Sunday, March 18, 2012

बीजोक्त तन्त्रं-मातृका शक्ति रहस्य और प्राण सम्मोहन शक्ति प्रयोग (Beejokt Tantram-Maatrika Shakti And Praan sammohan Shakti Paryog) complete in both language


मननात् त्रायते स्वस्य मंतारं सर्व भावतः
अर्थात मंत्र वही तो है जो अपने जप करने वाले की सर्व विध,सभी प्रकार से रक्षा करे मंत्र सिद्धि का सीधा सम्बन्ध कल्पनायोग के साकार योग में परिवर्तन से होता है |अर्थात जब मंत्र जप के द्वारा शनैः शनैः उन बीजाक्षरों या मात्राओं पर चढा हुआ कर्म जनित आवरण हट जाता है और वे दीप्त हो जाते हैं तो संकल्प शक्ति की तीव्रता से अभीष्ट शक्ति का कल्पनालोक से साकार्लोक में आगमन हो जाता है तथा वो साधक के सामने उसकी संकल्पशक्ति की तीव्रता या मंदता के आधार पर संलयित हो जाती है और उनके जिस रूप का ध्यान साधक ने कल्पना में किया था उसी रूप की साकार उपस्थिति साधक के सामने हो जाती है | 
जिस प्रकार हम हमारे चहुँ और विविध आकृतियों को देखते हैं,उसी प्रकार कल्पनालोक में भी विविध आकृतियों का भी निवास होता है तन्त्र शास्त्र में इन आकृतियों का वर्णन मिलता है |प्रत्येक प्रकार के शब्द का उच्चारण करने पर एक विशिष्ट कंपन होता है या ये कहा जाये की प्रत्येक वर्ण और अंकों का एक विशिष्ट कंपन होता है जिसके फलस्वरूप ध्वनि की उत्पत्ति होती है यदि आप मीमांसा शास्त्र का अध्यन करे तो उसमे स्पष्ट रूप से बताया गया है की देवताओं का अपना कोई आकार नहीं होता है,अपितु वे मन्त्र-रूप ही तो होते हैं इसलिए आप जिस मंत्र का जप करते हैं उसमे उनके किन गुणों का सायुज्यीकरण किया गया है तदनुरूप ही उनका प्रकटीकरण साधक के समक्ष होगा हमारे शरीर के ७ चक्रों में से ६ चक्रों में ५० मातृकाओं अर्थात अक्षरों की स्थिति होती है और जब हम उन अक्षरों या शब्दों का उच्चारण करते हैं तो यदि वे अन्य अक्षरों से संयुक्त होते हैं तो ऐसे में एकसाथ या क्रम से अलग अलग चक्रदलों पर प्रभाव पड़ता है जैसे यदि हम रं” का उच्चारण करते हैं तो यदि हम ध्यान से देखेंगे तो इसमें  ’,’’,’’ ये तीन वर्ण हैंअब देखिये-
’ का उच्चारण मूर्धा से होता है |
’ का उच्चारण कंठ से होता है |
’ का उच्चारण होंठ और नासिका से होता है |
अब यदि इनका सतत उच्चारण किया जाये तो मणिपुर चक्र के इस बीजमंत्र पर शरीरस्थ सप्तलोकों में से तीन विभागों का प्रभाव पड़ता है और ये अग्नितत्व की तीव्रता को बाधा देते हैं और ये अग्नि भी ऐसी वैसी अग्नि नहीं अपितु सूक्ष्म जगत की समस्त नकारात्मक शक्ति को भस्मीभूत करने वाली अग्नि जब हम अपने पाप शरीर का को राख कर रहे होते हैं तब सिद्धासन की अवस्था में इसी बीजमंत्र का तो जप किया जाता है | 
इसी प्रकार प्रत्येक शब्द अपने कंपन विशेष से विशिष्ट प्रभाव की उत्पत्ति कर सकता है याद रखिये आकाश में प्रत्येक शब्द का अपना स्थान है और ग्रह विशेष का सम्बन्ध शब्द विशेष से होता है | 
बीज मंत्र होते क्या हैं ?? 
दिव्यक्षरों का समष्ठिरूप ही तो बीज कहलाता है,जिसमे उसके देवता का सूक्ष्मरूप पूर्ण शक्ति और अपने सम्पूर्ण गुणों के साथ समाहित होता है |हमारे द्वारा किये गए जप से ये बीजमंत्र आकाश में स्थित अपने क्षेत्र विशेष में कम्पन्न करते हैं और यही कम्पन्न उनके प्रतिनिधित्व करने वाले ग्रहों में भी होती है और जैसा की मैंने ऊपर बताया है की प्रत्येक शब्द की अपनी ध्वनि या आकृति आकाश में भी निर्दिष्ट होती है तब इसी अनुसार बीजमंत्रों के सतत जप से समानांतर ध्वनि उत्पन्न होती है और उन ध्वनि के योग से वो देवाकृति संकल्प लोक में या भाव लोक में आपकी आत्मशक्ति और प्राणशक्ति का सहयोग लेकर प्रत्यक्ष होकर कार्य करने को बाध्य हो जाती है ये व्याख्या अत्यधिक विषद हो सकती है किन्तु जिसने इस रहस्य को आत्मसात कर लिया उसके लिए शब्दों के स्थान विशेष को ज्ञात कर उस स्थान पर कितना आघात देकर उन अक्षरों का कैसे संयोजन करना कठिन नहीं होता है और तब उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं होगा |
खैर जीवन की विसंगतियों में आत्मोत्थान को संलग्न साधक ही अपना अभीष्ट प्राप्त कर पाते हैं सम्मोहन शक्ति के द्वारा ही हम सफलता की प्राप्ति कर सकते हैंसम्मोहन के विविध अर्थ हो सकते हैं किन्तु मैं जिसकी बात कर रही हूँ वो 
प्राणसम्मोहन के नाम से सिद्ध तांत्रिकों के मध्य जाना जाता है मुझे मास्टर ने सदगुरुदेव से प्राप्त इस दुर्लभ किन्तु सरल प्रयोग को समझाया थासम्मोहन के इस रूप में साधक को जिस शक्ति की प्राप्ति होती है वो ना सिर्फ समस्त नकारात्मक शक्तियों का नाश करती है अपितु हमारे आसपास उपस्थित व्यक्तियों की नकारात्मकता को भी दिव्यता में परिवर्तित कर देती है बहुधा हम अपने भाई बहन,संतान,पत्नी और मित्र की बुरी आदतों से दुखी रहते हैं किन्तु कई बार उन आदतों का शिकार व्यक्ति चाह कर भी उन अवगुणों का रूपांतरण नहीं कर पाता है तब ऐसे में यदि हमने प्राणसम्मोहन बीज का यदि प्रयोग सिद्ध किया हो तो उनकी सहायता कर उन्हें अवगुणों से मुक्त कर सकते हैं जो भी साधक नित्य १० मिनट इस विशिष्ठ बीज मंत्र का अभ्यास करता हैवो बाह्य बाधाओं से ना सिर्फ सुरक्षित रहता है अपितु दिव्यात्माओं का सहयोग भी उसे सतत मिलता रहता है और वो जिस भी पदार्थ,व्यक्ति,मनोरथ की पूर्ती के लिए प्रयास करता है उसे सफलता मिलती ही है,शर्त यही है की भाव की पवित्रता यहाँ सर्वोपरि है ऐसे साधक के मष्तिष्क और मन का सम्बन्ध समीप और दूरस्थ नजदीकी आत्मीयों के मन से हो जाता है और वो अभ्यास की तीव्रता के बाद न सिर्फ उनके भावों को पढ़ सकता है अपितु उनमे सकारात्मक परिवर्तन भी कर सकता है अपने अधिकारी,पड़ोसियों की मानसिकता से ग्रस्त होकर हार मानने की अपेक्षा उनके व्यव्हार को स्वनुकूल कर लेना ही वास्तविक विजय कहलाती है |
प्रातः या सांयकाल दैनिक पूजन और गुरु मंत्र के बाद वज्रासन में बैठ कर सामने घृत दीप प्रज्वलित कर उस दीपशिखा को देखते हुएदोनों हथेली को धीएरे धीरे रगड़ते हुए 
हुं ह्रीं क्लीं (HUM HREENG KLEEM) मंत्र का १० मिनट तक उच्चारण करेउच्चारण उपांशु होना चाहिए आपकी हथेली में गर्माहट आते जायेगी१० मिनट के बाद अपनी हथेलियों को दोनों आँखों और माथे पर लगा ले कुछ दिनों के अभ्यास के बाद आपकी हथेली को चाहे आप कितना भी जप्काल में तीव्रता से रगद ले किन्तु उनका तापमान सामान्य ही रहेगा,ये भ्यास १ महीने का होता है और १ महीने में सफलता मिल भी जाती है १ माह के बाद आप अपने व्यक्तित्व में तो परिवर्तन देखते ही हैं साथ ही साथ जैसे ही आप किसी उत्तेजित या क्रोधित व्यक्ति को देखकर उसकी और दृष्टि एकाग्र करते हैं और मन ही मन मंत्र का जप प्रारंभ करते हैं आपका हाथ गर्म होने लगता है तब आप अपने हाथ को नीचे किये हुए या अपने पीछे ले जाकर (जैसी आपकी सुविधा हो ) अपने अंगूठे से तर्जनी और माध्यम को धीरे धीरे मसलने लगे और आप जैसे ही इस क्रिया को प्रारंभ करेंगे धीरे धीरे सामने वाला व्यक्ति शांत हो कर आपके लिए अनुकूल व्यवहार करने लगता है,और उसके शांत या अनुकूल होते ही आपकी हथेकी सामान्य तापक्रम पर आ जाती है जिसका अर्थ क्रिया का सम्पूर्ण होना होता है | 
इस साधना के विविध पक्ष हैं जिनका प्रयोग कर दिव्यात्माओं से संपर्क स्थापित किया जा सकता हैविचार परिवर्तन किया जा सकता हैविचारों को जाना जा सकता है,प्राण उर्जा को तीव्रता को बढ़ाया जा सकता है,मानसिक रोग की समाप्ति की जा सकती है,उन सब के बारे में निकट भविष्य में पूरी जानकारी रखूंगीआप इस प्रयोग की तीव्रता को बगैर करे नहीं समझ पाएंगे,इसके लिए गंभीरता और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना होना अनिवार्य ही तो है |
तब तक के लिए.....
मननात् त्रायते स्वस्य मंतारं सर्व भावतः
(Mannaat traayte swasya mantraam srav bhaavtah)

Simply, mantra is only that thing which protects its practitioners a safety from all the sides. The direct relationship of mantra siddhi is from converting to what we see in kalpaana yog to the sakaar yog i.e. what we see in this world. When we recite the mantras or beej mantra , slowly and slowly ,the cover that covers these mantras gets removed and the mantras shine with brightness and with the help of strong sankalp shakti, the shakti of kalpnaa lok arrives in our real world. And it scatters around the sadhak depending upon the sankalp shakti of sadhak whether it is more or less and what the sadhak had thought about that shakti, only in that form it comes in front of the sadhak.

Likewise, we see many forms around ourselves, similarly, there is a existence of different forms in kalpnaa lok. We read about these forms many a times in our tantra scriptures . When we pronounce any akshar(hindi alphabet),there is a generation of special vibration or in other words, we can say there is a special and different vibration of each and every akshar(hindi alphabet )which results in the creation of a special voice. When we study Mimaansa Scriptures , we came to know that the devtaas do not have any form and they take the form of mantra only. That ‘why, when we recite any mantra, they take the form of only those behavior which we have combined them in our mantras. In our body, out of 7 chakras, there are 50 alphabets which are present in our 6 chakras. And when we speak those akshar or words, they affect all our chakradals in one time or it follow some special path to effect all the chakra dals. For example, when we pronounce 
“रं” it is made up of 3 hindi alphabets i.e. 
’(R),’’(a ),’म(m). Now see,

’(R)- is pronounced when our throat touches upper part of mouth.
’(a ) is pronounced from our throat.
म(m) is pronounced from both our lips and nose.

Now, if we pronounce 
“रं” in one word,then, this beej mantra effects three departments of our saptlok(seven loks) presence in our body and it increases our agni tatv and the fire which is produced from this is not normal, it removes all negative energy of our sukshma jagat. When, we burn the dead body of any human being,we pronounce only this word.

Similarly, every word generates some special effect with its special vibration. Remember, every word has its own place in this universe,and special planet has a relationship with the special word.
What are beej mantras?

The combination of divine akshars (hindi alphabets) is only called beej in which there is a presence of power and behavior of that devtaa. With continuous recitements of these beej mantras, these mantras generates special vibration in there special areas in the universe and these vibrations is also generated in the planets which are denoting them. I have also said this thing above that every word has its own voice and form in the universe, similarly, with the continuous pronouncation of these beej mantras and with the mantra voice, that devtaa form with the help of our praan power and aatm power in sankaalp lok or bhaav lok have to work for us with their presence. This definition is really diffult but whosoever understand this , then, for him, for which word, we have to provide which place and how to combine these words become a simple task for him. Then, nothing remain impossible for him.

The sadhak reach its goal only and only by moving himself upwards through his own various negative points. We can succeed only through sammohan shakti. We can have several meaning for sammohan shakti but for the one which I am speaking is called 
"Praan sammohan" among the great tantriks. The master has told me a simple but a special one paryog which he had received from our sadgurudev.The shakti(power) which the sadhak received from this type of sammohan not only remove the negativeness of the sadhak but also turns the negativeness of the peoples around him to purity. Many a times, we are upset from the bad habits of our brothers,sisters,childrens,wife and friends but, sometimes, our dearones cannot convert their bad habits to good one even if they want. In those cases, we can help our dear ones , if we know “praan sammohan beej”. If one sadhak practice a special beej mantra, then, he is safe not only from outside negative powers but also receives a support from our saints continuously and if he want something, then, his wishes are fulfilled but, he must have purity in all the cases. Minds and hearts of practioner of this beej mantra sadhak not only establish relation with his dear ones living far away from him but, with conitinuous practice, he reads their thoughts and can convert their negativeness to positiveness. To defeat from our senior officers or neighbors, the real win is to convert their behavior to what we want.
In the morning or in the evening, after doing dainik poojan and gur mantra, light a Deepak of pure ghee, while seeing the burned Deepak, rub your both hands and continuous recite 
“HUM HREENG KLEEM” for 10 minutes. The voice while pronouncation should be so much less that no one can listen it except you.The heatness will come in your hands and after 10 minutes touch your fingers in both your eyes and head. After some days, even if u rub your hands for more time, their temperature will remain normal, this practice is of only 1 month and one can succeed in one month only. After, one month, the personality of the sadhak changes and with it, if you recite this mantra in your heart, the temperatures of your hands get increase, then, if you rub your thumb with first and the second finger behind or downward, in front of an angry men, then, his angerness converts to coolness and he will behave according to what you want from him and with the changing in his behavior the temperature of our hands gets normal which shows that our process has succeeded.

There are various sides of this sadhna, through this we can have contact with great saints, we can transform thoughts,we can reads thoughts of someone,increase the energy of our praan, mental diseases can be removed, about all these I will tell you in the near future, you can’t understand the powers of this paryog without doing it seriously.

****ROZY NIKHIL****
 
   

                                                                                               
 ****NPRU****   
                                                           
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2 comments:

pritesh said...

Please post how to do other prayogs after attaining siddhi of mantra. Divyaatma se sampark, vicharon ko padna and other prayogs. Is it possible to do normal sammohan using this praansammohan prayog

Anu said...

dear pretesh ji , in any coming post these subject will be covered in a separte post .but now we have to wait ..
smile
anu