Wednesday, March 26, 2014

भैरव साधना के दो महत्वपूर्ण प्रयोग


 
             शतं जिव शरदो वर्तमानः, शतं हेमंतान्छ्तम वसंतान |

         शत  भिन्द्राग्नि  सविता ब्रहस्पति:,  शातायुधा हविषेमं | |


       हे प्रभु, मेरे गुरुवर ! सभी सतायु हों, हमारी संतान स्वस्थ हों बलिष्ठ हों, समस्त बंधू-बांधव दीर्घायु प्राप्त करें और दत्त चित्त होकर ईश्वर आराधना में संलग्न हों तथा राष्ट्र निर्माण में सहयोग करें |



जय सदगुरुदेव,

       भाइयो बहनों ! इस भोगमय जीवन में त्यागमय जीवन बनाने के लिए या साधनामय होने के लिए गुरु का सहारा तो लेना ही पड़ता है, क्योंकि मार्ग तो वाही बताएँगे ना, आप चलें या ना चलें, ये मेरी ड्यूटी नहीं है | मेरी ड्यूटी तो केवल इतनी है कि आप सबको अपने कार्य द्वारा, मेरी जो नॉलेज है, के द्वारा आपको साधना पाठ पर गतिशील करूँ | अब कैसे करना है ये आपकी जिम्मेदारी......

भाइयो-बहनों!  मैने एक चीज नोट की है कि जब भी मैंने कोई साधना या प्रयोग बिना किसी सामग्री के दी है तो उस पर लोगों का रुझान देखने को मिलता है किन्तु जैसे ही किसी सामग्री विशेस की साधना में आवश्यकता दिखी लोग कतराने लगते हैं .

    क्या आप सब जानते हैं कि बिना यंत्र और माला के साधना का फल और प्रतिफल में अंतर हो जाता है . और ये बात मै नहीं बल्कि गुरुदेव ने भी कही है . क्या हैं यंत्र ? अब इस पर चर्चा करने से कोई मतलब नहीं, क्योंकि सभी लोग अब जानते भी हैं और समझते भी हैं .


मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह साधना करेंगे किन्तु बस इतना चाहती हूँ कि सभी साधना सम्पन्न बने, हरेक प्रक्रिया को स्वयम सम्पन्न कर उसके परिणाम को उसकी उर्जा को महसूस करें ताकि आप कह सकें कि इसे मैंने किया है और इसे करने से यह होता है . आवश्यक नहीं कि आप एक बार में ही सफल हों जाये, किन्तु ये भी जरुरी नहीं कि आप हर बार असफल ही हों, बात सिर्फ इतनी सी है कि आपको क्रिया यानि साधना या प्रयोग तो करना ही पड़ेगा, जैसे बताया गया है वैसे ही .

हाँ तो हम मूल मुद्दे पर बात करते हैं, और वो ये है कि साधना ..... और भी भगवन भैरव की, जिनके नाम से ही भय का नाश हो जाता है..
और जो तंत्र का आधार है.....  और जिसे संपन्न करने पर अन्य साधनाये सरलता से सिद्ध हो जाती हैं, इनकी साधना से जीवन की समस्त विपत्तियां,बाधाएं, समस्याएं, रोग व्याधि आदि समाप्त होकर जीवन निर्द्वंद हो जाता है.....

‘देव्योपनिषद’- में भैरव साधना के बारे में कहा है कि जीवन के समस्त उपद्रवों को समाप्त करने के लिए, बाधाएं दूर करने के लिए, जीवन के सभी प्रकार के ऋण और कर्जों की समाप्ति हेतु, राज्य से आने वाली बाधाओं और अकारण भय से मुक्ति हेतु, को समाप्त करने हेतु, शरीरिक रोगों को दूर करने हेतु, प्रति दिन आने वाले कष्टों बाधाओं को दूर करने हेतु, इसके अलावा, अचानक होने वाली दुर्घटना, मुकदमें में जीत आदि के लिए भगवान् भैरव की साधना से बढ़कर कोई साधना है ही नहीं वैसे तो ब्लॉग के माध्यम से हमने इसके पहले भी अनेक प्रयोग दिए हैं, किन्तु इस बार फिर ब्लॉग के ही माध्यम से ही गुरुदेव प्रदत्त एक दुर्लभ विधान.......


सदगुरुदेव प्रदत्त---  भैरव साधना के दो महत्वपूर्ण प्रयोग;

 शत्रु बाधा निवारण प्रयोग
 काल भैरव रोगनाशक प्रयोग

 स्नेही भाइयो बहनों;
                 हम सब सदगुरुदेव से जुड़े हैं एक प्रकार से कहें तो सब उन्ही के आत्मांश हैं, गुरुदेव ने हमारे लिए अत्यधिक परिश्रम करके साधनाएं इकत्रित की ताकि हमें यहाँ-वहां भटकना न पड़े, हमारे जीवन में अनेक समस्याएं हैं जो निरंतर पूरे जीवन को उथल पुथल करती रहती है, और गुरुदेव ने इन्हें सुलझाने हेतु ही पत्रिका के माध्यम से हम तक पहुँचाया है, ये अलग बात है कि हमें उन्हें उपयोग करना नहीं आया कभी हम सामग्री और कभी विधि विधान के चक्करों में उलझ कर रह जाते हैं, जबकि हमारे सामने ही समस्या का समाधान होता है |
     भाइयो एक विशेस बात गुरुदेव कहा करते थे----- “मै हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम जब भी मुझे पुकारोगे मै तुम्हे तुम्हारे पीछे खड़ा हुआ मिलूँगा,” भाइयो मुझे अब वो बात समझ में आती है, क्योंकि मै जब भी परेशां होती हूँ तो गुरुदेव जी की कोई भी बुक उठा कर पढ़ लेतु हूँ, और यकीं मानिये मुझे उन्ही में कहीं न कहीं समाधान मिल ही जाता है, यही गुरुदेव के इन शब्दों की यथार्थता को सिद्ध करता है.
तो क्यों न हम उसी पथ पर चलें उन्ही क्रियाओं को करें जो हमें विरासत में मिला है----- है न 

स्नेही भाइयो बहनों ! भैरव साधना के लिए उपयुक्त दिन हैं रविवार, मंगलवार, और शनिवार |

१ शत्रु बाधा निवारण साधना; |
प्रयुक्त सामग्री---- लाल आसन, लाल आसन, यदि आपके पास भैरव यंत्र है तो ठीक वर्ना चित्र भी ले सकते हैं या शिवलिंग भी, या स्वर्णाकर्षण भैरव यंत्र, और भैरव गुटिका | इसके आलावा सरसों के तेल का दीपक, गुग्गल, सरसों काली, काले तिल, सरसों का तेल थोडा सा, गुड भोग के लिए |
भाइयो, मै बार-बार कह रही हूँ सामग्री के जाल में मत फंसना, इनमें से जो भी आपके पास हो उसी का उपयोग कर साधना सम्पन्न करें.....
साधना वाले दिन रात्रि में १० बजे के लगभग स्नान कर आसन पर बैठें, और प्रारम्भिक पूजन कर गुरु मन्त्र की चार माला संपन्न करे उसके बाद संकल्प लें कि, मै (अपना नाम) अमुक (शत्रु का नाम) शत्रु बाधा हेतु काल भैरव प्रयोग संपन्न कर रहा हूँ/ कर रही हूँ |
अपने सामने एक लकड़ी के पट्टे पर काला कपडा बिछाएं, और उस पर  एक मिटटी की ढेरी बनायें, उस पानी से सींचकर उसे गीला कर लें और उसके ऊपर स्वर्णाकर्षण भैरव गुटिका स्थापित करें, यदि नहीं है तो शिवलिंग.....
अब उस ढेरी के चारों तरफ पांच गोल सुपारी काले तिल पर स्थापित करें , और उन सुपारी पर सिंदूर का तिलक करें तथा धुप दीप दिखाएँ, और गुड का भोग लगायें |
एक पात्र में काले तिल, काले सरसों, और थोडा सरसों का तेल मिलायें |
अब निम्न मन्त्र का जप करते हुए इस मिश्रण को थोडा-थोडा कर चढाते  जाएँ |
मन्त्र;
  “विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय कारकं, महाभैरव नमः, सर्व दुष्ट विनाशनं सेवकं सर्वसिद्धि कुरु | ॐ कल भैरव, बटुक भैरव, भूत भैरव, महा भैरव, महा-भैरव विनाशनं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत् |
   ॐ कल भैरव, शमशान भैरव, काल रूप कल भैरव! मेरी बैरी तेरो अहार रे, काढि करेजा चखन करो कट-कट, ॐ काल भैरव, बटुक भैरव, भूत भैरव महा-भैरव, महा भय विनाशं देवता:, सर्व सिद्धिर्भवेत् |”

उक्त मन्त्र को मात्र ५१ बार करना है ये क्रिया तीन दिन करना है, वैसे  तो गुरुदेव ने इसे एक ही दिन करवाया है किन्तु हमें पूर्ण लाभ हेतु तीन दिन अवश्य ही करना चाहिए | तीन दिन के बाद अब गुटिका या शिवलिंग को छोड़कर बाकी सारी सामग्री उसी काले कपडे में लपेटकर घर से कही दूर जमीं में दबा दें और उस पर एक भरी पत्थर रख दें तथा घर आकर स्नान कर लें |
आगे दो रविवार या जिस दिन भी आपने इसे किया है, वो दो वार तक गुटिका के सामने इस मन्त्र का जाप अपनी सामर्थ्य के अनुसार करते रहें..... 
२- काल भैरव रोग नाशक प्रयोग;

इस प्रयोग को प्रातः काल किया जाता है, भाइयो बहनों इसमें काल भैरव महायंत्र का वर्णन है किन्तु भगवान् शिव के एक स्वरुप हैं काल भैरव . अतः शिवलिंग या भैरव गुटिका अपने सामने स्थापित करें, उस पर सिंदूर चढ़ाएं, अब एक चौमुखा दीपक जलाएं, दिशा दक्षिण हो, पूजा प्रारम्भ करें, गुरु मन्त्र की चार माला करें तथा संकल्प लेकर सामने रखे यंत्र या गुटिका या शिवलिंग का पूजन सिंदूर, पुष्प बेशन के लड्डू, लौंग से करें, तथा एक काला धागा और एक पुष्प माला लेकर यंत्र पर चढ़ा दें, तथा सामने एक ताम्बे के लोटे में शुद्ध जल भरकर रख दें और उस पर एक लाल कपडा बाँध दें |
अब एक पात्र में काले तिल और दस गोल सुपारी रख लें, तथा निम्न मन्त्र का जप करते हुए उन तिलों को दक्षिण दिशा की ओर थोडा-थोडा फेंकती रहें-----
मन्त्र-
     “ॐ काल भैरौ, बटुक भैरौ, भूत भैरौ ! महा भय विनाशं देवता सर्व सिद्धिर्भवेत | शोक दुःख क्षयकरं निरंजनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्णत्वं महेशं | सर्व- काम-सिद्धिर्भवेत् | काल भैरव, भूषण वाहनं  काल हन्ता रूपं च, भैरवी गुनी | महात्मनः योगिनां महादेव स्वरूपं | सर्व सिद्धयेत् | ॐ काल भैरौ, बटुक भैरौ, भूत भैरौ | महा भैरौ महा भय विनाशनं देवता | सर्व सिद्धिर्भवेत् |”

उक्त मन्त्र की ५१ बार जप करें, तथा उन दसों सुपारी को दसों दिशाओं में फेंक दें, अब उस काले धागे को रोगी की दाहिने भुजा पर बांध दें, या गले में पहन दें | और तांबे के लोटे से जल लेकर कुछ जल पिला दें और थोडा सा ऊपर भी छिड़क दें, पुराने से पुराना रोग भी ठीक होता हुआ देखा गया है, चाहे कोई तांत्रिक बाधा से पीड़ित है या भूत प्रेत बाधा से या शारीरिक बाधा से, इस प्रयोग के बाद आराम मिलता ही है |
ये मन्त्र साबर मन्त्र हैं, अचूक हैं, और अनुभूत हैं अतः आप भी करिए और अनुभूत कीजिये तथा साथ ही अपने साधना सिद्धि के खजाने में एक मोती और भर लीजिये........ 



जय सदगुरुदेव..

रजनी निखिल..


****NPRU****



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