Monday, January 15, 2018

षट्कर्म और सेमीनार

(आवाहन) 


गोक्षीधारधवल घनसुन्दर खं,  चिन्तामणि चतुर्वेदमयं जनेशः |
गंधप्रियं चिन्मघं चिर्जिवितं त्यं, नमामि निखिलेश्वर पाद निर्मिलम ||

तांत्रिक षट्कर्म—

तन्यते विस्तार्यते ज्ञानमनेन इति तन्त्रं"

अर्थात जिसके  आधार पर ज्ञान का विस्तार किया जाता है उसे तंत्र कहते हैं, सदगुरुदेव के  अनुसार तंत्र शब्द की उत्पत्ति ‘तनु धातु’ से एवं और्णादिक ‘ष्ट्रन’ प्रत्यय के योग से हुई है . शक्ति और तंत्र को अलग नहीकिया जा सकता ये एक दुसरे के पर्याय हैं क्योंकि इनमें पूर्ण रूप से सम्बन्ध है तंत्र के बिना शक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती और वहीँ शक्ति तंत्र आधीन होती है  अतः जिस साधक या शिष्य को शक्तिसंपन्न बनाना है तो उसे तंत्र अपनाना ही होगा |

 यदि किसी साधक ने तंत्र क्षेत्र का नाम सुना हो और उसे षट्कर्म के बारे में न पता हो ऐंसा हो ही नहीं सकता क्योंकि ये तंत्र कि अति आवश्यक विधा है हालाँकि ये भी सत्य है कि इसका उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए जैसा होना चाहिए था वैसा हुआ नहीं है क्योंकि इसके कई अर्थों के अनुसार इसे जन सामान्य में मैली विद्या जैसी मानी जाती है , किन्तु वास्तविकता में ऐंसा है नहीं ये एक अति उच्च और विशिष्ट विद्या का स्वरुप है जिसके अनेकों आयाम हैं | पर अभी तो आवश्यक ये है कि हम यह जान सके कि तांत्रिक षट्कर्म है क्या ?

वशीकरण या आकर्षण, शांति, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छः प्रकार के कर्म या साधनाओं के वर्गीकृत के सम्मिलित स्वरुप को षट्कर्म कहते हैं और इनका सामान्य सा अर्थ है
१-      वशीकरण- अर्थात किसी को भी अपनी आज्ञानुसार चलाना यानि वह आपकी प्रत्येक बात को माने | आपका रंग रूप कैसे भी हो किन्तु आपका आकर्षण इतना हो कि प्रत्येक व्यक्ति आपकी बात सुने आप जहाँ भी जाएँ सबकी आँखे आप पर हों और आप आकर्षण का केंद्र हों |

२-      शांति कर्म का साधारण सा अर्थ है, साधक पर किसी भी बुरे गृह या ग्रहों की अशुभ अशुभता का या जो देवि देवता जिनमें कुल देवी देवता से लेकर अनेकों ग्राम देवता और अन्य भी हो सकते हों उनके क्रोध और दुस्प्रभाव का प्रभाव का शमन हों सके ये क्रम शांति कर्म के अंदर आते हैं

३-      विद्वेषण का सामान्य अर्थ कि किन्ही दो व्यक्तियों के बीच मतभेद पैदा करना या झगडा करवाना |
४-      उच्चाटन, मतलब जी या मन का उचाट होना अर्थात जिस व्यक्ति पर ये प्रयोग पर किया जाता है उसे उसके इक्छित विषय से उसके मन को या जी को हटा देना |

५-      स्तम्भन का साधारण अर्थ है कि किसी कि गति कैसी भी रोक देना |

६-      मारण – अर्थात प्रयोग द्वारा किसी को भी मार देना मृत्यु देना |

किसी भी व्यक्ति को या साधक को तब तक तांत्रिक कहलाने का अधिकार नहीं है जब तक वो इन कर्मों की सिद्धि को पूर्णता के साथ सिद्ध न कर ले इस विधा को किसी अन्य दृष्टिकोण से न देखकर केवल इतना समझ लें कि मारण मोहन जो जाने वो सारा ब्रह्मांड पछाड़े |

सदगुरुदेव ने अपने पत्रका के प्रकाशन के प्रारम्भ काल में ही इस विषय की उपयोगिता और साधकों को इससे सम्बंधित भ्रांतियों को दूर कर इसका पूर्ण ज्ञान दिया था |

हमारा प्रयास भी इस पुस्तक के माध्यम से इन षट्कर्म को न केवल साहित्य के रूप में आप तक पहुचाना है अपितु प्रायोगिक रूप में आपको सिखाना भी है |

बशर्ते आप तैयार हों | इसके लिए  हम एक सेमीनार यानी प्रायोगिक कार्यशाला आयोजित कर रहें हैं जो भी साधक साधिका इसमें भाग लेना चाहते है वे समय रहते अपने नामांकन करवा लें इस हेतु आप हमारी मेल id पर अपना नाम और फोन न०  भेंजे जिससे बाकी कि जानकारी आपको दी जा सके |

हमारी इस कार्यशाला में संपन्न होने वाली प्रमुख साधनाएं व कार्यक्रम ---

षट्कर्म के प्रथम तीन कर्म वशीकरण, शांति और स्तम्भन को पूर्ण प्रायोगिक विधान से करवाना ,
षट्कर्म में षट्चक्र का विशेस महत्व है अतः मूलाधार चक्र को पूर्ण रूप से जाग्रत करने का विधान |

रस विज्ञानं अर्थात पारद विज्ञानं का प्राम्भिक ज्ञान

तीन दिन की कार्यशाला में पूर्ण साधनात्मक क्रियाएं

 स्नेही स्वजन !


5-6-7 फरवरी २०१८  आप सभी आमंत्रित हैं इन उच्च और विशिष्ट साधनाओं के प्रायोगिक ज्ञानार्जन हेतु कार्यशाला में और साहित्यिक ज्ञानार्जन हेतु हमारी तंत्र कौमुदी की “षट्कर्म और रस विज्ञानं के गुप्त रहस्य खण्ड” पुस्तक का नवीन संस्करण के साथ स्वागत है ---/\ 


***रजनी निखिल***
**एन पी आर यु ** 


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