प्राचीन भारत की समृद्धि का आधार पारद था . धातु परिवर्तन की प्रक्रिया में निपुण हमारे पूर्वजों ने इस देश को सोने से सजा दिया था , इसका मतलब यह नही की ऐसा उन्होंने सिर्फ़ लोह सिद्धि से ऐसा किया था बल्कि कई दिव्य साधनाओं से उन्होंने श्री और सम्पन्नता को बाँध कर रखा था जिससे उनके जीवन में किसी भी प्रकार की न्यूनता नही थी , यह अलग बात है की हमने अपने पूर्वजों की थाती को संभल कर नही रखा वरना आज हमारी ऐसी दुर्दशा तो कम से कम नही होती. सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में पारद ही एकमात्र तत्व है जिसके द्वारा मोक्ष और ऐश्वर्य दोनों ही पाए जा सकते हैं. इसी विद्या के द्वारा कलयुग में भी जगत गुरु आदी शंकराचार्य ने स्वर्ण वर्षा करवा कर दिखाया था . उनके गुरुदेव श्री गोविन्द पादाचार्य का पारद व लोह सिद्धि पर लिखा रस ह्रदय तंत्र ग्रन्थ विख्यात है .जिसमे दी गयी क्रियाये आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी तब रही होंगी.
पारद बंधन की दिव्य क्रिया का मन्त्र साधना द्वारा योग करके कई अद्भुत परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं . सदगुरुदेव ने बताया है की यदि साधना स्थल के ईशान कोण में यदि चैतन्य और विजय काल में निर्मित पारदेश्वर और आग्नेय कोण में यदि राजस मंत्रों से पारद लक्ष्मी की स्थापना यदि की जाए तो पारद लक्ष्मी का स्वरुप स्वर्णावती में बदल जाता है . और तब साधक को जिस ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है उसका वर्णन सहज नही है .पुरातन काल की उसी परम्परा को सदगुरुदेव ने आज भी जीवित रखा रखा है . कौन सा ऐसा ज्ञान रहा जो की उन्होंने शिष्यों को न दिया हो.
पारद के सर्वोपरि होने का महत्त्व पूर्ण कारण था उसका आत्म स्वरुप होना , उसका दिव्य होना. जब हम पारद का शुद्धि कारन करते हैं तो हमारा भी शुद्धिकरण होता है , पारद की चंचलता के साथ हमारे मन की चंचलता भी आबद्ध होती जाती है .आप ख़ुद ही सोचे की यदि असीमित शक्ति शाली पारद और ऐसी ही शक्ति से परिपूर्ण हमारे मन पर हमारा नियंत्रण हो जाए . उनकी चंचलता हमारे काबू में आ जाए तो फिर क्या असंभव है हमारे लिए. क्यूंकि सभी सिद्धियों का मूल तो चित की एकाग्रता ही है न.
दिव्य वनस्पतियों का संस्कार और मंत्रों का योग पारद के साथ आपको भी चैतन्यता दे जाता है . यही कारण है की जब हम ऐसे दिव्य पारद विग्रहों को घर में स्थापित करते हैं तो स्वतः ही सकारात्मक उर्जा , आकर्षण , तेज से हमारा व्यक्तित्व भी भरता चला जाता है , और इसमे कोई अतिशयोक्ति भी नही है . क्यूंकि यदि आपने स्वर्ण तन्त्रं पढ़ी होगी तो सदगुरुदेव ने बताया है की आठ संस्कारों से युक्त पारद से बनी गुटिका सभी तंत्रों के प्रभावों को दूर कर के वशीकरण छमता देती है.
जग विख्यात है की यदि व्यक्ति ब्रह्म हत्या का भी दोषी हो या कैसे भी पाप उसने किए हो तब भी पारद का स्पर्श , दर्शन व पूजन सभी दोषों से मुक्त कर देता है.
No comments:
Post a Comment