आधुनिक सभ्यता हमारे सामने एक एक से ऐसे अजूबे रखती जा रही हैं की जो कुछ समय पहले संभव नहीं था, वह आज तकनिकी के कारण सभव होता जा रहा हैं और विज्ञानं के नये नए आविष्कार से हमारा जीवन सुख सुविधा से और भी संपन्न होता जा रहा हैं , और यह स्वीकार करने में किसी को कोई भी हिचक नहीं होगा की आज इस आधुनिक सभ्यता के वरदान के बिना जीना असंभव तो नहीं पर बहुत कठिन अवश्य ही हो जायेगा
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पर इस सुख सुविधा की आड़ में कुछ क्या बहुत कुछ खोता भी तो जा रहे हैं ,,हम सभी महसूस तो क रते हैं पर क्या करे जीवन की आप धापी ही ऐसी हैं , और अकेले हम क्या कर लेंगे पर ऐसी सुख सुविधा का अर्थ क्या हैं जब मन में शांति न हो ,, पर चलिए मन कि शान्ति को छोडिये वह तो एक अलग विषय हैं पहले संयुक्त परिवार थे ... जो आज के दिन एक आश्चर्य से बन गए हैं लोग बहुत ही आश्चर्य से देखते हैं कि आप के यहाँ अभी भी इतने लोग साथ में ..
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पर चलिए यह भी संभव न हो पाए कि एक साथ रहे ,, तो दूर से ही सही कम से कम एक दुसरे के दुःख सुख में साथ रहे यही भी किसी वरदान से कम नहीं हैं, की जब भी वे हमारे यहाँ या हम उनके यहाँ जाए ,, तो पूरे स्नेह के साथ वह भी हमारा स्वागत करे ,और हम भी ऐसा करे,
पर हम तो करना चाहते हैं पर वह लोग ही अड़ियल हैं ,,उनका स्वभाव् ही ऐसा हैं,,उन्हें अपने उपर बहुत घमंड हैं .अगर एक वह सुधर जाये तो हम लोग का स्नेह वापिस आ सकता हैं ऐसी अनेक बातो से कौन नहीं बचना चाहता क्योंकि तीज त्यौहार का एक अपना ही आनद हैं यदि चाचा ,मामा , फूफा सभी के परिवार स्नेह से मिले ..
पर चलिए यह भी बहुत बड़ी सी बात हैं अब तो विवाह के नाम से ऐसे ऐसे सम्बन्ध आ रहे जो बस अभी एक दशक पहले सुने भी नहीं गए थे , जहाँ पति पत्नी का एक ही कमरा होता था उन्हें एक ही इकाई माना जाता हैं/ था , पर अब तो इधर भी अलग अलग कमरे चाहने लगे हैं ,,
किसे समझाए की स्नेह ही जीवन का आधार हैं उसके बिना सारी चीजे एक यांत्रिक हैं
इस बात को ध्यान में रखते हुए एक सरल सा प्रयोग जिसकी पूरी बुनियाद आपके विस्वास पर ही टिकी हैं आपके सामने हैं.
मन्त्र :
धां धीं धूं धुर्जटे पत्नि वां वी वूं वाग्धिश्वरि
क्रां क्रीं . क्रू कालिका देवि शां शीं शूं शुभं कुरु ||
आपको भगवती महाकाली की जो भी सामान्य पूजन बन सके करके इ स प्रयोग को संपन करे , हर पूजन में दीपक का एक अर्थ होता हैं वह वास्तव मे अग्नि देवका प्रतीक ही होता हैं तो एक दीपक जप काल में तो लगा रहना ही चाहिए
अब कितने दिन तक करे , यह तो आप के ऊपर हैं वेसे तो यह कोई कठिन नहीं हैं तो जब तक आपके अनुसार आपके या तो अपने परिवार में या आपके रिश्तेदारों मतलब निकट संबधीयो से जब तक अनुकूलता न मिले करते जाये पर कितना करे जप यह भी आपके ऊपर ही हम छोड़ देते हैं वेसे एक माला तो कम से कम करना ही चाहिए ....
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There are many miracles that has been brought in front of our eye by the modern science, what that has not been possible , some times back , is now became a reality . and our way of life is full of more and more comforts. And no one can deny the blessing of modern technology . without that our life would be much harder.
But we are paying a lot for these comforts , we all are feeling the same but what we can do , this is the way of modern life and what we can be done alone . when you are not having peace in your heart/mind, ok just leave this question, that became a separate subject, in the beginning there were united family , but now a days those also become a very rare things, people now a days can not believe that still there are still some united family.
But when this would not be possibility to have united family than even we are residing a distance but common love and respect should be part of our relation , like that when we visit there , they became really happy and same is applicable to us.
We all want to do that , but these are the common excuse like he is not co operating, they are very rigid , they are very egoistic are very common . but we all feel that when any good or festive occasion comes and if we all together than our joy will be thousand fold increases.
But just leave that , consider relation between husband and wife sometimes back they (both)are considered a single entity /unit but now a day such a relationship coming/increasing in that even both are demanding separate rooms in many family.
Who has the time to understand that sneh/love is the basic foundation of any relation. Other wise things become just mechanical .
To consider all those things here is the very simple prayog , the success of that totally rests upon your faith ,
Mantra :
dhaam dhiim dhoom dhoorjateh pathni vaam vim vum vaagadheeshwari
kraam krim kroom kalikaa devi shaam shiim shoom me shubham kuru
kraam krim kroom kalikaa devi shaam shiim shoom me shubham kuru
just do the simple poojan of goddess Mahakali and light an earthen lamp .
how many days this prayog has to be done is totally depend upon you, when you feel that the needed happiness and cooperation comes than you can stop, and second how many round of rosary is need , at least one round is must. no other rules are required .
****NPRU****
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