शनि......भय,पीड़ा,अभाव और असंतुष्ठी क्या यही पहचान है शनि देव की ??
जो तथाकथित पोंगापंथियों ने निरुपित कर दिया है शनि देव के लिए. नहीं ,ऐसा नहीं है.आलोचना तभी स्वीकार्य होती है जब वस्तुतः हम कुछ क़दमों की गति उस और कर चुके हों, बगैर परिक्षण किये किसी भी तथ्य को निर्धारित करना सदैव त्रुतियोक्त और भ्रामक ही होता है, सदगुरूदेव ने शनि देव के रूप को परिभाषित करते हुए कहा था की ये रूप अभिव्यक्ति है ज्ञान की,न्याय की और जीवन में सदैव और संतुलित गति का.
अबोध बच्चों या व्यक्तियों को अपने न्याय क्षेत्र से बरी रखना,क्या इसी तथ्य को निरुपित नहीं करता है. किसी की नक़ल करना और समझदार मष्तिष्क के होते हुए भी निरंतर गलतियों को करते रहना अपराध की श्रेणी में आ जाता है. क्यूंकि विकसित मष्तिष्क अच्छे –बुरे का भली भांति ज्ञान रखता है और उसे ये पता होता है की हम जो कर रहे हैं वो कितना हानिकारक हो सकता है समाज के लिए,स्वयं के लिए,परिवार के लिए या फिर राष्ट्र के लिए. और इन कर्मों को सकारात्मक तो नहीं लिया जा सकता.
ऐसे में अपनी न्याय दृष्टि से सत्य न्याय प्रदान करना मात्र शनि के ही अधिकार क्षेत्र में आता है, यहाँ तक तो सभी जानते हैं,हैं ना.....
किन्तु कभी सोचा है की इस तठस्थ न्याय दृष्टि का अनुपालन करने के लिए जिस ज्ञान और विवेक की आवश्यकता होती है उसका कारण बिंदु कहाँ होता है ,अर्थात कहा से उस ज्ञान का अभ्युदय होता है जिससे सत्य न्याय का बोध हो और तदनुरूप ही न्याय किया जा सके. हम में से सभी ने ये सुना ही होगा की जब श्री हनुमान जी ने लंकेश रावण के कारागार से शनि देव की मुक्ति कराई थी,तब उन्होंने शनि देव से ये वचन लिया था की मंगलवार या शनिवार को जो भी मन,वचन,कर्म से मेरी या मेरे हृदयाराध्य प्रभु राम की आराधना करेगा आप उसे त्रास नहीं दोगे.परन्तु समय साक्षी है की जितने भी लोग इन दोनों दिवसों में पूजन क्रम करते हैं वो लोग ज्यादा परेशां होते हैं.
क्या वो वचन गलत थे?? नहीं,वास्तविकता ये है की हमने उस पूर्ण वाक्य पर ध्यान ही नहीं दिया है,उसमे कहा तो गया है की मन,वचन,कर्म से पूर्ण पूजन करने पर......... अब खुद ही सोचिये घर से नहा-धोकर मंदिर के लिए निकलते हैं ..पर मार्ग में किसे देख कर क्या चिंतन करते हैं...कभी सोचा है,और तो और असत्य भाषण,धोखा देना,अशुचिता युक्त जीवन जीना आदि कर्म और विचारों से क्या आप मुक्त रह पाते हैं ,नहीं ना.
वस्तुतः हमारा चिंतन तो होता है पूजन का और उससे प्राप्त लाभ के रूप में सम्पूर्ण सुखों की प्राप्ति का परन्तु जानते बूझते अशुचिता पूर्ण व्यव्हार से क्या हम लाभ पा पाएंगे ..नहीं,अपितु दंड की १० गुनी मार आप पर ज्यादा पड़ेगी .क्यूंकि ज्ञान का प्रबोध तो था,किन्तु अशुद्ध ज्ञान का. तब असत्य ज्ञान से उत्पन्न विवेक दूषित ही होगा ना.
और एक महत्वपूर्ण बिंदु हमेशा ध्यान रखियेगा की ९ ग्रह और माता मुंथा की उत्पत्ति का मूल कारण भी बीज मन्त्रों में ही छुपा हुआ है ,अर्थात प्रत्येक ग्रह की उत्पत्ति और शक्ति का रहस्य किसी विशेष बीज मन्त्र में ही विद्यमान होता है .
जैसे शनि देव “ऐं” बीज से उत्पन्न हैं. उनकी न्याय दृष्टि इसी “वाग्बीज” से उत्पन्न होती है. और स्मरण रखने योग्य तथ्य ये है की जब भी श्रृष्टि का क्रम सृजित करना हो तब हमें इसी “वाग्बीज” का सहयोग लेना ही होगा. कहा भी गया है की “ऐंकारी सृष्टिरुपायै”
अर्थात “वाग्बीज” सृष्टिकर्ता है.और सृजन के लिए ज्ञान और बोध की आवश्यकता होती है ,याद रखिये सत्य बोध के द्वारा ही पूर्ण सत्य और चिरस्थायी सुख की प्राप्ति संभव है ,भगवान शनि के विविध मन्त्रों का तांत्रिक ग्रंथों में वर्णन है ,किन्तु किस क्रम द्वारा कैसा लाभ प्राप्त किया जा सकता है,प्रायः इसका अभाव ही दृष्टित होता है.तब ऐसे में सद्गुरु प्रदत्त मार्ग का अनुसरण करना ही उचित है,जिससे मार्ग भटकने और हानि का भय नहीं होता है. उत्पत्ति रहस्य तो बहुत विस्तृत है है,परन्तु यहाँ पर मात्र उस प्रयोग को अंकित करने का प्रयास कर रही हूँ जिसके द्वारा शनि देव के वास्तविक रूप का तो हमें बोध होता ही है साथ ही उस रूप को समझकर हम उनके वरदायी प्रभावों से अपने जीवन को अपराधऔर त्रुटि मुक्त करके जीवन सुखों को अक्षुण रख सकते हैं और अपना सम्मान,संपत्ति,प्रेम,परिवार को स्थायित्व दे सकते हैं और स्थायित्व दे सकते हैं अपनी स्थिरप्रज्ञा को ,जिसके सदुपयोग से आत्म शक्ति को मजबूत किया जा सकता है और अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.
बुधवार की सुबह सूर्योदय के बाद श्वेत वस्त्र पहन कर सफ़ेद आसन पर बैठकर सामने ताम्बे की थाली में सफ़ेद चन्दन से अनामिका अंगुली के द्वारा “ऐं” अंकित करे और उसका पूजन,अक्षत, धुप,आटे के चौमुखे दीप,पुष्प, खीर और लॉन्ग से करे. दिशा पूर्व होगी. इस पूजन के पूर्व,सदगुरुदेव,सूर्य और भगवान गणपति का पंचोपचार पूजन और गुरु मंत्र का जप कर लीजिए. ये प्रत्येक साधना में अनिवार्य क्रम है. तत्पश्चात स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से “ऐं” “AING” मंत्र की ११ माला करे. ये क्रम शनिवार तक करना है,शनिवार को इस क्रम के बाद काले वस्त्र धारण कर या स्वच्छ वस्त्र धारण कर सामने ७ कील,काले तिल,काजल,सरसों के तेल,काले वस्त्र को सामने रखकर उनका पूजन सरसों के तेल का दीपक,गुग्गल धुप,तिल लड्डू,लौंग,काले तिलों से करके ११ माला काले हकीक या रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की करे. मंत्र के पहले निम्न ध्यान मंत्र ९ बार उच्चारित करें.
ध्यान मंत्र-
“नीलांजन समाभासं सूर्य पुत्र यमाग्रजम |
छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||”
इसमें जिस मंत्र का प्रयोग जप करने के लिए होता है ,वो वाग्पीज से ही उत्प्रेरित है और माया से मुक्त कर श्री का अभ्युदय जीवन में करवाता ही है और उचित तथा सत्य ज्ञान का प्रबोध करवाकर न्यायायिक विवेक भी प्रदान करता है,जिससे बुद्धि कुशाग्र होती है और चरित्र की शुद्धता के साथ पूर्ण यश,सम्मान और धन की प्राप्ति होती है तथा भगवन शनि का वरदायक प्रभाव जीवन में प्राप्त होता है.
मन्त्र-
“ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः”
“AING HREEM SHREEM SHANAISHCHARAAY NAMAH”
इस क्रम को करने के बाद पुनः रविवार,सोमवार,मंगलवार और बुधवार को मूल वाग्बीज मंत्र का उपरोक्त क्रम ही करना है और प्रयोग की समाप्ति पर किसी भी कन्या को माँ वाग देवी मानकर पूर्ण,भोजन,उपहार और दान दक्षिणा से तृप्त कर प्रयोग को पूर्णता दे.
प्रयोग सिर्फ संचय करने के लिए नहीं है अपितु इसे संपन्न कर इस प्रयोग का लाभ लेकर दुखों को दूर भाग्य जाये,इसी में सार्थकता है.
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Shani…..fear, pain, incompleteness and unsatisfaction…..is this all true recognition of SHANI DEV?????
No these all are stupid ideas which were developed by fake people just to earn money on His name. Criticism can be accepted only then when you himself has done some work to the related field otherwise things which are blindly followed are usually faulty and play good for nothing role in anyone’s life. Sadgurudev himself provided a wonderful definition of Shani’s form which symbolizes Knowledge, Justice and continuous betterment of life and its classical example is that innocent children and mentally retarded persons don’t come under his jurisdiction.
But to copy someone else style or doing mistake after mistake that too while having healthy mind falls in crime’s category because sound mind can judge that whatever is done by him can be destructive for his family, society, nation and for himself as well and this type of activities can’t be entitled positive activities.
And in these types of matters to give proper justice comes under his legislation ….till here is common information about him which we all know……..isn’t it!!!!
But do we ever think about that basic central point which gives essential knowledge required to give true justice means where is that resource situated which provides this type of hi-fi knowledge which further plays an important role in the field of justice. We all know that once when Lord Hanuman released Shani Dev from the prison of Lankesh he (Hanuman ji) acquired a promise from him that who so ever offer true devotion to his Lord i.e. Lord Rama or to him (Hanuman ji) as well from his true Mann, Vachan and Karma, Shani will never do any harm to him but unfortunately time is witness that any devotee who follow this procedure remains in more problems than anybody else.
Did that promises were false?? No, it’s our fault that we don’t pay proper attention to that complete sentence which has three conditions i.e. Mann, Vachan and Karma……now it is up to you to decide are we following that conditions…..on the way to temple countless corrupted thoughts come into our mind for other people…and moreover is our life is free from jealous, cheating, ill deeds and telling lies….and the answer is BIG NO….
No doubt by doing all these meditations and prayers we want to have all comforts and luxuries but let me know by doing ill deeds that too with conscious mind how can we imagine to have fruitful result of all these holy jobs….but the thing which will surely we get is punishment that too with increment-i.e. basic multiply by 10 because at the time of committing that sin we had its incomplete and false knowledge and the we all know “Little Knowledge Is A Dangerous Thing”
Another thing which we need to aware about is that the mystery behind the origin of every planet and Mother Muntha is hidden in all these Beej Mantras means there is a particular Beej Mantra responsible for the origin of a particular planet and its power.
Like “AING” beej is behind the origin of Shani Dev, his justice power is also originated from this “Vaagbeej” and the point which should keep in mind is that at the time of universal creation it is this “Vaagbeej” without which nothing can be produced. This is also rhymed as “AING SHRISHTIRUPAAY”
It means “Vaagbeej” is creational and to create something knowledge and consciousness is must and always remember it is only through complete truth one can have permanent happiness. In ancient literature we have multiple Mantra about Shani Dev but through which Mantra we can have what type of benefit this knowledge is missing and in this type of situation Sadgurudev himself can enlighten your way to avert harm and loss you can face. Creational mystery is vast that’s why here I am giving only that proyog through which one can have glimpse of Shani Dev’s original form and his blessings as well which further helps you to get rid of your life from the feeling of guilt and can give stability to your finance, social status, love and family life…..above of all this proyog can give you mental stability which promote your spiritual stability to attain your destination.
At Wednesday morning after sunrise take bath and wear white clothes, sit on white altar (aasan), place copper plate in front of you and on it with your Anamika finger ( second last) while using white sandal write “AING” on it and offer Akshatt (rice), incense, four faced flour lamp ( aate ka chomukha deep), flowers, kheer and Clove (loung) on it. Your direction should be East. Before doing this poojan do Sadgurudev, Surya (Sun) and Lord Ganesha’s panchopchaar poojan first and enchant Guru Mantra because this is the base of every sadhna. Then do 11 rosaries of “AING” Mantra with Sfatik or Rudraksh rosary. This procedure should be carry on till Saturday and on Saturday after completing of procedure wear black or any other color’s but neat and clean clothes and put 7 nails (keel), black till, kajal, mustard oil, black cloth in front of you and offer mustard oil’s lamp, guggal incense, till ke laddu, clove (loung) black till and do 11 rosaries of given mantra with black hakeek or Rudraksh rosary.
Dhyaan mantra-
“नीलांजन समाभासं सूर्य पुत्र यमाग्रजम |
छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||”
Mantra used in it gets its origin from Vaagbeej itself which helps you to release yourself from the veil of Maya i.e. outer false happiness and make sure the entry of SHRI (goddess laxmi) in your life while giving you true spiritual knowledge and mind which has the capacity to do justice, purity of character as well. By doing this proyog one can have Lord Shani Dev’s blessings for his whole life.
Mantra-
“ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः”
“AING HREEM SHREEM SHANAISHCHARAAY NAMAH”
After the completion of this procedure follow the basic Vaagbeej Mantra procedure again for next Sunday, Monday, Tuesday and Wednesday and on its completion offer any small girl (kanya) food with gifts and money as per your capacity.
This proyog can open the door of success and comfort for you so it’s up to you to follow it and take advantage….
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1 comment:
बहुत ही बढिया जानकारी....
word verification disable करके सिर्फ़ moderation rakhe तो comment dene me asani rahegi
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