Wednesday, April 4, 2012

परम दुर्लभ पूर्ण बिन्दोद्भ्व सिद्ध रेतस पारद गुटिका युक्त बिंदु साधना :: param durlabh purn bindodbhv siddh retas paard gutika yukt bindu sadhana

तंत्र , तो मानो साधनाओ का एक ऐसा महासागर हैं जिसका न कोई आदि हैं न ही कोई अंत .... बता सकता हैं .एक से एक अद्भुत् साधनाए और एक से एक उनके सबंध में अद्भुत आश्चर्य जनक वृतांत .. पर कुछ सच में ऐसा हैं .... जिस पर बरबस ही भरोषा नही हो पाता ...कि ऐसा भी क्या संभव हैं ..दिल दिमाग दोनो मौन हो जाते हैं उस एक पल पर ...
पर निश्चय ही एक साधना हैं जो यह सब आसानी से संभव कर सकने में समर्थ हैं
और इस साधना से ..
· एक ऐसी साधना ..जो दस महाविद्या साधना से भी उच्च कोटि की हो ..
· एक ऐसी साधना जो पूर्णता के साथ कुण्डलिनी जागरण करा सकने में समर्थ हो ..निश्चयता के साथ ..
· एक ऐसी साधना ..जो हर चक्र को पूर्णता के साथ ऊर्जा युक्त कर दे ....
· एक ऐसी साधना ..जिसके लिए ही कहा गया हैं एक साधै सब सधे ....
· एक ऐसी साधना ...जो पदार्थ परिवर्तन से ले कर हर विज्ञानं का आधारभूत हैं..
· एक ऐसी साधना ..जो सारे संसार का ज्ञान आपके हाथो में मानो ला कर खड़ी हो जाए ...
· एक ऐसी साधना ..जो वायु गमन से लेकर जल गमन तक सब संभव कर सकती हैं ..
· एक ऐसी ही परम दुर्लभ साधना ..जिसके बारे में तंत्र क्षेत्र के महा योगियों भी स्वप्न रहता हैं कि कोई सारी सिद्धिया ले ले ..पर इस का ज्ञान करा दे ..
· क्योंकि यही तो ...आधार हैं ....
· और एक ऐसी साधना, जिसके बाद ही उच्चतम तंत्र साधनाओ का रहस्य खुलता हैं ..
· मनो सारा तंत्र तो इस एक साधना में आया ही गया ..
· एक साधना जो सारे ब्रम्हांड की शक्तिया ..अपने में समाये हुए हैं ..
और इस साधना को तंत्र ग्रंथो में बहुत ही आदर के साथ जाना जाता हैं और ,बारबार भाव पूर्ण ता के साथ कहा जाता हैं ... इसे ही बिंदु साधना” के नाम से सबोधित किया जाता हैं.तो यह बिंदु हैं क्या?? क्यों इसका इतना महत्त्व ...???.सामान्य अर्थो में हमारा सत तत्व जिसे वीर्य या रज कह ले .... उच्चतम अर्थो में शिव का प्रतीक हैं .कैसे हमारे शरीर के इस तत्व को शिव तत्व में बदला जाए वह केबल इस साधना के द्वारा ही संभव हैं . और अगर ऐसा हो पाता हैं या साधक ऐसा कर पाने में समर्थ होता हैं तव उनके लिए क्या अलभ्य और कौन सा ज्ञान हैं इस विश्व का जो उसके लिए जो दुर्लभ हो पाए .
तब इस साधना को तो हर व्यक्ति को सपन्न करना ही चहिये .पर केबल चाहने मात्र से क्या होता हैं इस साधना कि प्रक्रिया और ज्ञान इतना गुढ़ हैं कि ऐसे.... कैसे सम्भव हैं इस प्रक्रिया का ज्ञान किसी को भी दिया जाना . यहाँ तक कि अपने पुत्र और और श्रेष्ठ शिष्य तक को इसका ज्ञान देने से मना किया हैं. तंत्र ग्रथ कहते हैं कि अगर यह ज्ञान दे दिया तो अब फिर शेष क्या रहा ..क्योंकि जहाँ शिव तत्व का पूर्ण जागरण साधक में हो गया तो शक्ति को तो अब स्वयं ही उसके पास आ ना ही पड़ेगा , और जब शिव और शक्ति का संयुग्मन होगा तब कौन सी अवस्था शेष होगी ज्ञान की....... क्योंकि तंत्र हैं क्या ??? शिव और शक्ति का संयुग्मन पर........ कैसे कैसे संभव हो ??? और कुण्डलिनी जागरण क्या हैं इसी अवस्था का क्रमशः अर्जित करते जाना ... . वायु गमन और जल गमन क्या हैं साधक में निहित असीम अनन्त संभावनाओ में से एक क्षमता ..
पर क्या प्रक्रिया इतनी सहज हैं . पहले तो इसके बारे में सभी मौन हैं .कोई चाहे आप जितना मेहनत कर लो कोई भी योग्य व्यक्ति जिसे इसके बारे में ज्ञान हैं वह बात ही नही करना चाहे गा .कम से कम मुल भूत बात तो कदापि नही . और कुछ विद्वानों ने इस पर से परदा उठाने कि कोशिश कि पर वे भी अपने एक एक किताब में 50 से 60 2पेज तक इस साधना को क्यों ....और क्या अर्थ हैं ....इसकी विवेचना कर वह भी रुक गए गए क्योंकि .इस साधना करना और और् शब्दों में लिखना बहुत कठिन हैं ..क्योंकि इसके बाद ही वह तंत्र का जगत चालू होता है जिसे वास्तव में अंतर ब्रम्हांड स्थित तंत्र से साक्षात्कार करना कहते हैं इसके पहले कि सारी प्रक्रिया फिर वह चाहे कोई भी साधना ही क्यों न हो वस तैयारी मात्र हैं ... अपने जीवन को स्वयं समझना ..अपने को स्वयं जानना ....... केबल शरीर के परिचय से नही बल्कि उस देह और देहों .......के परिचय से जिसके बारे में कहा गया हैं कि यत पिंडे तत ब्रहांड ...........उसका परिचय .
क्या इस स्थूल देह के अंतर्गत मात्र 7 देह हैं ..ऐसा तो ग्रथ कहते हैं पर योग तंत्र आचार्यों का कहना हैं किऐसा नही हैं बल्कि लगभग 52 अन्य और देह हैं जिसने प्रज्ञा शरीर.... वेंदव शरीर.... और अन्य नामो से सबोधित किया जाता हैं यह सारी की सारी देह और उनकी शक्तिया तो कहीं भी लिखी नही गयी हैं . इस सभी में प्राण तत्व और उर्जा भरने का काम तो यही बिंदु साधना करती हैं. अपने आप से आप सही परिचय ..सत्य परिचय ..इसी को “तमसो मा ज्योतिर गमयः”कह कर इसी बात को संबोधित किया हैं .... साधक किसी अन्य किसी कि तरह बनना चाहता हैं कभी किसी की उपलब्धियां देख कर तो कभी कोई और कारण से ....... से पर यह साधना साधक को वह बना देती हैं जो वह हैं .. और आत्म लीनता सर बड़ा सुख इस संसार में कुछ भी नही हैं .. और जो अपने आप में स्थित हैं वही तो केबल “ स्वस्थ “ हैं अन्यथा कहने से क्या होता हैं .......हम सभी किसी न किसी कारण से चाहे वह छोटा हो या बड़ा बीमार तो किन्ही न किन्ही अर्थो में हैं ही.
पर इस साधना को सम्पन्न कैसे किया जाये.. इस साधना के विवरण इसलिए गोपनीय रखे गए कि इतना अपने आप पर नियत्रण करने या रखने वाले व्यक्ति अब हैं कहाँ . और इस साधना से उच्चता तो ठीक हैं पर पतन कि संभावनाए तो मुंह फाड़ के हमेशा खड़ी रहती हैं .क्योंकि जो उच्च्त देता हैं उसी में थोडा सा गलत हो जाना भी तो उतनी ही पतन के द्वार भी तो.... क्योंकि साधक तो प्रारंभ में पशु भाव से युक्त होता हैं वह दिव्य भाव की साधना ले भी ले तो उस साधना को पशुता में ही ले आयेगा . इस प्रकार स्वत अपना पतन का कारण बनेगा . और साधना बहुत ही कठिन हैं अगर उसे एक सही दृष्टी से समझा जाए तो शिव शक्ति के सयुग्मन और प्रकृति पुरुष के संयोग के साथ रहते हुए ... यह साधना करनी पड़ती हैं . और उस मे अपने सत् तत्व पर पूरा नियंत्रण भी ..जो कि कितना कठिन होगा ..साधक समझ सकते हैं ..इस कारण बहुत कम साधक इस के योग्य हो पाए .
तब क्या देव दुर्लभ साधना को बस ..दूर से ही प्रणाम किया जाए . सदगुरुदेव जी ने पारद तंत्र विज्ञानं कि पुनर्स्थापना करने के लिए दृढ संकल्प लिया था . यह जानते थे की आज उसकी कोई भी महत्त्व नही समझेगा पर उनकी दृष्टी तो उस समय सुदूर भविष्य में देख रही थी . कि जब लोग इस विज्ञानं की गरिमा समझ्नेगे . जब साधना तो उच्च कोटि की शिष्य सम्पन करना चाहेगे पर तब न तो उचित साधना सामग्री ..न भाव .. देह गत योग्यता ..न ही मानसिक शुद्धता होगी तब क्या होगा .....अगर पारद ..आत्मा हैं अगर पारद शरीर स्थित बिंदु का प्रतीक हैं ..शरीर स्थित सत् तत्व का प्रतीक हैं तो पारद “ शिव” का भी प्रतीक हैं..”शिव वीर्य” का भी प्रतीक हैं पारद ... “शिव तत्व” का भी प्रतीक हैं ....तब पारद कहीं आसानी से हमारे शरीर स्थित बिंदु को शिव तत्व में बदल सकता है .पर क्या इस प्रक्रिया में हमें विपरीत लिंगी शरीर की जरुरत नही होगी??? ...नही ...तो कैसे शिव शक्ति या प्रकृति पुरुष के संयोग की बात होगी .??
तंत्र कहता हैं कि इस शरीर में अंतर गत देहों की व्यवस्था कुछ ऐसी हैं कि पुरुष का अगला अंतर शरीर नारी का होता हैं .. फिर अगला पुरुष का और फिर अलग नारी का होता हैं .....यही क्रम आगे चलता हैं जब तक यह लिंगभेद समाप्त न हो जाये . ठीक इसी के विपरीत क्रम नारी देह में होता है उनका ठीक अगला शरीर पुरुष का और फिर उससे अगला नारी का ..यहि क्रम उनमे .. तो पारद अपनी असीम क्षमता से किसी बाह्य गत मैथुन की अपेक्षा ..अंतर्गत इस संयोग को बना देता हैं बाह्य् गत इस प्रकार का संयोग तो कुछ देर का ही हो सकता हैं पर अंतर्गत यह सदैव चलता ही रहेगा .पर पारद से ऐसा हो सकता हैं ....तंत्र जगत के उच्चस्थ इस साधना को सम्पन किये हुए महा योगी भी इस विधान को नही जानते हैं. कहीं पर यह उल्लेखित ही नही हैं, यह तो वश सदगुरुदेव से निसृत ज्ञान की अमृत बूंद का एक अंश का प्रतीक हैं .
परन्तु जो इतनी महत्वपूर्ण क्रिया संभव कर दे .वह पारद गुटिका कितनी देव दुर्लभ होगी .. कहीं कोई लिखित विधान ही नही हैं इसका .... 8 या 12 ही नही बल्कि 18 और 19 संस्कार से युक्त पारद इस गुटिका निर्माण में उपयोग किया जाता हैं . और इसके बाद वह सारी प्रक्रिया तांत्रिक और् मांत्रिक प्रक्रिया जो कि इस अंतर देह गत सयुग्मन की कि क्रिया चालू कर दे .उन क्रियाओं की उच्चता और गोपनीयता और श्रेष्ठता को क्या कहा जाए . यह बिंदु गुटिका या बिंदु बीज बहुत छोटी होती हैं काले रंग की यह गुटिका तो अपने आप में अन्यतम हैं. जैसे जैसे साधक साधना करते जायेगा यह अपन रंगभी बंदलती जायेगी .और इस पर सदगुरुदेव जी ने प्रक्रिया इतनी सरल कर दी हैं कि बस हर चक्र पर ध्यान करते हुए इसका एक विशिष्ट मंत्र का जप करते जाए .और स्वत ही वह सा रे परिणाम जो लिखे गए हैं या कहीं किसी ने वर्णित किये हैं वह स्वयं आपने आप आपके अंदर उपस्थित होते जायेगे .
पर बिना इस गुटिका के जिसे पूर्ण बिन्दोद्भ्व सिद्ध रेतस पारद गुटिका कहा गया हैं यह प्रक्रिया संभव ही नही क्योंकि वास्तव में सारा कार्य तो इस गुटिका का हैं व्यक्ति को तो सिर्फ प्राप्त करके मंत्र जप करना हैं . और प्रक्रिया की दुरुहता इसी से समझ ले कि A4 आकार के 127 पेज में सिर्फ स्थापन के मंत्र वह भी इस गुटिका से साधक के शरीर स्थित हर चक्र से स्थापन या सीधा समपर्क करने में लगते हैं और वह भी इन्हें लगतार उच्चरण करते हुए हि किया जा ता हैं . और यह विधान कहीं पर भी उल्लेखित नही हैं. सिर्फ सिद्धाश्रम की परंपरा में उल्लेखित हैं .
इसलिए इस गुटिका के लिए तो कितनी भी धनराशी का ..कहा तो यह जाता हैं कि इस गुटिका के मूल्य के सामने ...व्यक्ति का जीवन भी कुछ नही हैं.. क्योंकि एक सामान्य से जीवन का अर्थ हैं ही क्या ...पर जब वही एक सामान्य सी बूंद ..समुद्र बन जाती हैं, ..
जब एक छोटा सा मेघ खंड सारे आकाश पर छा जाता हैं .
जब एक छोटा सा बीज जब पूर्ण यौवन वान बरगद का वृक्ष बन जाता हैं तब हम समझ ही पाते कि कितनी सम्भावनाये हो सकती हैं ....
.और वेसे भी इस गुटिका का होना अपने आप में धन धान्य सुख समृद्धि का परिचायक हैं ही . क्योंकि इस18 /19 संस्कार से संस्कारित पारद का अपने पास होना .......अपने घर में होना ही ...... अपने आप में कितना दुर्लभतम हैं इसकी तोकल्पना भी नही की जा सकती हैं.
साधक के सभी मन की इच्छाए स्वत ही पूरी होती जाती हैं भले ही वह यह कभी सोच या समझ भी न पाए कि यह् कैसे और किसके कारण हो रहा हैं जब गुटिका में साक्षात् शिव तत्व पूर्ण ता के साथ विराजमान हैं तब शक्ति को तो उसके घर में आना ही पड़ेगा . जिस घर में यह दोनों हो वहां कैसे ना श्रेष्ठता न होगी ..और जिनके पासभी यह गुटिका होती हैं वह समाज में और भौतिकता मेंउन्नति करते ही जाते हैं .
यह वह साधना हैं जो की या जिसे दिन या हफ्ते में नही बल्कि जिस बात के लिये कहा गया हैं की पूरा जीवन ही एक साधना हैं ........साधना तो एक जीवन की ..शैली हैं उनके लिये हैं . जो अपने जीवन को उच्चता तक पहुचना ही चाहते हैं हर हाल मे ..यह उनके लिए हैं . यह चमत्कार वाली या या कतिपय चमत्कार के साथ अनुभव वाली साधना नही हैं बल्कि जो व्यक्ति का स्वयं से परिचय करा दे .जो उसके स्व से परिचय करा दे....... एक ऐसी साधना हैं और तब जो भी इस साधना के बारे में लिखा गया हैं वह स्वत ही सत्य होने लगता हैं .
यह गुटिका कभी भी इस तरह से प्राप्य नही थी और अब तो इसका विधान जानने वाले वाले भी कहाँ हैं .. सदगुरुदेव जी के आत्मस्वरूप हमारे ही अपने वरिस्ठ्य सन्याशी गुरु भाई बहिनों के द्वारा उनके ही सीधे निर्देश न में यह गुटिका आज अब सुलभ हो सकती हैं . और ऐसा भाग्य फिर कहाँ ..क्योंकि जो भी तंत्र क्षेत्र में हैं..... वह बस बिंदु साधना के बिषय में अगर उसने थोडा भी पढा हैं तो वह तो विस्वास भी नही कर पाता कि यह हो सकता हैं........ और हाँ उत्तर यही हैं की यह होसकता हैं . वहभी एक पूर्ण संतुलित जीवन जीते हुए..ऐसे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं ..
पर इस गुटिका की तो आवश्यक्तता हैं ही.... अनिवार्य हैं .... यह विज्ञापन के लिए नही हैं.. .और यह जन सामान्य के लिये भी नही हैं यह तो बस उच्च उन चंद भाई बहिनों के लिये हैं जो अपने जीवन को सच में सार्थकता देना चाहते हैं .पर समयाभाव और अन्य कारण से उतना नहीकर पा रहे हैं पर अभी भी उनके मन में आकाश को छूने की ............ सदगुरुदेव से मिलने की और अपने जीवन को एक सत्य अर्थ देने कि इच्छा जीवित हैं .प्रक्रिया बस इतनी हैं कि जमीन पर एक मैथुन चक्र बना कर उसके मध्य में बने बिन्दुके ऊपर बैठ जाये और इस गुटिका को हाथमे लेकर एक विशिट मंत्र का जप करना हैं .और बस ...आपकी साधना जैस से जैसे अपनी प्रगाढता पर जाते जायेगी वेसे वसे आप अपने अंदर हो आरहे परिवर्तन को समझ पायंगे .आफले यह सुक्षम्तम होंगे ..और फिर ... .बाह्य्गत किसी चमत्कार की अपेक्षा .अंतर जगत के आपके स्व ..ठोस अनुभव ही इस साधना मार्ग कि विशिष्टता हैं और वही इसके माध्यम से सम्भव हैं . तो जोभी ऐसा करना चाहते हैं . जो केबल चमत्कार एक पीछे नही दौड़ रहे हैं , वह यह गुटिका अब प्राप्त कर सकते हैं .
निश्चय ही यह अपने आप में एक अप्रितम अवसर होगा .
आगे इस साधना के अगले चरणों के बारे में तो वही ही जान पाएंगे जो इस पथ पर हैं ..क्योंकि जो भी ..सदगुरुदेव में समाहित होना चाहते हैं उसे ध्यान में रखना ही होगा कि वहां........ न तो जय सदगुरुदेव चलना हैं......... आरती .......न चालीसा....... न कोई स्त्रोत ........और न ही कोई मंत्र जप ..नभाव में नाचना ..........न ही भाव में रो ने से कुछ हो पायेगा ....
.क्योंकि सदगुरुदेव तो परम विशुद्धतम हैं और हम कहाँ हैं??? ..कितने जीवनों के दूषित कर्म से युक्त और एक पल मान भी ले ही कि हम शुद्ध हैं फिर भी परम विशुद्धतम से शुद्ध भी नही मिलाया जा सकता हैं .... समान धर्मा तत्व ही तो आपस में मिलंगे
. तो इस साधना और इस परम दुर्लभ गुटिका के माध्यम से अपने जीवन को परम विशुद्धतम बनाने की दिशा में बढ़ने का मौका मिले तो ..और जो भी आपके अपने स्व तत्व को पहचानने का मौका दे .......वह एक प्रकार से गुरु साधना ही न हुयी क्योंकि हमारा स्व तत्व क्या हैं अगर हम कहते हैं कि हम सदगुरुदेव के अंश हैं ..
बस अब उस अंश में छाई विचारगत , भावना गत , अनेको जन्म गत जो भी मलिनता हैं उसे साफ़ करके निर्मल होने का यह गुटिका एक अद्वितीय अवसर हैं .. इसे अवसर को पहचाना चहिये और यह साधना तो भविष्य में भी की जा सकती हैं पर तब यह गुटिका मिलेगी ...?????? .जो इस इस साधना का अर्थ समझे ..उनके लिए यह स्वर्णिम अवसर हैं अन्यथा अन्य के लिए एक सामान्य जानकारी और आलोचकों के लिए सिर्फ एक विज्ञापन ...
आगे ...
जा की रही भावना जैसी .....
****NPRU****

2 comments:

Neeraj said...

Greatsadhna.How to get this gutika?

Anonymous said...

Dear brother, for gutika you may send e-mail on nikhilalchemy2@yahoo.com