फटे कपडे, बिखरे और उलझे बाल , अजीब
सी ही वेशभूषा थी उनकी और बहुत असहज सा
महसूस कर रहा था मैं उनके साथ , पर बंगाली माँ का आदेश था मेरे लिए की मुझे उनके
साथ रहना है और सदगुरुदेव के द्वारा प्रदत्त विभिन्न साधनाओं का जो संकलन और अनुभव
उन्होंने प्राप्त किया है वो मुझे उनके
सानिध्य लाभ से लेना है. उनके पास ऐसा संकलन है ऐसा सुनकर मैं काली खोह
(विन्ध्याचल) से मुगलसराय स्टेशन पहुंचकर जबलपुर जाने वाली ट्रेन में बैठ गया .
रास्तेभर जो भी माँ ने उनके बारे में बताया था वही सब सोचता रहा , जबलपुर पहुच कर पहले
बाज्नापीठ जाकर भैरव के दर्शन किये और फिर माँ नर्मदा के तट की और चल पड़ा. जबलपुर
मेरा इसके पहले भी कई बार जाना हो चूका था. और आश्चर्य की बात ये है की हर बार एक
नवीन रहस्य ही मेरे सामने खुलते जाता साधना जगत का.
एक से एक सिद्धों से भरा हुआ शहर , चाहे वो जैन तंत्र से सम्बंधित हो या
फिर मुस्लिम या शाबर तंत्र से सम्बंधित , किसी ज़माने में यहाँ की जाने वाली
तांत्रिक क्रियाओं का कोई जवाब नहीं होता था पर समय के साथ साथ ये सिद्ध और इनकी
परम्पराएँ गुप्त सी ही हो गयी थी. भाई अरविन्द, हसदबक्स , जीवन लाल , मणिका नाथ ,
अवधूती माँ और अब एक नए गुरुभाई पारितोष बनर्जी से मुलाकात होने जा रही थी.
सन १९९३ की बात है चैत्र नवरात्री का शिविर संपन्न होने के बाद मैं अपनी
साधनाओं के लिए सीधे विन्ध्याचल बंगाली माँ के पास चला गया था और तबसे से गर्मी,
गर्मी और गर्मी.उस शिविर में ही गुरुदेव ने एक नवीन तथ्य का मुझे ज्ञान दिया था की
“तुम शाक्त साधनाओं को संपन्न करने के लिए विन्ध्याचल
चले जाओ और ध्यान रखो की शाक्त साधनाओं के
स्वर तंत्र का गहन अभ्यास करना,उससे साधनाओं में शीघ्र ही सफलता मिलती है क्योंकि
बाये स्वर द्वारा जब श्वास प्रश्वास की क्रिया चल रही हो तभी शक्ति मन्त्रों का जप
उचित होता है क्योंकि मन्त्र पुरुष तब
चैतन्य होता है और दाये श्वास प्रश्वास की क्रिया के मध्य शक्ति सुप्त रहती है
परन्तु और बेहतर होता है की जिस भी मंत्र का जप किया जा रहा हो उस मन्त्र के पहले
और बाद में “ईं” बीज जो की कामकला बीज है लगाकर जप
करने से भगवती शक्ति की निद्रा भंग हो जाती है” इसी तथ्य को ध्यान में रख कर अपनी
साधनाएं मैंने पूरी की.
वहाँ से जब जबलपुर पंहुचा था तब मई का
मध्य आ गया था और मई की गर्मी जैसे दिमाग को फोड ही डालती , सूरज सिर को जैसे
पिघलाने को ही आतुर था, बोतल का पानी भी खत्म होने वाला था पर जैसे तैसे जी कड़ा कर
मैं लगातार चलते ही जा रहा था . मुझे माँ ने बताया था की तुम्हे सरस्वती घाट से
नीचे उतर कर बस सीधे हाथ की तरफ नाक की सीध में चले जाना. लगभग ३ किलोमीटर के अंदर
ही शमशान से लगी हुयी उनकी झोपडी है .
पर मैं उन्हें पहचानूँगा कैसे –मैंने
माँ से पूछा था.
तुम उसे नहीं बल्कि वो तुझे पहचान
लेगा-माँ ने कहा .
बस इसी शब्द के सहारे मैं चलता चला
जा रहा था , नर्मदा जी की धाराओं में जो गति धुआँधार में रहती है उससे कही ज्यादा
सौम्यता बस उससे २ कि.मी. आगे इस सरस्वती घाट से लगकर बह रही उनकी धाराओं में थी.
तपती दोपहरी में जो सुकून मुझे जल को बहते देखकर हो रहा था वो शब्दों में वर्णन
नहीं किया जा सकता है. सबसे पहले मैंने जी भर कर नहाया ,वस्त्र बदले और आगे बढ़ता
चलागया नदी के किनारे किनारे ही. अचानक
किसी ने मेरे नाम को पुकारा .... मैंने रुक कर देखा एक मध्यम कद काठी का गौर वर्णीय व्यक्ति मुझे हाथ हिलाकर आवाज़ दे
रहा था. मैं उस और बढ़ गया.
जब मैं उनके नजदीक पंहुचा तो उन्होंने ‘जय
गुरुदेव’ कहकर मेरा अभिवादन किया , मैंने भी उत्तर दिया तो उन्होंने मुझे साथ चलने
के लिए कहा, बाकी सब तो ठीक था पर उनकी वेश भूषा से मुझे बड़ी कोफ़्त हो रही थी, खैर
जैसे तैसे उनके घर तक पहुचे, कच्चा मकान जिसमे मात्र दो कमरे थे , एक कमरा रसोई और
बैठक के काम आता था और दूसरे में बहुत सारे हस्तलिखित ग्रन्थ,खरल,मृग चर्म
आसन,बाजोट,बाजोट पर करीने से रखे विविध यंत्र तथा पूर्ण तेजस्वी तथा भव्य
सदगुरुदेव का चित्र उस कमरे को भव्य ही
बना रहा था.
चाहे बाहर से कितना ही छोटा दिख रहा था वो मकान पर भीतर से अजीब सा सुख लग
रहा था उस घर में, उस तपते दिन में भी अजीब सी शीतलता थी वहाँ पर.
शाम हो गयी थी,पारितोष भाई अपनी मध्यान्ह साधना में व्यस्त थे और अब शाम
घिर आई थी.वे साधना कक्ष से बाहर निकले और मेरे पास बैठ गए, मैं भी भोजन और नींद
लेकर स्फूर्ति से भर गया था.वे मुझे लेकर नदी के तट पर चले गए जहा हम पानी में पैर
लटका कर बैठ गए और बहुत देर तक चुप रहने के बाद मैंने उनसे उनके बारे में पूछा तो,
उन्होंने कहा-“ सन १९८२ में मेरी सदगुरुदेव से मुलाकात हुयी थी तब मैं अपने ननिहाल
मिदनापुर (बंगाल) गया हुआ था, नाना जी कि तंत्र में बहुत रूचि थी और उन्होंने
सदगुरुदेव से दीक्षा लेकर विविध साधनाएं भी संपन्न कि थी. बंगाली होने के नाते
स्वभावगत हम सभी माँ आदि शक्ति कि पूजा करते थे, मेरा रुझान माँ काली कि साधनाओं
में कही ज्यादा था , मैं घंटो नाना जी के पास बैठ कर उनकी साधनाओं के अनुभव को
सुना करता था.वे भी अपने अनुभव बताते और कई चमत्कार भी दिखलाते. क्या मैं भी ऐसा
कर पाउँगा-मैंने नाना जी से पूछा. बिलकुल कर पाओगे, पर तंत्र का रास्ता इतना सहज
नहीं है, तलवार कि धार पर चलने से भी ज्यादा खतरनाक है पर,ये बहुत आसान हो जाता है
यदि कोई समर्थ गुरु आपको अपना ले तो. तब मेरी जिज्ञासा और रुझान को देखकर उन्होंने
मुझे सदगुरुदेव से मिलवाया और उनसे दीक्षा देने कि प्रार्थना की.सदगुरुदेव ने मुझे
दीक्षा दी और फिर मैं उनके निर्देशानुसार साधनाएं करने लगा, समय के साथ साथ
साधनाओं को गति भी मिलने लगी. सफलता असफलता दोनों को पूरे मन से स्वीकार करता था
मैं . ये देखकर एक बार सदगुरुदेव जब जबलपुर आये तब,उन्होंने मुझे अपने हाथ से लिखी हुयी एक तीन मोटी मोटी
डायरी दी. जिसमे उन्होंने विविध प्रकार के तांत्रिक प्रयोग लिखे थे, बस उन्ही
डायरी के आधार पर मैं साधनाएं संपन्न करने लगा और विविध प्रकार की सफलता भी मैंने
पाई.”
रात होते होते ही हम वापिस लौट आये. रास्ते में उन्होंने बताया की वे जीवन
यापन के लिए बैंक में जॉब करते हैं. और उनका स्थायी निवास गोरखपुर( जबलपुर) में है
, पर वो अपनी साधनाओं की वजह से विगत कई वर्षों से यहाँ पर रह रहे हैं. और मैं
हमेशा ऐसा नहीं रहता हूँ- उन्होंने अपने स्वरुप की तरफ इंगित करते हुए कहा और
हँसने लगे.
मैं अभी कोई अघोर क्रम कर रहा हूँ इसलिए ऐसी वेशभूषा हो गयी है, इसके लिए
मैंने ३ महीने की बैंक से छुट्टी भी ली हुयी है.
रात में उन्होंने अपनी प्रेत शक्तियों की
मदद से मेरा मनपसंद भोजन बुलवाया.
क्या आपको भय नहीं लगता?
किससे-उन्होंने पूछा .
इन भूत प्रेतों से ...
क्यूँ लगेगा भला, ये तो अत्यधिक
निरापद होते हैं.और सदगुरुदेव ने इनको सिद्ध करने की इतनी सहज विधियाँ बताई हुयी
है की सामान्य व्यक्ति भी भली भांति अपना जीवन यापन करते हुए इनको सिद्ध कर सकता
है. रात को उन्होंने कालिका चेटक का
प्रयोग कर स्वर्ण का निर्माण कर के दिखाया , पारद विज्ञानं के माध्यम से रत्नों का
निर्माण कैसे होता है ये समझाया. उच्छिष्ट गणपति प्रयोग के द्वारा वशीकरण की
अत्यधिक सरल क्रिया बताई. रोगमुक्ति, बगलामुखी साधना द्वारा शत्रु स्तम्भन का सरल
मगर तीव्र प्रभावकारी प्रयोग,शमशान चैतान्यीकरण प्रयोग , दीप स्तम्भन का विधान
समझाया, किन मन्त्रों से तंत्र प्रयोग दूर किया जाता है उसकी मूलभूत क्रिया समझाई.
पूर्वजन्म दर्शन की गोपनीय क्रिया बताई. व्यापार वृद्धि के एक से बढ़कर एक प्रयोग
प्रायोगिक रूप से करके दिखाया और इन सभी साधनाओं का आधार उन डायरियों को मुझे देखने
और नोट करने के लिए दिया, वे डायरियां १९६३,६५,६८ और ७३ की थी मैंने लगभग ४६८
प्रयोगों को उनमे से २२ दिनों में लिखा. बाद में भी कई बार मैं उनके पास गया और
उन्होंने उदारतापूर्वक उन क्रियाओं और साधनाओं को मुझे समझाया भी और लिखने भी दिया
एक से बढ़कर एक प्रयोग थे वे सभी,बाद में मैंने उनमे से बहुत से प्रयोग और
साधनाएं संपन्न की तथा पूरी तरह सफलता भी पाई. जब इस अंक का विचार आया था तो हम
सभी अपनी साधनाओं के लिए ६४ योगनी मंदिर में मिले थे तब मैंने उनसे निवेदन किया तो
उन्होंने मुझे कहा की अब वो प्रयोग तुम्हारे अपने हैं तुम उन्हें निश्चित ही अन्य
गुरुभाइयों और बहनों के साधनात्मक जीवन को आगे बढ़ाने के लिए देने के लिए स्वतंत्र
हो
हाजरात प्रत्यक्षीकरण प्रयोग
शुक्रवार को चाँद निकलने के बाद जौ के सवा किलो
आटे से एक पुतला बनाओं जिसे की हाजरात कहा जाता है, ये क्रिया शहर या गाँव के बाहर
किसी मजार पर जाकर संपन्न की जा सकती है. टोंटीदार लोटे में पानी अपने साथ लेजाकर
अपने हाथ पाँव,मुह धो ले और लुंगी तथा जाली दर बनियान या कुरता धारण करे रहे , यदि
हरा आसान और वस्त्र हो तो ज्यादा बेहतर रहता है .उस मजार पर हिने का इत्र और मिठाई
चढ़ा दे और आसन पर वीर आसन की या नमाज पढ़ने की मुद्रा पश्चिम दिशा की और मुह करके
बैठ जाये और दिशा बंधन कर अपने सामने हाजरात को स्थापित कर सबसे पहले १०१ बार दरूद शरीफ पढ़े.
अल्लाह हुम्मा सल्ले अला सैयदना मौलाना मुहदिव बारीक़ वसल्लम
सलातो सलामोका या रसूलअल्लाह सल्ललाहो
ताला अलैह वसल्लम.
इसके बाद निम्न मन्त्र की हकीक माला
से ११ माला करे और ये क्रम एक शुक्रवार से दुसरे शुक्रवार तक करना है,पुतला वही
रहेगा जिस पर आपने पहले दिन साधना की है.ऐसा करने से हाजरात प्रत्यक्ष हो जाता है
तब उससे तीन बार वचन लेकर उसे जाने को कह देना और जब भी जरुरत हो उसे बुलाकर कोई
भी उचित कार्य करवाया जा सकता है. कमजोर दिल वाले साधक इस साधना को ना करे और करने
के पहले गुरु की आज्ञा अवश्य ले लें.
मंत्र- या यैययल अलऊ इन्नी कलकिया
इलैलया किताबून करीम
ईन्न उन्नुहु मिन सुलैमाना मिन्न हु
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अन्य साधनाओं की जानकारी अगले लेखों में... क्रमशः....
****NPRU****
2 comments:
bhaiya g, saadar pranaam ... bhaiya g uss haajraat se kon se teen baar vachan lena he ya teen vachan lene hote he... krapya samza dijiye... thoda udaaharan de ke...
bhaiya g, saadar pranaam ... bhaiya g uss haajraat se kon se teen baar vachan lena he ya teen vachan lene hote he... krapya samza dijiye... thoda udaaharan de ke...
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