Thursday, February 23, 2012

विद्याप्राप्ति मातंगी साधना (VIDYAPRAPTI MAATANGI SADHNA)


हर व्यक्ति का यह स्वप्न होता है की वह अपने जीवन मे उर्ध्वगामी बने और ज्ञान को अर्जित करे. जब ज्ञान का क्रिया से संयोग होता है तब उसे विद्या कहा जाता है. व्यक्ति के पास ज्ञान होता है लेकिन उसी ज्ञान को विद्या नहीं कहा जा सकता है. विद्या और ज्ञान मे एक सामान्य अंतर है जिसे हम अक्सर भूल जाते है. किसी भी विषय के बारे मे हमें पता होना, उसके सिद्धांत तथा रूप रेखा के बारे मे जानकारी रखना यह हमारा ज्ञान है. लेकिन वह ज्ञान से सबंधित क्रिया होती है वह योग्य रूप से न होने पर कई बार व्यक्तिको असफलता का मुह देखना पड़ता है. उदहारण के लिए, एक अर्थशास्त्र का उच्च विद्वान है, जिसे अर्थशास्त्र का पूर्ण ज्ञान है और वह एक बहोत ही उच्च विद्यालय मे अर्थशास्त्र के व्याख्याता है. यह उनका ज्ञान है. उनको वो सिद्धांत की जानकारी है, अर्थ शास्त्र की रूप रेखा की पूर्ण समज है. लेकिन यह ज़रुरी नहीं है की अर्थ शास्त्री को अगर देश का अर्थतन्त्र चलाने के लिए सोंप दिया जाए तो वह योग्य रूप से चला ही लेगा. किसी के पास देश विदेश के विविध व्यंजनों की समज है तथा कौनसे व्यंजन मे क्या और कितनी सामग्री चाहिए वो भी पूर्ण रूप से ज्ञात है लेकिन इससे वह एक पूर्ण ज्ञानी बावर्ची नहीं बन जाएगा. क्युकी ज्ञान शक्ति का क्रिया शक्ति से जब समन्वय होता  है तब वह विद्या बन जाता है. अपने अंदर निहित ज्ञान को क्रिया रूप मे उपस्थित करना यह अपने आप मे एक विशेष कला है. भले ही हम इस बात को नकार दे लेकिन गृहस्थ पक्ष के सबंध मे यह एक नितांत ही आवश्यक तथ्य है. क्यों की हमारे आस पास की रोजिंदी घटनाओ मे हमें हताशा का सामना कई बार इस तथ्य की अवलेहना के कारण करना पड़ता है. लेकिन क्रिया शक्ति को जागृत कर विद्या प्राप्ति करना साधनाओ के माध्यम से संभव है. एक विद्यार्थी के पास अभ्यास सबंधित ज्ञान है लेकिन वह उसे परीक्षा मे लिख नहीं सकता. एक व्यक्ति के पास व्यापर चलाने का ज्ञान है लेकिन वह व्यापर नहीं कर पाता. एक व्यक्ति के दिल मे प्रेम है लेकिन सामने वाले व्यक्ति को वह उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकता. एक व्यक्ति के पास बोलने का ज्ञान है लेकिन उसे मंच पर खड़ा करने पर वह बोल नहीं सकता. या फिर आपको साधना के नियम सबंध मे ज्ञान है लेकिन आप उसे लागू नहीं कर सकते है. इन सब के मूल मे क्रिया शक्ति की अचेतनता ही मूल है. और वह ज्ञान विद्या नहीं बन पता है.

देवी मातंगी विद्यातत्व की देवी है तथा अपने साधको को नूतन ज्ञान तथा चेतना दे कर विद्यावान बनाती है. देवी मातंगी महाविद्या है. देवी की कृपा प्राप्त साधक की क्रियाशक्ति की चेतना बढती है तथा वह अपने पास निहित ज्ञान को चाहे वह किसी भी क्षेत्र से सबंधित हो, उस ज्ञान को वह क्रिया रूप मे व्यवहारिक रूप से अमल मे ला सकता है. इस प्रकार साधक के जीवन के हर पक्ष से सबंधित कई समस्याओ का समाधान प्राप्त हो जाता है.

इस साधना को साधक कोई भी शुभदिन से शुरू कर सकता है. साधक को कोई भी विशेष सामग्री की ज़रूरत नहीं है. साधक सदगुरुदेव तथा देवी मातंगी को मन ही मन साधना सफलतामे के लिए प्रार्थना करे रात्री काल मे साधक १० बजे के बाद उत्तर दिशा की तरफ मुख कर के निम्न मंत्र की २१ माला जाप करे. यह क्रम ७ दिन तक रखे. साधक को घी का दीपक लगाना चाहिए तथा मूंगा की हो. आसन और वस्त्र लाल या सफ़ेद रंग के रहे.

ह्रीं श्रीं मातंग्यै क्रियासिद्धिं विद्याप्रदायिनी नमः

दिखने मे भले ही यह सामान्य प्रयोग हो लेकिन साधक साधना पूरी करने पर स्वतः ही अपने अंदर आए परिवर्तनों का मूल्यांकन कर इस साधना की महत्वपूर्णता के बारे मे समज सकता है.
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it remains dream for everyone to be ahead in life and achieve a supreme knowledge. When knowledge is incorporated with processes; that becomes “vidya”. One might have knowledge but that knowledge could not be said ‘vidya’. We often forget a thin border between gyana (knowledge) and vidya. To have information about any subject, its concepts and profiles is our knowledge. But when often, the processes related to the knowledge do not take place properly, we find a door of failure. For example, there is some high scholar of economy and he is lecturer of economy in a big reputed university. This is his knowledge, the person owns information of all the concept, he is aware of all the belongings of the subject. But it is not that he would be able to handle economy of the country if given a chance. Other person owns knowledge about food dishes of country and abroad and in which food item what and how much amount of the ingredients are used that too knowledge is there; but with all these knowledge too; it is not essential that he could become chef. Because when gyana (knowledge) is merged with kriya (process) than in that condition it becomes vidya. It is important art to represent your knowledge into processes. Rather we avoid it but it is very essential fact related to our day to day life. Because just avoiding this fact, we often derived to face frustration. But by activating kriya shakti, vidya gaining is possible through the medium of sadhana. One student might have knowledge regarding study but he couldn’t write. One has knowledge regarding business but he cannot do business. One person loves another but fails to express the feelings. One knows how to speak but when it is on the stage person is not able to speak. Or you might have knowledge regarding rules of the sadhana but you fail to apply it. The root problem behind all these stuff is un-conscious stage of the kriya shakti or the process power. And this way that knowledge do not becomes vidya.

Goddess Maatangi is related to the Vidyatatv who make her devotee filled of vidya through knowledge and consciousness. Devi Maatangi is Mahavidya. Blessed with goddess, in such sadhaka, increment of the kriya shakti’s consciousness takes place and can understand and apply the practical or the process aspect of the knowledge related to whatever field.  This way solution to the many problems related to every sides of sadhaka could be gained.

This sadhana could be started from any auspicious day. Sadhak needs not any special material for this. Sadhak should pray Sadgurudev and goddess Maatangi for the success in the sadhana and should chant 21 rounds of the following mantra by facing north after 10PM. This process should be done for 7 days total. Sadhak should light Ghee Lamp and Mungaa rosary should be taken to use. Cloths and aasan could be red in color or white.

Hreem Shreem Maatangyai kriyaasiddhim vidyaapradaayinee namah

This process might look normal but after completion of the sadhana, sadhak them self will understand the importance of the sadhana by calculating the internal changes.


   


                                                                                               
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