अंक ज्योतिष में आठ का अंक तो विविधता लिए ही होता हें, ओर जो भी व्यक्तित्व इस अंक से जुड़े हैं उन सभी के जीवनमें उतार चढाव ओर पता नहीं क्या क्या संभव हो जाये कह नहीं सकते हैं पर जीवन एक सरल रेखीय नहो कर विविधतापूर्ण रहता हैं , यहाँ पर मैं भगवान् कृष्ण के जीवन का उदाहरण ले रहा हूँ, जन्म अष्टमी को उनका जन्म हुए आप स्वयं ही देखें की क्या क्या नहीकिया उन्होंने , ओर उनके जीवन में क्या क्या नहीं हुए, एक अद्भुत सा उदहारण हमारे सामने हैं
तो नौ के अंक का क्या कहेंगे , यह तो पूर्णता का प्रतीक हैं अब जो पूर्ण होगा उन्स्से तो पूर्णता ही मिलेगा किसीभी अंक से इसे गुणा करे , आने वाला अंक का हमेशा अतिम जोड़ तो नौ ही रहेगा . भगवान राम जी ने राम नवमी को जन्म लिया था, उनका आप जीवन देखे एक सीधी रेखा में चलता गया .यह तो नौ के अंक का गुण हैं जीवन एक सीधी रेखा में ....
वैसे तो माँ पराम्बा स्वरुप महाकाली , भगवान् श्री कृष्ण की मतान्तर से बहिन मानी जाती हैं . तो बे भी अपने भाई तरह वे भी सर्वाधिक रहस्यमयी हैं ,ठीक इसी तरह हर देवी देवता के बिभिन स्त्रोत हैं जैसे ह्रदय स्त्रोत ,शत अस्टोत्तर नामावली .. पर इन स्त्रोतों के मध्य जो हमेशा से सर्वाधिक अनुकूल होता हैं वह हैं अष्टक , क्योंकि एक तोयह मात्र आड़ श्लोक का ही समूह रहता हैं
माँ महाकाली जो काल के सीने परभी पर रख कर खड़ी हो जाती हैं , उनका क्रोधमय स्वरुप के आगे क्या ,उनका वात्सल्य मय स्वरुप छुप सकता हैंक्या कम प्रभाव शाली हैं .वसे तोशास्त्रो मैं माँ के ८ या १०८ या१००८ रूप भी बतलाये हैं, इन अस्ट रूप का तो क्या कहना , इन अष्ट रूपों में भी माँ के सम्पूर्ण ता दिखलाए पड़ जाती हैं. क्या यौवन काली , क्या संत्तिप्रभा काली. क्या स्पर्श मणीकाली ,सौन्दर्य काली एक से एक अद्भुत रूप ,हर रूप आपने आप मैं एक विशिष्ट ता लिए हुए हैं .
पर किस्में हैं समर्थ जो की इस संहार की देवी की पूजा आकरे, किस में हैं क्षमता जो संहार की / मृत्यु की ही साक्षात् साधना कर सके फिर भी अनेको , जिन्होंने देश को दिशा निर्देश दिए हैं वह माँ भगवती पराम्बा के इस रूप के आराधक रहे हैं चाहे वह राम कृष्ण परमहंस होया स्वामी विवेकानंद जी हो, तेलग स्वामी हो . सभी में यह अद्भुत साम्य पाया गया हैं .
पूज्य पाद सदगुरुदेव जी कहते हैं (हिमालय के योगियों की गुप्त सिद्धियाँ) माँ का तो यह स्वरुप अद्भुत हैं जिन्होंने भी उसका दर्शन किया वह सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होने की दिशा में चल दिए हैं , सदगुरुदेव जी ने कहा की ये आदि शंकराचार्य द्वारा विर्चित श्लोक तो अद्भुत ही हैं यह मात्र स्तुति ही नहीं बरन सही अर्थो में उनका आवाहन मन्त्र भी हैं यदि साधक भाव विलगत कंठ से इसका उच्चारण करता हैं तो निश्चय ही माँ के ज्वाजल्य्मान स्वरुप के दर्शन हो जाते हैं .
ओर हम मैसे अनेको को तो यह अष्टक याद ही होगा , बहुत सरल हैं .पर इसका ध्यान रखे की इस अष्टक को ध्यान सहित ही करना हैं (ध्यान के बारे मेंकई पोस्ट में दिया हुआ हैं)
मुझे याद पड़ता हैं की जब में सदगुरुदेव जी के बारे में थोडा सा तो जान गया था, पर अभी तो उनतक भौतिक रूप ,में पहुंचने में काफी समय था ही मैंने जब इस अष्टक को पढ़ा , तब से पूजा का अंग बनाकर रात्रि में किया करता था .
जबभी समय मिलता अपने घरकी छत पर कभी कभी जा कर अर्ध रात्रि में कोशिश करता की भाव बिभोरता आ जाये (पर क्या यह अभ्यास से आती हैं.?. कभी नहीं .. पर मुझे सरल सा लगता था की सीधे ही माँ के दर्शन होजाएंगे , बच्चे अपने पिता की नक़ल ही न करेंगे न , अभी तो समझ पाना बहुत कठिन था की सदगुरुदेव के श्री मुख से उच्चारित शब्द तो ब्रम्हांड के लिए भी आदेश होते हैं ). पर जैसे ही एक बार पाठ करता तुरंत ही मानो चारो ओरवातावरण में एक नीरवता फैल जाती . अर्ध रात्रि में छत पर अकेले ज्यो ही ऐसा होता , भय सा लगता की कही माँ सचमुच..., तत्काल इसे रोक देता था,चुपचाप चारो ओर देखता रहता था . वह तो बाद में मैंने समझा की महाविद्या साधना में पहले डर ही सामने आता हैं. ओर माँ तो संहार की देवी हैं, शमशान की अधिस्ठार्थी हैं वे तो भला क्यों न नीरवता आयेगीउनके आने की दिशा में पहला कदम ही था . ओर यह कोई स्त्रोत तो हैं नहीं , जब्सद्गुरुदेव जी स्वयं कह रहे हैं की माँ का आव्हान मंत्र हैं तब अब भी कुछ शेष .....
बहुत काल बाद में समझ में आया की माँ तोदर्शन देने तैयार ही हैं हम ही हट जाते हैं , वैसे भी पुज्य पाद सदगुरुदेव् सभी दीक्षा तो आसानी से दे देते थे, पर माँ महाकाली की दीक्षा देने में वह भी साधक को देखते थे, ओर क्यों न हो ?क्यों दिगम्बर माँ के रूप के सामने तो साधक तो तभी जा सकता हैं जब वह शिशु ही हो,, अब भला शिशु की क्या इच्छा ? क्या मान ? क्या अपमान? क्या लक्ष्य ? क्या मंज़िल ? उसे तो बस माँ , ओर केबल माँ , और केबल माँ ही चाहिए , तो सदगुरुदेव जीको भी उस साधक को शिशु तुल्य निर्मल करना ही होता हैं तभी तो दिगम्बर माँ सामने आएँगी.
आप पत्रिका के विगत अंको में में इस कालिका अष्टक को देख सकते हैं . माँ तो काली कुल की अधिस्ठार्थी हैं दस महाविद्या में सर्व प्रथम हैं , परम करुण मयी हैं आपकी पुकार सुन कर कब तक वे शांत खड़ी रह सकती हैं ... रात्रि में ज्यादा उचित होगा इस का पाठ करना , सदगुरुदेव भगवान् ओर माँ का फोटो होतो और भी अच्छा , वैसे सदगुरुदेव जी ओर माँ में कहाँ भेद , पर सामने तेल का दीपक लगा हुआ हो . आप करे अपनी सामर्थानुसार ११,२१, ३१,५१ पाठ रोज़ , दिन निश्चित कर के करे . हाँ कोई कार्य विशेष होतो संकल्प लेना तोकभी न भूले .
किसी कार्य को पूरा करने के लिए ,तो पाठ सभी करते हैं हैं , पर कभी केबल माँ के स्नेह के लिए भी कर के देखें ....
पर कैसे हो हो यह सचमुच आवाहन ओर वास्तवमें इस अष्टक का क्या रहस्य हैं , क्या हैं इसकी गोपनीयता ... वह आगे के किसी पोस्ट पर
बस आज केलिए इतना ही ....
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In numerology the number eight is stands for diversity of various acts. those who are related to this number found that many ups and down always be a part of their life, whenever any positive or negative event happens , nobody knows. The life will not be for them in a straight line but comprises of many diversity .here I am taking example of Bhagvaan shree krishan’s life , he was born on janamshtmi , and you already knew the life pattern of him,
Where as the people born on nine . this nine number stands for completeness or purnta .if we multiply any number to nine, the total of all the number of the coming result ,will always be nine.. Bhagvaan shri ram was born on ramanavami , you can see bhagvaan Ram life always on a straight line. This is the quality of number nine, that the life always be in straight line.
Ma Mahakali consider as a sister of bhagavaan shri krishan according to some holy books. She is also having same mysterious nature as the Bhagvaan. Each devi or deity has various strota like hrdy strota and ashtottar namavali like that , among that the ashtak means a strot comprises of eight shlok, will be the best .
Divine mother ma mahakali , stands on the chest of kaal when time needed, the most angry swarup does not shadowed the mother loving nature to her children , no not at all. holy books or shastra’s tells us about the mother 8 form or 108 form even 1008 form.s But the mother 8 forms are very radiant one . like yovan kali, santtiprada kali, sparshmanikali , al the form are unparallel and unequal.
But who has the power to worship the goddess of death or goddess of sanhaar, but still many move on this path, like shri ram krishan paramhans , swami Vivekanand , swami tailang are some of the example ,every one has a very unique similarity.
Sadgurudev ji tells in “himalay ke yogiyon ki gypt siddhiya”. Divine mother this form is amazing those who ever if seen the one sec of glimpses of divine mother surely all his problem get vanishes. And also said that theses shlok are written by aadi shankaracharay, here archar not only doing stuti but in the real sense this is the mother kali aavahan mantra. if any sadhak recite this ashtak with full devotion and a stage reached where he was complete an aware of the outer world ,the mother gave him his vision on that point.
Many of us already reciting daily this ashtak but remember that dhyan must be use .
I remembered that when I grown little bit , I knew about Sadgurudev ji but still I have to pass a many distances before reaching the final destination. till I could not reach him ., I add this ashtak in my puja . And it became a part of mine daily pooja .
Whenever I got time in the mid night i used to go to upstairs’, and in the mid night when I tried to speak with full devotion (till that i never learn that through practices this thing can not be possible., I was in impression that any day she will come in front of me. But this never happened. Yes it is true, children used to copy to his father so I was doing at that time.) i could not understand that the word coming of Sadgurudev ji, is a order to whole universe. When ever In midnight time alone I started the kalikashtak, suddenly total calm down situation arises all around me., and I was getting fearful, later I learnt the fear is the first factor. or first step in the path of mahavidya sadhana .so on feeling the silence due to fear I stopped the kalika shtak, and try to see in all direction may be she will…actually when Sadgurudev tells that it is aavahan mantra then still any thing more to write.
Later i have learned that mother is always ready to come for us, it is our lack of determination and we move backword. Sadgurudev used to give any diksha but when the question of Mahakali Diksha arrives, even he has to see the sadhak, reason is the digambara mother can only come to near to new born child, and in new born, no question of sact, creed, aim . no question of getting any respect or disrespect. He only want his mother at any cost. so sadgurudev ji has to converted the sadhak mentality to a shishy level in purity sense. Only than divine mother came nearer of him.,
You can see this kalikashtak in old issue of magazine, and if you chant in night much better after 10 pm, and light up the earthen lamp with oil. Yes if any difficulty or something else chant 1,21,31,51,or108 path without any break. If having photograph of Sadgurudev ji and mother kali much better. And according to your health condition and other things you should decide how much would be better..
Many people do the jap in the time of need, some time do the jap of this ashtak once ,only for feeling mother love.
What are the secret behind this ashtak, what is confidential things. May be in any next post.
Enough for today ,
Tantra kaumudi :(monthly free e magazine) :Available only to the follower of the blog and member of Nikhil Alchemy yahoo group
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