ज्ञानदान देने वाले सद्गुरु ही ब्रह्म,विष्णु, और सदाशिव हैं अर्थात अविचल नियमानुसार विश्व के उत्पादक,संरक्षक और संहारक जो देव मने गए हैं उनकी शक्ति सदगुरुदेव के ह्रदय में अवस्थित रहती है.इन तीन लोको में उनसा दयालु कोई नही है, और उनके चरणों में नतमस्तक रहते हुए जो भी ज्ञान की याचना करता है उसे रस सिद्धि का फल प्राप्त होता ही है.
'' we are told that a man can receive the secret knowledge only through divine inspiration or frm the lips of a master,and also that no one can complete the work except with the help of god.''
वाम संप्रदाय की प्रबल सरिता के प्रवाह में बहते हुए समाज का उद्धार करने के लिए इस श्री विद्या का (रस विद्या का) सनातन सत्य समाज को दिया गया था हमारे ऋषियों द्वारा.
विभिन्न रोगों की निवृत्ति के लिए रस का प्रयोग कर के रोग मुक्त समाज का निर्माण इस विद्या का उद्देश्य था.
निर्धनता रूपी महापाप को नष्ट करने के लिए इस रस विद्या का प्राकट्य किया गया .जिससे जीवन में दरिद्रता और गरीबी का शाप साधक को न पीड़ित करे.
"यथा देहे तथा लोहे"
इस ब्रह्माण्ड में जो शाश्वत है वो रस ही है .......
यह सृष्टि विद्युत् और प्रकास के परिणाम स्वरुप है.विद्युत, जल,और पृथ्वी के कार्यों में प्रवेश करके सूक्ष्मतम,सुक्ष्म, स्थूल, स्थुल्तम आदि विभिन्न रूपों को धारण करती रहती है.इस विद्युत का चंद्र किरण के साथ सम्मिलन होकर जो स्थूल रूपांतर होता है,वह पारद बन जाता है.उस पारद का स्थूल रूप विनाश होने पर पुनः मूल सूक्ष्मतम रूप में विलीन हो जाता है.इसके आलावा दूसरा तत्त्व सूर्य किरण है वह विद्युत के साथ सम्मिलित होकर स्थूल रूप धारण कर रक्त गंधक बन जाता है.
यही दो रस सिद्धों के मुख्या द्रव्य हैं.
विशुद्ध प्रद को स्वर्ण, अभ्रक का ग्रास देकर उसे रसेन्द्र बनाकर उससे हरगौरी रस या सिद्ध रस का निर्माण किया जाता है.इस सिद्ध रस को ही अलग अलग देशो में अलग अलग नाम से जन जाता है.
ग्रीक- उनम
china- ching chin
western country-etarnal water
islamic country- aaftaab
इसे व्हाइट रोस,रेड रोस,फिलोसोफेर' स स्टोन.एलिक्सिर वित,अर्कानुस, सोल ऑफ़ मैटर भी कहते हैं.
जीवों को रोग मुक्त और दरिद्रता से मुक्त करने के लिए ही रस सिद्ध इस हर गौरी रस का निर्माण करने के लिए अथक प्रयत्न करते रहते हैं .
****ARIF****
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