“ॐ प्रियं वै
स्यौ देवत्वं गुरु र्वे सह सिते न”
हे गुरुदेव ! आप हमारे प्रिय बनें,
सूर्य की तरह हमारे ह्रदय में प्रकाश कर अविद्या रूपी अन्धकार को दूर कर, ज्ञान को
प्रदीप्त करें, और हर क्षण हमरे साथ रहें |
जब बार-बार अड़चने आयें, कोई काम न
बनें, और सारे रस्ते बंद हों जाएँ तब...... करें ये “रूद्र साधना”
जय सदगुरुदेव, स्नेही स्वजन ! :)
कल की पोस्ट में कमेंट्स देखकर सिर्फ एक बात कहना चाहती हूँ कि साधना और
पूजा में बड़ा अंतर है, साधना मतलब जबरन, हठपूर्वक अपने प्रारब्ध को ही बदल लेना,
किन्तु पूजा मतलब मनःशांति के लिए या आत्मसंतुष्टि हेतु या परम्परागत पूजा करना |
परन्तु एक बात और वो ये कि कोई भी मन्त्र, स्त्रोत कभी विफल नहीं होता, हाँ
लोप रहता है लेकिन जब उसी से संबधित कोई साधना कर रहे होते हैं तो उसका पूर्ण फल
सामने आता है, अतः ये सोचना कि ईश्वर नहीं है या कुछ नहीं होता गलत है ये सिर्फ
आपकी असफलता के कारण आई नकारात्मता है जिसे दूर कर आपको पूर्ण रूप सकारात्मकता की
और ले जाने के लिए मै आपको कुछ प्रयोग बताती हूँ आप करिए और उसका रिजल्ट स्वयम
महसूस करिए |
१- पहला प्रयोग चूँकि श्रावण माह है अतः बेलपत्र बड़ी आसानी से मिल जाता है, यदि
प्रतिदिन १०८ बिना टूटे फटे त्रिदल वाले बेल पात्र मिल जाएं तो उन्हें धो लें और
गंगाजल में फिगो लें फिर उस पर केशर घोलकर और रक्त चन्दन घोलकर मिक्स कर लें और
उससे राम लिखें और प्रत्येक बार अपनी मनोकामना एवं “ॐ नमः शिवाय” बोलते हुए
शिवलिंग पर चढ़ावें, न केवल इक्छापुर्ती होगी अपितु जो पहले किया हुआ अहि उसका फल
भी प्राप्त होगा |
२- दूसरा प्रयोग- पंचमुखी रुद्राक्ष, जो
पूजा दुकान में बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाता है, १०८ लेकर उस पर सफ़ेद चन्दन घिसकर
एक एक पर अनामिका ऊँगली से लगाते जाएँ और “ॐ नमः शिवाय” बोलते हुए शिवलिंग पर
चढाते जाए, पूरे जीवन धन की कमी नहीं होगी सिर्फ श्रावण में इन प्रयोगों को
सम्पन्न करें |
एक बात याद रखिये कि रूपये आसमान से नहीं
टपकेंगे किन्तु जो कारोबार आप करते हैं उसमें ही चौगुनी तरक्की महसूस करेंगे....
खैर अब हम साधना पर आयें----
श्रावण माह में शिव
पूजन का विशेस महत्व है—लोग अनेक तरह से भोलेनाथ को मनाते हैं.... मैंने एक बात पर
बार-बार जोर दिया है, साधना और पूजा में बहुत अंतर है जैसा कि मैंने ऊपर बताया है.
पूरा महिना हमारा है
कभी भी आप इस साधना को प्रारम्भ कर सकते हैं...
“या ते रुद्र शिवा तनुरघोरा पापकाशिनी”
भोलेनाथ का ही स्वरुप
है रूद्र..... भारतीय परम्परा के मूल और आदि देव, आर्य जीवन की पुष्टता के आधार, पापमोचक,
वरदायक, समस्त कामनाओं को पूरा करने वाले, महादेव-----------:)
साधना-विधान
सामग्री- शिवलिंग, कच्चा
दूध, गंगाजल, पंचामृत-(दूध,दही, घी,शहद, शक्कर) भस्म, चन्दन, केशर, फूल, बेलपत्र,
धतुरा के फल-फूल, शमीपत्र, घी का दीपक, अगरबती..... इत्यादि समग्र पूजन सामग्री
पहले से ही इकत्रित कर लें ...
आसन-पीला, पीली धोती,
उत्तर दिशा--- पूजन समय- सुबह या शाम |
साधक स्नानादि से
निवृत्त होकर आसन पर बैठें---
प्रारम्भिक पूजन कर लीजिये..
यानी गणेशपूजन, भैरव पूजन,गुरुपूजन आदि--- अपने गुरुमंत्र की एक माला अवश्य कीजिये
|
सामने एक पटे पर पीला
वस्त्र बिछाकर पारद शिवलिंग, स्फटिक शिवलिंग, नर्मदेश्वर या जो भी आपके पास हों उन्हें
स्थापित कीजिये .
उसके बाद ध्यान करें,
ध्यान--
ध्यायेनित्यं महेशं रजतगिरीनिभं चरुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वालंगम परशुमृगवराभिती हस्तं
प्रसन्नं |
पद्मासीनं समन्तात स्तुतिममरगणैव्याघ्रकृत्तिं
वसानं
विश्वाद्दं विश्ववन्द्धं निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं
त्रिनेत्रं ||
स्वच्छ स्वर्णपयोद मौक्तिकजपावर्णोंर्मुखैः
पंचभि:
त्रयक्षैरंचितमीशमिन्दुमुकुटं सोमेश्वराख्यं
प्रभं ||
शूलंटंक कृपाणवज्रदह्नान्-नागेन्द्रघंटाकुशान्
पाशं भीतिहरं दधानममिताकल्पोज्ज्लांगं भजे ||
इसके बाद महादेव का आवाहन
करें तथा एक फूल अर्पित करें... उसके बाद शिवलिंग उठाकर किसी बड़े पात्र में स्थापित
करें ताकि आप अभिषेक कर सकें |
अब ॐ नमः शिवाय का जप
करते हुए गंगाजल में थोडा कच्चा दूध मिलकर १० मि तक अभिषेक करें तब तक कि शिवलिंग
पूरा डूब न जाएँ, अब “ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः” मन्त्र की एक माला रुद्राक्ष माला से जप करें, तत्पश्चात शिवलिंग बाहर निकालकर
किसी दुसरे पात्र में स्थापित कर पंचामृत से अभिषेक करें, तथा शुद्ध जल से धोकर
पोंछकर वापिस पाटे पर स्थापित करे तथा चन्दन, अबीर, गुलाल, हल्दी, कुमकुम, अक्षत
और पुष्प से पूजन सम्पन्न करें, शमीपत्र तथा भस्म अर्पित कर अपनी मनोकामना बोलें,
तथा बिल्ब्पत्र पर केशर से अनामिका ऊँगली से “राम’ लिखकर ॐ नमः शिवाय का जप कर एक-एक कर
चढाते जाएँ प्रत्येक बिल्वपत्र चढाते मनोकामना भी बोलना है |
अब फल, और नैवेद्ध का भोग लगायें और
निम्न मन्त्र की ११
माला जप करें—
मन्त्र—
“ॐ ब्लौं सदाशिवाय
नमः”
“Om
blaum sadashivay namah”
इसके बाद पुनः एक माला
गुरुमंत्र की करें तथा गुरुदेव से अपनी साधना को निर्विघ्न पूर्ण होने तथा सफलता
प्राप्ति की प्रार्थना करें, एवं कपूर से आरती सम्पन्न कर मन्त्र समर्पित करें |
स्नेही भाइयो बहनों, इस
साधना को पूरे माह यदि इसी क्रम से करना चाहें तो अति उत्तम, वर्ना प्रत्येक
सोमवार और इस माह की प्रदोष को अवश्य सम्पन्न करें |
****रजनी निखिल***
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