Saturday, January 3, 2009

स्वर्ण-पात्र से स्वर्ण निर्माण



भारत और तिब्बत में धातु परिवर्तन अर्थात स्वर्ण निर्माण के लिए बहुत सी पद्धति का प्रचलन है . जैसे सिद्ध सूत , गंधक तेल आदि. परन्तु यह सभी ही प्रक्रियाएं बहुत ही जटिल और श्रम से परिपूर्ण हैं. और इन्हे करने में कुशलता का अनुभव जरुरी है . हाँ यह एक अलग बात है की सभी विधियां प्रमाणिक हैं और इनसे सोना बनाया जाता है.

पर इनके अलावा एक ऐसी भी क्रिया है जिससे अल्प समय में प्रचुर सोना बनाया जा सकता है.
और इस क्रिया का प्रायोगिक ज्ञान सदगुरुदेव द्वारा ही प्रकाश में आ पाया है , जो की अभी तक सिद्धों और साधू समाज के मध्य ही चलन में था वो भी गुप्त रूप से. और ऐसा होता है स्वर्ण-पात्र के द्वारा. स्वर्ण-पात्र तीन धातुओं के द्वारा बनाया गया एक कटोरे के जैसी आकृति होती है ,जिसमे कुछ पदार्थों को खरल कर अग्नि पर पात्र समेत रख कर उसमे शुद्ध पारद मिलाया जाता है और बस कुछ घंटो के बाद वो पारद चाहे कितनी भी मात्रा में हो स्वर्ण में बदल जाता है.

स्वर्ण- पात्र का निर्माण शुद्ध कंस, शुद्ध ताँबा, शुद्ध लोहे को बराबर मातृ में मिलकर किया जाता है. और इन्ही मिश्रित धातुओं से उसकी मुसली भी बनाई जाती है जिसके द्वारा उन पदार्थो का खरल किया जा सके. इस पात्र के द्वारा कई अलग अलग तरीकों से सोना बनाया जा सकता है. पात्र बनते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है की सभी धातु सुद्ध होनी चाहिए और बराबर मातृ में होना चाहिए . तभी पात्र पूर्ण प्रभाव दिखता है. और पात्र को बनाने के बाद उसे करीब १० किलो कंदों की आंच में तपा कर शुद्ध कर लेना चाहिए. इस पात्र के द्वारा हमारे एक गुरु भाई ने १९९० के पहले के शिविर में सदगुरुदेव के सामने उनके आदेश से स्वर्ण बनाने की घोषणा कित ही पर सदगुरुदेव ने ऐसे प्रदर्शन के लिए मन कर दिया था. सदगुरुदेव के मार्ग दर्शन में कई शिष्यों ने ऐसे पात्र बनाये थे . भले ही पढने में यह आसान लगता हो पर वास्तव में इस पात्र का निर्माण इतना सहज नही है क्यूंकि एक तो सामान्य भट्टियों में इतना तप्प्मान ही नही होता की वो लोहे को मेल्ट कर सके , दूसरा तीनो ही धातुओं का गलनांक भिन्न भिन्न है. मतलब जब तक लोहा गलत है तब तक तो कांसा और ताँबा गल कर उड़न छू हो जाते हैं . पर कुछ विशेष रसायनों और क्रियाओं की मदद से तीनो ही धातुओं को एक साथ सावधानी पूर्वक गलाया जा सकता है और इस पात्र को बनाकर अपने जीवन में ऐश्वर्य के रंग बिखेरते जा सकते हैं . इस पात्र की मदद से होने वाली दो गोल्ड की क्रियाएँ अल्केमी तंत्र में दी गयी है , आपकी जानकारी के लिए मैं उन्हें यहाँ पर दे रहा हूँ –




Triturate 10 tolas each of jayphal, vermilion and rasakapur to gether for three hours. Add 5 tolas of pure Samskarised mercury and trituration keep adding lemon juice drop by drop , so that a paste of the mixtureis formed. Transfer the paste into the Swarn paatr and heat it on a strong flame. When the paste starts to boil ,add 5 tolas of melted copper . the copper instantly gets converted into pure gold . wash the gold with water . the Swarn paatr can be reused several times.

Take three parts Hartaal, two parts Mansil and one part Hingul in the Swarn paatra and triturate them together thoroughly। Then add one part pue Samskarised mercury and triturate the whole mixture in juice of Gwar pathaa for 24 hours then fill the swarn paatra with water and heat iton a low flame. In about one hour all the water shall evaporate and only a ball of solid gold shall remain behind . by this method even one kg Gold can be prepared in one single attempt. This method is very simple and is considered to be the easiest process of Gold preparation . even if there have been some shortcomings in triturations , still gold is surely obtained.




कीमिया की साधना लक्ष्मी प्राप्ति की सर्वश्रेष्ठ साधना हैं जिसके परिणाम हाथो हाथ मिलते हैं . बस जरुरत है लगन से सदगुरुदेव के दिखाए गए रस्ते पर पूर्ण समर्पण के साथ चलने और म्हणत से न डरने की , और यदि ऐसा हम कर पाते हैं तो दरिद्रता हमें स्वप्न में भी नही छू सकती।

****आरिफ****

1 comment:

Himwant said...

आवर्त सारणी (Periodic Table) रासायनिक तत्वों को उनकी आणविक विशेषताओं के आधार पर एक सारणी (Table) के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी में ११७ ज्ञात तत्व (Elements) सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री मेन्देलेयेव ने करीब १४३ साल पहले अर्थात सन 1869 में आवर्त सारणी प्रस्तुत किया। उस सारणी में उसके बाद भी कई परिमार्जन भी हुए. आज उस सारणी का जो स्वरूप है उसके अनुसार ७९ वें पायदान पर सोना (गोल्ड) है तथा ८० वे पायदान पर पारद (मर्करी) है. यह सारणी तत्वों के आणविक गुणों के आधार पर तैयार की गई है. किस तत्व में कितने प्रोटोन है तथा उसका वजन (mass) कितना है आदि शुक्ष्म विश्लेषण के आधार पर १४३ वर्ष पहले यह सारणी तैयार की गई थी.

लेकिन भारत में हजारों साल पहले ग्रंथो में लिखा मिलता है की पारद से सोना बनाया जा सकता है. इस आधार पर हमें मानना होगा की हमारे ऋषियों को किसी भिन्न आयाम से तत्वो की आणविक संरचना ज्ञात थी. एसा माना जाता है की नालंदा के गुरु रसायन-शास्त्री नागार्जुन को पारद से सोने बनाने की विधी ज्ञात थी. लेकिन वह ज्ञान हमारे बीच से लुप्त हो गया है.

आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है की पारद को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है. आणविक त्वरक (Atomic Acceletor) या आणविक भट्टी (Nuclear Reactor) की मदत से पारद के अनु में से कुछ प्रोटोन घटा दिए जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा. यह प्रविधी महंगी है लेकिन संभव है यह आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता आया है.

विकसित मुलुक पारद को सोने में परिवर्तित करने की सस्ती प्रविधी पर निरंतर शोध करते आए है. क्या चीन तथा अमेरिका आदि विकसित मुलुको ने कृत्रिम रूप से सोना बनाने की सस्ती प्रविधी खोज ली है. पिछले दिनों जिस रफ़्तार से सोने के भावों में तेजी लाई गई उससे इस आशंका को बल मिलता है.

विश्व में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में है. सोना अपने आप में अनुत्पादनशील निवेश है. अमेरिकी सिर्फ आभूषण के लिए सोना खरीद सकते है. अमेरिकी कानून के तहत निवेश के लिए स्थूल रूप (बिस्कुट या चक्की) के रूप में सोना रखना गैर-कानूनी है.

एक अमीर मुलुक ने सोने के निवेश पर बन्देज लगा रखा है लेकिन भारत में लोगो की सोने की भूख बढती जा रही है. लोग अपनी गाढ़ी कमाई को सोने में परिवर्तित कर रहे है. आज भारत एक ग्राम भी सोना उत्पादन नहीं करता लेकिन विश्व का सबसे बड़ा खरीददार बना हुआ है.

जिस दिन कृत्रिम स्वर्ण बनाने की प्रविधी का राज खुलेगा उस दिन सोना मिट्टी हो जाएगा. हमारी सरकार स्वर्ण पर रोक क्यों नहीं लगाती? हमारे स्वर्ण-पागलपन को ठीक करने के लिए समाज सुधारक क्यों नहीं आंदोलन करते है?

हमारे पास पूंजी के अभाव में स्कुल नहीं है, सडके नहीं है, ट्रेने नहीं है. हमारी पूंजी सोने में फंसी है. जिस दिन वह पूंजी मुक्त होगी हम फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगे.