शत कोटि दिवाकर कान्तीयुतम,
विधि विष्णु
शिरोमणि रत्नम घृतम |
चल दुज्ज्वल
नुपुर गान युतम ,
जगदीश्वरी, तारिणी ! ते चरणम ||
हे जगदीश्वरी भगवती तारा,आपके श्री चरण करोडो करोडो सूर्य के
सामान समुज्ज्वल हैं. ब्रहमा,
विष्णु के मस्तकस्थ किरीट रत्नों से दिव्य चरण सुशोभित हैं. गति शील उज्जवल नूपुरों
के संगीत से तुम्हारे चरण शब्दायमान हो रहे हैं.
स्वर्ण प्राप्ति या स्वर्ण वर्षा होना यह
तो जीवन में कोई एक बहुमूल्य धातु की
प्राप्ति ही नहीं बल्कि समस्त प्रकार से
धन धान्य और भौतिक लाभ की प्रचुरता से प्राप्त होने की क्रिया हैं.तो क्या यह
सिर्फ शब्द ही नहीं की स्वर्ण वर्षा भी हो सकती हैं?? यह केबल शाब्दिक रूप से ही नहीं बल्कि यह
भी संभव हैं कि ठीक उसी रूप में स्वर्ण
प्राप्ति हो या स्वर्ण वर्षा हो जो साधक के मन में हैं क्योंकि भगवती तारा स्वर्ण प्रदायक हैं .और
जिन्होंने भी भगवती तारा की
साधना पूर्णता के साथ की हैं, यहाँ मेरा मतलब
पूर्णता से हैं अर्थात सिर्फ दर्शन
मात्र से नहीं बल्कि इस साधना के सम्पूर्ण चरणों को पूर्णता के
साथ करने से हैं, उन्हें प्रतिदिन दो
स्वर्ण मुद्राएँ अपने सिराहने मिलने लगती हैं .
और शब्दिक अर्थ से परे अगर देखा जाए तो कई साधको को तो
..जैसे जिस साधक का अनुभव “मन्त्र तंत्र यन्त्र विज्ञानं पत्रिका “
में आया था उसे प्रति दिन दस से बारह हज़ार रूपये और कई कई बार तो बीस बीस हज़ार अपने सिराहने
रखे मिलने लगे थे.
वहीँ जिन्होंने सदगुरुदेव द्वारा आयोजित
८० के दशक में तारा महाविद्या
साधना के प्रारंभिक शिविर में भाग
लिया था
उन सभी ने यह स्वीकार किया था की इस साधना के प्रारंभिक स्तर में ही उन सभी का
भौतिक जीवन का स्तर काफी उठ गया अतः किसी को
धन लाभ तो, किसी को प्रमोशन तो किसी
को अन्य रूप से पर सभी लाभान्वित हुए ही .
वास्तव में देखा
जाए तो भगवती अपने साधक को किसी
के सामने भी असहाय देख नहीं सकती
हैं और इसी कारण से सदगुरुदेव जी ने
बार बार कहा
·
जिनका जीवन
दरिद्रता के जाल में फसकर एक एक
पैसे के लिए मोहताज होने की और अग्रसर हो
·
जीवन विगत पाप कर्मो के,विगत दोषों के जाल में, फसकर छटपटा
रहा हो, उसके दुस्प्रभाव देखने को बाध्य हो ही .
·
जीवन एक एक चीज के लिए मानो मोहताज हो गया
हो,कोई उमंग, कोई आशा शेष न रही
हो.
·
जो अपने परिवार जानो को असहाय एक एक चीज को पाने के लिए मोहताज से
देख रहे हो,
·
उन सभी के लिए
और उनके लिए जो लक्ष्मी
प्राप्ति या दरिद्रता निवारण की बड़ी बड़ी साधनाए
नहीं कर सकते हैं.
भगवती की सरल साधना
भी
मानो सब कुछ प्रदान करने में समर्थ हैं
और यह कोई शास्त्रों की बात उठाकर
लिख देने वाली बात नहीं बल्कि अनेको
के अनुभव
गम्य हैं .
जब बात आये भगवती तारा
की तो यह ध्यान मे रहे, साधना के
समस्त उपकरण पूर्णता के साथ प्रमाणिक
होना चाहिए तभी हम साधना में सफलता पा सकते हैं,अन्यथा कुछ प्रारंभिक अनुभव के अतिरिक्त कुछ भी ठोस उपलब्धि
संभव नहीं.
और पारद से बने
विग्रह आप जानते हैं और भली
भांती समझते भी हैं की अपने आप में विशिष्ट आकर्षण की क्रिया रखते हैंन केबल किसी मनुष्य
बल्कि देव शक्ति के लिए भी .और इन विग्रह पर जब किसी देव शक्ति का
पूर्णता के साथ स्थापन हो जाता हैं
तब वह अपने आप में मानो उस महा शक्ति के
जीवित जाग्रत विग्रह ही हो जाते हैं.इस प्रकार का पारद विग्रह
जो भगवती तारा के सह्त्र रूप से
संयुग्मित उसके बारे में,
उसके सामने भगवती तारा
की साधना करने के लाभ तो लिखना संभव ही नहीं
हैं.
आज इस लेख में
उनके आर्थिक स्वरुप का
परिचय की ही बात हैं और हमने यह निश्चय किया हैं की एक एक करके हम उनके
विविध स्वरुप से सबंधित साधनाए
जैसे धन प्राप्ति
प्रयोग ,आकस्मिक धन प्राप्ति प्रयोग,तारा स्थिर लक्ष्मी प्रयोग, तारा अटूट लक्ष्मी
प्राप्ति प्रयोग, तारा लक्ष्मी आकर्षण
प्रयोग, तारा अन्नपूर्णा प्रयोग,तारा भू
भवन प्राप्ति प्रयोग,भगवती तारा दर्शन
प्रयोग, भगवती तारा राज्य सम्मान प्रयोग,भगवती
तारा आत्मसात प्रयोग, नील सरस्वती प्रयोग, उच्च विद्या प्राप्ति
प्रयोग,नील सरस्वती स्मरण शक्ति वृद्धि प्रयोग इस तरह के
सैकड़ो प्रयोग हैं जो सिर्फ
और सिर्फ पारद सह्त्रन्विता देह तारा विग्रह पर ही संपन्न किये जा सकते हैं .न केबल इस प्रकार के प्रयोग बल्कि अनेको
लघु प्रयोग भी जो इस विग्रह पर संभव हो
सकते हैं अर्थात होते ही हैं
फिर वह चाहे रोग निवारण प्रयोग या शत्रु वाधा से छुटकारे वाले प्रयोग
हो या अगर कभी अनुमति मिली तो भगवती तारा के इस पारद सहत्रन्विता देह स्वरुप पर संभव होई सकने वाली शमशान
साधना की प्रारंभिक क्रियाये भी आपके सामने आयेंगी .अभी तो आपके सामने यह
प्रथम भगवती तारा स्वर्ण वर्षा प्रयोग
....
आपके
सामने कुछ कुछ दिन के अंतराल पर आपके सामने रखेंगे.जिससे की आप एक एक करके
भगवती के अनेको रूप की साधनाए को
आप करके आत्मसात कर सकेंगे
और जीवन में श्रेष्ठता अर्जित करते
हुए ,उस पूर्णता के लिए भी अपने आप को तैयार कर सकेंगे , जो की एक साधक का लक्ष्य होना चाहिए ,
जो किसी भी एक गृहस्थ के जीवन का आधार
हैं, जो किसी सामान्य से जीवन को
आकाश तक की उचाई तक ले जाने में एक महत्वपूर्ण क्रिया हो.
मित्रो यह ध्यान में रखने योग्य तथ्य एक हैं की यह आवश्यक नहीं की
हर साधना में मंत्र अलग अलग
हो.अनेको बार एक ही मंत्र कई कई साधना
में प्रयोगित हो सकता हैं पर यह जरुर हैं
की उसके उच्चारण में, उसकी प्रयोग विधि
में कुछ कुछ अन्तर उसके परिणाम में जमीन आसमान का अंतर ला देता हैं.अतः न केबल मंत्र
बल्कि किस प्रकार से उसकी
क्रिया विधि लिखी जा रही हैं, उस पर हमेशा ध्यान रखना चाहिए.
भगवती तारा का
नाम ही जीवन में सब कुछ प्रदान करने वाला
हैं, जो सारे संसार को तारने में
समर्थ हैं, वह भला किसी एक व्यक्ति या
साधक के पाप ताप और सभी प्रकार के दोषों का शमन करने में सक्षम नहीं होगी
क्या ??महाविद्याये
की साधना तो जीवन का सौन्दर्य हैं,इनकी
साधना मिलना भी जीवन को उच्चता तक ले जाने में एक दुर्लभ अवसर हैं और जिन्हें भी यह अवसर मिला
हैं वह जानते हैं की किसी भी एक महाविद्या की साधना को परिपूर्णता से कर लेना भी
जीवन का परम सौभाग्य हैं.और सिद्धाश्रम प्राप्ति या प्रवेश की दिशा में एक बड़ा
कदम ..
और जब बात भागती
तारा महाविद्या की हो तब बात ही कुछ और हैं केबल एक यही महाविद्या हैं, जो सरल
हैं, सहज हैं और साधको को उनका मनोवांछित परिणाम अत्यंत सहजता से प्रदान करने में
समर्थ हैं.
कुसुमाकर
शेखर धुसरितम
मद मत्त
मधु व्रत गुन्ज्ज्यितम |
जगदूद्भव पालन नाश
करम ,
जगदीश्वरी, तारिणी ते चरणम ||
हे
आदिशक्ति भगवती तारा, आपके दिव्य चरण कमल ऋतू कालीन सुशोभावन पुष्प राशि द्वारा धूसरित हैं. इन चरणों पर
मद मत्त
भ्रमर गण गुन्ज्जन कररहे हैं तुम्हारे ये चरण जगत की सृष्टी, स्थिति और
विनाश के कारण हैं .
जो भगवती सारे
संसार का पालन पोषण कर रही हैं वह
क्या साधक को
भौतिक धन धान्य से परिपूर्ण नहीं
कर सकती हैं.वस्तुत सामने जन तो क्या उच्च कोटि के योगियों
और तांत्रिको के मध्य भी यही विस्वास पूर्णता से हैं
की भगवती
तारा की साधना से निश्चय ही आर्थिक अनुकूलता आती ही हैं, और यह इतनी तीव्रता से होता हैं की साधक अचरज से भर जाता हैं,उसे समझ
में ही नहीं आता हैं की
लगातार प्राप्त हो रहे धन का वह करे क्या .
सदगुरुदेव जी ने
कई साधको के अनुभव का उल्लेख किया हैं
मन्त्र तन्त्र यंत्र विज्ञानं पत्रिका
में जिन्होंने इस साधना को किया
और साधना के प्रारंभिक स्तर
पर ही उन्हें आर्थिक लाभ दृष्टी गोचर
होने लगे.ध्यान रहे यहाँ बात साधना की परिपूर्णता की नहीं बल्कि साधना के प्रारंभिक स्तर पर ही. भगवती तारा की साधना से साधको
को धन लाभ होता ही हैं और सामान्य
मानव तो क्या लंकाधिपति रावण और
यक्षराज कुबेर ने भी
अपने राज कोष की परिपूर्णता के लिए ,सर्वविध आर्थिक अनुकूलता के लिए भगवती पारद तारा
की ही साधना उपासना की हैं. और जब
यह ऐसा हैं तब हम यह निष्कर्ष निकाल
सकते हैं
की जिनके पास यह विग्रह हैं उनका
तो सौभाग्य हैं की इस अवसर का लाभ
उठाये
इस साधना में
पहिने जाने वाले वस्त्र अर्थात
धोती और आसन का रंग
गुलाबी होगा . किसी भी बुधवार या
शुक्रवार से यह साधना प्रारंभ की जा सकती हैं .दीपक सरसों तेल का
लगा होना चाहिए और साधक के
बायीं और लगा होना चाहिए .अगर कमरा गुलाबी रंग से पुता हुआ न
हो तो तो यह कोई आवश्यक या अनिवार्य नहीं
हैं पर जहाँ साधना कर रहे हो उस स्थान के आस पास कुछ गुलाबी रंग के कागज चिपका
दें .
यह साधना दो प्रकार से संपन्न की जा सकती है,जिसमे पहला
विधान साधना है और दूसरा मात्र प्रयोग है. पहला विधान 5 दिन का हैं .और हर रात्री 31 माला मन्त्र जप इस दिव्य
मंत्र की करना आवश्यक हैं और दूसरा मात्र एक दिवसीय जिसमे एक ही रात में ७५
माला मंत्र जप करना होता है. और साधना प्राम्भ करने का समय रात्री के ११.३० बजे के
बाद का होगा.दिशा उत्तर की हो तो श्रेष्ठ
हैं. पूरी साधना होने के उपरान्त साधना
समप्ति के बाद आप
इस दिव्य मन्त्र से १०८ आहुति अवश्य करें, और
संभव हो तो किसी कन्या को भोजन कराये
और उसे
कुछ धनराशी अवश्य
दें .
सीधे हाथ में जल
लेकर संकल्प ले .और सदगुरुदेव जी का
सामान्य पूजन और कम से कम चार माला गुरु मंत्र यह दोनों
क्रियाये साधना मन्त्र जप से पहले
और जब उस दिन का साधना मन्त्र
जप पूरा
हो जाए तब भी एक बार
फिर से करें .यह हर दिन करना हैं क्योंकि सिर्फ सदगुरुदेव जी का वरद हस्त हमें साधना में सफलता
दिला सकता है.
तत्पश्चात निम्न क्रम को संपन्न करें –
सर्वप्रथम अक्षोभ्य ऋषि से सफलता प्राप्ति की प्रार्थना करें-
ॐ
अक्षोभ्य ऋषये नम:
(इस मंत्र को २१ बार बोलते हुए भगवती तारा के विग्रह पर कुमकुम से बिंदी
लगायें)
सबसे पहले भगवती तारा का
ध्यान करें और विग्रह का पूजन करें-
ॐ शत कोटि दिवाकर कान्तीयुतम,
विधि विष्णु
शिरोमणि रत्नम घृतम |
चल दुज्ज्वल
नुपुर गान युतम ,
जगदीश्वरी, तारिणी ! ते चरणम ||
इसके बाद भगवती तारा की प्रतिष्ठा
करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें
“ॐ भूर्भुवः
स्वः भगवती तारा, इहागच्छ इह तिष्ठ,
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”
आसन
:
आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि।
आसन के लिए फूल चढाएं
पाद्य
:
ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।
जल चढाएं
अर्घ्य :-
हस्तयोरर्घ्यसमर्पयामि।
अर्घ्यसमर्पित करें।
आचमन :-
स्नानीयं जलंसमर्पयामि।
स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि।
स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।
पय:स्नान :-
ॐपय:
पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।
पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।।
पय:
स्नानंसमर्पयामि।
पय:
स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।
दूध से स्नान कराएं,
पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल
चढाएं।
दधिस्नान :-
दधिस्नानं समर्पयामि,
दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं
समर्पयामि।
दही से स्नान कराने के बाद
शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।
घृत स्नान :-
घृतस्नानं समर्पयामि,
घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।
घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।
मधु स्नान :-
मधुस्नानंसमर्पयामि,
मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं
समर्पयामि।
मधु से स्नान कराकर आचमन
के लिए जल समर्पित करें।
शर्करा स्नान :-
शर्करास्नानं समर्पयामि,
शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं
जलं समर्पयामि।
शर्करा से स्नान कराकर आचमन
के लिए जल चढाएं।
पञ्चमृतस्नान :-
पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि,
पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं
समर्पयामि।
पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध
जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।
गन्धोदकस्नान :-
गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।
गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन
के लिए जल चढाएं।
शुद्धोदकस्नान :-
शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।
शुद्ध जल से स्नान कराएं
तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें। तत्पश्चात विग्रह को साफ़ वस्त्र से पोंछ कर उस ताम्र पात्र को साफ़ कर पुनः विग्रह को उस पात्र
में स्थापित कर दें.
वस्त्र :-
वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्र :-
उपवस्त्रंसमर्पयामि,
उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।
उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के
लिए जल समर्पित करें।
हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण
करें :-
ॐ तारिणी नम:
ॐ स्वर्ण प्रदायिन्यै नम:
ॐ ऐश्वर्य प्रदायिन्यै नम:
ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:
ॐ सह्स्त्रान्वितायै नम:
यज्ञोपवीत :-
यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं
पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
यज्ञोपवीत समर्पित करें।
गंध-अर्पण :-
गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।
चंदन अर्पित करें।
सुगंधित द्रव्य
:-
सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।
सुगंधित द्रव्य चढाएं।
अक्षत :-
अक्षतान्समर्पयामि।
अक्षत चढाएं।
पुष्पमाला:-
पुष्पमालां समर्पयामि।
पुष्पमाला चढाएं।
बिल्व पत्र :-
बिल्वपत्राणि समर्पयामि।
बिल्व पत्र समर्पित करें।
नाना परिमलद्रव्य
:-
नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।
विविध परिमल द्रव्य चढाएं
धूप :-
धूपंमाघ्रापयामि।
धूप अर्पित करें।
दीप :-
दीपं दर्शयामि।
दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।
नैवेद्य :-
नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।
नैवेद्य (खीर)निवेदित करे, तदनंतर भगवती का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।
ताम्बूल पुंगीफल
:-
मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।
पान और सुपारी चढाएं।
तत्पश्चात निम्न मन्त्रों
से भगवती के विग्रह पर एक –एक मंत्र बोलते हुए कुमकुम मिश्रित अक्षत अर्पित करें
इस प्रकार भगवती को कुल १०८ बार चावल अर्पित करने हैं –
ॐ रजताचल शृङ्गाग्र
मध्यस्थायै नमः
ॐ हिमाचल महावंश पावनायै नमः
ॐ शङ्करार्धाङ्ग सौन्दर्य शरीरायै नमः
ॐ लसन्मरकत स्वच्च विग्रहायै नमः
ॐ महातिशय सौन्दर्य लावण्यायै नमः
ॐ शशाङ्कशेखर प्राणवल्लभायै नमः
ॐ सदा पञ्चदशात्मैक्य स्वरूपायै नमः
ॐ वज्रमाणिक्य कटक किरीटायै नमः
ॐ कस्तूरी तिलकोल्लासित निटलायै नमः
ॐ भस्मरेखाङ्कित लसन्मस्तकायै नमः
ॐ विकचाम्भोरुहदल लोचनायै नमः
ॐ शरच्चाम्पेय पुष्पाभ नासिकायै नमः
ॐ लसत्काञ्चन ताटङ्क युगलायै नमः
ॐ मणिदर्पण सङ्काश कपोलायै नमः
ॐ ताम्बूलपूरितस्मेर वदनायै नमः
ॐ सुपक्वदाडिमीबीज वदनायै नमः
ॐ कम्बुपूग समच्छाय कन्धरायै नमः
ॐ स्थूलमुक्ताफलोदार सुहारायै नमः
ॐ गिरीशबद्दमाङ्गल्य मङ्गलायै नमः
ॐ पद्मपाशाङ्कुश लसत्कराब्जायै नमः
ॐ पद्मकैरव मन्दार सुमालिन्यै नमः
ॐ सुवर्ण कुम्भयुग्माभ सुकुचायै नमः
ॐ रमणीयचतुर्भाहु संयुक्तायै नमः
ॐ कनकाङ्गद केयूर भूषितायै नमः
ॐ बृहत्सौवर्ण सौन्दर्य वसनायै नमः
ॐ बृहन्नितम्ब विलसज्जघनायै नमः
ॐ सौभाग्यजात शृङ्गार मध्यमायै नमः
ॐ दिव्यभूषणसन्दोह रञ्जितायै नमः
ॐ पारिजातगुणाधिक्य पदाब्जायै नमः
ॐ सुपद्मरागसङ्काश चरणायै नमः
ॐ कामकोटि महापद्म पीठस्थायै नमः
ॐ श्रीकण्ठनेत्र कुमुद चन्द्रिकायै नमः
ॐ सचामर रमावाणी विराजितायै नमः
ॐ भक्त रक्षण दाक्षिण्य कटाक्षायै नमः
ॐ भूतेशालिङ्गनोध्बूत पुलकाङ्ग्यै नमः
ॐ अनङ्गभङ्गजन कापाङ्ग वीक्षणायै नमः
ॐ ब्रह्मोपेन्द्र शिरोरत्न रञ्जितायै नमः
ॐ शचीमुख्यामरवधू सेवितायै नमः
ॐ लीलाकल्पित ब्रह्माण्डमण्डलायै नमः
ॐ अमृतादि महाशक्ति संवृतायै नमः
ॐ एकापत्र साम्राज्यदायिकायै नमः
ॐ सनकादि समाराध्य पादुकायै नमः
ॐ देवर्षभिस्तूयमान वैभवायै नमः
ॐ कलशोद्भव दुर्वास पूजितायै नमः
ॐ मत्तेभवक्त्र षड्वक्त्र वत्सलायै नमः
ॐ चक्रराज महायन्त्र मध्यवर्यै नमः
ॐ चिदग्निकुण्डसम्भूत सुदेहायै नमः
ॐ शशाङ्कखण्डसंयुक्त मकुटायै नमः
ॐ मत्तहंसवधू मन्दगमनायै नमः
ॐ वन्दारुजनसन्दोह वन्दितायै नमः
ॐ अन्तर्मुख जनानन्द फलदायै नमः
ॐ पतिव्रताङ्गनाभीष्ट फलदायै नमः
ॐ अव्याजकरुणापूरपूरितायै नमः
ॐ नितान्त सच्चिदानन्द संयुक्तायै नमः
ॐ सहस्रसूर्य संयुक्त प्रकाशायै नमः
ॐ रत्नचिन्तामणि गृहमध्यस्थायै नमः
ॐ हानिवृद्धि गुणाधिक्य रहितायै नमः
ॐ महापद्माटवीमध्य निवासायै नमः
ॐ जाग्रत् स्वप्न सुषुप्तीनां साक्षिभूत्यै नमः
ॐ महापापौघपापानां विनाशिन्यै नमः
ॐ दुष्टभीति महाभीति भञ्जनायै नमः
ॐ समस्त देवदनुज प्रेरकायै नमः
ॐ समस्त हृदयाम्भोज निलयायै नमः
ॐ अनाहत महापद्म मन्दिरायै नमः
ॐ सहस्रार सरोजात वासितायै नमः
ॐ पुनरावृत्तिरहित पुरस्थायै नमः
ॐ वाणी गायत्री सावित्री सन्नुतायै नमः
ॐ रमाभूमिसुताराध्य पदाब्जायै नमः
ॐ लोपामुद्रार्चित श्रीमच्चरणायै नमः
ॐ सहस्ररति सौन्दर्य शरीरायै नमः
ॐ भावनामात्र सन्तुष्ट हृदयायै नमः
ॐ सत्यसम्पूर्ण विज्ञान सिद्धिदायै नमः
ॐ त्रिलोचन कृतोल्लास फलदायै नमः
ॐ सुधाब्धि मणिद्वीप मध्यगायै नमः
ॐ दक्षाध्वर विनिर्भेद साधनायै नमः
ॐ श्रीनाथ सोदरीभूत शोभितायै नमः
ॐ चन्द्रशेखर भक्तार्ति भञ्जनायै नमः
ॐ सर्वोपाधि विनिर्मुक्त चैतन्यायै नमः
ॐ नामपारायणाभीष्ट फलदायै नमः
ॐ सृष्टि स्थिति तिरोधान सङ्कल्पायै नमः
ॐ श्रीषोडशाक्षरि मन्त्र मध्यगायै नमः
ॐ अनाद्यन्त स्वयम्भूत दिव्यमूर्त्यै नमः
ॐ भक्तहंस परीमुख्य वियोगायै नमः
ॐ मातृ मण्डल संयुक्त ललितायै नमः
ॐ भण्डदैत्य महसत्त्व नाशनायै नमः
ॐ क्रूरभण्ड शिरछ्चेद निपुणायै नमः
ॐ धात्र्यच्युत सुराधीश सुखदायै नमः
ॐ चण्डमुण्डनिशुम्भादि खण्डनायै नमः
ॐ रक्ताक्ष रक्तजिह्वादि शिक्षणायै नमः
ॐ महिषासुरदोर्वीर्य निग्रहयै नमः
ॐ अभ्रकेश महोत्साह कारणायै नमः
ॐ महेशयुक्त नटन तत्परायै नमः
ॐ निजभर्तृ मुखाम्भोज चिन्तनायै नमः
ॐ वृषभध्वज विज्ञान भावनायै नमः
ॐ जन्ममृत्युजरारोग भञ्जनायै नमः
ॐ विदेहमुक्ति विज्ञान सिद्धिदायै नमः
ॐ कामक्रोधादि षड्वर्ग नाशनायै नमः
ॐ राजराजार्चित पदसरोजायै नमः
ॐ सर्ववेदान्त संसिद्द सुतत्त्वायै नमः
ॐ श्री वीरभक्त विज्ञान निधानायै नमः
ॐ आशेष दुष्टदनुज सूदनायै नमः
ॐ साक्षाच्च्रीदक्षिणामूर्ति मनोज्ञायै नमः
ॐ हयमेथाग्र सम्पूज्य महिमायै नमः
ॐ दक्षप्रजापतिसुत वेषाढ्यायै नमः
ॐ सुमबाणेक्षु कोदण्ड मण्डितायै नमः
ॐ नित्ययौवन माङ्गल्य मङ्गलायै नमः
ॐ महादेव समायुक्त शरीरायै नमः
ॐ महादेव रत्यौत्सुक्य महदेव्यै नमः
ॐ चतुर्विंशतन्त्र्यैक रूपायै
ॐ हिमाचल महावंश पावनायै नमः
ॐ शङ्करार्धाङ्ग सौन्दर्य शरीरायै नमः
ॐ लसन्मरकत स्वच्च विग्रहायै नमः
ॐ महातिशय सौन्दर्य लावण्यायै नमः
ॐ शशाङ्कशेखर प्राणवल्लभायै नमः
ॐ सदा पञ्चदशात्मैक्य स्वरूपायै नमः
ॐ वज्रमाणिक्य कटक किरीटायै नमः
ॐ कस्तूरी तिलकोल्लासित निटलायै नमः
ॐ भस्मरेखाङ्कित लसन्मस्तकायै नमः
ॐ विकचाम्भोरुहदल लोचनायै नमः
ॐ शरच्चाम्पेय पुष्पाभ नासिकायै नमः
ॐ लसत्काञ्चन ताटङ्क युगलायै नमः
ॐ मणिदर्पण सङ्काश कपोलायै नमः
ॐ ताम्बूलपूरितस्मेर वदनायै नमः
ॐ सुपक्वदाडिमीबीज वदनायै नमः
ॐ कम्बुपूग समच्छाय कन्धरायै नमः
ॐ स्थूलमुक्ताफलोदार सुहारायै नमः
ॐ गिरीशबद्दमाङ्गल्य मङ्गलायै नमः
ॐ पद्मपाशाङ्कुश लसत्कराब्जायै नमः
ॐ पद्मकैरव मन्दार सुमालिन्यै नमः
ॐ सुवर्ण कुम्भयुग्माभ सुकुचायै नमः
ॐ रमणीयचतुर्भाहु संयुक्तायै नमः
ॐ कनकाङ्गद केयूर भूषितायै नमः
ॐ बृहत्सौवर्ण सौन्दर्य वसनायै नमः
ॐ बृहन्नितम्ब विलसज्जघनायै नमः
ॐ सौभाग्यजात शृङ्गार मध्यमायै नमः
ॐ दिव्यभूषणसन्दोह रञ्जितायै नमः
ॐ पारिजातगुणाधिक्य पदाब्जायै नमः
ॐ सुपद्मरागसङ्काश चरणायै नमः
ॐ कामकोटि महापद्म पीठस्थायै नमः
ॐ श्रीकण्ठनेत्र कुमुद चन्द्रिकायै नमः
ॐ सचामर रमावाणी विराजितायै नमः
ॐ भक्त रक्षण दाक्षिण्य कटाक्षायै नमः
ॐ भूतेशालिङ्गनोध्बूत पुलकाङ्ग्यै नमः
ॐ अनङ्गभङ्गजन कापाङ्ग वीक्षणायै नमः
ॐ ब्रह्मोपेन्द्र शिरोरत्न रञ्जितायै नमः
ॐ शचीमुख्यामरवधू सेवितायै नमः
ॐ लीलाकल्पित ब्रह्माण्डमण्डलायै नमः
ॐ अमृतादि महाशक्ति संवृतायै नमः
ॐ एकापत्र साम्राज्यदायिकायै नमः
ॐ सनकादि समाराध्य पादुकायै नमः
ॐ देवर्षभिस्तूयमान वैभवायै नमः
ॐ कलशोद्भव दुर्वास पूजितायै नमः
ॐ मत्तेभवक्त्र षड्वक्त्र वत्सलायै नमः
ॐ चक्रराज महायन्त्र मध्यवर्यै नमः
ॐ चिदग्निकुण्डसम्भूत सुदेहायै नमः
ॐ शशाङ्कखण्डसंयुक्त मकुटायै नमः
ॐ मत्तहंसवधू मन्दगमनायै नमः
ॐ वन्दारुजनसन्दोह वन्दितायै नमः
ॐ अन्तर्मुख जनानन्द फलदायै नमः
ॐ पतिव्रताङ्गनाभीष्ट फलदायै नमः
ॐ अव्याजकरुणापूरपूरितायै नमः
ॐ नितान्त सच्चिदानन्द संयुक्तायै नमः
ॐ सहस्रसूर्य संयुक्त प्रकाशायै नमः
ॐ रत्नचिन्तामणि गृहमध्यस्थायै नमः
ॐ हानिवृद्धि गुणाधिक्य रहितायै नमः
ॐ महापद्माटवीमध्य निवासायै नमः
ॐ जाग्रत् स्वप्न सुषुप्तीनां साक्षिभूत्यै नमः
ॐ महापापौघपापानां विनाशिन्यै नमः
ॐ दुष्टभीति महाभीति भञ्जनायै नमः
ॐ समस्त देवदनुज प्रेरकायै नमः
ॐ समस्त हृदयाम्भोज निलयायै नमः
ॐ अनाहत महापद्म मन्दिरायै नमः
ॐ सहस्रार सरोजात वासितायै नमः
ॐ पुनरावृत्तिरहित पुरस्थायै नमः
ॐ वाणी गायत्री सावित्री सन्नुतायै नमः
ॐ रमाभूमिसुताराध्य पदाब्जायै नमः
ॐ लोपामुद्रार्चित श्रीमच्चरणायै नमः
ॐ सहस्ररति सौन्दर्य शरीरायै नमः
ॐ भावनामात्र सन्तुष्ट हृदयायै नमः
ॐ सत्यसम्पूर्ण विज्ञान सिद्धिदायै नमः
ॐ त्रिलोचन कृतोल्लास फलदायै नमः
ॐ सुधाब्धि मणिद्वीप मध्यगायै नमः
ॐ दक्षाध्वर विनिर्भेद साधनायै नमः
ॐ श्रीनाथ सोदरीभूत शोभितायै नमः
ॐ चन्द्रशेखर भक्तार्ति भञ्जनायै नमः
ॐ सर्वोपाधि विनिर्मुक्त चैतन्यायै नमः
ॐ नामपारायणाभीष्ट फलदायै नमः
ॐ सृष्टि स्थिति तिरोधान सङ्कल्पायै नमः
ॐ श्रीषोडशाक्षरि मन्त्र मध्यगायै नमः
ॐ अनाद्यन्त स्वयम्भूत दिव्यमूर्त्यै नमः
ॐ भक्तहंस परीमुख्य वियोगायै नमः
ॐ मातृ मण्डल संयुक्त ललितायै नमः
ॐ भण्डदैत्य महसत्त्व नाशनायै नमः
ॐ क्रूरभण्ड शिरछ्चेद निपुणायै नमः
ॐ धात्र्यच्युत सुराधीश सुखदायै नमः
ॐ चण्डमुण्डनिशुम्भादि खण्डनायै नमः
ॐ रक्ताक्ष रक्तजिह्वादि शिक्षणायै नमः
ॐ महिषासुरदोर्वीर्य निग्रहयै नमः
ॐ अभ्रकेश महोत्साह कारणायै नमः
ॐ महेशयुक्त नटन तत्परायै नमः
ॐ निजभर्तृ मुखाम्भोज चिन्तनायै नमः
ॐ वृषभध्वज विज्ञान भावनायै नमः
ॐ जन्ममृत्युजरारोग भञ्जनायै नमः
ॐ विदेहमुक्ति विज्ञान सिद्धिदायै नमः
ॐ कामक्रोधादि षड्वर्ग नाशनायै नमः
ॐ राजराजार्चित पदसरोजायै नमः
ॐ सर्ववेदान्त संसिद्द सुतत्त्वायै नमः
ॐ श्री वीरभक्त विज्ञान निधानायै नमः
ॐ आशेष दुष्टदनुज सूदनायै नमः
ॐ साक्षाच्च्रीदक्षिणामूर्ति मनोज्ञायै नमः
ॐ हयमेथाग्र सम्पूज्य महिमायै नमः
ॐ दक्षप्रजापतिसुत वेषाढ्यायै नमः
ॐ सुमबाणेक्षु कोदण्ड मण्डितायै नमः
ॐ नित्ययौवन माङ्गल्य मङ्गलायै नमः
ॐ महादेव समायुक्त शरीरायै नमः
ॐ महादेव रत्यौत्सुक्य महदेव्यै नमः
ॐ चतुर्विंशतन्त्र्यैक रूपायै
तत्पश्चात आप गुलाबी या लाल रंग
के हकीक माला या
किसी भी शक्ति माला या कोई भी संस्कारित माला के द्वारा अपना चयनित विधान
अनुसार मंत्र जप संपन्न करें (बाजार से खरीदी कोई
भी जप माला को संस्कारित करने की विधि हम
“तंत्र कौमुदी” पत्रिका के
प्रारंभ के अंको में दे
चुके हैं ) प्रतिदिन यदि संभव हो तो गुलाबी रंग के
कुछ पुष्प इस दिव्यतम पारद विग्रह के सामने अर्पित करें
मंत्र :
ॐ ह्रीं
ह्रीं श्रीं श्रीं तुर्यै वितुर्यै सिद्धिं भव स्वर्ण प्रदायै तारायै
फट |
Om
hreeng hreeng shreem shreem turyai vituryai siddhim bhav swarn pradayai
tarayai phat .
साधना समाप्ति
के बाद भी इस मंत्र का जप यदि एक या पांच
माला यदि गुलाबी वस्त्र धारण कर लगातार करते जाये
तो और भी अनुकूलता अनुभव करी जा सकती हैं. जप के बाद क्षमा याचना करें.
क्षमा प्रार्थना
न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच
नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने
विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं
क्लेशहरणं
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत्
।
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि
शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि
कुमाता न भवति
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि
बहवः संति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं
तव सुतः ।
मदीयोयंत्यागः समुचितमिदं
नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि
कुमाता न भवति
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा
न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि
भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं
यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता
न भवति
परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु
वयसि
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा
नापि भविता निरालंबो लंबोदर
जननि कं यामि शरणं
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं
कोटिकनकैः
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे
फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं
जपविधौ
चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कंठे भुजगपतहारी
पशुपतिः
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं
न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव
वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि
सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं
यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति
जपतः
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं
वचोभिः
श्यामे त्वमेव यदि किंचन
मय्यनाधे
धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति
जगदंब विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं नहि माता
समुपेक्षते सुतं
मत्समः पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा नहि
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं तथा कुरु
जप के बाद आप प्रसाद ग्रहण कर लें.आप इस प्रयोग को
करें और
हर दिन का जप सदगुरुदेव जी के श्री चरण कमलो में समर्पित करना न भूले.
****NPRU****
2 comments:
Jai gurudev bhai ji
maaf karein
aapne yahan par vigrah ki baat to ki hai par aisa durlabh vigrah kahan se milega eske baare mein aapne nhi bataya
jai gurudev,
Maine Anu Parivartn Sahastranvit deha tara mantra Parad Shriyantra jo nikhil alchemy se liya hai uske uupar prayog kiya. Bahut hi powerful sadhana hai. Aise powerful sadhana ke bare mai jaankari dene ke liye bahut dhanyavaad.
Kya aap mujhe swatah bhagaylekha sadhana email pe bejenge?
Email: munited123@gmail.com
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