जब तक इष्ट को समझ न ले उसके स्वरुप को ह्रदयंगम न कर ले , तो उसकी साधना का क्या अर्थ हैं, जिन्हें हम जानते नहीं जिसके स्वरुप का पता नहीं उनके प्रति हमारा प्रेम हो स्नेह हो आप ही सोचे की यह कैसा होगा. पर जो हम चित्र देखते हैं के व ह सही में उस देवता का सही में प्रतिबिम्ब या प्रदर्शन करता हैं ,सच बात तो यह हैं की नहीं .. वह तो चित्र कार की किन्ही विशेष क्षणों में उसको जो स्वरुप उसके मन में/भाव में आया उसका प्रतिबिम्ब हैं , वह कुछ अर्थो में सच हो सकता हैं और नहीं भी..
पर कहीं तो शरुआत करे, सदगुरुदेव भगवान् अपनी कृति " हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धिया " में लिखते हैं जब तक आपने स्वयं उस रूप को अपनी आखों से न देख लिया हो तब तक आप चाहे जो भी सोचे वह सच स्वरुप तो नहीं हो सकता और उसका ध्यान कैसे संभव हैं , पहले स्वरुप देखें फिर स्वयम ही उसका ध्यान आने लगेगा या होने लगेगा, उसे करने की जरुरत नहीं हैं .
पर हम सभी के साथ इस युग की विडंबना हैं की जब तक ऐसे परम योगी हमारे मध्य थे उनको समझा नहीं , अब उनकी बात याद करके आसूं बहाने से ...फिर भी हमने अपने इष्ट सदगुरुदेव भगवान् को साक्षात् देखा हैं उनकी फोटो /विडियो सभी तो वह हमारे लिए उपलब्ध कर गए हैं जिससे की कम से कम उनका तो सही ध्यान कर सके , फिर सदगुरुदेव के माध्यम से कौन सी देव शक्ति स्वयं ही हमारे सामने आ न खड़ी होगी, एक साधे सब साधे....
पर जो ध्यान मंत्र में बताया जाता हैं वही उस देव का सही स्वरुप होता हैं ?, सदगुरुदेव कहते हैं सामान्यतः जिन्होंने प्रत्यक्ष देखा हैं उन्होंने तो दर्शन, माँ ने सामान्य रूप में ही दिए हैं चाहे वह स्वामी राम कृष्ण परमहंस या फिर परमहंस स्वामी निगमानंद जी हो .
निगमानंद जी महाराज ने तो माँ से कहा भी कहा की माँ जो सदगुरुदेव ने आपका स्वरुप बताया था वह तो यह नहीं हैं माँ तारा ने मुस्कुराते हुए कहा की वत्स उस स्वरूप को तुम देख नहीं पाते वह पौराणिक स्वरुप हैं पर स्वामी जीके अनुरोध पर माँ तारा ने अपना दिव्य स्वरुप दिखाया भी जिसे देखते हुए स्वामी जी अचेतन अवस्था में चले गए ,
तब उस ध्यान का क्या फायदा ..
थोडा रुकिए हैं वह ऐसे की जिस भाव की , जिस प्रकार की हम साधना करना चाहते हैं , जिस प्रकार का फल हुम चाहते हैं उसके अनुरूप ही वह ध्यान बनाया गया हैं , अन्यथा एक ही देव देवी के इतने ध्यान की क्या आवश्यकता हैं ,एक से ही काम चल जाता ,
इसलिए ध्यान की गरिमाँ कम नहीं होती हैं .
हमें अपने प्रिय का ,स्नेही का , कुछ तो परिचय होना ही चाहिए ही ..
इस को ध्यान में रखते हुए कुछ सामान्य तोकुछ विशिस्ट बाते माँ के सन्दर्भ में ..
माँ ने चन्द्रमाँ अपने ललाट पर धारण कर रहा हैं चन्द्रमाँ जो अमृत तत्व का प्रतीक हैं , शीतलता का प्रतीक हैं अपने साधक /साधिका के लिए उनके जीवनमे अमृत तत्व , शीतलता का भी प्रवेश हो सके ,चन्द्र मनसो जात के अनुसार चन्द्रमाँ जो मन का प्रतीक हैं , उसे ललाट पर धारण करने का अर्थ यह भी हैं की साधक के जीवन/मन में उच्च तत्व को धारण करने के लिए आवश्यक मानसिक योग्यता और निर्मलता हो सके ,उसके जीवन में भी इतनी ही निर्मलता का समावेश हो सके , वह भी अमृतत्व से सराबोर हो कर इस जल रहे संसार में कुछ पल शीतलता के अन्य दग्ध ह्रदय में भी प्र वाहित कर सके.
माँ ने लाल रंग की साड़ी धारण कर र खी हैं हैं लाल रंग की उपयोगिता तो आप इस श्रंखला में पढ़ ही रह रहे हैं , पर दिव्या माँ के कुछ इतने मनो हारी चित्र भी आये हैं जो दिव्या माँ के दिगंबर स्वरुप में हैं , जिन माँ ने सारे संसार का प्रसव किया हैं , उनके सामने की दैत्य क्या दानव क्या देव क्या मनुष्य सभी शिशु ही तो हैं , फिर शिशु को दिगंबर माँ की स्नेहता से मतलब वह तो उनके आँखों की करुणा और अबोधता में बस माँ माँ माँ माँ ही कह पाता हैं शायद कई बार वह भी नहीं....
जीवन किउच्चता शिशु सद्रश्य निर्मलता , अबोधता में हैं और सदगुरुदेव का सारा प्रयास इसी भाव को शिष्यों में लाने की कोशिश हैं क्योंकि हम सब तो निर्मलता की आड़ में कहाँ आ गए हैं, बिना निर्मलता आये .. कौन हमारे ह्रदय में आएगा,फिर भी सदगुरुदेव हमारे ह्रदय में उतर कर.....
अंकुश के माध्यम से आकर्षण और अभय मुद्रा , पाश(स्तभन्न) और वरद मुद्रा के माध्यम से साधक के लिए तो सौभाग्य के रास्ते खोल देती हैं जब माँ ही वर हस्त खोल दे अपने बच्चों के लिए फिर....
माँ भगवती तो पूर्व अम्म्नायाय की देवता हैं और पूर्व अम्न्याय तो निर्माण का प्रतीक हैं
कमलासिन माँ तो सर्व सौभाग्य प्रदाता हैं और क्यों न हो क्योंकि जो त्रिभुवन का अधीश्वरी हैं , जब बात १४ लोक की हैं तो यह लोक हैं भूः , भुवः ,स्वः , जनः , मह, तप , सत्यम लोक ये सात तो उर्ध्व लोक हैं वहीँ अतल, वितल, सुतल,नितल, तलातल ,रसातल , पाताल ये निम्न लोक हैं .
वहीँ दिगंबर स्वरुप में माँ ने छह हाँथ के स्वरुप में हैं जिनमे चार में तो माँ ने अस्त्र धारण कर रखे हैं जिनके माध्यम से वह निष्कंटक रूप से संसार की पालन में आने वाली विपत्ति या साधक के कष्टों का निर्मूलन कर रही हैं .वहीँ शेष दो हांथो में कमल धारण किये हुए हैं जो संसार का सर्व श्रेष्ठ पुष्प हैं जो श्रेष्ठ हो वही तो माँ साधक को देंगी ही . ऐसी दिव्य के निमल स्वरुप को हम मन ह्रदय में धारण कर , आगे बढे .. इस दिव्य पथ पर ..
आज के लिए बस इतना ही ..
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Until we understand the swarup (form) of our isht and have that form in our heart what is the value of the sadhana of that isht? , if we never seen that isht or sadhana isht through our own eyes ,it s very hard to develop sneh/love for them. think about a minute, without knowing how sneh can be develop. But whatever photograph or painting we saw/available to us , is it representing true form of that isht ?. ….No… this is just the imagination of the painter with a specific thought and specific feeling lies in his heart at that special moment so what he draw and that may be true or wrong in varying percentage.
But we have to start our journey from some point. Sadgurudev Bhagvaan mentioned in his famous book”himalay ke yogiyon ki gupt siddhyaan” ..until you have seen yourself the true form of your isht or sadhana deity how you could be able to had true dhyan of that isth.(and without that attaining success in the sadhana always becomes questionable) Think about that, when you had seen yourself , than you would not do hard work/imagination for dhyan , but it would happened automatically.
But its very unfortunate that , in this era , neither we and nor other also , could understand the value of our Sadgurudev, when he was present with us in physical form .and after that so what is the value of our tears now(in some sense)…. who could not get /take the benefit of his presence But its true that some of us had seen our beloved Sadgurudev jis true physical form through our own eyes , and for some still can see his photographs(now) this means that at least we have seen out isht. than if now, we do dhayan of our isht (Sadgurudev ji) than its would be a true one, and with that (through Sadgurudev ji) we can go for other deity,, and it has been said that ek sadhe sab sadhe ..( roughly meaning is --if you control one , through that you can control all..)
whatever mentioned or told/written in dhyan , its true? Sadgurudev Bhagvaan used to say that those who did the sadhana and able to saw her, told us that divine mother give their darshan in normal human formeither he was swami Ramakrishna paramhans or paramhans nigmanand ji maharaja.
Even on that time (when ma tara appeared before swami ji) swami nigmanand ji maharaja told ma tara,” maa your swarup is not matching what have been told by my Sadgurudev” mother tara smiling replied.“My child you are still not capable to see that puranik age form, that is too furious, you will get fear ” but on the swami ji request mother showed him the vision, and on seeing that swamiji went unconscious.
Than if that dhyan is not true,, than what is the value of dhyan.?
Just wait , the bhav, with whom we want to do sadhana, or the bhav related to type of our sadhana . Or if anyone want a specific result and divine mother form related to that , a particular dhyan has been made, otherwise why so many dhyan is needed. Only one is enough.
So never underestimate the value of dhyan.
But still their may be some little introduction of our isht is necessary.
Taking care this fact here some general and some special point about the divine mother.
Mother has moon in her fore head, moon is the representation of amrit tatv, and for coolness, so that her sadhak also enjoy coolness andamrit tatv in his material and spiritual life..”chandrama manso jaat” according to this moon represent mind or man, and having in her forehead also mean that sadhak or sadhika must have or cultivate that high spiritual point or stage or must achieve such a purity of body and mind. And in any one will have this amrit tatv and coolness than he will be like a fountain in the desert, and able to give some relief, to the broken hearts.
Mother has wearing the red color sari, what does the red color mean we already discussed in previous articles, but we also have seen s o many painting when divine mother’s digamber form painted, what is the meaning of that. The mother who provide birth to both evil and good /man and demon, means whole world, for her, every one is just a new born,, and for new born only mother caring is needed, no other thing is need when his mother is with him he has everything.
The greatness of life lies, in purity in heart and child like heart ( not childish heart) and Sadgurudev wanted that , again we all ,will get that purity what we have lost, without achieving that ,reaching the spiritual height is almost impossible. but we all due to our own mistakes destroyed that simplicity and that purity of heart but even seeing this Sadgurudev enters in our heart ….
Through ankush mudra – aakarshan , and from pash --linked to stambhann. And varad mudra related to give every possible boon to the sadhak, when mother is ready to give, what more is needed,
Ma bhagvati belongs to purv ammnayay , and purv ammnayay related to the creation of world.
Divine mother who sit on lotus asan, what not able to give her sadhak, since she is the ruler of all the 14 loks, what are they,, bhu lok , bhuvah lok,swah lok ,jan lok ,tap lok, mah lok, satyam lok,are the seven upper sphere lok, and atal, vital, sutal, natal, talatal,rasatal, pataal, are the seven lower sphere lok.
In the digamber form mother has six hand , and in four hand she is having weapons why, to create and care/protection the whole universe without any problem, and also to give full protection to her sadhak,, and in remaining two hand she has lotus , that represent mother will give to her child whatever is the best possible for him.
So to have this swarup in our heart, and in our soul, we all have to progressed on this divine form.
This is enough for today.
****NPRU****
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4 comments:
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Sir,
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and i also would like to ask you if the monthly free e magazine for August is been published ?
i have not got the copy of it, i have got he perious issue but not the August issue. Please advice, thank you .
jay gurudev,
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Anu
भाई
तंत्र कौमुदी का छटवा अंक मुझे अभितक नही मिला। कोई समस्या तो नही? कृपा करके भेज दिजिये।
धन्यवाद
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