Thursday, February 3, 2011

AAVAHAN-4 (AAVAHAN OR SHUKSHM JAGAT)

          भूतनाथ मंदिर की सीढियों पर खिन्न सा बेठा हुआ में अतीत में बिखरी हुयी कड़ियों को जोडने की कोशिश कर रहा था. कुछ दर्शनार्थी मुझे अजीब नज़रों, संकस्पद नज़रों से देखते हुवे जा रहे थे. पिछले डेढ़ महीने से वे मुझे रोज शामको यही बेठा हुआ पाते थे, अपने आप में खोया हुआ सा. पता नहीं था की में कहा से शुरुआत करू उन बीते हुवे पल के रहश्यो को खोजने की...कहते हे किसी भी कहानी की शुरुआत या अंत होता ही नहीं, तो फिर मेरी कहानी अपने अधूरे अंत पर केसे अटक गयी?

कुछ महीनो पहले की ही तो बात हे जेसे. घुंघराले लाल केश, अंडाकार चेहरा, उसमे जो हजारो राज़ समाये हुवे, ज़ाहिर करने को बेताब सी भूरी आँखे, और कुछ लम्बाई लिए सांचे में ढला हुआ उसका पूरा कद, देखने पर ऐसा लगे की जेसे पृथ्वी लोक में ये सौंदर्य संभव ही कहा? और सही तो था, स्थूल जगत की वो थी ही कहा...पर ये केसे संभव हे की अस्तित्व हो ही नहीं उसका, जब की अस्तित्व तो था ही उसका. पर शून्य में बनी ईमारत में रहा केसे जा सकता हे...और फिर कोशिश करने लगा रोज की तरह की आखिर हुआ क्या था.
आत्मा आवाहन में अतीन्द्रिय जागरण के बाद की जो स्थिति हे वो हे सूक्ष्म जगत में प्रवेश. स्थूल जगत और शुक्ष्म जगत में यु तो कोई ज्यादा भेद नहीं हे. धरातल भी एक ही हे दोनों की. मगर शुक्ष्म जगत में वायुतत्व और जल तत्व का अस्तित्व न्यून होता हे. अशरीरीओ के लिए बना हुआ वह सूक्ष्म जगत, यूँ तो बहेतर यह रहेगा की कहा जाए की उनके लिए भी ये जगत हे जो किसीभी वक्त स्थूल शरीर धारण कर लेते हे.
अतीन्द्रिय जागरण के बाद त्रिनेत्र आतंरिक त्राटक के अभ्यास से सूक्ष्म जगत में प्रवेश किया जाता हे. इसी तरह कुछ दिनों के अभ्यास मात्र से में भी सफल हो गया था सूक्ष्म जगत में प्रवेश करने के लिए. वह पे निवास करती हुयी कई आत्माओ से जाना करता था, उनके जगत के बारे में. कई विशेष माहिती मिली मुझे.
सूक्ष्म जगत आत्माओ का निवास हे, यही वह जगह हे जहाँ मृत्यु और नए जीवन के बिच में आत्मा को विश्राम मिलता हे. ये कोई लोक नहीं हे. स्थूल जगत और शुक्ष्म जगत के बिच एक आवरण मात्र ही हे. आत्मा आवाहन में सूक्ष्म लोक से स्थूल लोक में आत्मा का प्रवेश होता हे, यु तो आत्माओ में ये शक्ति रहती ही हे की वे स्थूल जगत में प्रवेश कर सकती हे, मगर कुछ सिद्ध आत्माओ के पास कुछ एसी विशेष सिद्धिया भी होती हे की वे स्थूल जगत में अपना जल व् भूमि तत्व को वापस बढ़ा कर स्थूल देह धारण कर लेते हे. अभ्यास के दौरान, मेने कई एसी सिद्ध आत्माओ को भी देखा जो की वहाँ निरंतर गतिशील हे जिससे की वहाँ की व्यवस्था सुनियत रहे. कभी कभी तो यु भी होता हे की कोई आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ ही प्रवेश कर जाती हे स्थूल जगत में, ठीक हमारे सामने...पहले तो डर लगता था लेकिन फिर धीरे धीरे कम होता गया वह डर.
ऐसे ही एक बार त्रिनेत्र त्राटक किया और पूरक करके जेसे ही शुक्ष्म जगत् के निर्गद द्वार में प्रवेश किया ही था की सामने आ गई एक अतिव सुंदरी. ऐसे लगा जेसे एक साथ हजारों कमल के फुल खिले हो. मेरे सामने देख के वो मुस्कुरा दी, और बस यही शुरुआत हुयी उस कहानी की. उसने कहा मेरा नाम भावना हे और में यहाँ पर निवास करती हू यु तो में स्थूल जगत में भी रहती हू. मेने कहा ये संभव नहीं हे, वो मेरे अज्ञानता पर हस दी और बोली कुछ भी असंभव नहीं हे..सिद्धता से कोई भी जेसे शुक्ष्म लोक में प्रवेश कर सकता हे बिना स्थूल देह के उस तरह स्थूल जगत में भी स्थूल देह में रह सकती हे कुछ अशरीरी आत्माए. कल पता चल जाएगा तुम्हे, वैसे मुझे काले वस्त्र बहोत पसंद हे.. और वो हौले से मुस्कुरा दी, और बस गायब हो गयी वह. मुझे कुछ समाज नहीं आ रहा था. वापस इस स्थूल लोक में प्रवेश हुआ मेरा लेकिन जेसे में वाही पर बसा हू, पूरी रात बिट गयी, सोचता रहा उस सुंदरी के बारे में. न जाने क्या सम्मोहन कर दिया था उसकी आँखों ने मुज पे...सायद में दिल के किसी कोने से उसे...नहीं ये संभव नहीं हे और में वापस खो गया उसी मुस्कान में...कब नींद आ गयी पता नहीं... दरवाज़े पर दस्तक से आँख खुली मेरी..देखा दिन के तिन बजे हे..दरवाज़ा खोला, वहाँ पे मेरा दोस्त प्रवीन था...आते ही बोला अरे भाई...आज तो तुम होते साथ में...एक एसी लड़की को देखा की क्या बताऊ बस देखता ही रह गया..काले कपडोमे में, वो लाल बाल वाली लड़की...... और मुझे जेसे एक भयंकर सा ज़टका लगा (continue)
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2 comments:

Anonymous said...

hi brother ji, can this post being translate to english.

thanks

om

Unknown said...

kya bat hai assa bhi hota hai muje to pata hi nahi tha bhaiya