email adress to :
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and i also would like to ask you if the monthly free e magazine for August is been published ?
i have not got the copy of it, i have got he perious issue but not the August issue. Please advice, thank you .

jay gurudev,

Anu said...

Dear friends,
1 email id -nikhilalchemy2@yahoo.com to properly work kar raha hain , ho sakta hain kuchh probs us din rahi ho,
i checked personally and it was found woking smoothly .
2, august issue of tantra kaumudi is still not publish so you have to wait a little.
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if still any problem kindly do contact us.
smile
Anu

ANN said...

भाई
तंत्र कौमुदी का छटवा अंक मुझे अभितक नही मिला। कोई समस्या तो नही? कृपा करके भेज दिजिये।
धन्यवाद