Purpose of science has always been to seek truth
but the truth which can be verified – in physical form. Science does not want
to see that subtle/astral form in cover of physical or in other words,
scientists do not want to see. If they see it also, they become bound by the
limits of imagination or doubts. From my point of view, seeker should apply one
principle while studying such subjects and that principle is – “Do not keep any rules because rules bind you and deviates
you from the reality”. Because secret is hidden only till the time it is
not revealed. Scientist arrives at principles based on test results. It has got
one simpler definition- Systematic Understanding and
its research is addressed by another name which we call as ‘Science’.
But why there is so much of gap that ancient sages and saints of India
understood this systematic understanding and principles thousand times better
than today and left treasure of their compiled finding for us. There is lot of
difference between technology of that time and today. Today facilities are much
better than what were at that time. Then also we are able to transcend the
limit of understanding only to certain limit….Isn’t?
The truth or knowledge which can be tested and
verified, science is only able to understand it. But when we talk about
body-related accomplishments then it fails……it has not been able to prove
travelling by astral body whereas every traveller who resort to sadhna path
knows physically or subtly that astral body journey, Kundalini and chakra are
distinct reality.
Till now, science has not been able to even reach
the bunch of nerves called Chakras in spiritual field. High-level technical
X-Ray machines are incapable of capturing its pictures. But it does not mean
that they are not present at all in reality…….what is
required is to bridge the gap to secret/truth…which required unlimited patience
as well as promptness.
Well…...
Talking about starting experiences, I have often
found by thorough investigation that when we do practice of astral body
journey, we knowingly / unknowingly commit those errors which we are unaware
of. And most of the times though we experience vastness of universe but we are not
able to witness again that procedure or that place or those embodiment of light
which we have met or seen during our astral body journey. We are not even able
to visit that place again which we had visited last time despite our wish. Then
getting a particular thing along you is distant dream. But such thing can also
happen…..by crossing one particular stage, this activity can be experienced
completely.
In last article we learnt about seven bodies and
their name. Each body has got its own importance; own field, own focus area. It
is something like the work which can be done by physical body cannot be done by
astral body or which can be done by astral body cannot be done by mental body.
All these seven bodies have sub-bodies too and so on. These layers are so
subtle that we cannot even imagine. But with the help of sadhna, it can be
known.
These seven bodies are related to seven Loks/
Jagat/Mandal. During sadhna when we do the activation procedure of each chakra
then it paves the way for its related bodies, state of journey into related
areas, related goddess powers and related knowledge. Activation of chakra also
provides consciousness to its related body and activities of that body
successively increases.
Now understand this point carefully that when we
talk about journey by astral body then we are actually taking about acquiring
knowledge in related Loks through related jagats.And this fact becomes basis of
our understanding surpassing which we become capable to thoroughly investigate
it.We have seen mention of these seven loks in mantra ----Bhu, Bhvah, Swah, Mah, Jan, Tap, Satyam Lok. Here I
feel necessary to tell that different scholars have different opinion that
whether these seven loks and seven Jagat are one and the same or not. But it
will be right to test this quote by self-experience because personal
experiences are personal, they are not public. Seven jagats, corresponding to
seven bodies are as follows.
1. Sthool
Jagat
2. Bhaav
Jagat
3. Sookshma
Jagat
4. Manomay
Jagat
5. Aatm
Jagat
6. Bramha
Jagat
7. Nivarn
Jagat
From spiritual point of view, many scholars in
order to understand this subject have considered Lok, Jagat and Mandal to be
same but quotes of some learned person and researchers are different and compel
you to think. According to them Lok – is the place where Devi Shakti resides;Jagat – Speed to reach
these Loks is fixed according to Jagat;Mandal-
At global level, groups of them is called Mandal.And
this was reason for arrival of new change in though pattern and practice.
I have said one thing in
almost all articles of this series that sadhak come across so many question and
puzzles relating to astral body and facts related to it. In today’s article I
have tries to throw light on those chapters which we experience while doing
practice.Beacuse here not only about astral body, but also all chapters related
to it, I am trying to put forward in front of you all.
Some more new, interesting
and hidden facts in next article…very soon
*****************************************
विज्ञान का उद्देश्य सदा से सत्य खोजने का रहा है परन्तु ऐसा सत्य जो प्रमाण दे सके - स्थूल रूप से. विज्ञान स्थूल की आड में उस सूक्ष्म रूप कों देखना ही नहीं चाहता है या यु कहे की वैज्ञानिक देखना नहीं चाहते. या देखते भी है तो काल्पनिकता या भ्रम की सीमा तक बंध जाते है. और मेरे ख्याल से एक खोजक कों ऐसे विषयो कों अध्ययन मनन करते वक्त एक ही सिद्धांत लागू करना चाहिए और वो हे – “कोई नियम मत रखे क्युकी जहा नियम रखा वहा आप बंध गए और ये आप कों वास्तविकता से परे कर देता है” क्युकी रहस्य तब तक ही गुप्त रहता है जब तक वो अनावृत ना कहो जाये. वैज्ञानिक प्रमाण के आधार पर सिद्धांतो की उत्पत्ति करते है. इसकी एक और सरल परिभाषा है – पद्धतिबद्ध समझ एवं उसके अनुसंधानो कों एक दूसरे नाम से संबोधित करते है जिसे हम ‘विज्ञान’ की संज्ञा देते है. परन्तु ये फासला क्यों है की भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने इस पद्धतिबद्ध समझ या सिद्धांतों कों आज की अपेक्षा कई हज़ार गुना योग्य रित्य से समझा और उन संकलित सूत्रों कों हमारे लिए धरोहर के रूप में छोड़ गए. बहरहाल तब की और आज की प्रोद्योगिकी में कितना अंतर हो गया है. आज तो सुविधाय निश्चित पहले से बेह्तर ही है. फिर भी हम एक सीमा तक ही सोच की सीमा कों लांघ पाते है.. है ना?
जो सत्य या ज्ञान पुनः
परीक्षित हो कर प्रमाणित हो सके उसे ही केवल विज्ञानं समझने लगा है परन्तु अगर देह
गत उपलब्धियों की बात करे तो यहाँ वो फेल है.. सुक्ष्म शरीर के विचरण कों वह
प्रमाणित ही नहीं कर पाया जब की हर पथिक जो साधना मार्ग कों अवलंब कर चूका है वो
स्थूल या सुक्ष्म रूप से जानता है की सुक्ष्म शरीर विचरण, कुण्डलिनी या चक्रों
जैसी चीजे कुछ होती है.
जब की विज्ञान तो उन
चक्र रूपी नाडियों के गुच्छों तक भी नहीं पहुच पाया है जो आज की उन्नत तकनिकी
एक्स-रे मशीन भी असमर्थ है उन तस्वीरो कों उतारने में. पर इसका अर्थ ये तो नहीं की
वास्तविकता में ये है ही नहीं... बस देरी है तो उस
रहस्य रूपी सत्य तक के फासले कों तय करने की.. जिसके लिए असीम धैर्य और मुस्तैदी /
भान की जरुरत होती है.
अस्तु...
आरंभिक अनुभवों की बात
करू तो मैंने अक्सर पाया है की जब हम सुक्ष्म शरीर विचरण का अभ्यास करते है तो मीमांसा करने में कही ना
कही जाने अनजाने में ऐसी गलतियाँ कर जाते है जिस से हम अनभिज्ञ है. और बहुदा हम
ब्रम्हांड की विस्तृतता का अनुभव तो करते है पर पुनः वो क्रिया या वो स्थान या उन
प्रकाश पुंजो से नहीं मिल पाते जिन्हें हम सुक्ष्म शरीर विचरण करते हुए मिल या देख
आते है. हम चाह कर भी उसी जगह पर पुनः नहीं जा पाते जहा हम पिछली बार विचरण करके
आये थे. फिर वहां से वस्तु विशेष कों अपने साथ ले आना तो दूर की बात है. पर ऐसा भी
होता है..एक स्तर कों पार करने पर इस क्रिया कों पूर्णता से अनुभव किया जा सकता
है.
जिस प्रकार पिछले लेख
में हमने जाना की सप्त देह और उनके नाम. प्रत्येक देह की अपनी एक अलग विशेषता है,
अपना अलग एक क्षेत्र है, अपनी कार्यकरणता है. ठीक उसी प्रकार की जो कार्य हम स्थूल
देह से कर सकते है वो सूक्ष्म देह से नहीं या जो सूक्ष्म देह से होता है वो मनस
देह से नहीं. क्युकी इन सभी सप्त शरीरों के भी उप शरीर है और उनके भी उप. ये परते
इतनी ज्यादा सूक्ष्म है की हम इनका अंदाजा ही नहीं लगा सकते. पर साधनाओ के माध्यम
से ये निश्चित ही किया जा सकता है.
ये सात शरीर सात लोको/
जगत/ मंडल से संबंधित है. साधना के दौरान जब हम प्रत्येक चक्र की जागरण क्रिया
करते है तो संबंधित शरीर, संबंधित क्षेत्र में जाने की गति, संबंधित दैवी शक्तियां
और संबंधित ज्ञान का क्षेत्र का मार्ग प्रशस्त होते जाता है. चक्र जागरण उस से
संबंधित शरीर कों भी चैतन्यता प्रदान करने लगता है और उस शरीर की गतिविधियाँ
उत्तरोत्तर बढती चली जाती है.
अब यहाँ ध्यान से पढ़े की
जब हम स्थूल शरीर से विचरण करने की बात करते है तो संबंधित जगत द्वारा संबंधित
लोको में ज्ञान अर्जन या विचरण करने की क्रिया करते है. और यही तथ्य हमारे बोध का
कारण बनता है जिसे हम भेद कर उसकी मीमांसा करने में सक्षम बनते है. इन सात लोको का
विवरण हमने मंत्रो में अवश्य देखा ही है - भू, भुवः,
स्वः, मः, जन, तप, सत्यम लोक. यहाँ मै
ये बताना जरुरी समझती हूँ विभिन्न विद्वानो के विभिन्न मत रहे है की सात लोक और
सात जगत एक ही है या नहीं ! परन्तु इस कथन कों स्व अनुभव से ही परीक्षित करना
बुद्धिमानी कही जा सकती है क्युकी व्यक्तिगत अनुभव व्यकिगत होते है ये सार्वजनिक
नहीं. सात शरीर के अनुसार ये सात जगत कुछ इस प्रकार से है.
१.
स्थूल जगत
२.
भाव जगत
३.
सूक्ष्म जगत
४.
मनोमय जगत
५.
आत्म जगत
६.
ब्रम्ह जगत
७. निर्वाण जगत
अध्यात्मिक दृष्टिकोण से
अनेक विद्वानों ने इस् विषय कों समझाने के लिए लोक, जगत और मंडल कों एक ही तराजू
में तोल दिया है परन्तु कई ज्ञानियों और शोध करताओ का कथन यहाँ थोडा सा पृथक या
विचारोत्तेजक हो जाता है. इनके कथनानुसार लोक – वो है जहा दैवी शक्ति निवास करती है; जगत – इन लोको में पहुचने
के लिए गति का निर्धारण जगत अनुसार होता है; मंडल
– वैश्विक स्तर पर इन के संकलित समूहों कों मंडल
कहा जाता है.. और यही कारण रहा की
पार्श्विक चिंतन शैली में और अभ्यास में नए बदलाव का आगमन हुआ..
मै लगभग इस विषय की श्रृंखला के सभी लेख में एक बात कहती आ रही हू की सुक्ष्म
शरीर और उस से संबंधित तथ्यों कों लेकर साधक या अभ्यासको में विभिन्न पहेलियाँ या
प्रश्न आते रहते है आज के लेख में उन पृष्ठों पर प्रकाश डालने का मैंने प्रयास
किया है जो हम सभी अभ्यास करते वक्त अनुभव करते है. क्युकी यहाँ मै केवल सूक्ष्म
शरीर की ही नहीं उस से संबंधित सभी पृष्ठों कों अप सबके समक्ष लाने का प्रयास कर
रही हू...
अगले लेख में कुछ नवीन रोचक और गुप्त तथ्यों के साथ...जल्द ही..
निखिल
प्रणाम
****सुवर्णा निखिल****
****NPRU****
No comments:
Post a Comment