अब तक नाद से सबंधित प्रथम प्रक्रिया के तीनों चरणों के बारे मे हमने जाना. अब नाद से सबंधित ही दूसरी प्रक्रिया जिसका मुख्य आधार हे ‘गुंजरण’. इस प्रक्रिया के बारे मे सदगुरुदेव ने कई बार बताया है की यह प्रक्रिया साधक अगर सही रूप से सम्प्पन करे तो साधक कुछ ही दिनों मे ध्यानावस्था को प्राप्त कर सकता है. वस्तुतः गुंजरण और नाद मे एक अत्यधिक गहरा सबंध है. नाद आतंरिक रूप से निरंतर गतिशील ध्वनि है जिसे बाह्य रूप से हम अपने अंदर सुन सकते है.
हमारी गतिशीलता पर नाद का बहुत ही प्रभाव रहता है. अगर उस नाद को तीव्र बनाना है तो बाह्य रूप से उसे विशेष ध्वनि के माध्यम से उन ध्वनि तरंगों को आघात किया जाता है जिससे उनकी तीव्रता बढ़ जाती है. नाद का मुख्य सबंध ह्रदय से रहता है वहा से आगे वह उर्जा को पहोचाना कठिन है इस लिए साधको के मध्य गुंजरन प्रक्रिया है जिससे वह उर्जा मस्तिस्क तक पहोचे. मस्तिस्क पर वह उर्जा सीधे आघात नहीं करती वरन हमारे ज्ञान तंतुओ की शिथिलता को दूर कर के उन्हें उर्जा प्रदान करती है. इस प्रक्रिया से व्यक्ति की ज्ञान शक्ति मे तीव्रता आना स्वाभाविक है और व्यक्ति कुछ दिनों तक नियमित अभ्यास करता रहे तो वह सहज ध्यान अवस्था को प्राप्त कर सकता है. और ध्यानावस्था के बाद भी नियमित अभ्यास से वह मुख्य नाद को सहज ही सुन सकता है.
इस प्रक्रिया को करने से पहले साधक के लिए अत्यधिक ज़रुरी है की वह नाडी शोधन करे. इसके लिए अनुलोम विलोम के पांचो प्रकार को ‘ह्रीं’ बीज मंत्र के साथ करे. इस प्रकार की प्रक्रियाए पूर्व लेखो मे बता दी गयी है. इस शोधन के बाद साधक आँखे बंद कर लंबी साँस खिंच कर ‘ॐ’ का उच्चारण करे. तिन बार के उच्चारण के बाद साधक गुंजरन प्रक्रिया को शुरू करे.
इसमें भी दो प्रकार से प्रक्रियाए होती है. पहले कुछ दिनों तक सामान्य प्रक्रिया करे.
इस प्रक्रिया मे व्यक्ति पद्मासन या सिद्धासन मे बैठे और उसके बाद साधक लंबी साँस खिंच कर अपने हाथो की मदद से आँखे कान नाक तथा मुख बंद करे और अंदर ही अंदर गुंजरन चालू कर दे...पहले कोशिश करे की ‘ॐ’ का गुंजरन हो. जब तक हो सके गुंजरण को एक साँस मे ही करते रहे. इस बिच मे आँख कान नाक और मुख बंद रहे तथा अंदर खींची गई साँस बहार ना निकले. फिर से साँस ले और गुंजरन करे. इस प्रकार यह प्रक्रिया १५ मिनिट तक करे, उसके बाद ‘हूं’ का गुंजरण करे. यह प्रक्रिया भी १५ मिनिट तक हो. उसके बाद साधक ‘ॐ हूं’ बीज की २१ माला जाप आँखे बढ़ कर के स्फटिक माला से करे. यह प्रक्रिया सुबह या शाम के समय की जा सकती है. लेकिन पुरे दिन मे इसे एक बार ही करे. यह क्रम ११ दिन तक रहे तो उत्तम है. जिसके बाद साधक को इस प्रक्रिया के दूसरे चरण की तरफ जाना चाहिए.
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Till now we discussed about three steps of first process related to Naad. Now, moving on to the second process of naad which has ‘Gunjaran’ (humming sound) as base. Sadgurudev have many time told about this process that if sadhak do this process in right way, one can gain stage of meditation in few days. Literally, there is deep and important relation between Naad & Gunjaran. Naad is inner continued sound which outside could be heard through inner ways.
Our mobilization has a big effect of Naad on it. If the efficiency of the Naad is to be increased, that could be done with the medium of outer generated sound and can modulate those sounds to increase capabilities. The basic relation of naad stays with heart and to forward that energy further from there is bit tough and thus there is Gunjaran Process between the sadhak through which that energy can reach up to head. There is no direct affect of this energy on Head but it removes tardiness of knowledge sources and fibres by providing energy. With this process it is natural to have boost in knowledge power and if one does regular process for some days then it results in very free meditation stage. And one keep on doing the process further on can hear and understand basic Naad.
Before completing this process it is very important for sadhak to do naadi sodhan. For this, one should do all five types of anulom vilom with beej mantra “Hreem”. Such processes have been mentioned previously. After the process with closed eyes one should take long breath and chant ‘Om’. After three times of ‘Om’ chantings, one can start the Gunjaran Process.
This process also has two sub processes. For few days one should follow this normal process.
In this process one should sit in Padmasan or Siddhasan and after that one should take long breath and by closing eyes, ears, nose and mouth one should start Gunjaran. First one should try to do gunjaran of “Om” sound. Till the time it is possible do the gunjaran in single breath. Meanwhile eyes, nose, mouth and ear should be close and there should be no air lick from there. Take a breath again and start gunjaran again. This way this process should be done for 15 minutes, after that sound of Gunjaran should be changed to “Hoom” from “Om”. This process should also be done for 15 minutes. After that sadhak should do mantra chanting with sfatik rosary 21 rounds of “Om Hoom” beej. This process could be done at morning or evening. But in whole day, this process should be done once. It is good to follow the process for 11 days. After that sadhak should go for the next stage of this process.
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1 comment:
Thanks a lot for posting such things here.This is really good work.
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