पारद शिवलिंग--- हरित सकल रोगान्मुर्छितो
यो नराणां, वितरित किलबद्ध: खेचरत्वं जवेन |
सकल
सुर्मुनिन्द्रैर्वंदितं शम्भुबीजं, स जयति मयसिंधो: पारद: पार्दोयऽम ||
जय सदगुरुदेव /\
कुछ प्रश्न आपके और यथोचित उत्तर हमारे
|
स्नेही भाइयो !
अभी कुछ समय पूर्व पारद यानि रस
विज्ञान पर कुछ गोपाल कृष्णा ने पारद शिवलिंग और तत्वमसि क्रिया पर एक बहुत ही
महत्वपूर्ण लेख पोस्ट किया , इससे आप लोगों के कुछ प्रश्न हैं और कुछ साधना से
सम्बंधित भी मै अपनी जानकारी और ज्ञान के आधार पर उनका उत्तर देने का प्रयास कर
रही हूँ |
रस विज्ञान या रस तंत्र ६४ तंत्र में
सबसे प्राचीन और गूढतम और रहस्यमयी विद्या कही गयी है | इस विद्या की उपलान्धियों
का जितना भी प्रचार प्रसार हुआ, उसके अनुसार इस विद्या की तरफ किसी का भी आकर्षण
होना स्वाभाविक है इस विज्ञानं का पूर्ण आधार है पारद, जो कि एक अद्भुत धातु है |
इसी को पारा एवं रस आदि के नाम से संबोधित क्या गया है |
ये दिव्य धातु सब धातुओं में अनूठी युआ
रहस्यमयी गुणों से युक्त है क्योंकि यह शिव बीज है यानि भगवन शिव का वीर्य ,
किन्तु प्रथ्वी पर प्रदूषण होने की वजह ये दूषित अवस्था में ही पाया जाता है
किन्तु इसी पारे का शोधन कर लिया जाये अर्थात इसको दोष मुक्त कर लिया जाये तो ऐंसा
पारद कई-कई प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ है |
ऐंसे पारद को अलग पदार्थों या मन्त्रों
के संयोग से शोधित और संयोजन करके उच्चवर्ण की धातु में परिवर्तित किया जा सकता है
और इसी वजह से ये लोगों के आकर्षण का केंद्र है क्योंकि भारत में ऐंसे कई
अनिर्वचीय उदाहरण हैं जब कई विद्वानों ने कई कई बार पारद से रजत या स्वर्ण निर्माण
की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष किया |
उपरोक्त श्लोक रसमंजरी ग्रन्थ के प्रथम
अध्याय का पंचम श्लोक है जो कि पारद के गुणों के सन्दर्भ में वर्णन प्रदर्शित करता
है, पारद के माध्यम से समस्त प्रकार के रोगों की निवृति संभव है | यह खेचरी अर्थात
वायुगमन आदि महासिद्धियों को प्रदान कर सकता है तथा यह शिव वीर्य एवं शिव स्वरुप
ही है जो कि समस्त मुनि एवं सिद्ध गण के द्वारा उपासित एवं सतत वन्दित है |
ऐंसे हजरों श्लोक हैं जिसमें पारद की
प्रशंसा की गयी है पारद की अशुद्ध से शोधित क्रिया की तरफ यात्रा ही पारद विज्ञानं
कहलाता है और इस क्रिया प्रक्रिया को संस्कार कहा गया है वस्तुतः पारद
विज्ञानं आधार भूत दो बातों पर ही है
शुद्धि करण और सिद्धिकरण | शुद्धिकरण यानि पारद के समस्त मॉल यानि अशुद्धि को दूर
करना विभिन्न पदार्थों के संयोजन से क्रियाओं के माध्यम से पारद को शोधित करना
पारद के १८ संस्कार प्रचालन में हैं
हालाँकि ये प्रक्रिया बहुत कठिन और श्रमसाध्य है क्योंकि इस प्रक्रिया को करने
वाला अजर तथा रस मण्डल एवं आदि रस सिद्धों में शामिल हो जाता है, जैसे की आदि
सिद्धि लंकेश, बयाडी, नाग्बोधिजी, नित्यनाथ जी इत्यादि इन सिद्धो के बारे में कहा
गया है कि ये आज भी सशरीर जीवित हैं तथा तंत्र की क्रियाओं या सिद्ध आत्मा आवाहन
के माध्यम से इनको प्रत्यक्ष कर इनसे आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता
है इसलिए ये १८ संस्कार कठिन और दुस्कर कहे गएँ हैं
सिद्धिकरण— को गुणाधान भी कहा गया है
अर्थात जो पारद शुद्ध हो गया उसके गुणों का विकास करना मूल अस्तित्व में आये पारद
को सिद्धि की तरफ ले जाना, उसकी क्षमता का विकास करना | पारद के ८ संस्कार को
शुद्धिकरण के लिए होते हैं जिसके माध्यम से पारे की मॉल दोष या सप्त कंचुकी को दूर
किया जा सकता है क्योंकि दोषयुक्त पारा विष है, किन्तु यही पारद शोधित होने बाद
अमृत हो जाता है, और किसी व्यक्ति के लिए ये नवीन जीवन दाता हो सकता है विभिन्न रस
रसायन का निर्माण ऐसे हि शुद्ध पारद से किया जाता है जिससे व्यक्ति अपने शारीर को
पूर्ण निरोग सिद्ध बना सकता है |
वस्तुतः जब पारद अग्निस्थाई यानि ३५६.७
सेंटीग्रेट पर टिका रहे और उसके वजन में कोई अंतर न आये
पारद के आगे के संस्कार उसके गुणों के
के विकास करने एवं जिसके माध्यम से समस्त प्रकार की सिद्धियों को साधक प्रदान करने
में सामर्थ्यवान बन सके, ऐंसी प्रक्रियाओं को बुभुक्षिकरण, गंधकजारण, अभ्रक सत्व
पतन आदि गूढ़ क्रियाओं का समावेश होता है |
बुभुक्षित पारद के सन्दर्भ में साधकों
के मध्य कई प्रकार की जिज्ञासा रही है तथा यह रहस्य का विषय रहा है बुभुक्षित पारद
का समान्य अर्थ ऐसा पारद जो कि भूखा हो जो पारद स्वर्ण का ग्रास करे, भक्षण कर ले,
खा ले और इनसे हि शिवलिंग आय अन्य विग्रह निर्माण किया तो .... अर्थात इस पारद को
यदि किसी विग्रह में ढाला जाये और उसे लक्ष्मी उपनिषद मन्त्रों से प्राणप्रतिष्ठित
की जाये जाये तो वह विग्रह पूर्ण लक्ष्मी से युक्त होकर समस्त प्रकार के वैभव
प्रदान करने वाला बनजाता है इसी प्रकार अन्य विग्रह जैसे पारद तारा, पारद काली,
पारद लक्ष्मी, श्री यंत्र, पारद दुर्गा आदि चामुंडा तंत्र के मंत्रो प्रतिष्ठित किया
जाये तो ये विग्रह पूर्ण चैतन्य होकर किसी भी साधना तंत्र को सिद्ध के लिए एवं
प्रत्यक्षीकरण के लिए सबसे उपयुक्त माने गए है .
पारद शिवलिंग, विग्रह
:-
आठ संस्कारों से युक्त सम्पन्न पारद
पूर्ण रूप से शुद्ध ,चैतन्य और विभुक्षित होता है ऐसे पारद में चंचलता चपलता नहीं
होती, इससे निर्मित शिवलिंग अतितेजस्वी, अद्भुत, और वरदायक कहा गया है,ऐसे पारद से
निर्मित शिवलिंग सही अर्थों में पारदेश्वर होंगे |
जिस व्यक्ति के घर में ऐंसा शिवलिंग
स्थापित है तो उस घर में लक्ष्मी पूर्ण चैतन्य होकर स्थापित होती है, धन धान्य,
धरा भवन कीर्ति आयु यश पुत्र पौत्र वहां और सम्पूर्ण सिद्धियों के साथ लक्ष्मी का
निवास होता है ऐसे घर पर तंत्र प्रयोग या
किसी भी नकारात्मक उर्जा का प्रभाव नहीं होता या प्रवेश ही हो पता है |
स्वयं शिव उवाच—
पार्देश्वरम स्थापित्यम लक्ष्मीं
सिद्धं ताड गृहे |
धन धान्यं धरा पौत्रं पूर्ण शौभाग्यम
वे नरः ||
भगवान् शिव ने कहा है कि जिसके घर में
ऐंसा शिवलिंग स्थापित होता है उसके घर में मेरे साथ लक्ष्मी कुबेर और सौभाग्य
निश्चय हि स्थापित हो जाते हैं
लक्ष्मी उपनिषद में स्वयम लक्ष्मी ने
कहा है—
यत्र पार्देश्वरम देवं तत्रऽमवर सिद्धियुतः |
तत्र नारायणे साक्षात् तत्र त्रैलोक्य संपदा: ||
जिस
स्थान पा पारद शिवलिंग स्थापत होते हैं वहां पर मई अपने समस्त वरदायक रूप में स्थापित
होती होने के लिए विवश हूँ, क्योंकि जहाँ पर भगवान पारदेश्वर हां साक्षात् नारायण
भी उपस्तिथ हैं, और जहाँ नारायण हैं वहां मेरी उपस्तिथि अनिवार्य है ही—
ऐंसे
एक जगह वशिष्ठ ने अपने ग्रन्थ में कहा है कि—
पारदेश्वरं
स्थापित्यं सर्व पाप विमुच्यते |
सौभाग्यं
सिद्धि प्रप्यान्ते पूर्ण लक्ष्मी लभेत् नर: ||
अर्थात
जिस जगह पारदेश्वर स्थापित हो जाते हैं वहां सभी पाप स्वयम क्षय हो जाते हैं
अर्थात व्यक्ति के समस्त पापों एवं दोषों का शमन हो जाता है | ईश्वर ने चाहे उसके
जीवन में दुर्भग्य ही क्यों न लिखा हो किन्तु मात्र पारदेश्वर के दर्शन से वह
सौभाग्य को प्राप्त कर लेता है |
और
मह्रिषी विश्वामित्र ने कहा है –
यः नरः प्राप्यते सिद्धिं पारदेश्वर संस्कारः |
अभावः दुःख दारिद्रय किं पप्यते त्वम् च द |
विश्वामित्र
जी ने पारदेश्वर की महिमा कहते हुए कह है कि—आठों संस्कार संपन्न पारदेश्वर को प्राप्त
करना ही जीवन का सौभाग्य है, जिसके गृह में ऐंसा पारदेश्वर स्थापित है, उसके जीवन
में किसी प्रकार कोई भाव हो ही नहीं सकता |
रावण
जो स्वयं रस सिद्ध थे और जिन्होंने पारदेश्वर की से अपनी पूरी नगरी को स्वर्णमयी
बना कर ये सिद्ध किया कि पारदेश्वर की साधना से सब कुछ संभव है
पारदेश्वर महादेवः स्वर्ण वर्षा करोति य |
सिद्धियां ज्ञानद मोक्षं पूर्ण
लक्ष्मी कुबेराय: ||
रावन
ने एक जगह कहा है कि—मैंने अनुभव किया है कि, पारदेश्वर के स्थापन, पूजन और साधना
के आगे अन्य सभी साधनाएं प्रयोग और उपाय तुच्छ हैं, केवल पारदेश्वर के स्थापन से
स्वर्ण वर्षा स्वर्ण निर्माण और स्वर्ण नगरी प्रक्रिया संभव है—
ऐंसे
अनेक उदाहरण शास्त्र उल्लिखित हैं और पूर्ण प्रमाणिकता के साथ ---
***रजनी निखिल***
***निखिल प्रणाम***
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