बाइबल में कहा गया हैं कि इच्छा तो बहुत थी पर शरीर ही कमजोर था, हम सभी साधना करने के तो बहुत ही इच्छा रखतेहैं पर मन स्थिर तो बहुत दूर की बात हैं शरीर ही स्थिर हो जाये इतना ही प्रारंभिक स्तर पर एक बहुत ऊँची छलांग हैं, हम में से कुछ आधा घंटा तो कुछ एक घंटे भी बैठ पाए और बिलकुल मूर्ति रूप के साथ तो १० से १५ मिनिट भी बहुत हैं . तब सफलता कैसे हम चाह सकते हैं .
चाहे हम बात कितनी भी बड़ी बड़ी कर ले , पर सच्चाई तो हम सभी जानते हैं ही ,
पर बिना इसके कैसे बढे अपनी मंजिल सदगुरुदेव जी के श्री चरणों की ओर,जब तक आसन सिद्धिता न मिल पाए तब तक कैसे ये राह कटे. सदगुरुदेव भगवान कहते हैं - जब तक आसन स्थिर न हो तब तक मन्त्र जप के ध्वनि तरंगे कैसे बनेगी, इष्ट तक एक तरंग दैधर्य कैसे जाएगी , यही तरंग का उत्सर्जन स्त्रोत ही हिल दुल रहा हैं तो देव वर्ग कैसे हमारी बात समझ पायेगा . यह शरीर भी एक अद्भुत रचना हैं , सदियों से लोग इसके रहस्य को जानने के लिए प्रयत्नशील रहे हैं कुछ ने अन्तेर मार्ग तो कुछ ने चीर फाड़ करके बहिर मार्ग अपनाया . मूल बात तो एक ही थी की सचमें कुछ इसके भीतर क्या हैं
जो अन्तर मार्ग के पथिक हैं उनके पास तो उनकी लैब/प्रयोगशाला सब कुछ ये शरीर ही हैं , बे न तो ज्यादा इसे कठिनाए में डालते हैं नहीं इसे सुख सुविधा का आदि बना देते हैं , मध्यम मार्ग में धीरे धीरे आगे बढ़ते जाये स्वयं ही रास्ता सदगुरुदेव बनाते जाते हैं , बे पहले भी अंगुली पकडे थे अब भी हैं और कल भी रहेंगे , फरक सिर्फ इतना होगा की जिसकी देखने की आँखे होगी वो देख लेगा , और जिनकी नहीं वे......
तो इस शरीर को आकरण कष्ट पहुचाना , आकारण उपवास रखना आदि आप ही सोचिये जब सदगुरुदेव आपके शरीर में ह्रदय स्थल में हैं कितना उचित हैं . क्योंकि ये शरीर उनकी अद्भुत कृपा का आधार हैं .
भाई ,क्या कोई ऐसा रास्ता हैं जिसके माध्यम से में जितना चाहू इतनी देर आसन पर स्थिर हो कर साधना कर सकूँ ??
क्यों नहीं सदगुरुदेव जी ने बताया तो हैं ,
नहीं भाई मुझे नहीं लगता हैं बताया होगा , ओर होगा भी तो साधना शिविर में या अपने खास शिष्यों को ही .
- अरे ऐसे कुछ भी नहीं बोलिए .उनके लिए क्या खास क्या प्रिय सभी उन्ही के ही तो बच्चे हैं , भला साधारण सांसारिक पिता तो भेदभाव कर भी ले पर उन्हें या वे ऐसा करेंगे ऐसा तो सपने भी सोचना , इस पथ पर निचे गिरने के सामान हैं.
तो बताओ न , क्या हैं वह मंत्र..
अरे सदगुरुदेव जी ने मन्त्र तंत्र यंत्र विज्ञानं जन. ९८ में दिया तो हैं उस साधना को ..
कौन सी
"आत्मचेतना साधना "
नहीं हैं उसमे ,चाहे तो इंडेक्स देख लो .
अरे इंडेक्स के आलावा भी कभी अंदर देख ले , पेज ५५ पर दी गए हैं .
इसका परिणाम क्या होगा .
अरे दिया तो हैं उसमें सदगुरुदेव जी ने, धीरे धीरे सब होता हैं ,वह चमत्कार पूर्ण नहीं बल्कि ऐसी साधना हैं जिसके मध्यम से साधारण साधक भी आधे घंटे से बढ़कर २/३ घंटे तक बिना किसी परिश्रम /कठिनाई के बैठ कर साधना कर सकता हैं .
आप सभी गुरु भाइयों और बहिनों के लिए इस साधना के बारे में यहाँ दे रहा हूँ साधना सामग्री आप जोधपुर गुरुधाम से प्राप्त कर सकते हैं .
{ आत्मचेतना यन्त्र प्राप्त कर ,रविवार के सुबह को सफ़ेद वस्त्र पर रख कर ,पूर्व दिशा की ओर मुह करके, घी का दीपक लगाकर बैठे साधक स्वयं भी सफ़ेद वस्त्रधारण कर ओर सफ़ेद ही आसन पर बैठ कर प्रतिदिन ११ माला मंत्र के हिसाब से ,आत्मचेतना माला से ,कमसे कम २१ दिन तो करे ही .अतिम दिन सारी साधना सामग्री ,थोड़ी सी दक्षिणा के साथ किसी भी मंदिर में रख दे.
}
पर पैर भी तो दुखते हैं .
आसन कितना मोटा हैं ,
बस आसन ही हैं ओर क्या ..
अरे आसन तो कम्बल का ओर मोटा सा होना चाहिए .
मोटा मतलब क्या में कुछ कम्बल ओर उसमें मोड़ कर के उपयोग करसकते हैं .???
क्यों नहीं ,जितना आप जमीं से ऊपर होंगे उतना ही आपकी प्राण उर्जा क्षय होने से बचेगी .
ऐसा तो सोचा ही नहीं था.
ओर यही एक ओर कम्बल लेकर उसे अपने प्रष्ट भाग के निचे इस प्रकार लगाये की आपकी हिप आपके आसन से कमसे कम २ इंच तो उपर रहे .
क्या ये , किया जा सकता हैं .
साधक का शरीर सीधे भूमि में स्पर्श नहीं होना चाहिए बस ओर क्या .
पर एक गुरु भाई तो आसन पर बैठ ही नहीं पाते हैं, अब कुर्सी पर बैठ कर तो करने पर लगता हैं उन्हें की उनका आसन गुरूजी से ऊपर हो गया हैं इस कारण वे साधना करने से ही कतराते हैं .
चाहे हम आकाश में बैठ कर भी साधना करने लगे तब भी सदगुरुदेव का स्थान हमेशा हमारे ऊपर ही होगा .
तो में उन्हें बता दूं.
(हाँ यदि वे अब भी साधना से बचने का कोई ओर तरीका न दूढ़ निकाले )
अरे भैय्या , होंगे वो दुसरे गुरु जिनके चेले शक्कर बन गए ओर गुरु गुड ही बन कर रह गए.
हम सभी चाहे करोड़ों जन्म साधना कर ले फिर भी उनके दिव्यता का एक अंश ले पाए संभव नहीं हैं .हम केबल उन श्री चरणों में समर्पित होकर विलीन हो सकते हैं बस...
|| तुव्दियम बस्तु सदगुरुदेव तुभ्मेव समर्पेत...........||
Bible says that will is strong but flesh is weak . like every one every sadhak wants to do successful in every sadhana he wanted to do , but when he starts his sadhana he find that he is unable to sit for little longer , this creates a sense of depression why it is so, and the situation will be worsen when the condition of sitting still perfectly demanded. What he should do. In the beginning level , sitting perfectly still is a long way, but at least sit for the duration we want is a big and major goal .
Even we talk big and big , but the truth we all knew that already.
But how we can proceed to our manzil /goal to reach Sadgurudev divine lotus feet. And till that aasan siddhi is not achieved ,how that way can be crossed, Sadgurudev ji used to tell that till aasan siddhita not achieved and sitting still condition absorbs how can vibration of mantra jap can be created/generated. and how that wavelength reach to the mantra jap isht. When the sources of the vibration is moving /not stationery how can daiv varga listen our voice /mantra jap .this human body is a miraculous things , from the time immoral people are doing their best to learn the peculiarity or specialty of this body. Some go through INTER (inner) way , some through dissection of body outer way, path may be different but the aim was /is the same. what is The basic root of the secrets of this body.
Those who are follower of inner way , from them everything Is this / his body .you can say lab, is this/his body. they already knew that , they should not tortured this body and also not made fully addicted to luxury, they already knew that the middle path is the best path till a certain heighten is achieved. just start moving on the middle path and slowly and slowly Sadgurudev himself comes to you take your finger in his divine hand , he already hold your finger in the past , is still and will be in future too. The only difference Is that those who have eye to see that will see that ,and those who have not such eyes…
Without ant valid and true cause , punishing your own body through upvas (fasting) and other way, when Sadgurudev himself reside in your body , how can this be justified is it not hurting him though the instrument is different , think for a minute, since this body is a base for his blessing to stand.
Bhai , is there any way , through which I can sit on aasan any longer as I wanted to.?
Why not Sadgurudev ji already mentioned that ,
No I do not think that , and may if it happens than in sadhana shivir or in his very close shishya..
Not to tell like this , what is special what is ordinary for him we all are his child , and it may possible that even a worldly father can make difference ,but for thinking like that about poojya sadguru bhagvaan is greatest sin.
Than tell what is that mantra ..
Oh, sadgurudev ji already written in MANTRA TANTRA YANTRA VIGYAN Jan 98 issue.
Which sadhana???
“AATAMCHETNA SADHANA”
No such a sadhana in that , check your self not mentioned in index.
Oh sometime check in the mag. On page 55 that has been given.
What will be sadhana outcome…
Sadgurudev already mentioned in that, slowly and slowly things starts gaining ground. This is not a miraculous sadhana , but through this ,any sadhak can easily increase his sitting from half an hour to 2/3 hours very easily.
I am here providing sadhana details for you mine guru brother and sister, off course for sadhana material you have to contact directly to jodhpur guru dham.
{ have aatmchetana yantra and place on white cloth , on Sunday morning ,after wearing white cloth and facing east , chant 11 round of rosary with aatmchetna mala , daily for at least 21 days incontinue and after completing the sadhana ,place the sadhana material in any temple with little offering as a money.
Mantra- om hreem soham hreem om ||
}
But feet also aching??
How much thick is your aasan?
Just a aasan , what else ..
Aasan should be of woolen kambal and should be thicker thick .
Thick means can I add some more woolen kambal to that ??
Why not, as much as your body is above on the floor so much your energy loss is minimized.
Never think this way..
Take a woolen kambal and fold that way and place under your hip in such a way that , hip should lies at least 2 inch above on the floor.
Is this permissible.?
Sadhak’s body should not touch directly to the floor that’s all, that keep in mind.
But one guru bhai, not able to sit on the floor , and doing sadhana on sitting on chair ,it seems to him that his aasan is higher than guruji ‘s aasan, that’s why they avoid to do sadhana.
Whether we can /are able to sit in above the sky , than too Sadgurudev has much higher to us, always s keep this in mind.
May in inform him.
Why not, till they can discover any more excuses not to do sadhana..
Dear one , they are others gurus’ shishyas who became sugar compare to their guru (reach higher than his guru ). but for us,
even we take millions of birth and do sadhana, but not able to touch Sadgurudev ji’s divinity a single percent, what we can , only offer our self in his divine lotus feet…..
|| oh Sadgurudev ,this is all yours and all these ,is offered to your divine holy lotus feet ||
****ANURAG SINGH****
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