Sunday, February 15, 2015

महा शिवरात्री अनुष्ठान


महाशिवरात्रि अनुष्ठान

पाशुपतेय साधना 



   जो निर्गुण है, निराकार हैं, निर्मल और शांत हैं जो समस्त जड़ चेतन में विद्यमान है ऐंसे आदि गुरु महादेव को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं----- 
महाशिव रात्रि शिव का अति प्रिय दिवस है, और इस दिन यदि जो भी चाहे साधना के माध्यम से भोले नाथ से प्राप्त कर सकता है, हैं न | पर इसके लिए जिद होनी चाहिए, साधना की और पूर्णता प्राप्त करने की, तो ऐंसा क्या है जो आप प्राप्त नहीं कर सकते, और शिव तो हैं ही भोले | बस आपमें क्षमता होनी चाहिए लेने की, और उन्हें तो देना ही है....
स्नेही स्वजन !

           तो आप सब तैयार हैं न J
जीवन में जब रोग, शोक, और पाप बढ़ जाते है तो अनेक तरह की विपत्तियाँ उत्पन्न होती जाती हैं और इन विपत्तियों का निराकरण साधना के माध्यम से संभव है ये जानकर व्यक्ति इस और झुकता ही है | क्योंकि जीवन में उन्नति न होना एक प्रकार का दोष है इसी प्रकार पूर्वजन्मकृत दोष भी व्यक्ति को निर्बल बनाते हैं | तब ,  सदगुरुदेव के शब्दों में कि “जब तक श्रम रूपी भूमि पर  साधना की आहुति संपन्न नहीं की जाती तब तक जीवन में सफलता दूर हि रहती है, ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं में ही उलझा रहता है |”

 तो इस प्रकार की समस्याओं से निपटने हेतु ही गुरुदेव ने अनेक साधना रूपी शस्त्र प्रदान किये हैं ऐसा ही एक शस्त्र जो अर्जुन ने शिव से प्राप्त किया था----


               पाशुपतेय  प्रयोग   

 वैसे तो इस सधना को किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष कि प्रतिपदा से प्रारम्भ किया जा सकता है, किन्तु महाशिव रात्रि के इस दिवस से यदि प्रारम्भ किया जाये तो सफलता १०० % हो जाएगी .  प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को निम्न तथ्यों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए –

१.     पुरे पुरे साधना में दाड़ी , बाल न कटवाएं, और क्षौर कर्म न करें |
२.     जमीन पर सोयें  ही उपयोग करें | पूर्णतः ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और गायन, संगीत, वाद्य आदि से दूर रहें |
३.     अन्न स्वीकार न करें, केवल दूध या फल लें | मौन रहने का प्रयास करें यानी कम से कम बात चीत करें |
४.     साधना काल में किसी भी प्रकार का व्यसन आदि का प्रयोग न करें | यानी शुद्धता का एवं खान पान का विशेस ध्यान रखें
५.     साधनाकाल में मात्र काले वस्त्र हि धारण करें और वस्त्रों में भी एक काली धोती पहन लें, तथा एक काली धोती ओढ लें, इसके अलावा शरीर पर किसी प्रकार का कोई वस्त्र न हो |
६.     साधना कक्ष में साधक के अतिरिक्त कोई भी अन्य व्यक्ति उस कक्ष में प्रवेश न करे |
७.     साधना काल में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं होना चाहिए, किसी भी प्रकार कि परिस्थितियों में विचलित न हों |
इस साधना में शिव शक्ति यानी शक्ति रुपी सिंह वाहिनी दुर्गा  और शिव दोनों की साधना एवं पूजा की जाती है, इसे रात्री को ही सम्पन्न की जाती है किन्तु महाशिव रात्रि के अवसर पर प्रातः ही इस साधना की तैयारी कर पूजा प्रारम्भ कर साधना का संकल्प ले लेना चाहिए | अपने सामने बाजोट पर काले रंग का वस्त्र बिछाकर माँ  दुर्गा की सुन्दर पिक्चर स्थापित कर लें साथ ही एक शिवलिंग, जो कि कोई भी  हो सकता है पारद शिवलिंग, स्फटिक शिवलिंग या  नर्मदेश्वर भी हो सकता है | रुद्राक्ष माला, (रुद्राक्ष माला छोटे दानों की हो), कच्चा दूध | और जो भी आप श्रद्धा से अर्पित करना चाहें | 

 अब साधना सामग्री—काले वस्त्र, काला आसन, दिशा पश्चिम | यदि किसी के पास पसुपतेय शिव यंत्र हो तो अति उत्तम या शिव यंत्र हो आप चाहें तो कहीं से प्राप्त कर लें, तो उत्तम होगा अन्यथा पारद शिवलिंग  के होते यंत्र की आवश्याकता नहीं होती |

      अबीर, कुमकुम, केसर मौली सुपारी अक्षत गुलाब के लाल पुष्प और घी क दीपक जो पूरे ११ दिन अखंड साधन काल में जलता रहेगा |
साधन अवधि व जप--- ११ दिन ११ माला प्रतिदिन |


विधान—
         यदि यंत्र हो तो शिव लिंग और शिवलिंग का दूध मिश्रित जल से “ॐ नमः शिवाय” का १०८ बार जप करते हुए, अभिषेक सम्पन्न करें तत्पश्चात माँ दुर्गा के चित्र के चारों ओर कुमकुम रंगे चावल से एक घेरा बना दें | उनका पूजन कुमकुम अक्षत केसर मौली सुपारी पुष्प धुप दीप से समपन्न करें |
उसके बाद मूल मन्त्र का अनुष्ठान प्रारम्भ करें

मन्त्र-

ॐ आं ह्रीं सौं ऐं क्लीं हूं
सौः ग्लौं क्रों एही एही भ्रमराम्बा हि सकलजगन्मोहनाय मोहने सकलाण्डजपिण्डजान् भ्रामाय भ्रामय राजा प्रजावशकरी संमोहय महामाये अष्टादशपीठरूपिणि अमलवरयूंस्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर कोटिसूर्यप्रभा-भासुरी चंद्र्जटी मां रक्ष रक्ष मम शत्रून् भस्मीकुरु भस्मीकुरु विश्वमोहिनी हुं कलीं हुं हुं फट् स्वाहा ||

“Om aam hreem shaum aim kleem hoom sauh glaum kraum ehi ehi bhramramba hi sakal jaganmohnaay-mohnaay saklaandajpindjaan bhramay-bhramay raja praja vashkari sammohay-sammohay mahamaaye ashtadash peeth roopini amalvar sfur sfur prasfur-prasfur kotisury prabha-bhasuri chandrajati mam raksha-raksha mam shatrun bhasmikoor-bhasmikuru vishva mohini hum kleem hum-hum fatta swaha”|

मन्त्र के पश्चात् जप समर्पण कर क्षमा प्रार्थना अवश्य करें |
भाइयो बहनों हो सकता है ये साधना आपको लम्बी, श्रमश्राध्य लग रही हो किन्तु ये प्रयोग नहीं अपितु साधना है, और साधना तो ऐंसी ही होती है . हैं ना
 किन्तु साधना के पूर्ण विधि विधान से सम्पन्न होते ही साधक को एक दिव्य अनुभूति का अनुभव होता है और किसी भी कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी एक बार इस मन्त्र का जाप करने पर उसे मार्ग मिल जाता है और शिव रूपी माँ भ्रम्रराम्बा प्रत्यक्ष उसे सहयोग प्रदान करती है |

    वस्तुतः यह शिवरक्षा प्रयोग है जो कि अद्भुत और तीक्ष्ण होते हुए शीघ्र फलदायी है | अतः संपन्न करें और स्वयम अनुभूत करें |

Nikhil pranam

रजनी निखिल

   ***N P R U*** 

No comments: