Friday, November 28, 2008

पारदेश्वर और रासेश्वरी दीक्षा

जिस विज्ञानं के द्वारा जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन किया जा सकता है . तंत्र का वो श्रेष्ट तं रूप्सिर्फ़ पारद विज्ञानं में ही दृष्टिगोचर होता है . तंत्र के इस प्रभाग से जीवन को पूर्ण रूप से संवारा जाता है और जीवन के सभिश्रेष्ठ उद्देश्य इस से पूरे किए जा सकते है.

यह शिष्यों का सौभाग्य हैकि आज भी हमारे मध्य में इस दिव्या साधना के समस्त सूत्रों को प्रदान करनेवाले तत्वज्ञ सदगुरुदेव के रूप में हैं .

मुझे यह तो नही पता की आप मेरी बातों को कितना ज्यादा समझते होंगे. पर यदि मुझे कुछ मिला है तो आप भी उस विषय को सद्गुरु से प्राप्त कर सकते हैं.
मैं बार बार आप लोगो से निवदन करता हूँ की आप पारद और उसके महत्त्व को समझे ........

इस ब्रह्माण्ड में पारद ही वो धातु है जो की पूर्ण रूपसे प्रकृति के पंचभूतों को स्वरूपित करता है:
सॉलिड - ( पृथ्वी)
liquid- water (jal)
chanchal-air (vayu)
light(tez)- fire (agni)
sukshma - sky (aakash)

अपने इन्ही स्वरूपों के कारण यह भगवान् शिव के पञ्च कृत्यों का सञ्चालन भी करता है .

श्रृष्टि
पालन
संहार
तिरोभाव
अनुग्रह

अब तो कोई अभागा ही होगा जो कृपा के इन पक्षों को प्राप्त न करे.

यदि हम अपने जीवन ऐश्वर्य और दिव्यत्व के रंगों से भरना चाहतेहैं तो हमें पारदेश्वर की स्थापना करना चाहिए और उनका पूजन करमा चाहिए.उनके पूजन से सर्व विध मनोरथ पूरे होते हैं .

जिन साधकों की अभिलाषा रस विज्ञानं में सफलता पाने की है वे रसेश्वर गायत्री मंत्र का जप अधिक से अधिक करें.

पारदेश्वर के २ प्रकार होते हैं :
१.सकल पारदेश्वर- इनका निर्माण गोल्ड, सिल्वर,अभ्रक और रत्नों आदि केद्वारा पारद बंधन करके होता है. इन धातुओं के ग्रास्सन के कारण साधक को ऐश्वर्या और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है .जिससे जीवन के सभी पक्ष संवर जाते हैं.

g२. निष्कल पारदेश्वर â€" इनका निर्मान्पूर्ण रूप से दिव्या वनस्पतियों और पारद के द्वारा होता है .यह रसेश्वर योगियों के मध्य अध्यात्मिक उर्जा देने के लिए विख्यात है. और इनकी साधना भी उन्हें ही फलीभूत हैं क्योंकि एक मर्यादित जीवन का पालन गृहस्थों के लिए सम्भाव्नाही है.


रस विज्ञानं में सफलता और सिद्ध्होने के लिए रासेश्वरी दीक्षा अनिवार्य ही है , इस दिव्व्य दीक्षा के द्वारा साधक के शरीर में गुरु उन दिव्या बीज मंत्रों और शक्ति का स्थापन कर देता है जिसके द्वारा साधक को सफलता मिलती ही है , और वे रहस्य भी ज्ञात हो जाते हैं जो काल व पात्र की मर्यादा के कारण गुप्त रखे जाते हैं.

इस दीक्षा के ५ चरण होते हैं.:

१.समाया दीक्षा
२. साधक दीक्षा
३. निर्वाण दीक्षा
४. आचार्य दीक्षा
५. सिद्ध दीक्षा

इस दीक्षा के बाद आपको सद्गुरु से पारद के रसेन्द्र स्तोत्र , निष्कल रस्स्तोत्र और रासेश्वरी मंत्र की प्रप्तिहोती है जिसके द्वारा पारद की देवदुर्लभ बंधन प्रक्रिया सहज हो जाती है .....

रसेश्वर गायत्री मंत्र :
ऍम रसेश्वराय विद्महे रस अंकुशाय धीमहि तन्नोह सुतः प्रचोदयात

अब मैं तो सिर्फ़ यही कह सकता हूँ ki yadi अभी भी हम नही जागे तो हमारे दुर्भाग्य के दोषी हम ही हैं और कोई नही.......


****आरिफ****

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