Indrastvam Praan Tejsa Rudroasi Parieakshita |
Tvamantrakshe Charsi Surystvam Jyotishaam Patih ||
Normal meaning of this sloka, described in
Prashnoupnashid is merely this that
“He Praan, You are Indra. In your completely
powerful form, you are in Rudra form and are the intensity of destruction and
at the same time you are the one who saves us from this intensity. You, while
continuously transmitting forms of sun in visible and invisible universe, expand
all types of light, being their master or ruler (Ruler of these lights).”
However this sloka has got special meaning in
Tantra scripture. If it is used with understanding then sadhak definitely
attains complete Sammohan capability and prosperity. Beside this, he also
attains complete security in his life. Whenever we talk about Maa Bhagwati
Valgamukhi, then we have only considered attainment of stambhan quality and
capability to have full control over enemies as last goal, but reality is somewhat
different.
Because there is no form of Bhagwati Aadya Shakti
which is incomplete in itself. In other words, prayer and sadhna of any form
can provide you all that which you have imagined anytime…
“Ichha Maatren Srishtim Bhavet”
In other words, all which can be imagined or all
which is beyond imagination can be attained merely by desire of Aadi Shakti.
Because probably we forget the fact that our imagination can’t originate in our
imagination until and unless Para Shakti does not wish so.
All forms of Mahavidyas represent some element or
the other, like Bhagwati Chinmasta represents Shunya element (emptiness or
vacuum).Mahakaali represents fire element. In the similar manner Bhagwati
Baglamukhi is the ruler of Praan element.Uptill the time, sadhak’s Mool Uts is not completely activated, sadhak can only attain the blessings of her associate
powers. However complete Aatm Saamipyakaran (closeness to soul) is possible
only when we activate our Mool Uts and make that Sootra conscious, which
connoisseur of Aagam scripture know by the name of Atharva Sootra. There are many
misconceptions spread among sadhaks regarding this Sootra.
However the reality is that that existence of
sadhak which is called relative universal existence in scientific language can
be present anywhere in this universe and connection of it with our
materialistic body is possible only after activation and expansion of this very
Sootra. Complete attainment of all vigyans coming under Praan element is
possible only through Atharva Sootra, activated and attained by this Mahavidya
sadhna. May it be abstruse Surya Vigyanam or the divine field of Praan Vigyan. Expanding one’s own praan in
this whole universe and doing Poorn Brahmand
Bhedan is possible only through this sadhna. Bhedan and
complete control over 49 Marutgan and 5 praans coming under the authority of Manipur Chakra is possible only by Baglamukhi sadhna
Sadhak can establish contact with both Para and
Apara world by expanding Praan element and can introduce himself to novel
knowledge through novel facts. Though more than thousands of basic sadhna
process and mantra are in vogue among sadhaks to attain the excellence and
divinity of this Mahavidya which I would try to describe in this series
successively but if one has to experience contact with Para Apara world by only
expanding Praan Shakti, then Sadhak can experience the expansion of that Praan
Shakti by merely mantra chanting of Vidaalmukhi Yakshini, which is one
of many Yakshini among under this amazing MahaVidya. Sadhna of this yakshini
provides complete favour for success in sadhna of Bhagwati.
There are no special rules. On any Saturday
midnight sadhak has to wear yellow clothes and sit on yellow blanket(In absence of yellow blanket, one can take blanket
of any colour and spread yellow colour shawl or yellow colour silky/woollen
cloth over it and sit on it). Direction will
be north. Light one til oil lamp in front of you on Baajot. Chant OM MEN MEN VIDAALMUKHI SWAHA for three hours with full concentration…..he will
himself get introduced to intensity of feelings and expansion of Praans. (Before
basic Jap, Guru Poojan and Ganpati poojan along with Deep Poojan is necessary
so that complete security is attained)
Just getting introduced to any Vidhi is not the
quality of sadhak, rather after attaining Vidhaan, doing it practically is
quality of real sadhak.
Which Prayog of Bhagwati Baglamukhi can provide
manhood to males and complete beauty to females, description of it will be
provided in the next article……up till then….
“Nikhil Pranaam”
इन्द्रस्त्वं प्राण तेजसा रुद्रोSसि परिरक्षिता |
त्वमंतरिक्षे चरसि
सूर्यस्त्वं ज्योतिषां पति: ||
प्रश्नोपनिषद में वर्णित इस
श्लोक का सामान्य अर्थ तो मात्र ये है की
“हे प्राण,तुम इंद्र हो,अपने पूर्ण प्रबल रूप
में तुम साक्षात् रूद्र स्वरुप होकर तुम संहार की तीव्रता हो तो उसी तीव्रता से
रक्षा करने वाले भी हो | तुम ही तो इस दृश्यमान और अदृश्य अंतरिक्ष में सूर्य के
रूप सतत संचरण करते हुए सभी प्रकार की ज्योतियों का विस्तार उनके स्वामी या अधिपति
के रूप में करते हो |”
किन्तु तंत्र शास्त्र में इस
श्लोक का एक विशेष अर्थ है. जिसे यदि समझ कर प्रयोग किया जाए तो साधक को निश्चय ही
पूर्ण सम्मोहन क्षमता और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,साथ ही साथ उसे स्वयं के
जीवन में पूर्ण सुरक्षा भी प्राप्त होती ही है. जब भी भगवती वल्गामुखी की बात होती
है तो मात्र हमने उससे स्तम्भन के गुणों की प्राप्ति और शत्रुओं पर पूर्ण नियंत्रण
की क्षमता प्राप्ति को ही अंतिम लक्ष्य मान लिया है,जबकि सत्य ऐसा है नहीं.
क्यूंकि भगवती आद्याशक्ति का कोई भी रूप ऐसा नहीं
है जो अपने आप में अपूर्ण हो,अर्थात किसी भी रूप की अभ्यर्थना और साधना आपको वो सब
प्रदान कर सकती है,जिसकी आपने कभी भी कल्पना की हो....
“इच्छा मात्रेण सृष्टिम् भवेत्”
अर्थात वो सब कुछ जो कल्पनीय है
या अकल्पनीय है उस आदिशक्ति के चाहने मात्र से सृष्टि प्राप्ति कर सकता है.
क्यूंकि हम शायद ये भूल जाते हैं की हमारी कल्पना भी हमारी कल्पना में तब तक
प्रादुर्भाव नहीं पा सकती है जब तक की उस पराशक्ति की इच्छा ना हो.
महाविद्याओं के सभी रूप किसी ना किसी तत्व का
प्रतिनिधित्व करतें हैं,यथा भगवती छिन्नमस्ता शुन्य तत्व को प्रदर्शित करती हैं.
महाकाली अग्नि तत्व को प्रदर्शित करती हैं, वैसे ही भगवती बगलामुखी प्राण तत्व की
अधिष्ठात्री स्वामिनी हैं, साधक का मूल उत्स जब तक पूरी तरह जाग्रत ना
हो,साधक तब तक मात्र इनकी सहचरी शक्तियों की कृपा ही प्राप्त कर सकता हैं,किन्तु पूर्ण आत्मसामिप्यकरण तभी संभव है,जब हम मूल
उत्स का जागरण कर उस सूत्र को चैतन्य कर लें जिसे आगम शास्त्र के मर्मज्ञ अथर्वासूत्र के नाम से
जानते हैं | इस सूत्र को लेकर बहुत ही भ्रामक तथ्य साधकों के मध्य फैले हुए हैं.
जबकि
वास्तविकता ये है की साधक का वो अस्तित्व जो इस ब्रह्माण्ड में कहीं भी हो सकता
है,जिसे विज्ञान की भाषा में सापेक्ष ब्रह्मांडीय अस्तित्व कहा जाता है, को हमारे
भौतिक शरीर से जोड़ने का कार्य मात्र इसी सूत्र की जागृति और विस्तार के बाद ही
संभव हो सकता है. प्राण तत्व के अंतर्गत आने वाले सभी विज्ञानों की पूर्ण प्राप्ति
मात्र इसी महाविद्या साधना से जाग्रत और प्राप्त अथर्वा सूत्र के द्वारा ही तो
संभव हो पाता है,फिर वो चाहे सूर्य
विज्ञानं की गूढता हो,या फिर प्राण
विज्ञान की दिव्यता का क्षेत्र, स्वयं के प्राणों का इस अखिल ब्रह्माण्ड
में विस्तार कर पूर्ण ब्रह्माण्ड भेदन कर देना इसी साधना से तो संभव होता है. मणिपूर चक्र के स्वामित्व में आने वाले ४९ मरुतगण और पाँचों प्राणों के रहस्य
का भेदन कर उन पर पूर्ण नियंत्रण मात्र भगवती बगलामुखी साधना से ही तो सम्भव है.
प्राण तत्व का विस्तार कर साधक अपरा और परा
दोनों ही जगत से संपर्क स्थापित कर सकता है तथा नवीन तथ्यों से नवीन ज्ञान से
परिचय प्राप्त कर सकता है.वैसे तो मूल साधना क्रम और हजारों से भी ज्यादा मंत्र
प्रचलित हैं साधकों के मध्य इस महाविद्या की उत्कृष्टता और दिव्यता को पूरी तरह
प्राप्त कर लेने के लिए,जिसका विवरण इसी श्रृंखला में करनें का मैं क्रमशः प्रयास
करुँगी किन्तु यदि मात्र प्राण शक्ति के विस्तार द्वारा उस परा अपरा जगत से संपर्क
करने का अनुभव करना हो तो उस प्राण शक्ति के विस्तार को मात्र इस अद्विय्तीय
महाविद्या के अंतर्गत आने वाली यक्षिणियों में से विडालमुखी यक्षिणी के मंत्र जप
से ही साधक अनुभव कर सकता है. इस यक्षिणी की साधना भगवती की साधना में सफलता के लिए पूर्ण अनुकूलता प्रदान करती है.
कोई विशेष नियम नहीं मात्र किसी भी शनिवार को
पीले वस्त्र धारण कर उत्तर दिशा की ओर मुख कर अर्ध रात्रि में पीले कम्बल (पीले कम्बल के अभाव में किसी भी रंग के कम्बल के ऊपर पीले रंग की शाल या पीले रंग का रेशमी या ऊनी कपड़ा बिछाकर बैठ सकते हैं) पर बैठकर
सामने बाजोट पर तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित कर और गुग्गल धूप या अगरबत्ती प्रज्वलित कर ३ घंटे बिना किसी माला के पूर्ण
एकाग्रचित्त और निष्कंप भाव से आँखें बंद करके “ॐ में में विडालमुखी स्वाहा” (OM MEN MEN VIDAALMUKHI SWAHA) मंत्र का जप करें...अनुभूतियों की तीव्रता और प्राण के विस्तार से वो स्वयं ही परिचित होता
जायेगा(हाँ मूल जप के पहले गुरु पूजन और गणपति पूजन,दीप पूजन के साथ अनिवार्य
है,ताकि उसी पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो सके).
मात्र किसी विधि से परिचित होकर बैठ जाना साधक
का गुण नहीं है,अपितु विधान की प्राप्ति के बाद उसे क्रियात्मक रूप से करके देखना
साधकत्व है |
भगवती बगलामुखी के किस प्रयोग
के द्वारा पुरुष को पौरुषत्व की और स्त्री को पूर्ण नारी सुलभ सौंदर्य की प्राप्ति
होती है,इसका विवेचन अगले लेख में..तब तक के लिए ....
“निखिल प्रणाम”
****RAJNI
NIKHIL****
****NPRU****
1 comment:
bahut hi gudh rahasya ka khulasa kiya hai iss sadhna mein.hum to sarvatha pehli baar iss gudh tathya se parichit ho rahe hain.thanks for sharing.anya gudh sutron ka besabri se intezaar hai.jai sadgurudev.
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