जब इन दुर्लभ प्रक्रियाओ को अपनाया तब जाना की वास्तव मे ही योग तंत्र की इन सामान्य सी दिखने वाली प्रक्रियाओ मे कितनी तीव्र है और साधक अगर नियमित अभ्यास जारी रखे तो कुछ ही दिनों मे अपने अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है. प्राणायाम मे अनुलोम विलोम से सबंधित विशेष प्रक्रियाओ के बारे मे हमने जाना. वस्तुतः साधक को तुरंत ही इन प्रक्रियाओ मे उलज नहीं जाना चाहिए. एक निश्चित समयकाल तक इसे नियमित रूप से करते हुए धीरे धीरे अभ्यास को बढ़ाना चाहिए. इन प्रक्रियाओ को अपनाते समय किसी भी प्रकार की जोर ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए या फिर अपने हिसाब से प्रक्रियाओ मे परिवर्तन बिलकुल नहीं करना चाहिए. ये प्रक्रियाए सीधे ही चक्रों तथा कुण्डलिनी से सबंध रखता है. एक मामूली सी गलती भी कुण्डलिनी का वेग बदल सकती है तथा साधक को अत्यधिक से अत्यधिक नुकशान हो सकता है. अभ्यास को सावधानी पूर्वक करना ही हितकारक है. साधक के लिए ये भी उत्तम रहता है की वह कुछ दिन तक मूलाधार मे सुषुप्त कुण्डलिनी को जागृत करने की प्रक्रिया करे, जिससे की अचानक जागरण के वक्त एक साथ जो उर्जा का संचार हो सकता है उससे संभवित नुकसानों से बचा जा सके. कुण्डलिनी जागरण के लिए साधक को सर्व प्रथम अनुलोम विलोम को सोऽहं बीज के साथ पांचो प्रकार से कर लेना चाहिए जिसकी विधि पहले ही स्पष्ट की जा चुकी है यह उर्जा का संचार तथा शरीर शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है. इसके बाद साधक को भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए. भस्त्रिका करने पर उसके मूल लाभ ना मिलने का एक मुख्य कारण यह है की जब व्यक्ति साँस के माध्यम से वायु खींचता है तब वह पेट तक ही पहोच कर वापस आ जाती है. जब की भस्त्रिका के लिए जिस वायु को अंदर खिंचा जाता है उसे मूलाधार तक यानी के शरीर मे गुदा मार्ग तक पहोचाना चाहिए. अब उसके वेग के ऊपर बात करे तो साँस को जितनी जोर से खिंच सकते है खींचना चाहिए तथा उसे उतने ही वेग से बहार निकालना चाहिए. रीड की हड्डी को सीधी कर के बैठने पर और कुछ दिन अभ्यास करने पर साधक उस वायु को सीधा मूलाधार पर आघात करने मे सक्षम हो जाता है.
शुरूआत मे साधक को ये ख्याल रखना चाहिए की यह प्रक्रिया १५-२० बार से ज्यादा न करे वर्ना नाक से खून बहेना शुरू हो सकता है. यु कुछ दिनों के बाद इस अभ्यास को ६० बार तक ले जाए. तब नाक से पीला चिकना कफ, जमा हुआ खून तथा कई बार काले रंग की अशुद्धि निकलती है. यह सब आतंरिक अशुद्धियाँ होती है जो की नाडीओ मे जम चुकी होती है. इसे साफ़ करना चाहिए. अब इस अभ्यास की तीव्रता को बढ़ाना है. एक मिनिट मे ६० बार पूर्ण भस्त्रिका होना चाहिए मतलब की एक सेकंड मे एक बार. जोर से साँस को खींचना मूलाधार पर आघात कर उसे वापिस जोर से बहार निकाल देना यह एक बार हुआ जो की एक सेकंड मे होना चाहिए. साधक ने आगे की प्रक्रियाओ का ठीक से अभ्यास किया होगा तो यह सहज ही है. इस प्रक्रिया के बारे मे सदगुरुदेव ने कहा है की अगर साधक इस प्रकार से ५ मिनिट अभ्यास कर ले (मतलब की २०० बार) तो २१ दिन मे उसकी कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है तथा मूलाधार पूर्ण रूप से जागृत हो जाता है. कल्पना कर सकते है की रोज मात्र ५ मिनिट का ही अभ्यास और कुण्डलिनी जागरण संभव हो जाता है. अगर आगे साधक अपना अभ्यास जारी रखे तो वह अंदर ली गयी साँस को निश्चित चक्र पर आघात करने मे भी सक्षम हो सकता है और इसके बाद साधक सिर्फ इस एक प्रक्रिया के माध्यम से रोज ५ मिनट अभ्यास करे तो भी सभी चक्रों को जागृत कर सकता है.
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When these rare practices were applied in routine at that time I understood that in real this very general looking processes of yogatantra are highly effective and if sadhak continues the practice daily; in very short span of time one can achieve desired results. We understood about the special processes related to anulom vilom pranayam. In fact one should not get confused directly in applying. One should practice it to particular time period and gradually the practice should be increased. While applying these processes one should never apply forceful efforts in practice or one should never even try to modify the processes. These processes are directly in relation with chakras and kundalini. One small mistake can even change the way of kundalini and can cause heavy damage to sadhak. It is always better to do practice with cautions. It is also better for sadhak to practice process of kundalini activation for some days thus to prevent oneself from the negative effect of energy produced which may take place on unexpected kundalini activation. For kundalini activation one should first perform 5 types of anulom vilom pranayam with soham beeja the method of the same have been described in previous posts which is very important for energy generation and body cleansing. After that sadhak should practice Bhastrika Pranayaam. While performing bhastrika often one of the reasons not getting the desired benefit is that when one breathes-in, air comes back from stomach only. But the in right method air inhaled in bhastrika should reach till muladhar chakra or in other words till anus. While coming on the force of the air, one should apply as much as force as they can while breathing-in and with the same force the breathing out should also be done. By sitting with a straight spinal and practicing it for few day sadhak will be able to pass the air breathed in during bhastrika to muladhar chakra. In beginning sadhak should take care that this process should not be done more than 15-20 times or else it may cause bleeding from nose. This way one should slowly take this practice till 60 times. At that time impurities like yellow cough, solid blood particles aur black colored impurities may come from nose. These all are internal impurities which are stuck in veins. One should clean these. Now the force of the practice could be increased. In one minute 6 times bhastrika should be done that means one time in one second. In one second the full process of breathing in with force to make the air reach to muladhar and finally breathing out with force should be done. If sadhak have practiced previous mentioned practices, this will act very easy to do. In regards to this process sadgurudev told that if sadhak practice this for 5 minutes (means 200 times) thus results in kundalini activation in 21 days and muladhar becomes completely active. You can imagine that with just 5 minutes of daily practice kundalini activation is possible. If sadhak continues his practice further he may control the breath air to take it at any chakra and after this if sadhak continues this process for 5 minutes daily, one can activate all the chakras with this.
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3 comments:
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Anu
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