Thursday, April 29, 2010

तंत्र विजय-२ (कनकावती साधना रहस्य)


तंत्र जगत आश्चर्यों से भरा हुआ एक ऐसा सागर है जहाँ पर विविध साधना रूपी रत्न अपनी अपनी चमक और शक्तियों से साधको को अभीभूत ही किये रहते हैं. और कई रत्न तो सच में ही अद्भुत हैं. अद्भुत हैं अपनी भौतिक और अध्यात्मिक शक्तियों को एक साथ ही प्रदान करने के गुणों के कारण. रस-शास्त्र की खोज में जब मैंने अपनी
यात्रा सदगुरुदेव के आदेश पर प्रारंभ की तो मुझे एक बात प्रारंभ में ही समझा दी गयी थी की या तो पूर्णता पाने के लिए इस पथ पर आगे बढ़ो और लक्ष्य को पा कर ही रुकना ,और अगर बीच में इस राह को छोडना हो तो बेहतर है की इस पर चलने का विचार ही छोड़ दो . अब जब तय कर लिया था की लक्ष्य को प्राप्त करना ही है तो ये भी जरुरी था की इस मार्ग के विविध रहस्यों को भी जान लिया जाये. और मुझे पता था की ये सब
इतना सहज नहीं है. मैंने कभी अपने किसी वरिष्ट गुरु भाई को ये कहते हुए सुना था की यदि रस शास्त्र के रहस्यों को समझना हो या गुप्त रहस्यों को आत्मसात करना हो तो तब एक ही साधना आपका अभीष्ट पूरा कर सकती है ........ और वो साधना “कनकावती साधना” है.
मैं हुमस कर अपने उन गुरु भाई से उस साधना के बारे में पूछने लगा, क्यूंकि मैंने ये तथ्य पहले भी सुना और पढ़ा था और उस ज्ञान को पाने का लालच ही मुझे उन महोदय तक ले गया था.पर उन्होंने झिडक ही दिया .और ये कहा की तुम इस साधना के योग्य ही नहीं हो.

बुरा तो मुझे बहुत ही लगा और ये वो दौर था जब सदगुरुदेव किसी खास कारण से अज्ञात वास पर थे . मुझे बेसब्री से उनके आगमन का इंतजार था पर तब तक हाथ पर हाथ धरे भी तो बैठा नहीं जा सकता था. इसलिए मैं तंत्र शास्त्र के प्राचीन ग्रंथो में इस दुर्लभ साधना की विधि को ढूँढने लगा. महाकाल-संहिता , तंत्र महोदधि, तंत्र
महार्णव,मंत्र महार्णव, यक्षिणी महातन्त्रं,काम काली विलास,मन्त्र सागर ,मेरु तंत्र ,मात्रिका तंत्र, रुद्रयामल तंत्र , दत्तात्रेय तंत्र, स्वछंद तन्त्रं,स्त्री तन्त्रं आदि सैकडो ग्रन्थ मैंने टटोले पर कुछ ऐसा मुझे नहीं मिला जो मेरे चित्त को शांत कर पाता. ४-५ विधियाँ मिली भी तो उनका प्रयोग करने पर ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसे विशेष कहा जाता . मुझे हमेशा एक बात की शिकायत रही की इन ग्रंथों में विधियाँ हमेशा पूरी तरह नहीं बताई जाती और मन्त्र शुद्ध है या नहीं ये भ्रम भी हमेशा बना रहता है . और आप सभी जानते हैं की भ्रम युक्त साधना असफलता ही देती है .
इसी समय मेरी मुलाकात कालिदत्त शर्मा जी से हुयी जो आसाम के प्रसिद्द तांत्रिक और रस शास्त्री थे. मैंने जब इस साधना और इसके प्रभाव के बारे में पूछा तो उन्होंने भी यही कहा की इस साधना के द्वारा साधक को जहाँ तंत्र जगत की एक अद्भुत सिद्धि मिल जाती है वही इसके प्रभाव से भौतिक जीवन में
पूर्णता तो मिलती ही है मतलब आर्थिक निश्चिन्तता आदि पर इसके साथ ही ये देवी साधक को तंत्र और रस शास्त्र के ऐसे ऐसे रहस्यों से परिचित करती है की बस साधक हतप्रभ ही रह जाता है . मैंने जब उनसे इसकी विधि पूछी तो उन्होंने भी अपने हाथ खड़े कर दिए . मैंने उनसे कहा की मुझे इस दुर्लभ साधना का रहस्य आखिर कहाँ मिलेगा . उन्होंने कहा की इस गोपनीय साधना का सम्पूर्ण रहस्य
सिर्फ सदगुरुदेव ही जानते हैं और उन्होंने इससे सम्बंधित ज्ञान अपने शिष्यों को शिविर में भी दिया है , एक पउर सत्र और शिविर ही इस विद्या पर आयोजित किया था . ये सुनने के बाद मैं कई पुराने गुरु भाइयों से मिला और उनसे इस शिविर के प्रयोग के बारे में पूछा भी . कहा तो सभी ने की हाँ सदगुरुदेव ने करवाया था और सभी रहस्यों को बताया भी था पर हम नहीं बता सकते. थक हार कर मैं उदास मन से जोधपुर
चला गया .वह मैं ४-५ दिन ही गुरुधाम के पास रुका रहा . एक सुबह जब मैं प्रातः काल ही सदगुरुदेव के निवास पर पंहुचा तो सेवक ने बताया की सदगुरुदेव आ गए हैं . मैं बैचेनी से उनसे मिलने की राह देखने लगा .लगभग ९.३० बजे सदगुरुदेव ने मुझे बुलाया . मैंने चरण स्पर्श किया और अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें देखने लगा .
कनकावती साधना के बारे में जानना चाहता है – सदगुरुदेव ने कहा .
जी.......
क्या जानना है –सदगुरुदेव ने कहा.
जी सभी कुछ...
ठीक है ... मैं तुझे इसके सभी रहस्य बता रहा हूँ, तू उन्हें लिख ले.
फिर सदगुरुदेव इस अद्भुत विद्या के रहस्य पर प्रकाश डालने लगे . उन्होंने कहा की ये साधना तीन तरीके से की जा सकती है ...... शास्त्र कहते हैं की सात दिन तक कनकावती यन्त्र के सामने वट वृक्ष के नीचे बैठ कर सहस्त्र संख्या में नित्य जप करने पर देवी प्रत्यक्ष होती है. पर ये मांत्रिक विधि है .इसमें जप के पहले माँ रूपेण, भगिनी रूपेण का भी संकल्प लिया जा सकता है .
पूर्ण मांत्रिक विधि से इस साधना को करने पर ७,११,२१ दिन में संपन्न किया जा सकता है. नित्य ११ माला मंत्र जप होता है . रविवार से ये साधना प्रारंभ होती है .पर इस साधना में वो सिद्ध होगी या नहीं ये उसके ऊपर है . क्यूंकि इसमें साधक मात्र विनीत रहता है .यही विधि ज्यादातर ग्रंथो में वर्णित है.
इस विधि का ही मन्त्र भी प्रचलित है साधकों के मध्य. इसमें सफलता का प्रतिशत ५०-५० रहता है.
तब मुझे क्या करना चाहिए – मैंने कहा
बेटा इस साधना को तांत्रिक पद्धति से संपन्न करने पर ही ये सिद्ध होती है . इस साधना में भार्या या प्रेमिका रूप में ही सिद्ध करने का भाव संकल्प लिया जाता है . मांस और मदिरा का नैवेद्य चढ़ाया जाता है. इस विधि का प्रयोग यदि साधक करता है तो निश्चित ही पहली बार में ही प्रत्यक्ष सफलता मिलती ही है.
हैं..............-मुझसे ये भला कैसे होगा- मैंने कहा.

बेटा तंत्र जगत में इन शब्दों के गूढ़ अर्थ होते हैं. यहाँ पर मांस और मदिरा का अर्थ प्रतीकात्मक है और इसी प्रतिक के कारण ये साधना तांत्रिक साधना कहलाती है . मांस का अर्थ यहाँ नारियल का टुकड़ा और मदिरा का अर्थ गुड मिला हुआ दूध है .जिसे नैवेद्य रूप में समर्पित करते हैं.
इस साधना के लिए एक विशेष विधि का प्रयोग करता हुआ भोज पत्र पर यन्त्र का निर्माण साधक स्वयं करता है और उसमे मन्त्र के वर्णाक्षरों द्वारा एक विशेष विधि से यन्त्र का कीलन भी करता है . फिर इस यन्त्र में प्राण प्रतिष्ठा कर उसका पूजन रविवार की रात्रि में करता है. याद रहे ये यंत्र किसी और के
द्वारा स्पर्श नहीं होना चाहिए. किसी भी महाविद्या, महाशक्ति , महालक्ष्मी आदि का पूजन रात्रि में ही प्रारंभ होता है . आसन के नीचे वट के १२-१५ ताजे पत्ते नित्य रख देने चाहिए और उस पर रक्त वर्णीय आसन बिछा देना चाहिए. मुख दक्षिण हो .वस्त्र पीले या सफ़ेद हो सकते हैं. जल,लाल फूल, त्रिगंध, नैवेध्य, लोहबान धुप से यंत्र का पूजन होना चाहिए . और पूर्ण वीर भाव से १११ माला जप नित्य ८ दिनों तक
हकिक माला या सर्पस्थिमाला से होना चाहिए. जप एक बार में ही पूरा होना चाहिए. चाहे लघुशंका की तीव्र इच्छा हो या मरने वाले हो तब भी एक बार आसन पर बैठ गए तो मन्त्र पूरा करके ही उठना है . पूर्ण मन्त्र में ६.३० घंटे के आस पास लगते हैं. पर याद रहे की मंत्रजाप सूर्योदय के पहले हो जाना चाहिए. इस साधना का मन्त्र भी भिन्न होता है . इस प्रकार उन्होंने और भी कई महत्वपूर्ण
बाते बताई .यंत्र अंकन तथा यंत्र निर्माण की विधि तथा उन गोपनीय मन्त्रों को भी स्पष्ट किया जिसके द्वारा उस यंत्र को संजीवित् तथा प्राण प्रतिष्ठित किया जाता है.सदगुरुदेव ने बताया की इस यन्त्र को ७ स्वर्ण सूत्रों द्वारा बंधा जाता है या ७ द्वार
का निर्माण किया जाता है . ये एक ऐसा रहस्य है जो किसी भी ग्रन्थ में नहीं बताया गया है और उन्ही सप्त सूत्रों का जो विशुद्ध स्वर्ण से निर्मित होते है नित्य प्रति क्रमानुसार पूजन होता है अर्थात पहले दिन पहले सूत्र पर ही पूजन होता है दुसरे दिन दुसरे का, यही क्रम अंतिम दिन तक रहेगा. नैवेद्य के रूप में आटे को घी में भून कर गुड मिला कर उसमे नारियल के टुकड़े डालकर लड्डू बना देने चाहिए तथा साथ में गुड मिश्रित दूध अर्पित करना चाहिए. यही मद्य और मांस का अर्पण है . किसी भी उपचार को अर्पित करते समय मूल मंत्र के आगे उस उपचार का नाम लेकर समर्पयामी कह कर वो वस्तु अर्पित करना चाहिए .यदि घृत का दीप आठ दिनों तक अखंड लगाया जा सके तो अत्युत्तम . कमरे में ८ दिनों तक कोई नहीं जाना चाहिए आपके अतिरिक्त. और भी बहुत से ऐसे रहस्य हैं जो गुरुदेव ने उद्घाटित किये . खैर उन रहस्यों को जानने के बाद मैंने घर पंहुच कर उन्ही निर्देशों का पालन करते हुए साधना संपन्न की. उन रहस्यों को पालन करते हुए साधना करने पर उस महाशक्ति का पूर्णरूपेण प्रत्यक्षिकरण पहली बार में ही किया और वैसी ही सफलता मिली जिसके बारे में सदगुरुदेव ने बताया था . जिन उपलब्धियों की चाह में मैंने ये साधना संपन्न की वो उपलब्धिया निश्चित रूप से प्राप्त हुयी और निरंतर प्राप्त हुआ है उस दिव्य शक्ति का मार्गदर्शन भी तंत्र और रस शास्त्र के ज्ञान प्राप्ति के क्षेत्र में.
कई गुत्थियां सहज ही सुलझ गयी. आज भी उसका अवर्णनीय सहयोग मिलता ही है.विषय लंबा न हो जाये इसलिए लेख संक्षिप्त में लिखा है . मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ की . ऐसा कोई विधान नहीं है तंत्र जगत का जो अप्राप्य या गुप्त रखा गया हो सिद्धाश्रम साधक परिवार में .
हमें गर्व होना चाहिए की हमें ये सूत्र सहज उपलब्ध हैं . या फिर हम इन्हें गुरुधाम से प्राप्त कर सकते हैं.मुझे आप सभी के साधनात्मक अनुभवों के विवरण का इन्तजार है. निश्चय ही हम लोगो में बहुत से साधकों के पास साधनात्मक सफलता के अनुभव होंगे .पर वे अभिव्यक्त भी तो किये जाये. हमें वही उदारता बतानी चाहिए जो हमारे प्राणाधार सदगुरुदेव ने ज्ञान प्रदान करने में निरंतर दिखाई है.इसका प्रमाण ये सिद्धाश्रम साधक परिवार का विस्तृत समूह है. इसलिए सच्चे मन्त्र पुत्र बने और अभिव्यक्ति का गुण प्रदर्शित करें. यही तंत्र-विजय यात्रा का लक्ष्य भी है.


****ARIF****

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